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गांव की सरकार के प्रचार में इस बार न झंडा न दल
-कृष्ण किसलय (संपादक : सोनमाटी)
बिहार में पंचायत चुनाव को भी वैश्विक महामारी कोरोना का ग्रहण लग गया। अब इंतजार गांव की सरकार यानी पंचायत राज को हर स्तर पर इससे लडऩे वाली पुख्ता तैयारी की है। केंद्र और राज्य के चुनाव आयोगों के बीच दो महीने तक चले ईवीएम विवाद पर सहमति बन जाने के बावजूद पंचायत चुनाव पूर्व की तैयारी स्थगति कर दी गई। उप सचिव समेत राज्य निर्वाचन आयोग के अनेक कर्मी कोरोना ग्रस्त हो गए। इससे पहले ग्रामीण एवं राजस्व सेवा के अधिकारियों ने भी कहा था कि कोरोना के बढ़ते प्रकोप के चलते फिलहाल पंचायत चुनाव कराना उचित नहीं होगा। ग्रामीण एवं राजस्व सेवा के संघ की ओर से राज्य सरकार के मुख्य सचिव को पत्र लिखा गया था कि स्थिति सामान्य होने पर ही पंचायत चुनाव कराने पर विचार किया जाना चाहिए। पंचायत चुनाव में निर्वाची अधिकारी की जिम्मेदारी प्रखंड विकास पदाधिकारी और ग्रामीण विकास पदाधिकारी की होती है। अंचलाधिकारी और प्रखंड के अन्य संवर्ग के पदाधिकारी की भूमिका सहायक निर्वाची पदाधिकारी की होती है। बिहार में ग्रामीण विकास सेवा और राजस्व सेवा राज्य सरकार का नया कैडर है, जिसका चयन बिहार लोक सेवा आयोग के जरिये किया जाता है। राज्य निर्वाचन आयोग ने पंचायत चुनाव की कई तैयारी कर ली थी। 21 से 24 अप्रैल को अधिकारी स्तर के कर्मियों को प्रशिक्षण का कार्यक्रम तय किया जा चुका था और अप्रैल के अंत तक अधिसूचना जारी कर देने का प्रस्ताव था। मगर राज्य निर्वाचन आयोग ने 15 दिनों के लिए अधिसूचना प्रस्ताव को टाल दिया। अब यह भी निश्चित नहींहै कि मई के पहले पखवारा में पंचायत चुनाव की अधिसूचना जारी ही हो जाएगी, क्योंकि निर्वाचन आयोग की ओर से स्थिति की समीक्षा करने के बाद ही अगला फैसला लिया जाएगा।
दलगत आधार नहीं होगा पंचायत चुनाव :
इस बार चुनाव आयोग ने यह स्पष्ट कर दिया है कि पंचायती राज चुनाव में उम्मीदवार न तो अपने संबंधित राजनीतिक दल का और न ही राजनीतिक दल के झंडा का चुनाव प्रचार में सहारा लेंगे। आयोग ने कहा है कि बिहार पंचायत चुनाव 2021 दलगत आधार पर नहीं होने जा रहा है, इसलिए राजनीतिक दल या उसके झंडा का प्रयोग कर प्रचार किया गया तो उम्मीदवार पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी। आदर्श आचार संहिता के मद्देनजर चुनाव आयोग की ओर से जारी दिशा-निर्देश में कहा गया है कि हर जिला के लिए चुनाव की अधिसूचना जारी होने से चुनाव के समाप्त होने तक यह आदर्श आचार संहिता लागू रहेगी। कोई प्रत्याशी ऐसा उपक्रम नहींकरेगा, जिससे धर्म-संप्रदाय, जाति विशेष के लोगों की भावना को ठेस पहुंचती हो और तनाव पैदा होता हो। चुनाव प्रचार के लिए धार्मिक स्थल के उपयोग की भी अनुमति नहींहोगी। इस बार निर्वाचन आयोग की ओर से पंचायती राज चुनाव में व्यय सीमा जिला परिषद के उम्मीदवार के लिए एक लाख रुपये, मुखिया-सरपंच के लिए 40 हजार रुपये, पंचायत समिति सदस्य के लिए 30 हजार रुपये और ग्राम पंचायत सदस्य-सरपंच के लिए 20 हजार रुपये निर्धारित की गई है। चुनाव आयोग के न दल न झंडा की आदर्श आचार संहिता पर भाजपा पंचायती राज प्रकोष्ठ के प्रदेश संयोजक ओमप्रकाश भुवन ने सवाल खड़ा किया है कि जब लोकतंत्र में हर मतदाता और उम्मीदवार किसी न किसी राजनीतिक दल या विचारधारा के साथ होता है, तब किसी राजनीतिक दल के नाम का प्रयोग अलोकतांत्रिक कैसे हो सकता है? इसलिए भाजपा चुनाव आयोग से पंचायत चुनाव में राजनीतिक दल के झंडा का इस्तेमाल करने की अनुमति के लिए आग्रह करेगी।
