रामचरित मानस में वर्णन है कि रानी कैकेयी ने दशरथ से दो वरदान मांगे। देव-दानव युद्ध में कैकेयी हठपूर्वक साथ हो ली थी। वह स्वयं एक योद्धा थी और दूरदर्शी भी। महाराज दशरथ उस समय पृथ्वी के सबसे अधिक शक्तिशाली सम्राट थे। उनकी विशाल सैन्यशक्ति का डर नहीं होता तो दक्षिण का शक्तिशाली सम्राट रावण उन्हें परास्त करके उनके साम्राज्य पर अधिकार कर सकता था। रानी कैकेयी ने राम को 14 वर्ष का बनवास मांगा तो दशरथ वचनबद्ध होने के कारण सहमत हो गये ऐसा वर्णन है। कैकेयी ने राम की जगह भारत को राज्य सौंपने का वर मांगा और वह भी राम से सलाह मशविरे के बाद। तथ्यों के छानबीन का कोई साधन नहीं है। बाल्मीकि रामायण ही एक पुरातन ग्रंथ है जिस पर काफी हद तक भरोसा किया जा सकता है। वैसे वह भी एक महाकाव्य ही है कोई ऐतिहासिक दस्तावेज नहीं। वाल्मीकि रामायण की सामग्री के आधार पर ही रामचरित मानस तथा रामकथा के अन्य ग्रंथ लिखे गये किंतु घटनाओं के वर्णन एक जैसे नहीं हैं।
राम लक्ष्मण और सीता के साथ बनवास पर गये तो चित्रकूट में ही या उत्तर प्रदेश के ही किसी अन्य स्थान या स्थानों में 14 वर्ष तक रह सकते थे। उन्हें दंडकारण्य होते हुए किष्ंिकधा राज्य (वर्तमान आंध्र) जाकर पंचवटी (वर्तमान भद्राचलम जिला) में पर्णकुटी बनाकर रहने की क्या आवश्यकता थी! स्पष्ट है कि उनकी दक्षिण यात्रा किसी सोची समझी योजना का हिस्सा थी। रावण बुद्धिमान और शक्तिशाली था। महासागर के अनेक द्वीपों पर उसका अधिकार हो चुका था। वर्ष 1947 के पहले भारत कभी भी एक देश नहीं रहा। सैकड़ों राजा महाराजा इस भूभाग में थे। राज्य लिप्सा के वशीभूत रावण ने भावणकोर पर अकस्मात आक्रमण कर दिया। युद्ध लंबा चला और रावण पराजित हुआ। बली ने रावण को बंदी बना लिया। बहुत दिनों बाद चेतावनी देकर छोड़ा। कालांतर में रावण ने किष्किंधा राज्य पर आक्रमण कर दिया। महाराज बालि के सैन्यबल के आकलन में पुन: रावण से गलती हो गई थी। आदिवासी राजा बालि ने संपूर्ण युवा वर्ग को गदायुद्ध में पारंगत किये जाने की व्यवस्था की थी। गदा युद्ध में बालि का सामना बड़े-बड़े महारथी भी नहीं कर सकते थे। सेनापति सुग्रीव और हनुमान के हाथों रावण के कई दुर्धर्ष योद्धा खेत रहे थे। थका हुआ रावण बालि के प्रहार नहीं झेल पाया। घायल रावण को सुग्रीव ने बंदी बना लिया। युद्ध अपराधी के रूप में बालि रावण को मृत्युदंड दे सकता था। संधि के प्रस्तावों में आर्थिक क्षतिपूर्ति, आपसी सहयोग आदि के साथ यह भी तय हुआ कि रावण के सैनिक कालांतर में किष्किंधा के उत्तर क्षेत्र में तैनात होंगे। रावण को बालि ने रिहा कर दिया। इन सब बातों का विवरण किसी ग्रंथ में नहीं मिलता।
महाराज बालि और दक्षिण कोसल सम्राट महाराज भानुमंत के संबंध ठीक थे। रावण के दक्षिण कोसल पर आक्रमण की योजना को निष्फल करने भानुमंत की सेना भी दक्षिण प्रांत में तैनात थी। स्थिति की जानकारी दशरथ को भी दे दी गई थी। भानुमंत वृद्ध हो गये थे। उनका कोई पुत्र नहीं था। सेना अवश्य बड़ी थी किंतु रावण से मुकाबला विध्वंस को आमंत्रण देने जैसा था। भानुमंत को पता था कि वह रावण की सेना है बालि की नहीं। सम्राट दशरथ हृदय रोग से पीड़ित थे। रानियों को स्थिति की जानकारी मिली तो उनका चिंतित होना स्वाभाविक था। कैकेयी को यह युक्ति सूझी कि राम उस क्षेत्र में जाकर वस्तुस्थिति का आकलन करें। योजना बनाई गई। राम भी लक्ष्मण और सीता के साथ रुकते-रुकाते पंचवटी पहुंचे। राम और लक्ष्मण पंचवटी निवास की स्वीकृति बालि से ले चुके थे। बात ऋषि-मुनियों और गुरुकुलों को सुरक्षा प्रदान करने की थी जिसमें बालि को क्या आपत्ति हो सकती थी।
सूर्पणखा को राम लक्ष्मण और सीता के निवास की जानकारी मिली तो टोह लेने वह पहुंच गई। प्रणय निवेदन आदि की बातें मनगढ़ंत हैं। सूर्पणखा स्वयं एक योद्धा थी। किसी बात को लेकर इसकी लक्ष्मण से गर्मागर्मी हो गई और सुर्पणखा ने खड़ग निकाल लिया। चोट और अपमान से तिलमिलाकर सूर्पणखा वापस गई और सेनापति खर को आदेश दिया कि आक्रमण की तैयारी करें। सेनापति खर और दूषण आक्रमण के लिए रावण के आदेश की प्रतीक्षा में थे।भानुमंत की सेना पंचवटी पहुंच गई। सेना का नेतृत्व राम ने संभाल लिया। दोनों सेनाओं में घमासान युद्ध छिड़ गया। तुलसीदास ने युद्ध का रोमांचक वर्णन किया है लेकिन दर्शाया है कि राम ने अकेले पूरी रावण सेना का नाश कर दिया। यह सही नहीं है। युद्ध दो सेनाओं के बीच होता है या दो टुकड़ियों अथवा दो सेनाओं के बीच होता है या दो टुकड़ियों अथवा दो योद्धाओं के बीच। एक व्यक्ति चाहे जितना शक्तिशाली हो पूरी सेना का सामना नहीं कर सकता। युद्ध एक सप्ताह तक चला और खर और दूषण वीरगति को प्राप्त हुए।
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