बिहार स्थापना दिवस/ पत्रकार महासंघ समारोह/ मयस्सर नहीं पीने का पानी

जीएनएसयू पत्रकारिता विभाग में बिहार स्थापना दिवस

डेहरी-आन-सोन (रोहतास)-विशेष संवाददाता। गोपालनाराययण सिंह विश्वविद्यालय के एकाडमिक डायरेक्टर सुदीप कुमार ने कहा कि बिहार उस अर्थशास्त्री की धरती है, जिसने पूरे विश्व को प्रकाशपूण किया। सुदीप कुमार गोपालनारायण सिंह विश्वविद्यालय के पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग में बिहार दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में बिहार के महत्व पर प्रकाश डाल रहे थे। अध्यक्षता पत्रकारिता विभाग के विभागाध्यक्ष ने की। यह धरती बुद्ध, महावीर की धरती है, बौद्धिकता की भूमि है। पत्रकारिता विभाग की अस्सिस्टेंट प्रोफेसर पूजा कौशिक, पत्रकारिता के द्वितीय वर्ष के छात्र सौरभ कुमार, प्रबंधन विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर वरुण कुमार, कुमुद रंजन, निखिल निशांत, फहमीन हुसैन, मुकुन्द कुमार ने बिहार के राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक पहलुओं पर अपना-अपना विचार रखा। कार्यक्रम का संचालन पत्रकारिता विभाग के छात्र निशांत कुमार ने किया।

पत्रकार महासंघ का शपथग्रहण समारोह

प्रयागराज (उत्तर प्रदेश)-सोनमाटी समाचार नेटवर्क। बारा तहसील सभागार में भारतीय राष्ट्रीय पत्रकार महासंघ बारा इकाई के शपथग्रहण समारोह को मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित करते हुए प्रयागराज के डीआईजी सर्वश्रेष्ठ त्रिपाठी ने कहा कि पत्रकार समाज की बुराइयों को उजागर करने के लिए सजगता के साथ सक्रिय रहता है। उन्होंने कहा कि कुछ तथाकथित पत्रकार गलत सूचनाएं भी प्रसारित करते हैं, जिससे प्रतिबद्ध पत्रकारों की भी बदनामी झेलनी पड़ती है। विशिष्ठ अतिथि के रूप में एसपी (क्राइम) आशुतोष मिश्र ने कहा कि पत्रकार समाज का आईना है, जिसमें समाज अपने चेहरे की हर अक्स देखता है। पत्रकार महासंघ के मंडल अध्यक्ष आलोक त्रिपाठी ने पत्रकारों को ईमानदारी से पत्रकारिता की सलाह दी। बारा इकाई के पदाधिकारियों को जिलाध्यक्ष अखिलेश मिश्र ने शपथ दिलाई। बारा के एसडीएम सुभाषचंद्र यादव, सीओ अवधेश शुक्ल, भाजपा के वरिष्ठ नेता रमाकांत विश्वकर्मा, अधिवक्ता एसएस परिहार, महासंघ के जिला महासचिव राजेन्द्र सिंह आदि ने भी समारोह को संबोधित किया। कार्यक्रम के संयोजक बारा इकाई के अध्यक्ष मोहम्मद आरिफ सिद्दीकी और महासचिव प्रवीण मिश्र स्वागत किया। कार्यक्रम का संचालन मंडल उपाध्यक्ष आरके शर्मा और जिला प्रतिनिध गिरिजा द्विवेदी ने किया।