तो सड़क पर आ जाएंगे एमएलसी :
स्थानीय निकाय प्राधिकार कोटे से निर्वाचित बिहार विधान परिषद के लिए निर्वाचित हुए 20 सदस्यों की सदस्यता 16 जुलाई से समाप्त हो जाएगा, क्योंकि इनके निर्वाचन का वर्तमान कार्यकाल 15 जुलाई तक ही है। पंचायत चुनाव में संभावित विलंब को देखते हुए स्थानीय प्राधिकार कोटे की 24 सीटों के चुनाव की अधिसूचना 15 जुलाई के पहले संभव नहीं है। जाहिर है, इस कोटे का बिहार विधान परिषद का चुनाव टलना तय है। पंचायत चुनाव और विधान परिषद चुनाव के लिए मतदाता सूची बनने में लगने वाले समय को देखते हुए विधान परिषद की 24 सीटों के लिए चुनाव अक्टूबर-नवंबर से पहले संभव नहीं लगता है। पंचायत चुनाव में छह अलग-अलग पदों के लिए चुनाव होता है और चुनाव कार्यक्रम जिलावार होता है। जून 2016 में अलग-अलग जिलों में ग्रामसभा, पंचायत समिति और जिला परिषद के गठन की अधिसूचना अलग-अलग तिथि को जारी की गई थी। इसके बाद उपमुखिया, प्रमुख और जिला परिषद अध्यक्ष का चुनाव हुआ था। प्रदेश भर में पंचायती राज चुनाव की पूरी प्रक्रिया जून महीने के अंत तक पूरी कर ली हुई थी।
इस बार पूर्व हो जाएंगे विधान परिषद सदस्य :
बिहार की द्वि-सदन व्यवस्था में विधान बिहार परिषद विधायिका का ऊपरी सदन है, जिसके सदस्य स्थानीय निकाय कोटा से भी चुने जाते हैं। इसके मतदाता ग्राम पंचायत और नगर निकाय क्षेत्र के निर्वाचित सदस्य होते हैं। यदि अगस्त महीने में स्थानीय निकाय के लिए मतदाता सूची बनाने का काम शुरू होता है तो इसकी प्रक्रिया पूरी होने में सितंबर तक का समय लग जाएगा। तब बरसात और बाढ़ के कारण चुनाव कार्यों में परेशानी हो सकती है। इससे भी लगता है कि विधान परिषद की 24 सीटों के लिए चुनाव अक्टूबर-नवंबर तक होने की संभावना है। पंचायत चुनाव में 60 फीसदी से ज्यादा नए उम्मीदवारों के जीतकर आने की संभावना होती है। इसीलिए विधान परिषद चुनाव की तैयारी में करने वाले उम्मीदवार सुस्त हो गए हैं, क्योंकि उन्हें पंचायत चुनाव और उसके परिणाम के साथ वोटरलिस्ट का इंतजार है। इस बात की संभावना अधिक है कि स्थानीय निकाय कोटा के वर्तमान विधान परिषद सदस्य पंचायत चुनाव में देरी के कारण सदन से सड़क पर आ जाएंगे और उन्हें पूर्व सदस्य के रूप में ही चुनाव के मैदान में उतरना पड़ेगा।
भ्रष्टों के विरुद्ध कार्रवाई का निर्देश :
बिहार के ग्राम पंचायतों के 1475 वार्डों में नल-जल योजना में गड़बड़ी सामने आ चुकी है। राज्य के पंचायती राज विभाग ने मुखिया, उप मुखिया और वार्ड सदस्यों के विरुद्ध कार्रवाई का निर्देश भी दिया है। पंचायती राज मंत्री सम्राट चौधरी ने कहा है जिस पंचायत में नल से पानी नहीं निकला है, वहां योजना पूरी नहींमानी जाएगी। पंचायती राज मंत्री सम्राट चौधरी ने जिलाधिकारियों, जिला ग्रामीण परियोजना पदाधिकारियों और प्रखंड विकास अधिकारियों को भ्रष्टाचार में स्पस्ट रूप से लिप्त मुखिया, उप मुखिया और वार्ड सदस्यों के विरुद्ध एफआईआर दर्ज करने का निर्देश दिया जा चुका है। उपयोगिता प्रमाणपत्र नहीं देने वाले मुखिया पर भी कार्रवाई होगी। राज्य निर्वाचन आयोग ने पहले ही यह गाइड लाइन जारी कर चुका है कि वैसे मुखिया, उप मुखिया पांच साल तक चुनाव नहीं लड़ सकते हैं, जो भ्रष्टाचार और पद के दुरुपयोग में हटाए जा चुके हैं।
- कृष्ण किसलय, पटना
संपर्क : सोनमाटी-प्रेस गली, जोड़ा मंदिर, न्यू एरिया, डालमियानगर-821305, जिला रोहतास (बिहार) फोन 9523154607, 9955622367 व्हाट्सएप 9708778136
देहरादून (दिल्ली कार्यालय) से प्रकाशित समय-सत्ता-संघर्ष की पाक्षिक ‘चाणक्य मंत्र’ में प्रकाशित इस पखवारा (01-15 मई) की बिहार से राजनीतिक रिपोर्ट