प्रेमचंद स्मृति : ओ, साहित्य देवता…!

(प्रेमचंद की पत्रकारिता, सं. अनामीशरण बबल का कवर फोटो)

तेरे विश्वास का एहसास धरती से गगन तक है,
तेरे अलफाज की आवाज पानी से पवन तक है।
कलम के ओ सिपाही ! बादशाही यह तुम्हारी,
अब भवन से भुवन, जीवन से मरन तक है।।

(सोनमाटी का मुंशी प्रेमचंद स्मृति अंक)

बिहार के विश्वविश्रुत सोन नद अंचल के चर्चित कवि चद्रेश्वर नीरव की इन आमुख काव्य पंक्तियों के साथ साप्ताहिक सोनमाटी ने कथासम्राट प्रेमचंद की जन्मशती पर विशेषांक (आकार 10 गुणा 15 इंच, पृष्ठ 24, कीमत 60 पैसे) का प्रकाशन किया था। इस बात को 40 साल गुजर गए। सोनमाटी का वह विशेषांक आंचलिक पत्रकारिता का प्रतिमान ही नहीं बना, बल्कि हिंदी जगत का धरोहर भी बना। जिसकी चर्चा (टिप्पणीकार बलराम, हिंदी के वरिष्ठ कथाकार) टाइम्स आफ इंडिया प्रकाशन समूह की हिंदी कथाजगत की अग्रणी प्रतिष्ठित पत्रिका सारिका के साथ अन्य पत्र-पत्रिकाओं ने की। और, जिसकी मुक्तकंठ स्वत:स्फुर्त प्रशंसा डा. रामकुमार वर्मा, पद्मश्री रामेश्वर सिंह काश्यप, शंकरपुणे तांबेकर, रामदयाल पांडेय, डा. वचनदेव कुमार, हवलदार त्रिपाठी सहृदय, डा. सिद्धनाथ कुमार, डा. शशिप्रभा शास्त्री, निरूपमा सेवती, डा. नंदकिशोर तिवारी, डा. बालेन्दुशेखर तिवारी, डा. महाराजकृष्ण जैन, मिथिलेश्वर, बुद्धिनाथ मिश्र, डा. मृत्युंजय उपाध्याय, शंकरदयाल सिंह, आशारानी व्होरा आदि जैसे देश के शीर्षस्थ साहित्यकारों, संपादकों, लेखकों-पत्रकारों, बुद्धिजीवियों के साथ प्रेमचंद के पुत्र सुप्रसिद्ध साहित्यकार अमृत राय ने भी की। मुंशी प्रेमचंद स्मृति अंक के संपादन में संपादक-प्रकाशक कृष्ण किसलय के साथ अग्रणी तौर पर पत्रकार-कवि अवधेशकुमार श्रीवास्तव (वरिष्ठ हिंदी अध्यापक, तिलौथू उच्च विद्यालय, रोहतास) थे, जो 02 साल पहले शुरू हुए सोनमाटी से बतौर सौजन्य संपादक जुड़े हुए थे। अवधेशकुमार श्रीवास्तव 1977 में डालमियानगर (बिहार) की साहित्यिक त्रैमासिक नई आवाज के प्रधान संपादक थे, जिस टीम में कृष्ण किसलय संपादक-प्रकाशक और श्रीशचंद्र मिश्र सोम अतिथि संपादक थे। नई आवाज के कथा अंक और कविता अंक का साहित्य जगत में स्वागत हुआ था।


किशोर कुणाल ने किया था अंक का विमोचन :

सोनमाटी के प्रेमचंद विशेषांक का विमोचन चेतना (मसूरी, देहरादून) के पूर्व संपादक बहुभाषाविज्ञ रोहतास के तत्कालीन पुलिस अधीक्षक किशोर कुणाल (वर्तमान में अयोध्या राममंदिर के पैरोकार और पटना हनुमानमंदिर ट्रस्ट के सचिव) पटना) ने किया था। उस समारोह की अध्यक्षता समालोचक प्रो. डा. नंदकिशोर तिवारी (सासाराम) ने की थी। सोनमाटी के कार्यालय संवाददाता चितरंजन भारती (वरिष्ठ कहानीकार, असम में कारपोरेट हिंदी अधिकारी) की साहित्य-कला-संस्कृति स्तंभ में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, कृष्ण किसलय (संचालन), अवधेशकुमार श्रीवास्तव (विषय प्रवर्तन), सोनमाटी के विशेष संवाददाता विजयबहादुर सिंह (धन्यवाद-ज्ञापन) के साथ कांग्रेस के वरिष्ठ नेता संतोष उपाध्याय, खुर्शीद अनवर (जदयू के प्रदेश पदाधिकारी), सोनमाटी के वरिष्ठ संवाददाता उपेंद्र मिश्र (दैनिक जागरण के वरिष्ठ संवाददाता), पत्रकार रामवचन पांडेय, अमरजीत सिंह तूफान (दोनों स्वर्गीय) ने संबोधित किया और गणेशदत्त किरण (भोजुरी के वरिष्ठ ओज-कवि), चंद्रेश्वर नीरव ने काव्यपाठ किया था।


40 साल पहले सोनमाटी के प्रेमचंद स्मृति अंक में :

(प्रेमचंद के पुत्र अमृत राय का प्रतिक्रिया-पत्र)

