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संभावना की सियासी जंग में चिराग की चुनौती
– कृष्ण किसलय (संपादक, सोनमाटी)
बिहार की 16वीं विधानसभा के लिए हो रहे चुनाव ने बेहद दिलचस्प मोड़ ले लिया है। अगड़ा, पिछड़ा और दलित, बिहार की इस त्रिस्तरीय सामाजिक संरचना में दलित धारा ने अपना संभावित समीकरण का अनुमान लगाकर चुनाव की शतरंजी चाल चल दी है। पिछड़ा समाजबहुल बिहार में अगड़ा वर्ग के राज या उसके मुख्यमंत्री के बाद 30 सालों से पिछड़ा वर्ग का ही मुख्यमंत्री रहा है। अब कवायद तीसरी धारा यानी दलित वर्ग के मुख्यमंत्री के लिए भी है। जहां नीतीश कुमार ने जीतनराम मांझी को फिर से अपने पाले में कर और कभी कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष रहे अशोक चौधरी को जदयू संगठन में उच्च पद देकर दलित कार्ड खेला है तो वहीं संभावना की सियासी जंग के मद्देनजर चिराग पासवान की लोजपा ने प्रदेश में एनडीए से अलग होकर 143 सीटों पर चुनाव लडऩे का ऐलान किया है। भाजपा-जदयू की गठजोड़ के विरुद्ध चुनाव के मैदान में मुख्य रूप से लालू यादव का राजद और कांग्रेस के साथ तीनों वामपंथी दल हैं। इस बार चुनावी समीकरण को और दिलचस्प बनाने का काम छोटे-छोटे दल भी करने जा रहे हैं। यह तय नहीं है कि ये दल अपनी कितनी ताकत बनाएंगे, मगर यह तय है कि यह अनेकों का खेल बिगाड़ेंगे। इन खेल-बिगाड़ू में औवैसी, पप्पू यादव, प्रदीप जोशी, मुकेश सहनी, उद्भव ठाकरे, पुष्पम प्रिया, देवेंद्र यादव, रामदास आठवले, पूर्व विधायक सोम प्रकाश, अरविंद केजरीवाल की आप आदि के अलावा बिहार के संदर्भ में दो स्थापित दल बसपा और रालोसपा शामिल हैं। इनमें से अधिसंख्य का समर्थन किसे है, यह अभी पूर्व-स्पष्ट नहीं है, मगर यह स्पष्ट है कि इन सबके निशाने पर 15-15 साल सत्ता में रहने वाले नीतीश कुमार और लालू-राबड़ी हैं।
नेता के रूप में स्थापित होने की कवायद :
लोजपा के राष्ट्रीय महासचिव अब्दुल खालिक के अनुसार, जदयू से वैचारिक मतभेद के बावजूद लोजपा राज्य में भाजपा के साथ रहेगी। लोजपा चाहती है कि केन्द्र की तर्ज पर बिहार में भी भाजपा के नेतृत्व में सरकार बने। लोजपा के पास खोने के कुछ है नहीं, क्योंकि इसके दो ही विधायक हैं। इसलिए भविष्य की संभावना के सियासी खेल के लिए लोजपा अकेले चुनाव लडऩा चाहती है। चिराग पासवान के नेतृत्व में बिहार विधानसभा चुनाव में मत प्रतिशत या विधायक संख्या बढ़ जाए तो वास्तव में लोजपा के एकछत्र नेता के रूप में उनके नाम पर मुहर लग जाएगी। 2005, 2010 और 2015 के विधानसभा चुनावों में लोजपा का जदयू से गठबंधन नहीं था। लोजपा को 2005 में 12.62 फीसदी मत मिला था और 29 सीटें मिली थीं। तब लोजपा 178 सीटों पर उतरी थी। 2005 में ही दुबारा चुनाव होने पर मत प्रतिशत 11.10 पर खिसक आया और 203 प्रत्याशियों में 10 ही विधायक बन सके। 2015 में मत प्रतिशत सरक कर और नीचे चला आया। लोजपा का मत प्रतिशत फ्लोटिंग वोट को आकर्षित करने से बढ़ेगा। चिराग पासवान इसीलिए नीतीश विरोधी विरुदावली सुनाकर प्लोटिंग वोट वाले मतदाता समूह को आकर्षित करने के प्रयास में हैं। बिहार में 2005 से रामविलास पासवान की राजनीतिक ताकत नहीं दिखी है। चूंकि वह अपने जीवन की लंबी राजनीति कर चुके, इसलिए अब बेटा को सत्ता की सियासी जंग में कायम रखने का आधार तैयार कर देना चाहते हैं।
सत्ता की सियासत में छोटे दलों की घुसपैठ :
सत्ता के खेल-बिगाड़ू सियासत में लोजपा के अलावा अन्य दलों की बिहार में स्थिति पर भी एक नजर डालने और वस्तुस्थिति को समझने की जरूरत है। दलित मुख्यमंत्री का अभियान चलाने वाली पप्पू यादव की जन अधिकार पार्टी (जाप) को पिछले विधानसभा चुनाव में करीब 1.35 फीसदी मत प्राप्त हुआ था। मुसलमानों के हित की राजनीति करने वाली असद्दुदीन ओवैसी की एआईएमआईएम का राज्य में पहला खाता पिछले साल किशनगंज विधानसभा उपचुनाव में खुला तो इसने इस बार विधानभा चुनाव में सीमांचल की 50 सीटों पर अपने उम्मीदवारों की सूची सबसे पहले जारी की। पप्पू यादव की पार्टी का प्रभाव कोसी क्षेत्र में है तो ओवैसी की नजर उत्तर सीमांचल की सीटों पर है। केेंद्र में मंत्री रह चुके उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी रालोसपा को कोइरी समाज के मतदाताओं से उम्मीद है। जाप, रालोसपा और एआईएमआईएम तीसरा मोर्चा के गठबंधन में हैं। उत्तर प्रदेश में सरकार चला चुकीं पूर्व मुख्यमंत्री मायावती की बसपा ने 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में 2.07 फीसदी मत पाया था और उसकी उपस्थिति सासाराम, बक्सर, औरंगाबाद, गोपालगंज, सीवान, पश्चिम चंपारण जिलों में मजबूत थी।
