अरुण दिव्यांश की दो कविताएं : नारी समानता और दूसरी मां की मां
नारी समानता
नारी को समान बनाना क्या ,
नारी तो स्वयं है नर से ऊपर ।
नारी ही जगत की मां बनती ,
चंद्रयान में नारी सबसे सुपर ।।
नारी प्राथमिकता ईश ने दिया ,
जगज्जननी सृष्टि आधार है ।
कौन सा स्थान दूं मैं पुरुष को ,
नारी को ही बनाता व्यापार है ।।
नारी व्यथित असुर शक्ति से ,
कष्ट झेलती रहती अपार है ।
दैहिक आर्थिक प्रताड़ित होती ,
नारी हत्या तो आज भरमार है ।।
कहां नारी अधिकार सुरक्षित ,
कहां नारी को मिलता प्यार है ।
सब कहते नारी की समानता ,
कहां सुरक्षित नारी अधिकार है ।।
नारी कहते सर्वोच्च जगत में ,
नारी ही नर जीवन का सार है ।
जबसे नारी यह होश संभालती
प्रताड़ना की ही झेलती मार है ।।
नारी को पहले हम दें समानता ,
नारी बिन नर का भारी हार है ।
नारी का जबतक सम्मान नहीं ,
पुरुष वर्ग तब तक शर्मसार है ।।
क्या नारी का है अरमान नहीं ,
या चाहती नहीं वह भी प्यार है ?
क्यों पुरुष वर्ग मन में संजोए ,
भीतर चाकू लिए पैनी धार है ?
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मां की मां
मां की मां ने मां से पूछा ,
तेरा धर्म संस्कार कहां है ?
बहुत सी आंखें तुझे घुरे ,
जवाब को तैयार कहां है ?
न सिखाया तुमने अबतक ,
मां की मां को नानी कहना ।
क्या मैंने तुझे सिखाया यही ,
इसी धार निरंतर बहना ?
जो तुझको हैं आंखें घुरते ,
मार तमाचा इतना कसकर ।
निकले मुंह से शीघ्र उसके ,
बस बहन अब तो बस कर ।।
तुझे सिखायी नानी कहना ,
यह मां की मां है कहां से ?
तुमने जब लापरवाही की ,
बच्चों में संस्कार कहां से ?
नारी की लापरवाही से ही ,
संस्कार मिलता है धूल में ।
अभी से भी जागृति लाओ ,
मत पड़ो तुम भी भूल में ।।
संस्कार हेतु भारत सजग ,
संस्कार सदा शुरु रहा है ।
संस्कार भारत की जननी ,
जिससे भारत गुरु रहा है ।।
संपर्क: डुमरी अड्डा, छपरा (सारण) बिहार। फोन : 9504503560
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