बहुचर्चित डान सांसद शहाबुद्दीन से कानूनी लड़ाई लडऩे और तीन जवान बेटों को कंधा देने वाले चंदा बाबू की करुण कहानी। देहरादून (दिल्ली कार्यालय) से प्रकाशित बहुरंगी हिन्दी पाक्षिक चाणक्य मंत्र के इस पखवारा (01-15 जनवरी) बिहार, पटना से कृष्ण किसलय की रिपोर्ट
बिहार के सिवान शहर के चंदा बाबू जैसा जीवट वाला आदमी सदियों में पैदा होता है। वह इसलिए याद किए जाएंगे कि डेढ़ दशक पहले जब पुलिस-प्रशासन सीवान के बाहुबली सांसद मोहम्मद शहाबुद्दीन से थर्र-थर्र करता था, तब उन्होंने अकेले मुकाबला किया और लंबी कानूनी लड़ाई लड़कर बहुचर्चित तेजाब कांड के कुख्यात शहाबुद्दीन को सलाखों के पीछे पहुंचाने का दुस्साहसपूर्ण कार्य किया था। चंदा बाबू इसलिए भी याद किए जाएंगे कि अपने तीन जवान बेटों की अर्थी को कंधा देकर भी सड़ी हुई व्यवस्था की पैदाइश नेता की खाल ओढ़े बड़े बाहुबली के आगे हार नहीं मानी। सिवान शहर के ऐसे लड़ाकू व्यवसायी चंदेश्वर प्रसाद चंदा बाबू का पिछले पखवारा 16 दिसम्बर को करीब 75 साल की उम्र में निधन हो गया। सांस लेने में तकलीफ के बाद परिजनों ने उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया, जहां चिकित्सकों ने मृत बताया। बीमार चल रहे चंदा बाबू की मौत का कारण हार्ट अटैक बताया गया।
लड़ी लंबी कानूनी लड़ाई, पत्नी बनी रही बैसाखी :
बाहुबली राजनेता शहाबुद्दीन से डटकर कानूनी मुकाबला करने वाले चंदा बाबू का जीवन काफी संघर्षपूर्ण था। लंबी कानूनी लड़ाई के बाद अंतत: अपने बेटों की हत्या के आरोपित बाहुबली सांसद मोहम्मद शहाबुद्दीन को तिहाड़ जेल भिजवाकर ही उन्होंने दम लिया था। न्याय की लड़ाई में बैसाखी की तरह खड़ी रही पत्नी कलावती देवी के पिछले साल निधन हो जाने से साथ छोड़ जाने के बाद वह टूट गए थे और बीमार रहने लगे थे। वह सबसे छोटे दिव्यांग पुत्र और विधवा बहू के साथ रहते थे। दो बेटों को तेजाब से नहला कर मार देने की घटना के बाद भी जुल्म ने उनका पीछा नहीं छोड़ा था। उनके तीसरे बेटे की भी निर्दयता से हत्या कर दी गई थी। 2004 में चंदा बाबू के तीन बेटों गिरीश रौशन, सतीश रौशन और राजीव रौशन का अपराधियों ने अपहरण कर लिया था। गिरीश और सतीश को तेजाब से नहला कर मार डाला गया था। उस हत्याकांड का चश्मदीद गवाह मृतकों का भाई राजीव अपराधियों की पकड़ से जान बचाकर भाग निकला, जो भाइयों के तेजाब से की गई हत्या के कांड का गवाह बना था। मगर दस साल बाद 2015 में सिवान शहर के डीएवी मोड़ पर उसकी भी गोली मारकर हत्या कर दी गई। हत्या के तीन हफ्ता पहले ही राजीव की शादी हुई थी।
भरे बाजार दो बेटों को तेजाब से नहलाकर मारा गया :
वर्ष 2004 का अगस्त का महीना था। सीवान शहर में दो प्रतिष्ठित दुकानों के मालिक चंदा बाबू को दो लाख रुपये की रंगदारी के लिए लगातार फोन आ रहा था। इसी बीच वह एक काम पटना स्थित रिजर्व बैंक के अपने अधिकारी भाई के पास गए थे। 16 अगस्त को चंदा बाबू के किराने की दुकान पर डालडा उतारने के लिए गाड़ी रुकी हुई थी और गल्ला (दुकान में पैसा रखने का बक्सा) में डालडा की देनदारी के लिए ढाई लाख रुपये थे। दुकान पर चंदा बाबू के बेटे सतीश रौशन बैठे थे। रंगदारी मांगने वाले गुंडे हथियारों के साथ आ धमके। सतीश ने गुंडों से कहा था कि खर्चे के लिए वह 30-40 हजार रुपये दे सकते है, दो लाख रुपये तो उसके पास अभी नहीं है। गुंडों ने सतीश की पिटाई कर गल्ले में रखे पैसे निकाल लिए। बड़े भाई सतीश को गुंडों के हाथों मार खाते देख छोटे भाई राजीव ने बचाव के लिए बाथरूम साफ करने के लिए रखी एसिड लिक्विड को मग में डालकर गुंडों की ओर दूर से ही फेंक दिया था, जिसके कुछ छींटे गुंडों पर पड़ गए थे। भाइयों के साथ हो रही घटना की जानकारी पाकर दूसरी दुकान पर बैठे उनके बड़े भाई गिरीश भी पहुंच गए। तब तक गुंडे एसिड लिक्विड फेेंकने वाले राजीव को एक खंभे में बांध दिया था। सतीश और गिरीश को पकड़कर तेजाब से नहला दिया गया। तेजाब से झुलसे दोनों ने तड़प-तड़प कर वही दम तोड़ दिए। उनकी दुकानें लूटकर आग के हवाले कर दी गईं।
