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अब नीतीश की नई कसौटी, चिराग पड़े मद्धिम, नए क्षितिज की ओर तेजस्वी
-कृष्ण किसलय (संपादक, सोनमाटी)
एनडीए की घोषणा के मुताबिक बेशक नीतीश कुमार ही बिहार के मुख्यमंत्री होंगे। मगर सूबे की करवट ले चुकी सियासत में भाजपा के बड़े भाई की भूमिका में आ जाने के दबाव से मुख्यमंत्री के रूप में नीतीश कुमार के सामने अब नई कसौटी होगी। उनके सामने जदयू-भाजपा के बीच सीटों का बड़ा अंतर होने से उहापोह की स्थिति बनी रहेगी और नैतिकता की समस्या भी खड़ी रहेगी। भारतीय राजनीति में 2014 को प्रचंड बहुमत से भाजपा के केेंद्र में आने और नरेंद्र मोदी की ताजपोशी को राजनीति में बदलाव का वर्ष माना जा सकता है। इसके बावजूद बिहार में नीतीश कुमार ने अपने दम पर नरेंद्र मोदी की छवि के सामने जीत दर्ज कराई थी। इस बार चुनाव के अंतिम दिन नीतीश कुमार ने कहा, यह उनका अंतिम चुनाव है। उनके मन में क्या चल रहा है, यह तो भविष्य के गर्भ में है।
चिराग ने किया नीतीश का बेहद नुकसान : दो राय नहीं कि चिराग पासवान ने भ्रम पैदा कर नीतीश कुमार के जदयू को बेहद नुकसान पहुंचाया। जदयू फिसल कर नंबर-वन से राजद और भाजपा के बाद तीसरे नंबर पर आ गया। लोजपा ने जदयू उम्मीदवारों के खिलाफ प्रत्याशी नहीं खड़ा किया होता तो संभव है कि जदयू बिहार में सबसे बड़ी पार्टी होती। आंकड़े बता रहे हैं कि लोजपा के विरोधी होने से जदूय को दो दर्जन सीटों पर नुकसान हुआ। भाजपा बिहार में 2005 से जदयू के साथ छोटे भाई की भूमिका में सरकार बनाती-चलाती रही है। नीतीश कुमार का कद छोटा होने की उसकी चाह जरूर कसकती रही है। शायद इसी इच्छा-पूर्ति के लिए भाजपा ने चिराग पासवान को पिछले दरवाजे से आगे किया गया हो। बिना किसी शह के चिराग आखिर अचानक केेंद्र में मोदी के साथ और राज्य में नीतीश के विरोध की बात क्यों कहते? हालांकि भाजपा इस बात को नकारती रही है। भले इस बार चिराग मद्धिम पड़ गए हों, मगर वह 2025 की राजनीति कर रहे हंै। उनका प्रयास तब अधिकाधिक सीटें पाकर दबाव बनाने वाली किंगमेकर की भूमिका में होने की होगी। जैसाकि चिराग के पिता रामविलास पासवान छह फीसदी मत-स्थानांतरण की गारंटी वाली अपनी ताकत के बूते केेंद्र की राजनीति में महत्वपूर्ण बने रहे थे।
तेजस्वी भविष्य के प्रतिरोध का राष्ट्रीय चेहरा : भाजपा के साथ होने के कारण राष्ट्रीय स्तर पर विपक्षी खेमे की अगुवाई का मौका फिलहाल नीतीश कुमार के सामने नहींहै। लालू यादव और उनकी पार्टी राजद ने अपने को भाजपा और नरेंद्र मोदी के प्रति मुखर रह धर्मनिरपेक्षता के बड़े पैरोकार के रूप में स्थापित रखा है। अपनी ही तरह लालू यादव ने नहीं चाहा कि तेजस्वी यादव के सामने कोई प्रतिस्पर्धी भी हो। इसलिए वाम दलों से समझौते में कन्हैया कुमार को हाशिये पर रखा गया। चुनाव प्रचार में लालू के नहींहोने के बावजूद तेजस्वी ने राहुल गांधी के साथ एक ही बार मंच साझा किया। चुनाव-पूर्व एनडीए मजबूत और महागठबंधन अव्यवस्थित दिखता था। महागठबंधन के घटकदल तेजस्वी को नेता मानने को तैयार नहीं थे। रघुवंश प्रसाद सिंह जैसे वरिष्ठ नेता की नाराजगी भी सामने थी। उपेंद्र