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38 साल पहले : धरोहर है सोनमाटी का बहुचर्चित प्रेमचंद जन्मशती विशेषांक

38 साल पहले हिन्दी कथासम्राट के विशेषण से भूषित महान उपन्यासकार-कहानीकार-पत्रकार प्रेमचंद की जन्मशती वर्ष के अवसर पर भारत के विश्वविश्रुत और अत्यंत ऐतिहासिक सोन नद अंचल के प्रतिनिधि समाचार-विचार पत्र सोनमाटी ने विशेषांक का प्रकाशन किया था। तब बिहार के सीमांत पर्वतीय जिले रोहतास के छोटे से शहर डेहरी-आन-सोन से एक-एक कर हजारों छोटे-छोटे अक्षरों व वर्णों (टाइपों) को हथेली पर जोड़कर अखबार के पन्ने तैयार करना और ट्रेडिल मशीन के सहारे अपने समय के हिसाब से एक स्तरीय साप्ताहिक का प्रकाशन बहुत बड़ी बात थी। यह पत्रकारिता-प्रकाशन की दृष्टि से पथरीली ऊसर भूमि को पाषाण युगीन औजारों से अनवरत सघन श्रम के ही बूते खेती योग्य जमीन में बदलने का उपक्रम था। 38 साल पहले कथासम्राट प्रेमचंद की सौवीं जयंती पर प्रकाशित सोनमाटी का बहुचर्चित प्रेमचंद जन्मशती विशेषांक हिन्दी साहित्य और पत्रकारिता जगत की धरोहर है। उस अंक की झलक प्रस्तुत करते हुए सोनमाटीडाटकाम मुंशी प्रेमचंद को उनकी जयंती (31 जुलाई) पर आदर के साथ अपनी श्रद्धा अर्पित कर रहा है।

शुभकामनाओं में प्रेमचंद : आधुनिक युग के विश्व साहित्यकार और हिन्दी गद्य के तुलसीदास

1. मुंशी प्रेमचंद हिन्दी साहित्य में उपन्यास सम्राट के रूप में विख्यात हैं। इन पर स्मृति अंक प्रकाशित कर सोनमाटी अच्छा कार्य कर रहा है। -जगजीवन राम (पूर्व उपप्रधानमंत्री).
2. प्रेमचंद की जन्मशती के प्रति जनसाधारण में जो उत्साह दिखाई पड़ रहा है, यह अभूतपूर्व है। यह इस बात का प्रमाण भी है कि जनता को प्रेमचंद की रचनाओं में अपने दिल का तार बजता सुनाई पड़ता है। -अमृत राय, इलाहाबाद (प्रेमचंद के छोटे पुत्र, सुप्रसिद्ध कथाकार)
3. प्रेमचंद को तो लगातार पढ़े जाने की जरूरत है। -ममता कालिया, इलाहाबाद (सुप्रसिद्ध कथाकार)
4. प्रेमचंद गरीबों के साहित्यिक मसीहा थे। -शंकरपुणे तांबेकर, महाराष्ट्र (सुप्रसिद्ध लघुकथा लेखक)
5. भारतीय समाज के अप्रतिम चितेरे के रूप में प्रेमचंद का विशिष्ट स्थान है। उन्होंने हिन्दी कथा साहित्य को जो मोड़ दिया, उससे वह ऐय्यारी की कल्पनालोक से हटकर लोकजीवन की गहराइयों की ओर उन्मुख हुआ। -श्यामकृष्ण पांडेय, प्रयाग (सहायक मंत्री, हिन्दी साहित्य सम्मेलन)
6. प्रेमचंद कृतित्व-व्यक्तित्व की जानकारी देना ही उस महान साहित्यकार के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि है। -डा. भगवानदास अरोड़ा, वाराणसी (प्रधान संपादक, दैनिक गांडीव),
7. प्रेमंचद पर सोनमाटी के विशेषांक की प्रतीक्षा रहेगी। -डा. महाराज कृष्ण जैन, अंबाला (निदेशक, कहानी लेखन महाविद्यालय)
8. प्रेमंचद मिट्टी के साहित्यकार थे, जिन्होंने किस्सागोई का तिलस्म तोड़कर हिन्दी कहानी और उपन्यास को ठोस आधार दिया। कीचड़ उछाल पत्रकारिता के दौर में आपने नि:स्वार्थ प्रेमचंद विशेषांक निकालने को ठाना है, इसके लिए आप जैसे संघर्षशील तरुण को बधाई। एकदम छोटे स्थान से मरखप कर अखबार निकालना-चलाना कितना कठिन है, उसे मैं जानता हूं। भरोसा है, आप अपना संकल्प पूरा करेंगे। -डा. बुद्धिनाथ मिश्र, देहरादून (बहुचर्चित नवगीतकार, वरिष्ठ साहित्यकार, पत्रकार)
और, बिहार की लोकभाषा भोजपुरी में भी एक पत्र
9. ….ई जानि के बहुत खुसी भइल कि सोनमाटी कथा-सम्राट मुंशी प्रेमचंद जन्म शताब्दी पर विशेषांक प्रकाशित कर रहल बा।….-हवलदार त्रिपाठी सहृदय, पटना (निदेशक, भोजपुरी अकादमी)

