कृष्ण किसलय, कृपा शंकर और लता प्रासर की क्षणिकाएं
इस बार सोनमाटी के साहित्य स्तंभ सोन-धारा में प्रस्तुत है लघु कविताओं यानी क्षणिकाओं का यह संयोजन। वरिष्ठ रचनाकार कृपा शंकर और युवा कवयित्री लता प्रासर की रचनाएं कोरोना-काल की हैं। जबकि वरिष्ठ रचनाकार कृष्ण किसलय की 20वीं सदी की क्षणिकाएं चार दशक पुरानी, रचनाकर्म सीखने के समय की, संवेदना को आकार देने की आरंभिक रचनाएं हैं, जो कोरोना-काल में उमड़ती-घुमड़ती स्मृतिस्वरूप उपस्थित हुई हैं। कृपा शंकर की क्षणिकाओं में 21वीं सदीे के मौजूदा वक्त में कोरोना के कारण लाकडाउन की मन:स्थिति से गुजरते हुए जिंदगी की झंझावत से जूझने का अनुभव-संसार है और जिनमें विद्यमान है भोजपुरी भाषा क्षेत्र के अकोट-बकोट जैसी आक्रोश की निस्पृह भाव-भूमि भी। लता प्रासर की क्षणिकाएं लाकडाउन में नैराश्य तपे जीवन का सृजन-स्फुलिंग हैं। गृह-नजरंबदी के इसी दौर में पटना में सतत संगोष्ठी-संयोजन के जरिये सक्रिय रहने वाले वरिष्ठ रचनाकार सिद्धेश्वर ने आनलाइन संसाधन का बेहतर प्रयोग किया है। देश-विदेश में इंटरनेट के गूगल प्लेटफार्म पर निशुल्क उपलब्ध सोशल मीडिया (जी-मेल, व्हाट्सएप, फेसबुक आदि) का उपयोग अनेक संस्थाएं, समूह और व्यक्ति बतौर साहित्य-मंच कर रहे हैं। सिद्धेश्वर ने हिंदी साहित्य के परिचित हस्ताक्षरों का लघुकथाकार सम्मेलन के बाद कवि सम्मलेन का आनलाइन संधान किया। (-प्रबंध संपादक : निशान्त राज, सोनमाटी मीडिया समूह)
कृष्ण किसलय की तीन क्षणिकाएं
(1). – फर्क –
मेरी जिन्दगी
बन कर मोमबत्ती
जल रही है
तिल-तिल गल रही है,
मगर देखने वाले कहते हैं कि
वह रोशनी में बदल रही है।
(2). – डर –
मोहब्बत का दीया
जला दिया है जो
तेरे दिल में,
मुझे डर है
जमाने की हवा
कहीं उसे बुझा न दे !
(3). – इंतजार –
वक्त पिघलता रहा
और आंख की राह
बस ढरकता रहा,
तुम आए न आए
क्या पता,
मगर इंतजार
उम्र भर कसकता रहा।
0- कृष्ण किसलय
(फोन 9708778136)
कृपा शंकर की तीन क्षणिकाएं
(1). – मदारी –
मदारी वाला
सांप और नेवले को
लड़ाता नहीं कभी,
जड़ी-बूटियां, दंतमंजन
और अंगूठियां
बेचकर बढ़ लेता है आगे,
माना कि
नेवले से चिढ़ है तुम्हें,
मगर सांप पालने और
जहर बेचने का हुनर
सबके पास तो नहीं होता।
(2). – प्रयोग –
मनुष्य को मनुष्य से
अलग करने का प्रयोग
नाहक कर लिया तूने,
यह काम पहले से हो चुका है
कुछ कर ऐसा कि
मनुष्य से मनुष्य जुड़े
सभ्यता से सभ्यता
और जंगली जानवरों
जाहिलों के लिए
एक अलग दुनिया का निर्माण कर।
(3).- मुखौटा –
उतारो ये मुखौटे
तुमने जो पहन रखे हैं
इन्हें नोंच देंगे
आओगे जब गिरफ्त में,
हमारे-तुम्हारे ये फासले
तब उस दिन खत्म हो जाएंगे
हमेशा-हमेश के लिए।
०- कृपा शंकर
(फोन 9810374097)
लता प्रासर की तीन क्षणिकाएं
(1). – जमीर –
अभेद्य है सच का किला, झूठ की प्राचीर है
भेद उनका जान लो घाल-मेल हर ओर है,
आज कुछ ऐसी ही भारत की मुनीर तस्वीर है
बचा सको तो बचा लो जो बचा हुआ जमीर है।
(2). – पाबंदी –
पाबंदियां मन पर लगीं, तन का उड़ान जारी है
कोरोना के छुआछूत पर शिक्षक की मौत भारी है,
बंधुआ मजदूर-सी जंग है, शिक्षकों की पारी है
पूछो न कैसी महामारी है ये कैसी लाचारी है !
