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ये जो जुड़वां बहनें हैं !
-डा. किशोर अग्रवाल, आईपीएस
भूख पर बनती हैं कविताएं
भूख पर बनती हैं योजनाएं
भूख बड़ा प्यारा शब्द, राहत देता है
सत्तासीनों को, सत्तालोलुपों को भी
भूख के कांधे चढ़़कर
कई जा बैठते हैं महलों में
भूखों के हिमायती सत्ता सरोकारी
पत्रकारों ने भी खोल लिए चैनल
और खुल गए आश्रम कई बाबाओं के,
भूख पर काम करने के लिए
निरंतर जरूरत होती है भूखों की
इसीलिए भूख जीवित रखी जाती है।
तृप्ति बड़ी अजनबी, अटपटी है
छुप कर रहती है
यह गरीबों की चीज नहीं
आम आदमी की भी नहीं,
मगर संसार के सारे उपक्रम इसी के लिए हैं
किसी को मिल जाए तो बताता नहीं कोई,
वैसे यह होती नहीं, बस खोजी जाती है
लोग जितना ही तृप्ति के लिए फंदे बुनते हैं
भूख का आकार उतना ही बढ़ता जाता है
कुछ की तृप्ति के लिए ही
बहुतेरों की भूख जनमती है
कितना कुछ भी खा-पा लो
तृप्ति होती नहीं,
झूठ है यह कहना कि
भूख मिट जाए तो तृप्ति आती है,
जुड़वां हैं ये दोनों
एक-सी शक्ल, एक जैसी
साथ ही रहती हैं मगर मिटती नहीं।
संपर्क : ए-37, वालफोर्ट सिंटी, रिंग रोड नं.1, भाठागांव, रायपुर-492013 (छत्तीसगढ़)
फोन : 9425212340
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नए भारत के निर्माण में होगी नई शिक्षा नीति की भूमिका
-निशांत राज, प्रबंध संपादक, सोनमाटी
देश की नई शिक्षा नीति में बुनियादी तालीम, साक्षरता और संख्यात्मक ज्ञान के लिए राष्ट्रीय मिशन की स्थापना की बात कही गई है। साथ ही परीक्षापद्धति में बदलाव और भारत को भविष्य में वैश्विक ज्ञान महाशक्ति बनाने का संकल्प इसमें है। नई शिक्षा नीति में बहुभाषा क्षमता विकास के लिए के त्रिभाषा फार्मुला को स्वीकार किया गया है और शिक्षकों की गुणवत्ता सुधार के साथ उच्च शिक्षा में नए पैटर्न की बात है।
नई शिक्षा नीति में बुनियादी साक्षरता और संख्यात्मक ज्ञान के लिए राष्ट्रीय मिशन की स्थापना की बात कही गई है। साथ ही भारत को भविष्य में वैश्विक ज्ञान महाशक्ति बनाने का संकल्प इसमें है। बच्चा मातृभाषा में बेहतर सीखता है। यह बात वर्धा में 1937 में हुए राष्ट्रीय शिक्षा सम्मेलन में महात्मा गांधी ने कही थी, जो बाद में बुनियादी तालीम कही गई। इस बुनियादी तालीम पर नई शिक्षा नीति पर जोर दिया गया है। 2016 में बने मसौदा पर जनता, शिक्षाविदों, राज्य सरकारों और केंद्र सरकार के मंत्रालयों से सबसे बड़ी परामर्श-प्रक्रिया 26 जनवरी 2019 से 31 अक्टूबर 2019 के बीच पूरी कर तैयार की गई नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (2020) देश में लागू हो चुकी है। इसीलिए मानव संसाधन मंत्रालय का नाम बदल फिर से शिक्षा मंत्रालय रखा गया है। 1985 में राजीवगांधी सरकार ने शिक्षामंत्रालय का नाम मानवसंसाधन विकासमंत्रालय रखा था।
नियमित स्थाई अध्यापक ही होंगे :
