–समाचार विश्लेषण/कृष्ण किसलय–
17वीं लोकसभा की 543 सीटों के लिए चुनाव 11 अप्रैल से 19 मई तक सात चरणों में होगा। देश के मतदाता सोच-समझ कर ही फैसला लेंगे, क्योंकि वे परिपक्व हो चुके हंै और राजनीतिक दलों को अच्छी तरह पहचानने लगे हैं। इस बार चुनाव की महत्वपूर्ण बात यह होगी कि सूचना तकनीक की बेहतर जानकारी से लैस 15 करोड़ युवा देश के राजनीतिक भाग्य का फैसला फोन (स्मार्ट मोबाइल हैंडसेट) के जरिये करेंगे। यही कारण है कि कई तरह के ऐप, विभिन्न यू-ट्यूब चैनल, फेसबुक पर चुनावी पेज आदि सक्रिय हो उठे हैं। दूसरी बात यह कि इस बार चुनाव इतना खर्चीला होगा कि यह दुनिया के सबसे महंगा चुनाव होने का वल्र्ड रिकार्ड बनाएगा। भारत के 2014 लोकसभा चुनाव पर करीब 35 हजार करोड़ रुपये और अमेरिका में गत राष्ट्रपति व संसदीय चुनाव पर करीब 46हजार करोड़ रुपये खर्च हुए थे।
जिस दलबदल से शुरू हुई आया राम गया राम की कहावत
2019 में भले ही किसी गठबंधन को बहुमत न मिले, मगर राजनीतिक दलों ने गठबंधन की सरकारों में भागीदार बनना और वैसी सरकार चलाना सीख लिया है। 1967 में हरियाणा में गया लाल नामक विधायक ने एक पखवाड़ा में तीन बार दल बदला तो दल बदलुओं के लिए ‘आया राम, गया रामÓ की कहावत प्रचलित हो गई। दल बदल के कारण ही 1967 के बाद केेंद्र और राज्यों में मिली-जुली सरकारें बननीशुरू हुईं और सभी राजनीतिक दलों को गठबंधन की सरकारों में भागीदार बनना, भागीदारी वाली सरकार चलाना सीखना पड़ा है। इस बार कांग्रेस का जोर छोटे-बड़े राज्यों में गठबंधन पर है और उसे सफलता मिली है। भाजपा की भी सोच है कि ज्यादा सीटें पाकर हारने से अच्छा सहयोगी दलों कासाझा सरकार बनाना है। इसीलिए भाजपा ने बिहार में जीती हुई सीटें भी जदयू को दे दी है।
भाजपा के लिए एकदम अलग है 2019 का लोकसभा चुनाव
बिहार में भाजपा, जदयू को 17-17 और लोजपा को छह सीटें मिली हैं। जबकि 2014 में भाजपा ने 30 सीटों पर प्रत्याशी खड़ाकर 22 और जदयू ने सभी 40 सीटों पर लड़कर दो सीटों पर ही जीत हासिल की थी। एक तरह से भाजपा ने 13 सीटों का त्याग किया है, जिनमें पांच पर उसके सांसद हैं। सीटों के तालमेल में भाजपा ने महाराष्ट्र में शिवसेना से समझौते में भी बेहद लचीला रुख अपनाया। महाराष्ट्र में भाजपा 25 सीटों पर लोकसभा चुनाव लड़ेगी और शिवसेना 23 पर। दोनों विधानसभा चुनाव भी मिलकर लड़ेंगे। तमिलनाडु में भी एआईडीएमके से गठबंधन में भाजपा को 5 सीटें ही मिली हैं। इससे जाहिर है कि कई कारणों से भाजपा के लिए 2019 का लोकसभा चुनाव 2014 के चुनाव के मुकाबले एकदम अलग है। तीन राज्यों में बीते विधानसभा चुनावों में सत्ता खोने के बाद भाजपा को लग रहा है कि नरेंद्र मोदी के आकर्षण और अमित शाह के प्रबंधन पर ही निर्भर रहना भारी भी पड़ सकती है।
पैसे ने बदल दिया राजनीति का चरित्र
आजादी के बाद आरंभिक दौर में उम्मीदवार महत्वपूर्ण होते थे। उनके गुण-दोष, योग्यता-अयोग्यता परखी जाती थी। उम्मीदवार जनता के साथ संवाद करते थे, जनता की बात सुनते थे, जनता के साथ खड़े होते थे। धीरे-धीरे राजनीति में आपराधिक छवि की दखल बढ़ती गई। 1996 में देश की संसद में 40 सांसदों पर आपराधिक मुकदमे थे। 2004 में 125, 2009 में 157 और 2014 में 180 दागी सांसद लोकसभा में पहुंचे थे। पहले दबंग नेता भी जनता के साथ बने रहने का प्रयास करते थे, मगर आर्थिक उदारीकरण के बाद सत्ता के बाजार में पैसा का प्रवाह बढ़ा तो बाहुबल के साथ धनबल की दखल बढ़ गई। पहले पार्टियां उम्मीदवार को आर्थिक मदद देती थी। अब उम्मीदवार पार्टी को चंदा दे रहे हैं। पैसे ने राजनीति का चरित्र बदल दिया। राजनीति संवाद से समर में तब्दील हो गई, सेवा से धंधा बन गई, इन्वेस्ट मार्केट बन गई। सभी संगठित पार्टियों ने चंदा लेने और बांटने का तंत्र विकसित कर लिया है। बहरहाल, इस बार सभी 10 लाख मतदान केेंद्रों पर मतदान केेंद्रों पर वीवीपैट मशीन होगी, सीसीटीवी कैमरा लगेगा और मतदान के साथ पूरी चुनावी प्रक्रिया की वीडियोग्राफी होगी। वीवीपैट के ऐप से मतदाता जान सकेगा की उसका मत उसकी पसंद के उम्मीदवार को ही पड़ा।
– कृष्ण किसलय
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