(3). – सूना-सूना –
एटीएम है सूना-सूना पैसे के बिना
कट रहा जो था वह आमद का नमूना,
चक्कर लगाती हांफती दादी बुदबुदा रही
कि बंद है बेटा कहीं, जिसको जना !
0- लता प्रासर
(फोन 7277965160)
सृजन का त्वरित सुलभ सुदूर संवाद है आनलाइन कवि सम्मेलन : गोरखनाथ मस्ताना
फेसबुक पर भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के तत्वावधान में वरिष्ठ कवि सिद्धेश्वर द्वारा आयोजित ‘हेलो फेसबुक कवि सम्मेलन’ में मुख्य अतिथि वरिष्ठ गीतकार गोरखनाथ मस्ताना ने कहा कि इस तरह के आयोजन की खासियत दूर-दराज के रचनाकारों से सीधा, त्वरित और सुलभ संवाद है। यह आने वाले समय का बहुउपयोगी संसाधन है। आनलाइन अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ कवि रासदादा रास ने कहा कि कोरोना महाआपदा के बाद समाज के सार्वजनिक जीवन में कई बदलाव आए हैं और अनेक तरह के परिवर्तन आने वाले हैं। आनलाइन कवि सम्मेलन में वरिष्ठ के साथ नए कवियों गोरखनाथ मस्तान, रासदादा रास, भगवती प्रसाद द्विवेदी, अशोक अंजुम, अमलेन्दु अस्थाना, समीर परिमल, सिद्धेश्वर, ऋचा वर्मा, सुशील साहिल, नूतन सिंह, विश्वनाथ वर्मा, हेमंतदास हिम, लता प्रासर, निकेश निझावन, निविड़ शिवपुत्र, बीएल प्रवीण, आरती कुमारी, जयंत चैतन्य चंदन, मीना कुमारी परिहार, स्मृति कुमकुम, घनश्याम, डा. शिवनारायण, दिलीप कुमार, पूनम श्रेयसी, हृदयनारायण झा, संतोष गर्ग आदि ने अपनी कविताएं प्रस्तुत कीं। प्रस्तुत हैं कुछ कविता-अंश।
बस अमीरों को घर आने की छूट क्यों
मात्र मजदूर के स्वप्न की लूट क्यों
है चहकता महल आज भी और
झोपड़ी में है वीरानियां क्यों?
(गोरखनाथ मस्ताना)
छज्जे से खिड़की तक दीदार सुरक्षित है,
मुझको खुशी है मौला मेरा यार सुरक्षित है!
(अशोक अंजुम)
इरादा चांद, सूरज को छूने का हौसला रखा है,
मौत आकर दिखलाओ, मैंने दरवाजा खुला रखा है!
(अमलेन्दु आस्थाना)
बहुत दिनों के बाद ठहर गई हूं
एक जगह पर,
जैसे ठहरा होता है कोई पेड़!
(ऋचा वर्मा)
आया कैसा दौर है कैसा संकट काल,
शुतुरमुर्ग-सा मुंह छुपाए कछुए जैसा हाल।
(भगवती प्रसाद द्विवेदी)
घात लगाए घूम रहे हैं, मौत के साए घूम रहे हैं
एक इंसान पर लाखों वायरस आंख टिकाए घूम रहे हैं।
(सुशील साहिल)
ख्वाबों ने हम पर इतराना छोड़ दिया,
दीवारों से सर टकराना छोड़ दिया।
एक हवेली रोती है, दिल के अंदर,
जबसे तुमने आना-जाना छोड़ दिया।।
(समीर परिमल)
सोचा ना था कभी कि आएगा प्रलय ऐसे,
नाचेगा काल विकराल रूप धर
और निगल लेगा लाखों लोगों को एक बार में ही !
(आरती कुमारी)
पैदा करो अपने में हिम्मत कभी तुम डरो नहीं,
एक दिन तो सबको मरना है पहले से मरो नहीं।
(मधुरेश नारायण)
०- रिपोर्ट : सिद्धेश्वर
(फोन 9234760365)
लघु कविताओं यानी क्षणिकाओं का यह संयोजन बहुत बेहतरीन है. यह वाकई वर्तमान समय में कोरोना के कारण लॉकडाउन की मन:स्थिति से गुजरते हुए जिंदगी की झंझावत से जूझने का अनुभव-संसार है. आप सभी
महानुभावों विभूतियों को दिल से नमन व बधाई
सुंदर पंक्तियां