नई शिक्षा नीति में कहा गया है कि शिक्षा की गुणवत्ता के लिए शिक्षामित्र, एडहाक, गेस्टटीचर जैसे पद धीरे-धीरे समाप्त होंगे और बेहतर चयन-प्रक्रिया के जरिये स्कूली और उच्च शिक्षा दोनों में नियमित स्थायी अध्यापक नियुक्त होंगे। नई नीति का उद्देश्य 2030 तक तक हर बच्चे के लिए शिक्षा सुनिश्चित करना है। स्कूली शिक्षा पूरी करते-करते हर विद्यार्थी को एक तकनीकी स्किल (क्षमता) से लैस करना है, जिसका फोकस खेल-कूद आधारित गतिविधि, भाषा कौशल, संगीत, शिल्प, व्यावसायिक कौशल आदि पर होगा। 2030 तक युवा, प्रौढ़ साक्षरता दर 100 फीसदी तक पहुंचाने और इससे संबंधित कार्यक्रमों को विस्तार देने की बात नई शिक्षा नीति में है। 2040 तक सभी उच्च शिक्षा संस्थान बहु-विषयक संस्थान बनाए जाएंगे। विदेश के शीर्ष विश्वविद्यालयों को भारत में कैंपस स्थापित करने की अनुमति मिलेगी, ताकि विद्यार्थी विदेश गए बिना भी श्रेष्ठ शिक्षा प्राप्त कर सकेें।
चार चरणों की स्कूली शिक्षा :
नई शिक्षा नीति में तीन साल की आंगनबाड़ी (प्री-स्कूलिंग) और 12 साल की स्कूली शिक्षा होगी। 3-8, 8-11, 11-14 और 14-18 वर्ष उम्र वर्ग के बच्चों के लिए नई पाठ्यक्रम संरचना होगी। बोर्ड परीक्षा का तनाव कम करने के लिए यह परीक्षा तीन बार होगी। कक्षा-5 तक शिक्षा का माध्यम मातृभाषा या स्थानीय भाषा होगी। सभी छात्र तीन भाषाएं सिखेंगे, जिनका फैसला राज्य सरकारें करेंगी। दूसरे चरण में कक्षा-9 से 12 यानी माध्यमिक, उच्चतर माध्यमिक शिक्षा होगी। नई शिक्षा नीति में 06 साल में बच्चा पहली क्लास में तो होगा, मगर इससे पहले के 03 साल फार्मल एजुकेशन के होंगे। बच्चों के मानसिक-बौद्धिक विकास के लिए भाषा सप्ताह, गणित सप्ताह जैसा कार्यक्रम होगा।
उच्च शिक्षा का नया पैटर्न :
उच्च शिक्षा आयोग के तहत विनियमन, मान्यता, वित्त पोषण और शैक्षणिक मानक तय किए जाएंगे। स्नातक डिग्री की अवधि 03 या 04 साल की होगी। व्यावसायिक या अव्यावसायिक शिक्षा में 01 वर्ष पूरा करने पर प्रमाणपत्र, 02 पर डिप्लोमा और 03 वर्ष पर डिग्री दी जाएगी। जबकि 04 वर्षीय स्नातक पाठ्यक्रम में बहु-विषयक पसंद का या शोध सहित डिग्री पाने का विकल्प होगा। स्नातकोत्तर के लिए तीन विकल्प बनाए गए हैं। पहला, तीन साल की डिग्री कोर्स करने वाले के लिए दो साल का मास्टर। दूसरा, चार साल के डिग्री कोर्स करने वालों के लिए एक साल का मास्टर। तीसरा, 05 साल का इंटिग्रेटेड प्रोग्राम, जिसमें ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन दोनों एक साथ ही शामिल होंगे। पीएचडी के लिए चार साल शोध के साथ डिग्री मिलेगी, क्योंकि एमफिल की डिग्री नहींहोगी।
एक ही रेगुलेटरी बाडी :
एमए डिग्री प्राप्त विद्यार्थी को बीएड की डिग्री एक साल में भी प्राप्त होगी, लेकिन वह विषय विशेष का ही शिक्षक हो सकता है। बीएड प्रोग्राम में मूलभूत शिक्षा, साक्षरता, संख्यात्मक ज्ञान, बहुस्तरीय अध्यापन और मूल्यांकन करने में महारत हासिल करने वाली विधियां शामिल की जाएंगी। इसके लिए बदलती शिक्षा पद्धति के अनुरूप शिक्षण टेक्नोलाजी पर जोर होगा। उच्च शिक्षा को केंद्रीकृत करने के लिए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, आल इंडिया काउंसिल फार ट्रेड एजुकेशन या नेशनल काउंसिल फार टीचर एजुकेशन जैसी किसी संस्था के अधीन रखा जाएगा। उच्च शिक्षा की एक ही रेगुलेटरी बाडी होगी, मगर चिकित्सा और विधि शिक्षण संस्थानों को छूट दी जाएगी।
विकसित होगी शोध संस्कृति :
