महिला उद्यमियों के अनुकूल माहौल नहीं

देश के कई प्रमुख बैंकों का नेतृत्व महिलाओं के हाथ में है, पर ऐसे बैंक भी महिला नेतृत्व वाले संस्थानों में जोखिम नहीं लेना चाहते। अगर हम उद्मम के क्षेत्र में महिला-पुरुष बराबरी चाहते हैं तो इसके लिए विशेष प्रोत्साहन योजनाएं शुरू करनी होंगी। भारत और अमेरिका की सह मेजबानी में हैदराबाद में  वैश्विक उद्यमिता सम्मेलन (GES) का खास फोकस महिला उद्यमियों पर रहा। इसके कुल प्रतिभागियों में करीब 52.5 प्रतिशत महिलाएं हैं। इसमें 127 देशों के प्रतिनिधि  हैं। भारत की महिला उद्यमियों के बारे में ज्यादा से ज्यादा बात करने, उनकी समस्याओं पर चर्चा करने और उनका हल खोजने की है। भारत जैसे देश में, जहां कुल वर्कफोर्स में महिलाओं की भागीदारी ही बहुत कम है, महिला उद्यमियों की स्थिति के बारे में कल्पना की जा सकती है। हाल के वर्षों में भारतीय महिला उद्यमियों पर बात होने लगी है। लेकिन गौर करें तो इनमें कई ऐसी हैं, जिनकी बोर्डरूम में केवल प्रतीकात्मक उपस्थिति है, क्योंकि उसमें महिलाओं की एक निश्चित संख्या अनिवार्य बना दी गई है। कुछेक ऐसी हैं जिन्हें विरासत के रूप में पहले से जमा-जमाया कारोबार मिला है। कुछ प्रफेशनल्स को भी इस सूची में रख दिया जाता है, जो किसी व्यापारिक प्रक्रिया में नहीं बल्कि नौकरशाही के पायदान चढ़ते हुए प्रबंधकीय पदों पर पहुंची हैं।

समाज में महिला उद्यमियों के अनुकूल माहौल नहीं बन पाया है। पुरुषों में महिला बॉस को लेकर पूर्वाग्रह बने हुए हैं इसलिए हाल तक हुनरमंद लोगों को कंपनी में लाना महिला उद्यमियों के लिए एक बड़ी समस्या थी। कई प्रफेशनल्स इस दुविधा में रहते हैं कि महिला स्वामित्व वाला उद्यम चल पाएगा या नहीं। जिन वेंडरों के साथ उन्हें खरीद-बिक्री करनी है, वे भी महिला उद्ममी को गंभीरता से नहीं लेते। सही अर्थों में हिला उद्यमी वे ही हैं, जिन्होंने खुद जोखिम लेकर कोई कारोबार खड़ा किया हो। उन्हीं की समस्याओं को समझने की जरूरत सबसे ज्यादा है। नैस्कॉम की इसी महीने आई एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में अभी मौजूद 5000 स्टार्टअप्स में महिलाओं की भागीदारी सिर्फ 11 फीसदी है। पिछले साल से उनकी संख्या में सिर्फ 1 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। महिलाओं के 3 फीसदी स्टार्टअप्स को ही फंड मिल पा रहा है। इसका एक कारण शायद यह है कि बाजार में महिला निवेशक लगभग नदारद हैं। फंडिंग संसाधनों और कारोबार को मदद पहुंचाने वाली योजनाओं की जानकारी न होना भी एक कारण है।

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