डेहरी-आन-सोन (रोहतास)-कार्यालय प्रतिनिधि। सोनघाटी पुरातत्व परिषद, बिहार की ओर से सोन नद के ऊपरवर्ती तट के रोहतास और औरंगाबाद जिलों में अवस्थित अति संभावनाशील आदि-सभ्यता-स्थलों की पुरातात्विक खुदाई करने और 19वींसदी में विश्व विश्रुत जलपरिवहन प्रणाली के केेंद्र एनीकट को पर्यटन स्थल घोषित करने की मांग केेंद्र, राज्य सरकारों से की गईं। परिषद ने यह भी मांग की कि विद्यार्थियों के लिए स्कूल स्तर से ही धरोहर-स्थल-भ्रमण का उत्प्रेरण पाठ्यक्रम-कार्य निर्धारित किया जाए, ताकि नई पीढ़ी में अपनी विरासत, अपने सांस्कृतिक वैभव के प्रति जागरुकता और धरोहरों के प्रति रक्षा भावना का विकास-विस्तार हो।
संरक्षण के अभाव में तस्करी से विदेश पहुंचीं 50 हजार प्राचीन मूर्तियां
परिषद की ओर से जारी प्रेस विज्ञप्ति में यूनेस्को के आंकड़े के आधार पर यह जानकारी दी गई है कि धरोहर संरक्षण भावना के अभाव में पुरा-वस्तुएं और प्राचीन गौरव के साक्ष्य तेजी से नष्ट हो रहे हैं। धरोहर संरक्षण जागरुकता इसलिए जरूरी है कि बीते तीन दशकों में करीब 50 हजार प्राचीन मूर्तियां, पुरा-सामग्री तस्करी से विदेशों में जा चुकी हैं और विदेशों में धरोहरों का बाजार होने के कारण भारतीय धरोहर तस्करी का भूमिगत कारोबार सालाना 40 हजार करोड़ रुपये का है। बताया गया कि सोनघाटी पुरातत्व परिषद ने दो दशक पहले के सोन नद अंचल के रोहतास, औरंगाबाद और झारखंड के पलामू जिलों में पुरातात्विक महत्व के ऐतिहासिक-सांस्कृतिक स्थलों को चिह्निïत करने, खोजनेे और धार्मिक आख्यान से अलग साक्ष्य आधारित इतिहास-कथाओं को पहली बार सामने लाने का कार्य आरंभ किया। परिषद ने ही पहली बार बताया कि सोन नद अंचल की ऊपरवर्ती कैमूर पर्वत का इलाका विश्व का अति प्राचीनतम सांस्कृतिक केेंद्र रहा है, जहां प्रागैतिहासिक पाषाण-काल और ऐतिहासिक हड़प्पा काल (सिंधुघाटी), जैन, बौद्ध, मौर्य, गुप्त, हर्ष, पाल, सल्तनत, गहड़वाल, मुगल, सिख, ब्रिटिश काल के पुरा-स्थल मौजूद हैं।
लोकसभा-विधानसभा में उठना चाहिए यह मुद्दा
सोनघाटी पुरातत्व परिषद, बिहार की बैठक जयहिंद सिनेमाघर परिसर डेहरी-आन-सोन (रोहतास) में हुई, जिसमें परिषद की झारखंड इकाई के प्रतिनिधियों ने भी भाग लिया। परिषद की झारखंड इकाई के सचिव तापस कुमार डे ने बैठक में बताया कि लगातार 10 सालों से भी अधिक समय की सक्रियता के बाद परिषद द्वारा चिह्निïत कबरा में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की ओर से खुदाई जारी है। परिषद अब एक पंजीकृत सामाजिक संस्था है। परिषद की टीम की अर्जुन बिगहा गांव की यात्रा में स्पष्ट हो चुका है कि यह सोनघाटी की एक सबसे बेहतर पुरातात्विक स्थल है। अब इसकी खुदाई के लिए सरकार और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण से गंभीरता के साथ संपर्क होना चाहिए। परिषद की झारखंड इकाई के उप सचिव रणजीत कुमार ने कहा कि बिहार इकाई को झारखंड-बिहार सीमा के गांव नाऊर (औरंगाबाद) जिले में सर्वेक्षण की पहल करनी चाहिए। भूपेन्द्रनारायण सिंह ने कहा कि इसके लिए जनप्रतिनिधियों द्वारा लोकसभा-विधानसभा में भी मुद्दे को उठाए जाने की जरूरत है, ताकि संबंधित विभाग त्वरित संज्ञान ले सके।