पहाडी चुआं का पानी पीने को विवश फुलवरिया के ग्रामीण

तिलौथू (रोहतास)-सोनमाटी समाचार नेटवर्क। कहा जाता है कि तिलौथू प्रखंड तेजी से आगे बढ़ रहा है। लेकिन इस प्रखंड क्षेत्र अंतर्गत रमडीहरा ग्राम पंचायत का कैमूर पहाड़ी की ऊपरी तलहटी पर आबाद एक गांव फुलवरिया, जनसुविधा के हर पैमाने पर पीछे है। जबकि देश को दोहन-शोषण का उपनिवेश बनाकर रखने वाली अंग्रेजी से आजादी के अब 75 साल होने वाले हैं। दूर-दराज के बाजार से कपड़ा और भोजन की सुलभता की बात छोड़ दें तो सामाजिक सुविधाओं के मामले में फुलवरिया गांव के बाशिंदों का रहन-सहन आज भी आदिम युग जैसा है। बिजली, मोबाइल फोन नेटवर्क, टीवी संचार जैसे आज के जीवन की जरूरी उपभोक्ता सुविधा तो इनसे कोसों दूर है। इस गांव के लोगों को प्रत्येक वर्ष मतदान के लिए पहाड़ से नीचे मतदान केेंद्र तक ले जाने के लिए उतारा जाता है, ताकि वे मतदान कर लोकतंत्र का हिस्सा बने रहे। मगर वोट देने के बाद उनकी फिर सुध लेने वाला कोई नहींहोता है। न सरकार, न प्रशासन, न राजनीतिक दल और न ही सामाजिक संगठन। फुलवरिया के ग्रामीणों के लिए न तो समुचित शिक्षा मुहैया कराने की व्यवस्था की गई है और न ही इन्हें स्वास्थ्य की आवश्यक सुविधाएं उपलब्ध हैं। पीने के पेयजल भी इन्हें मयस्सर नहींहै। इस पहाड़ी गांव में कोई 20 घर होंगे, जिनकी जनसंख्या बमुश्किल 80 के करीब ही होगी।
फुलवरिया गांव अब तक नली-गली, सड़क, विद्यालय, स्वास्थ्य केेंद्र, शौचालय-सफाई, नल-जल योजना आदि से महरूम है। आज भी इस गांव के बाशिंदे पानी के लिए पहाड़ के पानी स्रोत (चुआं) पर ही निर्भर हैं। पहाड़ की दरार से निकलने वाला पानी ही इनके पीने, नहाने और मवेशी के इस्तेमाल में आता है। सदियों से इस गांव के वन-पर्वत वासी इसी पानी को पीते रहे हैं। विकास की इद्रधनुषी दुनिया के विस्तार के बावजूद ये आज भी चुआं का पानी के लिए विवश हैं, जो पहाड़ पर शिलाखंडों के बीच बनी दरार से नाली जैसा बहता रहता है। फुलवरिया कहने को तो ग्रामपंचायत (रामडीहरा) का हिस्सा है, मगर हकीकत यही है कि इसका फायदा सिर्फ वोट लेने और जनतंत्र की मौजूदगी का रिकार्ड मात्र दर्ज करने के लिए है। सरकार के जन लाभकारी कार्यक्रम का यहां घोर अभाव है। पंचायत का ग्राम स्वराज सिर्फ फाइलों और कागजों में है। और तो और, ग्रामीण बताते हैं कि उन्हें सरकार की जनवितरण प्रणाली द्वारा बांटी जाने वाले राशन का लाभ भी नहीं मिलता है। इस पिछड़े गांव के लोग कायदा-कानून से अनजान अपने हक-हकूक के लिए जागरूक नहींहै। न तो ग्राम पंचायत का मुखिया वहां जाता है और न ही जनवितरण प्रणाली का दुकानदार। प्रखंड विकास पदाधिकारी तो दूर का अधिकारी है। पंचायत का मुखिया साल में कभी वहां पहुंचते भी हैं तो सिर्फ अपना कोरम पूरा करने के लिए। फुलवरिया गांव के ग्रामीणों को अपनी जरूरत की रोजमर्रा की चीजों को लेने-खरीदने के लिए हर रोज पहाड़ से नीचे उतरकर पांच से दस किलोमीटर चलकर निकट के बाजार रमडीहरा या तिलौथू पहुंचना पड़ता है।
समाजसेवी सत्यानंद कुमार का कहना है कि जहां भारत सरकार देश को डिजिटल इंडिया बनाने में लगी हुई है और बिहार में विकास-सुशासन की सरकार होने का दावा किया जाता रहा है, वहींफुलवरिया जैसे गांव बड़ी संख्या में हैं, जिन्हें बिजली, पानी, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी आवश्यक प्राथमिक सुविधाएं आज भी मयस्सर नहीं है। सरकार और प्रशासनिक अमला द्वारा इस पहाड़ी गांव को अपनी सुध लेने का इंतजार है। सवाल है, आखिर पहाड़ी गांव फुलवरिया के दिन बहुरने की प्रतीक्षा कब खत्म होगी?

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