मृतकों के टुकड़े कर फेेंके गए, तीसरे बेटे को उठा ले गए :
खूनी दरिंदें खंभे से बांध रखे गए राजीव रौशन को मार डाले गए दोनों भाइयों से भी हौलनाक मौत देने के लिए अपने साथ ले गए। दोनों मृतकों के शवों के टुकड़े-टुकड़े कर बोरों में नमक के साथ भरकर फेंक दिया गया। संयोग से राजीव रौशन गुंडों के कब्जे से निकल भागने में सफल रहे और उत्तर प्रदेश पहुंच गए। चंदा बाबू की पत्नी कलावती देवी ने सीवान थाना में हत्या और अपहरण का मामला दर्ज कराया। हत्यारों की ओर से पटना में मौजूद चंदा बाबू को बताया गया कि भागने के क्रम में घायल हो गया राजीव रौशन पटना के एक अस्पताल में भर्ती है। हालांकि चंदा बाबू पटना के उस अस्पताल में नहींगए, क्योंकि उन्हें भनक लग गई कि यह गुंड़ों द्वारा उन्हें बुलाकर मार डालने की साजिश हो सकती है। शुभचिंतकों ने चंदा बाबू को सीवान नहीं आने की बात कही, मगर उन्होंने शहाबुद्दीन की सल्तनत से मरते दम तक जूझने का फैसला किया और दिल पर पत्थर रखकर हिम्मत के साथ सीवान पहुंचे। थाना में तो दारोगा ने उन्हें यह समझाने की कोशिश की कि सीवान में मत रहिए। सीवान के तत्कालीन पुलिस अधीक्षक से कई बार के प्रयास के बावजूद मुलाकात नहींहो सकी।
पटना से दिल्ली तक शासन-प्रशासन ने नहीं सुनी फरियाद :
छोटा बेटा राजीव रौशन के बारे में चंदा बाबू को कोई खबर नहीं थी कि वह जीवित भी है? सीवान में पत्नी कलावती देवी के साथ विकलांग बेटा और दो बेटियां थीं। सिवान के पुलिस-प्रशासन से समर्थन-सहायता नहीं मिलने पर चंदा बाबू ने पटना पहुंचकर सत्ताधारी पार्टी के नेताओं से मदद की गुहार लगाई। मगर इतने बड़े हादसे के बावजूद उनकी किसी ने नहींसुनी। वह दिल्ली पहुंचे और केंद्र के सताधारी पार्टी के नेताओं से मदद की गुहार लगाई। वहां भी शहाबुद्दीन का रसूख ऐसा था कि कोई उनकी फरियाद भी ठीक से सुनने को तैयार नहीं था। चंदा बाबू समझ गए कि उन्हें यह लड़ाई अकेले ही लडऩी है और इस लड़ाई में कानून-व्यवस्था उनके साथ नहीं होगी। तय किया कि चाहे जान चली जाए, सीवान में ही रहेंगे। अगले साल 2005 में नीतीश कुमार की सरकार सत्ता में आई तो शहाबुद्दीन पर कार्रवाई शुरू हुई। डान मोहम्मद शहाबुद्दीन को 2005 में दिल्ली से गिरफ्तार किया गया। दोहरे हत्याकांड में अदालती कार्यवाही शुरू हुई और राजद के सांसद रहे मोहम्मद शहाबुद्दीन को निचली अदालत से सजा हुई।
गवाही देने से ठीक पहले तीसरे बेटा की भी हत्या :
चंदा बाबू ने बिहार में माहौल के बदलाव के बाद सबसे छोटा बेटा राजीव रौशन की शादी कर दी। राजीव रौशन तेजाब हत्याकांड का एकमात्र चश्मदीद गवाह था, जिसमें उसके दो भाई मारे गए थे। राजीव की गवाही देने से तीन दिन पहले ही सीवान शहर के डीएवी मोड़ पर 16 जून 2014 को गोली मारकर हत्या कर दी गई। चंदा बाबू जिंदगी में सब कुछ और सब जगह हार चुके थे। राजीव की हत्या के दिन तय हो गया कि शहाबुद्दीन को जमानत मिल जाएगी। दो साल बाद मोहम्मद शहाबुद्दीन को बहुचर्चित दोहरे तेजाब हत्याकांड में जमानत मिल गई और शहाबुद्दीन की स्वयंभू सरकार का शाह-दरबार शहर में पहले की तरह लगने लगा। 2014 में राजीव रौशन की हत्या तक मोहम्मद शहाबुद्दीन पर पुलिस में 39 कांड केस दर्ज हो चुके थे। जुल्मो-सितम की पराकाष्ठा के बाद भी चंदा बाबू पत्नी कलावती देवी और अपने चौथे अपाहिज बेटा, विधवा बहू के साथ सीवान शहर के गौशाला रोड स्थित अपने आवास में डटे रहे। उन्हें सरकार की ओर से तीन बाडीगार्ड मिले थे। वह कहते थे कि शहाबुद्दीन मार दे या भगवान, छुपकर कहां रहेंगे?
®- संवाददाता, पटना।