समाजवाद के आदि प्रणेता

 

महाराजा अग्रसेन को समाजवाद का सच्चा प्रणेता कहा जाता है। महाराजा अग्रसेन ने तंत्रीय शासन प्रणाली के प्रतिकार में एक नयी व्यवस्था को जन्म दिया। अपने क्षेत्र में सच्चे समाजवाद की स्थापना हेतु महाराजा अग्रसेन ने नियम बनाया था कि उनके नगर में बाहर से आकर बसने वाले हर व्यक्ति की सहायता के लिए नगर का प्रत्येक निवासी उसे एक रुपया नगद व एक ईंट देगा, जिससे उसके लिए निवास स्थान व व्यापार करने के लिये धन का प्रबन्ध हो जाए।  महाराजा अग्रसेन  सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय को स्वीकार किया।

धार्मिक मान्यतानुसार मर्यादा पुरुषोतम भगवान श्रीराम की चौंतीसवीं पीढ़ी में सूर्यवंशी क्षत्रिय कुल के महाराजा वल्लभ सेन के घर में द्वापर के अन्तिमकाल और कलियुग के प्रारम्भ में अश्विन शुक्ल प्रतिपदा को महाराजा अग्रसेन का जन्म हुआ, जिसे दुनिया भर में अग्रसेन जयंती के रूप में मनाया जाता है। राजा वल्लभ के अग्रसेन और शूरसेन नामक दो पुत्र हुये थे।
महाराजा अग्रसेन सूर्यवंशी क्षत्रिय राजा थे। जिन्होंने प्रजा की भलाई के लिए वणिक धर्म अपना लिया था। महाराज अग्रसेन ने नाग लोक के राजा कुमद के यहां आयोजित स्वयंवर में राजकुमारी माधवी का वरण किया। इस विवाह से नाग एवं आर्य कुल का नया गठबंधन हुआ। राज्य का नाम अग्रेयगण रखा गया जिसे अग्रोहा नाम से जाना जाता है। वह जगह आज के हरियाणा के हिसार के पास है। आज भी यह स्थान अग्रहरि और अग्रवाल समाज के लिए तीर्थ के समान है। यहां महाराज अग्रसेन और मां लक्ष्मी देवी का भव्य मंदिर है। अग्रसेन ने अपने छोटे भाई शूरसेन को प्रतापनगर का राजपाट सौंप दिया।
उन्होंने परिश्रम और उद्योग से धनोपार्जन के साथ उसका समान वितरण और आय से कम खर्च करने पर बल दिया। जहां एक ओर वैश्य जाति को व्यवसाय का प्रतीक तराजू प्रदान किया वहीं दूसरी ओर आत्मरक्षा के लिए शस्त्रों के उपयोग की शिक्षा पर भी बल दिया। उस समय यज्ञ करना समृद्धि, वैभव और खुशहाली की निशानी माना जाता था। उन्होंने अपने मंत्रियों के ना चाहने पर भी यज्ञ में पशु बली पर रोक लगा दी। महाराजा अग्रसेन के 18 पुत्र हुये। राजकुमार विभु उनमें सबसे बड़े थे। पुत्रों से अग्रवंश (अग्रवाल समाज) की स्थापना हुई।  आगे चलकर पुत्रों की व्यवस्था गोत्रों में बदल गई।  आज भी इतिहास में महाराज अग्रसेन  सहिष्णु समाजवाद के प्रेरक महापुरुष के रूप में उल्लेखित हैं।

प्राचीन ग्रन्थों में वर्णित आग्रेय ही अग्रवालों का उद्गम स्थान आज का अग्रोहा है। दिल्ली से 190 तथा हिसार से 20 किलोमीटर दूर हरियाणा में महाराजा अग्रसेन राष्ट्र मार्ग संख्या 10 हिसार-सिरसा बस मार्ग के किनारे एक खेड़े के रूप में स्थित है। महाराजा अग्रसेन की राजधानी रही नगर आज एक साधारण ग्राम के रूप में स्थित है जहाँ पांच सौ परिवारों की आबादी है।
–  रमेश सर्राफ धमोरा

  • Related Posts

    छठ: सूर्योपासना व अराधना का गैर वैदिक स्त्री-पर्व

    कुमार बिन्दु पाली, डालमियानगर, डेहरी ऑन सोन, रोहतास- 821305बिहार। मोबाइल- 09939388474 सोन घाटी क्षेत्र का बहुचर्चित लोक-पर्व है छठ। सूर्योपासना व अराधना का यह लोकपर्व सूबे बिहार की सांस्कृतिक पहचान…

    मंच का उदेश्य दुसाध समुदाय के विरासत को खोज कर पुन: स्थापित करना : संजय पासवान

    डेहरी-आन-सोन (रोहतास)- कार्यालय प्रतिनिधि। सोन नदी के पश्चिम तट पर स्थित एनिकट में बने भव्य मंदिर बाब चौहरमल धाम में वीर शिरोमणी चौहरमल बाबा की 711वीं जयन्ती दुसाध जागृति संस्कृति चेतना…

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

    You Missed

    कार्यालय और सामाजिक जीवन में तालमेल जरूरी : महालेखाकार

    व्यावसायिक प्रतिस्पर्धा में हुई थी आभूषण कारोबारी सूरज की हत्या

    व्यावसायिक प्रतिस्पर्धा में हुई थी आभूषण कारोबारी सूरज की हत्या

    25-26 नवंबर को आयोजित होगा बिहार संवाद कार्यक्रम

    25-26 नवंबर को आयोजित होगा बिहार संवाद कार्यक्रम

    विधान परिषद के सभागार में ‘सुनो गंडक’ का हुआ लोकार्पण

    विधान परिषद के सभागार में ‘सुनो गंडक’ का हुआ लोकार्पण

    शिक्षा के साथ-साथ अपनी संस्कृति और माटी से भी कसकर जुड़े रहना चाहिए : रामनाथ कोविन्द

    शिक्षा के साथ-साथ अपनी संस्कृति और माटी से भी कसकर जुड़े रहना चाहिए : रामनाथ कोविन्द

    भारत के राष्ट्रपति जीएनएसयू के तृतीय दीक्षान्त समारोह में होंगे शामिल

    भारत के राष्ट्रपति जीएनएसयू के तृतीय दीक्षान्त समारोह में होंगे शामिल