सोनमाटी के प्रेमचंद विशेषांक प्रकाशन के बाद
सोनमाटी का प्रेमचंद विशेषांक प्रकाशित होने के बाद विद्वानों-पाठकों के प्राप्त करीब सौ पत्र मिले थे, जिनमें से स्थानाभाव के कारण और संपादकीय नीति के अनुरूप महत्व के हिसाब से चुनिंदा पत्रों को ही प्रकाशित किया गया था, उन प्रकाशित पत्रों में से कुछ पत्र यहां पेश हैं। साहित्यकार शंकरपुणे तांबेकर ने अपने पत्र में लिखा था कि मुंशी प्रेमचंद विशेषांक से सोन-माटी शायद हीर-माटी न बन जाए। और, ऐसा हुआ भी। बिना पूंजी, बिना उच्च तकनीक के सिर्फ व्यक्तिगत प्रयास से वह भी छोटे कस्बे (तब प्रखंड स्तर का शहर) से प्रकाशित होने वाले सोनमाटी ने अपने प्रकाशन के चंद सालों में ही बिहार ही नहीं, देश के आंचलिक पत्रों में अतुलनीय प्रतिष्ठा अर्जित की। टाइम्स आफ इंडिया प्रकाशन समूह की पत्रिका सारिका में सोनमाटी के बारे में संक्षिप्त टिप्पणी प्रकाशित हुई। वह टिप्पणी आज के वरिष्ठ-चर्चित हिन्दी कथाकार बलराम ने की थी, जो तब सारिका के उपसंपादक थे। राजेन्द्रपथ, धनबाद (बिहार) से डा. मृत्युंजय उपाध्याय ने लिखा था- सारिका (पाक्षिक), नई दिल्ली के नवम्बर द्वितीय (1980) में सोनमाटी पर संक्षिप्त सशक्त टिप्पणी पढऩे का मौका मिला। खुशी हुई कि डालमियानगर (डेहरी-आन-सोन) से इतना स्तरीय प्रकाशन कर रहे हैं।

1. सोनमाटी का प्रेमचंद स्मृति अंक मिला। प्रेमचंद के व्यक्तित्व-कृतित्व पर बहुत महत्वपूर्ण सामग्री संकलित कर दी है। -डा. रामकुमार वर्मा, इलाहाबाद (प्रख्यात समालोचक, एंकाकीकार)
2. प्रेमंचद महान युगद्रष्टा सर्जक थे। उन पर गंभीर विशेषांक निकालकर सोनमाटी ने उल्लेखनीय श्रद्धांजलि अर्पित की है। -प्रद्मश्री रामेश्वर सिंह काश्यप, सासाराम, बिहार (शांतिप्रसाद जैन कालेज के प्राचार्य, रेडियो धारावाहिक नाटक लोहा सिंह के यशस्वी लेखक)
3. मैं समझ नहीं पा रहा कि सोनमाटी के उत्साही संस्थापक-संपादक कृष्ण किसलय को समाज और साहित्य की सेवा के लिए किस रूप में बधाई दूं! बिहार से प्रकाशित प्रेमचंद विशेषांकों में सोनमाटी का संविशिष्ट स्थान है। ऐसे उपयोगी समाचार-विचार पत्र को प्रश्रय देना सरकार का भी कर्तव्य है। -रामदयाल पांडेय, पटना (अध्यक्ष, हिन्दी प्रगति समिति, बिहार सरकार)
4. गौरव हो रहा है कि कस्बाई नगर से भी इतना पुष्ट प्रकाशन संभव है। प्रेमचंद पर बड़ी पत्रिकाओं ने सज्जाएं बिखेरीं, उन्हें भी आपने पीछे छोड़ दी। -शंकरदयाल सिंह, पटना (सांसद, चर्चित साहित्यकार)
5. पिछले दिनों प्रतिष्ठानों और बड़ी संस्थाओं से निकलने वाली पत्रिकाओं के प्रेमचंद विशेषांक देखे थे। अत्यंत सीमित साधन के बावजूद आपने जो विशेषाक तैयार किया है, उसकी जितनी भी प्रशंसा की जाए, कम होगी। मैंने अपने कई मित्रों को यह अंक दिखाया, सबने इसकी भूरि-भूरि प्रशंसा की। –मिथिलेश्वर, आरा, बिहार (ख्यातिलब्ध कथाकार)
6. सोनमाटी के प्रेमचंद विशेषांक सहित कई अंक संग्रहणीय बन पाए हैं। -डा. शशिप्रभा शास्त्री, देहरादून (प्रतिष्ठित साहित्यकार)
7. प्रेमचंद के लेखन और व्यक्तित्व के विविध पहलुओं को एक साथ स्पष्टता के साथ रखने और विचारसंपन्न विश्लेषणात्मक सामग्री के लिए बधाई। -निरुपमा सेवती, मुम्बई (चर्चित कहानीकार)
8. जनजीवन के महान रचनाकार पर स्मृति विशेषांक महत्वपूर्ण सामग्री के साथ बहुत सुरूचिपूर्ण है। बधाई संपादक कृष्ण किसलय और विशेषांक के सौजन्य संपादक अवधेशकुमार श्रीवास्तव को भी। -डा. सिद्धनाथ कुमार, रांची विश्वविद्यालय (वरिष्ठ आलोचक, नाटककार)
9. प्रेमंचद विशेषांक में तो आपने गागर में सागर भर दिया है। सामग्री अच्छी है। बधाई। -वेंकटलाल ओझा, हैदराबाद (मंत्री, हिन्दी साहित्य सम्मेलन)
10. साहस से जूझने और सफलता के लिए बधाई। -आशारानी व्होरा, दिल्ली (महिला विषयों की देश की अग्रणी लेखिका)