कैमूर पहाड़ के गांव में जीवित है अनजबी बोली
नंदकुमार सिंह ने बताया कि सोन के तटवर्ती मगर पहाड़ पर स्थित एक-दो गांव ऐसे हैं, जिनकी बोली भोजपुरी, मगही या नगपुरिया नहींहै, बल्कि भोजुपरी भाषियों को समझ में नहींआती है। परिषद की टीम को वहां जाकर उस पहाड़ी बोली का अध्ययन करना चाहिए। मिथिलेश दीपक ने कहा कि बारून प्रखंड के सोन तट के गांव कर्मकिला का भी दौरा होना चाहिए। उपेन्द्र कश्यप ने कहा कि परिषद की सक्षम सर्वेक्षण-पर्यवेक्षण टीम का गठन होना चाहिए, ताकि चीजें अधिक परिष्कृत तरीके से चिह्निïत हो सकेें। दयानिधि श्रीवास्तव ने कहा कि चूंकि यह संस्था सरल सांस्कृतिक संगठन नहीं है, इसलिए जरूरत आंतरिक क्षमता स्थापित करने की है। अवधेश कुमार सिंह ने अर्जुन बिगहा से प्राप्त नए टेराकोटा की जानकारी रखी और यह बताया कि गांव के ढीबर की पहचान वाला वानस्पतिक महत्व वाला पेड़ अपनी उम्र पूरी कर नष्ट हो चुका है। बताया कि उन्होंने और कुमार बिन्दु ने प्राचीन लोकसाहित्य संग्रह का कार्य शुरू किया है।
धार्मिक आख्यान से अलग साक्ष्य आधारित इतिहास-लेखन
कृष्ण किसलय ने बताया कि सोनघाटी की गौरवशाली प्राचीन विरासत को प्रकाश में लाने के लिए धार्मिक आख्यान से अलग साक्ष्य आधारित इतिहास-लेखन के लिए कार्य शुरू कर दिया गया है। उन्होंने प्रस्ताव रखा कि अनुभव-दृष्टि का विस्तार करने के लिए बीएचयू के पुरा-इतिहास विभाग द्वारा सकास में जारी खुदाई-स्थल (रोहतास) का अवलोकन परिषद की टीम को जल्द करनी चाहिए। सकास के आरंभिक तौर पर पांच हजार साल पुराना अधिवास-स्थल होने का अनुमान है, मगर अंतिम पुष्टि नरकंकालों के डीएनए टेस्ट से होगी, जिनके नमूने प्रयोगशालाओं में भेजे गए हैं। इस प्रस्ताव पर परिषद के भ्रमण दल के सकास जाने पर सहमति व्यक्त की गई।
सोनघाटी पुरातत्व परिषद, बिहार कार्यकारिणी की संपुष्टि
बैठक के अंत में सोनघाटी पुरातत्व परिषद, बिहार की नई कार्यकारिणी की संपुष्टि की गई। सर्वानुमति से विश्वनाथ प्रसाद सरावगी अध्यक्ष, भूपेंद्रनारायण सिंह व कुमार बिन्दु उपाध्यक्ष, कृष्ण किसलय सचिव, अवधेश कुमार सिंह संयुक्त सचिव, दयानिधि श्रीवास्तव कोषाध्यक्ष, उपेन्द्र कश्यप व मिथिलेश दीपक समन्वय सचिव (अन्वेषण, पर्यवेक्षण) और डा. सरिता सिंह, स्वयंप्रकाश मिश्र, नंदकुमार सिंह, निशान्त राज व रामनारायण प्रसाद कार्यकारी-सह-सर्वेक्षी सदस्य बनाए गए।
परिणाम तक पहुंचने वाले प्रयास की दरकार
बैठक का समापन सोनघाटी पुरातत्व परिषद की बिहार इकाई के अध्यक्ष विश्वनाथ प्रसाद सरावगी के धन्यवाद-ज्ञापन से हुआ। उन्होंने कहा कि बेशक नूतन-पुरातन ज्ञान-विज्ञान के समागम-समन्वय का यह प्रतिनिधि मंच सदस्यों के सीमित निजी संसाधन और श्रम-सहयोग से संचालित स्वयंसेवी संस्था है, मगर जरूरत परिणाम तक पहुंचने वाले प्रयास की है ताकि सोनघाटी के इस इलाके के प्राचीन गौरव की हकीकत प्रमाणिक तौर पर सामने आ सके।
(रिपोर्ट, तस्वीर : निशांत राज)