मजबूत अनुसंधान संस्कृति विकसित करने तथा अनुसंधान क्षमता को बढ़ावा देने के लिए नेशनल रिसर्च फाउंडेशन की स्थापना की जाएगी, जिसका मुख्य उद्देश्य विश्वविद्यालयों में शोध की संस्कृति को सक्षम बनाना होगा। यह बोर्ड आफ गवर्नर्स द्वारा स्वतंत्र रूप से संचालित होगा। इसके अलावा शोध को बढ़ावा देने के लिए नेशनल रिसर्च फाउंडेशन के गठन की भी बात कही गई है। उच्च शिक्षा में एकरूपता के लिए केंद्रीय, राज्य और डीम्ड विश्वविद्यालयों को एक ही मानक आधार पर रखा जाएगा। पूरे देश में एक प्रवेश परीक्षा की बात भी नई नीति में है। राष्ट्रीय शैक्षिक टेक्नोलाजी फोरम का निर्माण होगा, जिसका उद्देश्य शैक्षिक तकनीकी में बौद्धिक, संस्थागत क्षमता निर्माण और अनुसंधान, नवाचार की दिशा में कार्य करना होगा। एससी, एसटी, ओबीसी और अन्य श्रेणियों के विद्यार्थियों से जुड़े हुए छात्रों की योग्यता को प्रोत्साहित करने का प्रयास होगा।
बढ़ेगी शिक्षकों की गुणवत्ता :
नई नीति में शिक्षकों की गुणवत्ता बढ़ाने का प्रावधान होगा। इसके लिए अगले दो सालों में राष्ट्रीय स्तर का मानक तैयार किया जाएगा। दो सालों में शिक्षकों के लिए न्यूनतम डिग्री बीएड होगी। 2022 तक नेशनल काउंसिल फार टेक्निकल एजुकेशन को नेशनल प्रोफेशनल स्टैंडर्ड फार टीचर्स का दायित्व सौंपा गया है। वर्ष 2030 तक सभी बहुआयामी महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में शिक्षकों के पठन-पाठन के अनुरूप अपग्रेड किया जाएगा। उस समय तक शिक्षकों के लिए न्यूनतम डिग्री चार साल की अवधि वाला बीएड होगा। दो साल की बीएड डिग्री उन्हीं ग्रेजुएट छात्रों को मिलेगी, जिन्होंने विषय विशेष में चार साल की पढ़ाई कर रखी होगी। देश में एक जैसे शिक्षक होने और एक जैसी शिक्षा देने का प्रावधान लागू किया जाएगा। विद्यालयों में स्थानीय ज्ञान और लोकविद्या जैसी जानकारी के लिए स्थानीय पेशेवरों को अनुबंध पर रखा जाएगा, जिन्हें मास्टर इंस्ट्रक्टर के नाम से जाना जाएगा। ताकि छात्रों को स्थानीय ज्ञान भी प्राप्त हो सके। स्थानीय ज्ञान और लोकविद्या में कला, संगीत, कृषि, व्यवसाय, खेल, कारपेंटिंग आदि जैसे कौशल शामिल किए जाएंगे।
होगा पढ़ाई का त्रिभाषा फार्मूला :
बहुभाषिक क्षमता विकास के लिए त्रिभाषा फार्मूला की बात नई शिक्षा नीति में है। कक्षा-5 तक मातृभाषा, स्थानीय भाषा में पढ़ाई होगी। जरूरत और संभावना होने पर कक्षा-8 तक ऐसा किया जा सकता है। संस्कृत, तमिल, तेलुगू, कन्नड़ आदि भारतीय भाषाओं में पढ़ाई पर भी जोर है। सेकेंडरी स्कूल में विदेशी भाषाएं फ्रेेंच, जर्मन, स्पेनिश, चीनी, जपानी आदि सीखने का अवसर मिलेगा। विदेशी भाषा वैकल्पिक विषय होगा, जिसका चुनाव विद्यार्थी पसंद या जरूरत के हिसाब से करेंगे। परीक्षा के तरीके में बदलाव की बात नई शिक्षा नीति में है। बोर्ड परीक्षा दो बार होंगे, ताकि पास करने के लिए कोचिंग की जरूरत नहीं रहे। परीक्षा का स्वरूप बदलकर विद्यार्थी की क्षमता का आकलन पर केेंद्रित किया जाएगा, न कि यादाश्त की क्षमता का। ताकि नंबरों का दवाब खत्म हो सके। कक्षा-03, 05 और 08 में परीक्षा लेने की गाइडलाइन बनाने का काम नई एजेंसी करेगी, जो शिक्षा मंत्रालय के अंतर्गत काम करेगी।
संपर्क : सोनमाटी-प्रेस गली, जोड़ा मंदिर, न्यूएरिया, पो. डालमियानगर-821305, डेहरी-आन-सोन, जिला रोहतास (बिहार)
फोन : 9955622367