कुशवाहा, जीतनराम मांझी, मुकेश सहनी साथ छोड़ गए थे। चुनाव प्रचार के जोर पकडऩे के साथ महागठबंधन की कमजोरी दूर हो गई। वाम दलों ने महागठबंधन को ताकत दी। कांग्रेस ने राजद से सवर्ण वोटरों की पारंपरिक नाराजगी यथासामथ्र्य न्यूनतम करने का कार्य किया। तेजस्वी ने 10 लाख सरकारी नौकरी देने के वादा से युवाओं में आकर्षण जगाकर सर्वाधिक मत पाया। इससे जाहिर है कि कांग्रेस के राष्ट्रीय नेता राहुल गांधी, सपा के युवा नेता अखिलेश यादव, वाम दलों के युवा नेता कन्हैया कुमार के राजनीति में लंबी रेस के खिलाड़ी होने के बावजूद भविष्य में नरेंद्रमोदी के प्रतिरोध का चेहरा तेजस्वी ही होंगे।
नए भविष्य का मतदान : बिहार एनडीए में भाजपा बनी बड़ी पार्टी पहली बार
पटना (निशान्त राज)। 17वीं विधान सभा के चुनाव में बहुत ही कांटेदार सियासी संघर्ष में अंतत: एनडीए ने बाजी मार ली और सरकार बनाने के 122 का जादुई आंकड़ा पार कर कुल 3४3 में 125 सीटों पर अधिकार जमा लिया। प्रतिपक्षी महागठबंधन को 110 सीटें मिलीं। इस बार चुनाव की खास बात यह है कि तेजस्वी यादव ने पिता लालू यादव की अनुपस्थिति के बावजूद नेतृत्व-क्षमता साबित की। नरेंद्र मोदी की चमक बरकरार रही और नीतीश से नाराजगी के बावजूद वह भाजपा को एनडीए में बड़ा भाई बनाने में कामयाब रहे। कांग्रेस पहले से भी कमजोर हुई। उसका प्रदर्शन छोटे दलों से भी खराब रहा। वाम दलों ने अपनी खोई हुई जमीन राजद के साथ समझौत कर करीब-करीब वापस पा ली। इस चुनाव से बिहार में ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम की मुस्लिम सियासत की इंट्री हुई, जिसने पांच सीटें प्राप्त की। सबसे अधिक नुकसान नीतीश कुमार को हुआ।
एनडीए के बड़े घटक भाजपा को 74, जदयू को 43, हम को 04 और वीआईपी को भी 04 सीटे प्राप्त हुईं। जबकि महागठबंधन के बड़े घटक राजद को 75, कांग्रेस को 19 और वाम दलों को 16 सीटें हासिल हो सकी हैं। वाम दलों में भाकपा-माले को 12, भाकपा को दो और माकपा को भी दो सीटें मिलीं। बिहार में एनडीए से अलग होकर घोषित तौर पर नीतीश कुमार के जदयू के विरोध में लडऩे वाली चिराग पासवान की लोजपा को सिर्फ एक सीट मिल सकी। दक्षिणी सीमांत जिला कैमूर में बसपा ने लंबे समय बाद एक सीट हासिल की। एक सीट निर्दलीय की झोली में भी गई। इस बार राजद को सबसे अधिक 22.9 फीसदी मत मिले हैं। भाजपा को मिलने वाला मत प्रतिशत 19.8 और जदयू को मिलने वाला मत प्रतिशत 15.4 है। भाजपा ने 2015 में 53 सीटें प्राप्त की थी, इस बार 74 सीटें उसे मिली। उसे 21 सीटों का फायदा हुआ। कहा जा सकता है कि 16 सीटें पाने वाली वाम दलों ने महागठबंधन में शामिल होकर 29 सीटों पर चुनाव लड़कर दशकों से खोई हुई जमीन पर वापसी की है। बिहार का लेनिनग्राद कहे जाने वाले बेगूसराय जिला में सीपीआई ने 04 सीटों पर चुनाव लड़ दो सीटें हासिल की हैं। 2015 के चुनाव में सीपीआई, सीपीएम खाता नहीं खोल पाई थी। भाकपा-माले 2015 में 03 सीट जीत पाई थी। इस बार भोजपुर, अरवल, सिवान जिलों में प्रभुत्व रखने वाली भाकपा-माले ने राजद-कांग्रेस से समझौता कर 12 सीटें हासिल की।
देखिए, समाज का यह मत-चरित्र कि बाहुबली से हार गया साधू!