और, प्रेमचंद के बेटे अमृत राय का एक पत्र ऐसा भी
आपके 18-8 (1980) के पत्र का उत्तर आज 11-11 (1980) को दे रहा हूं।………. मुझे सचुमच खेद है कि प्रेमचंद जन्मशती पर अनेक व्यस्तताओं के कारण आपके विशेषांक (सोनमाटी) के लिए नहीं लिख सका। छोटा-सा लेख तो लिख ही सकता था। प्रेमचंद और शिवरानी देवी के चित्रों का ब्लाक तो भेजना कुछ कठिन नहींथा। मेरा बाप (पुस्तक) से भी प्रकाशन की स्वीकृति भेज सकता था।………. मेरी स्थिति एक अनार और सौ बीमार वाली रही, उसी ने सब अस्त-व्यस्त कर दिया।
किशोर कुणाल ने किया था विशेषांक का विमोचन, डा. नंदकिशोर तिवारी ने की थी अध्यक्षता
टेबलाइड साइज (25-38 सें.मी. में 24 पेज) के सोनमाटी के मुंशी प्रेमचंद स्मृति विशेषांक का प्रकाशन 09 सितम्बर 1980 को हुआ था, जिसका विमोचन रोहतास जिला में पुलिस अधीक्षक रहे और चेतना (मसूरी, उत्तराखंड) के पूर्व संपादक किशोर कुणाल (आज पटना स्थित उत्तर भारत के प्रसिद्ध महावीर मंदिर ट्रस्ट के शीर्ष व्यवस्था निदेशक) ने किया था। सोनमाटी के तत्कालीन औद्योगिक नगर संवाददाता चितरंजनलाल भारती (आज हिन्दी के वरिष्ठ कथाकार, कवि) द्वारा लिखी गई रिपोर्ट के अनुसार, डेहरी-डालमियानगर नगर परिषद के सभागार में आयोजित विमोचन समारोह सह विचारगोष्ठी की अध्यक्षता प्रतिष्ठित समालोचक डा. नंदकिशोर तिवारी (शांति प्रसाद जैन महाविश्वविद्यालय, सासाराम, बाद में वीरकुंवर सिंह विश्वविद्यालय में यूनिवर्सिटी प्रोफेसर) ने की थी। चर्चित गीतकार चंद्रेश्वर नीरव (तिलौथू, रोहतास) और प्रतिष्ठित भोजपुरी कवि गणेशदत्त किरण (बक्सर, बिहार) ने काव्यपाठ किया था। सोनमाटी के सौजन्य संपादक अवधेशकुमार श्रीवास्तव ने साहित्यकार से अलग पत्रकार प्रेमचंद के बारे में जानकारी दी थी।

विमोचन समारोह सह विचारगोष्ठी का संचालन सोनमाटी के संपादक-प्रकाशक कृष्ण किसलय ने और अंत में धन्यवाद ज्ञापन सोनमाटी के कार्यालय संवाददाता व प्रेस ट्रस्ट आफ इंडिया के संवाददाता विजयबहादुर सिंह ने किया था। समारोह में डेहरी-आन-सोन के प्रतिष्ठित नेत्र रोग विशेषज्ञ डा. अवधविहारी सिंह,, सोनमाटी के विशेष संवाददाता रामबचन पांडेय (तब दैनिक प्रदीप और बाद में हिन्दुस्तान के संवाददाता), सोनमाटी प्रतिनिधि उपेन्द्र मिश्र (तब हिन्दुस्थान समाचार के संवाददाता,अब दैनिक जागरण के डेहरी-आन-सोन संवाददाता), कांग्रेस के जिला अध्यक्ष खुर्शीद अनवर उर्फ छोटन खां (आज जदयू के बिहार प्रदेश महासचिव), जिला कांग्रेस के महासचिव संतोष उपाध्याय आदि ने भी प्रेमचंद के संदर्भ में अपनी बातें रखी थीं।

(प्रस्तुति संयोजन : सोनमाटी संपादकीय टीम  उपेन्द्र कश्यप, मिथिलेश दीपक, निशांत राज)

संलग्न : प्रेमचंद-पुत्र यशस्वी साहित्यकार स्व. अमृत राय का पत्र, सोनमाटी के प्रथम पेज पर स्व.कवि चंद्रेश्वर नीरव की काव्य-पुष्पांजलि

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