सोनमाटी के विशेषांक में खबर-विज्ञापन के चार पृष्ठ छोड़कर प्रेमचंद पर 16 पृष्ठों की सामग्री संयोजन का क्रम-प्रकार इस तरह था। 1. शुभकामनाओं में प्रेमचंद (जिस पृष्ठ पर भूतपूर्व उपप्रधानमंत्री जगजीवन राम, प्रेमचंद के पुत्र अमृत राय, शंकरपुणे तांबेकर, ममता कालिया, बुद्धिनाथ मिश्र, डा. महाराजकृष्ण जैन, ममता कालिया और अन्य अग्रिम शुभकामना-पत्र प्रकाशित हैं), 2. प्रेमचंद का जीवन संघर्ष (प्रख्यात समालोचक-साहित्यकार डा. रामविलास शर्मा), 3. प्रेमचंद की प्रासंगिकता का व्यंग्यमुखी संव्यान (डा. बालेन्दुशेखर तिवारी, रांची), 4. समर्थ कहानीकार प्रेमचंद (प्रो. कृष्ण कमलेश, भोपाल), 5. भारतीय चेतना के विकास में प्रेमचंद का योगदान (प्रो. प्रमोद पांडेय), 6. प्रेमचंद की प्रथम रचना (जीत कौर, जमशेदपुर), 7. युग प्रतिनिधि प्रेमचंद (मदनगोपाल, संपादक, ट्रिब्यून), 8. अंतिम उपन्यास की रूपरेखा (सोनमाटी संकलन), 9. प्रेमचंद की कहानी कला (दिलीपनारायण सिंह, दिल्ली), 10. कफन (प्रेमचंद की विश्वकथा साहित्य में स्थान रखने वाली कहानी), 11. प्रेमचंद : एक काव्य श्रद्धांजलि (अवधेशकुमार श्रीवास्तव), 12. प्रेमचंद : नवनिर्माण का मसीहा (श्रीशचंद्र मिश्र सोम, ज्ञानगंगा, औरंगाबाद), 13. हिंदी महारथियों की नजर में प्रेमचंद (सोनमाटी संकलन), 14. पत्रकार प्रेमचंद (वेंकटलाल ओझा, हैदराबाद), 15. प्रेमचंद और नारी (क्रांति कुमारी, केेंद्रीय विद्यालय, खपरैला, बिहार), 16. प्रेमचंद और उनका साहित्य (प्रस्तुुति सिद्धेश्वर, पटना), 17. प्रेमचंद के विचार (संकलन जयप्रकाश त्रिवदी जय, कानपुर), 18. संपादकीय : मानवतावादी थे प्रेमचंद (कृष्ण किसलय) और जनसंवाद (पाठकों की चिट्ठियों का स्तंभ)।


बड़े कथाकार के साथ बड़े पत्रकार भी थे प्रेमचंद :

31 जुलाई 1980 को बनारस से 7-8 किलोमीटर दूर लमही गांव में 1880 में उनका जन्म हुआ। स्कूल का नाम था धनपत राय। जब धनपत राय ने लेखक बनने के बाद नाम रख लिया प्रेमचंद। प्रेमचंद ने 1919 बीए की परीक्षा दी और अंग्रेजी, इतिहास, फारसी में पास करने के बाद नाम के साथ बीए लिखना शुरू किया। उसी साल उन्होंने उपन्यास प्रेमाश्रम लिखना आरंभ किया था। हालांकि बड़े उपन्यासकार के साथ वह बड़े पत्रकार भी थे, मगर लोकप्रिय कथाकार के रूप में ही हुए। उनके एक उपन्यास को पढ़ते हुए उनके समकालीन बांग्ला के सुप्रसिद्ध उपन्यासकार शरतचंद्र ने पहली बार टिप्पणी की कथासम्राट और वह टिप्पणी ही आगे चलकर उनके लिए उपाधि बन गई। प्रेमचंद ने सरस्वती प्रेस की स्थापना की थी और जागरण, हंस, मर्यादा, माधुरी जैसी अपने समय की चर्चित-प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं का संपादन-प्रकाशन किया। साहित्य के इस देवता को नमन !

नोट : प्रेमचंद ने अपनी पत्रिका हंस में डेहरी-आन-सोन (बिहार) के वरिष्ठ प्रतिष्ठित लेखक-पत्रकार महेश्वर प्रसाद उर्फ बच्चा बाबू (स्वर्गीय) की कहानी (कैदी ओ कैदी) प्रकाशित की थी। बच्चा बाबू के नाम पर पत्रकार संसद (अध्यक्ष कृष्ण किसलय, सचिव उपेन्द्र मिश्र, कुमार बिन्दु, सतीश मिश्र आदि) की ओर से सोन अंचल सहित बिहार के अग्रणी पत्रकार-कथाकार नवेंदु को महेश्वर प्रसाद स्मृति सम्मान प्रदान किया गया था, जिस समारोह में अंतरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त विद्वान डा.खगेन्द्र ठाकुर मुख्य और बिहार के अग्रणी प्रतिष्ठित पत्रकार ज्ञानेन्द्र सिन्हा गुंजन विशेष अतिथि थे। हिंदी पाठकों में भी लोकप्रिय हुए शरतचंद्र किशोरवय में और बाद में भी सोन तट के शहर डेहरी-आन-सोन में कुछ समय रह चुके थे, जिस बात की स्मृति-गवाही गृहदाह के साथ एक अन्य उपन्यास में है।

प्रस्तुति : निशांत राज, प्रबंध संपादक, सोनमाटी (इनपुट : कृष्ण किसलय, समूह संपादक, सोनमाटी)

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