पटना (सोनमाटी समाचार नेटवर्क)। धनबल, बाहुबल और जातिबल के लिए जानी जाने वाली बिहार की सियासत में इस बार भी दागी प्रत्याशियों का बोलबाला रहा। एसोसिएशन फार डेमोक्रेटिक रिफाम्र्स की रिपोर्ट के मुताबिक, 2015 के चुनाव में 3450 प्रत्याशियों में से आपराधिक पृष्ठभूमि के उम्मीदवारों की संख्या 1038 यानी तीस प्रतिशत थी। इस बार 32 फीसदी उम्मीदवार दागी थे। विधानसभा के लिए चुने गए दागी प्रत्याशियों की संख्या 54 है। कई चर्चित बाहुबली फिर चुनाव जीत गए हैं। बहुचर्चित अनंत सिंह पर पुलिस थाना में सबसे अधिक 38 कांड दर्ज हैं। एके 47 और हैंड ग्रेनेड की घर से बरामदगी के केस में जेल की सजा काट रहे अनंत सिंह ने मोकामा से फिर से जीत का परचम लहरा दिया। वह बिहार के चर्चित बाहुबली हैं, जिनका सहारा कभी नीतीश कुमार को भी लेना पड़ा था। नीतीश ने इन्हें सियासत से दूर किया तो तेजस्वी की नजर ने इन्हें गुड एलीमेंट बनाकर मोकामा से टिकट दिया। अपने समर्थकों में छोटे सरकार के नाम से मशहूर अनंत सिंह पांचवी बार विधानसभा पहुंच गए। दो बार वह जेल में रहकर चुनाव जीते हैं। इस बार उन्होंने जेल से ही साधू छवि के बेदाग जदयू के प्रत्याशी को हराया।
जेल में रहते ही विधानपार्षद निर्वाचित हुए बाहुबली रीतलाल यादव आशा सिन्हा को करीब 16 हजार वोट से हराकर विधानसभा पहुंचे हैं। जबकि आशा सिन्हा चार बार से विधायक रहीं हैं। रीतलाल यादव को तीन महीना पहले जमानत मिली थी और जेल से बाहर आए थे। दानापुर में 4 बार से विधायक इनका भी एक संयोग हैए ठश्रच् की जिन आशा सिन्हा को रीतलाल यादव ने हराया हैए उनके पति और ठश्रच् के दिवंगत नेता सत्यनारायण सिन्हा के हत्या का आरोप भी इसी बाहुबली पर है। पटना जिला के बिक्रम विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के बाहुबली कहे जा सकने वाले सिद्धार्थ भी दूसरी बार चुनाव जीत कर विधानसभा पहुंच गए। सिद्धार्थ पर चार आपराधिक मामले दर्ज हैं। जब वह पहली बार विधायक थे, तब उन पर लड़की का अगवा करने का आरोप लगा था। बाद में विधायक सिद्धार्थ अपने ड्राइवर और लड़की के साथ थाने पहुंचे थे और तो इनके बजाय इनके ड्राइवर ने पुलिस को दिए बयान में जुर्म करना स्वीकार किया। हालांकि कई बाहुबलियों को जनमत ने धूल भी चटाई है। इन्हीं में से एक हैं जदयू के टिकट पर बेगूसराय जिला की मटिहानी सीट से खड़े विधायक नरेंद्र सिंह उर्फ बोगो सिंह। 2005 में बाहुबली बोगो सिंह निर्दलीय चुनाव जीते थे और 2010 और 2015 के चुनाव में जदयू के टिकट पर। लोजपा के राजकुमार सिंह ने उनकी लंका में आग लगा दी।
संजय सहनी ने जगाई आम प्रत्याशी बनने की उम्मीद
कुढऩी, मुजफ्फरपुर (सोनमाटी संवाददाता)। कुढऩी विधानसभा क्षेत्र से निर्दलीय चुनाव लडऩे वाले संजय सहनी के साहस से यह उम्मीद जगी है कि चुनाव में आम आदमी भी मतदाता से प्रत्याशी की भूमिका में हो सकता है। उनका कहना है, चुनाव में खड़ा होना नेतागिरी चमकाना नहीं, बल्कि अपने इलाके के मजदूरों को हक दिलाना है। उनके प्रचार में कई सामाजिककार्यकर्ता कई राज्यो से आए। संजय सहनी 2000 में दो जून की रोटी के जुगाड़ करने के लिए बिहार से दिल्ली गए थे। कई कारखानों में मजदूरी करने के बाद बिजली मिस्त्री बने। वह साइबर कैफे से मनरेगा की जानकारी प्राप्त कर फोन कर गांव के परिचितों से मनरेगा के बारे में पूछते रहते थे। एक बार दिल्ली से घर आए तो इंटरनेट के जरिए गांव के मनरेगा मजूदरों की सूची निकाली। अगली बार गांव आए तो पूछा कि क्या सूची के अनुसार मजदूरी मिली है? सभी ने इनकार किया। तब उन्होंने आरटीआई का इस्तेमाल किया। इंटरनेट के जरिये मजदूरों के हक के लिए सामाजिक कार्यकर्ताओं से संपर्क किया। अपनी आर्थिक जरूरत पूर्ति के लिए मनरेगा के मजदूर भी बने। संजय सहनी द्वारा मनरेगा मजदूरों के हक के संघर्ष पर बाालीवुड अभिनेता आमिर खान ने सत्यमेव जयते का एक एपिसोड केंद्रित किया था। भारत सरकार ने उन्हें मनरेगा के ब्रांड एंबेसडर के रूप में पेश किया। से पहुंचे।