पूर्व-विधायक दंपति का सभी सीटों पर लडऩे का ऐलान :
मियां-बीवी पार्टी नाम से मशहूर राष्ट्र सेवा दल के प्रमुख प्रदीप जोशी ने सभी सीटों पर प्रत्याशी उतारने का ऐलान कर रखा है। प्रदीप जोशी और उनकी पत्नी रश्मि जोशी क्रमश: 2005 और 2010 में सोन नद अंचल के डिहरी विधानसभा क्षेत्र से राजद के ताकतवर नेता इलियास हुसैन को लगातार हराकर विधायक रह चुके हैं। पूर्व-विधायक दंपति प्रदीप जोशी, रश्मि जोशी का जनाधार रोहतास जिला के डिहरी विधानसभा क्षेत्र में बेहतर रहा है। केेंद्र में मंत्री दलित नेता रामदास आठवले की महाराष्ट्र में सक्रिय पार्टी रिपब्लिकन पार्टी आफ इंडिया के भी बिहार के चुनाव मैदान में उतरने के आसार हैं, जिसकी दस्तक भाजपा के इशारे पर राज्य में हो चुकी है। जबकि हिन्दू राजनीति करने वाली महाराष्ट्र की स्थापित पार्टी शिवसेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष उद्भव ठाकरे (मुख्यमंत्री) ने इस बार भी 50 सीटों पर चुनाव लडऩे की हरी झंडी बिहार के शिवसेना प्रमुख कौशलेन्द्र शर्मा को दी है। हालांकि पिछले चुनाव में शिव सेना के 60 उम्मीदवारों में 90 फीसदी की जमानत जब्त हो गई थी।
लंदन रिटर्न पुष्पम प्रिया ने जारी की प्रत्याशी सूची :
बिहार में लंदन रिटर्न पुष्पम प्रिया चौधरी (अध्यक्ष) की प्लुरल्स पार्टी पहली बार चुनाव के मैदान में है। इस पार्टी का इरादा सभी 343 विधानसभा सीटों पर उम्मीदवार उतारने का है। इस पार्टी ने 71 सीटों पर होने वाले प्रथम चरण के निर्वाचन के लिए 40 उम्मीदवारों की सूची जारी कर दी है, जिनमें दक्षिणी सीमांचल रोहतास, कैमूर और औरंगाबाद जिलों के डिहरी, ओबरा, औरंगाबाद, गया, दिनारा, भभुआ, रामगढ़, मोहनिया भी शामिल हैं। निषाद विकास संघ नामक संगठन चलाने और 2018 में विकासशील इंसान पार्टी बनाने वाले मुकेश सहनी ने राजद-कांग्रेस वाले महागठबंधन से महत्व नहीं मिलने के कारण नाता तोड़कर राजद नेता तेजस्वी यादव के विरुद्ध बयान देना शुरू कर दिया है, मगर अभी अपना पत्ता नहीं खोला है कि वह किसके साथ रहेंगे? थानाध्यक्ष की नौकरी छोड़कर निर्दलीय विधायक बनने वाले स्वराज पार्टी के अध्यक्ष पूर्व विधायक सोम प्रकाश ने भी ओबरा (औरंगाबाद) और अन्य क्षेत्रों में अपना सियासी चौसर बिछा रखा है।
71 सीटों पर भाजपा, जदयू, राजद ताकतवर :
बहरहाल, 243 सीटों वाली 16वीं बिहार विधानसभा के लिए पहले चरण में 28 अक्टूबर को 71 सीटों पर मतदान होगा, जिसके लिए उम्मीदवारों के नामांकन की अवधि 08 अक्टूबर और नामवापसी की तारीख 12 अक्टूबर तय है। इन 71 सीटों में बिहार के सबसे अधिक ताकतवर दलों में भाजपा का 39 सीटों पर, जदयू का 22 सीटों पर और राजद का 10 सीटों पर कब्जा है। पहले चरण वाले विधानसभा क्षेत्रों में छह मंत्रियों जीतनराम मांझी (पूर्व मुख्यमंत्री), रामनारायण मंडल, संतोष कुमार निराला, जयकुमार सिंह, कृष्णनंदन प्रसाद वर्मा और प्रेम कुमार के क्षेत्र भी हैं। इन्हीं में नक्सल प्रभावित दक्षिण बिहार के सोन नद अंचल के दक्षिणी सीमावर्ती जिला रोहतास में डेहरी, काराकाट, दिनारा, करगहर, नोखा, सासाराम, चेनारी (सुरक्षित) सीट और सीमावर्ती जिला औरंगाबाद में नबीनगर, ओबरा, गोह, औरंगाबाद, कुटुम्बा (सुरक्षित) सीट हैं।
संपर्क : सोनमाटी-प्रेस गली, जोड़ा मंदिर, न्यूएरिया, डालमियानगर-821305, जिाला रोहतास (बिहार)
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(तस्वीर संयोजन : निशांत राज, प्रबंध संपादक, सोनमाटी)