विनम्र श्रद्धांजलि : मानवमेधा के अति दुर्लभ प्रतिनिधि प्रो.स्टीफेन हाकिंग

प्रोफेसर स्टीफेन हाकिंग विश्व का अप्रतीम गणितज्ञ, सौद्धांतिक भौतिक विज्ञान का 20वींसदी के सबसे बड़े वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन के बाद दुनिया का सबसे बड़ा वैज्ञानिक। जिसने विश्व, ब्रहंड की सदियों से चली आ रही अनेक महत्वपूर्ण गुत्थियों को सुलझाने में अग्रणी योगदान दिया। इसी वैज्ञानिक ने चेतावनी दी कि पृथ्वीवासियों को दूसरे किसी अनुकूल ग्रह पर बसने का प्रयास अभी से करना चाहिए, क्योंकि आने वाली सदियों में पृथ्वी मनुष्य, जीव-जंतुओं, वनस्पतियों और किसी भी तरह के जीवन के लिए अनुकूल नहींरह जाएगी। इनकी चेतावनी का असर हुआ है कि दुनिया में अंतरिक्ष विज्ञान की सबसे बड़ी संस्था नासा (अमेरिका) ने इस दिशा में प्रयत्नशील है, भारत भी और अन्य सक्षम अंतरिक्ष वैज्ञानिक संगठन भी इस दिशा में काम कर रहे हैं। अब तो दूसरे ग्रह पर बसने की संभावना के मद्देनजर अनेक कारपोरेट कारोबारियों ने भी इस दिशा में प्रायोगिक प्रयास आरंभ कर दिया है।

21 साल की उम्र में हुई दुर्लभ बीमारी के आजीवन शिकार
मानव मेधा के इस अत्यंत गणनीय, अत्यंत अप्रतीम विश्वपंडित का 76 साल की उम्र में ब्रिटेन के कैम्ब्रिज स्थित उनके घर पर निधन हो गया। इनका जन्म दूसरे विश्वयुद्ध के समय इंग्लैंड के ऑक्सफोर्ड में 8 जनवरी 1942 को हुआ था। 1963 में 21 साल की उम्र में उन्हें स्नायु-तंत्र (न्यूरान) से संबंधित दुर्लभ (रेयर) बीमारी हो गई, जिस कारण धीरे-धीरे उनके शरीर के अनेक अंगों ने काम करना बंद कर दिया। तब डॉक्टरों ने यही कहा था कि स्टी्रफन हॉकिंग दो साल से ज्यादा जिन्दा नहींरह पाएंगे। दो-चार साल जिंदा रहने के अनुमान के विपरीत अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति से वह अगले पांच दशकों तक जीवित रहे और विश्व इतिहास में मानव मेधा के हजारों साल में पैदा होने वाली प्रतिभा के दुर्लभ उदाहरण बने।

दुनिया के सामने प्रस्तुत किए चौंकाने वाले अनेक शोध
अपनी दुर्लभ बीमारी के बावजूद उन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखी और चौंकाने वाले अनेक शोध दुनिया के सामने प्रस्तुत किए। यूनिवर्सिटी कॉलेज में गणित उपलब्ध नहीं था, तो उन्होंने फि जिक्स चुना। तीन साल बाद उन्हें नेचुरल साइंस में प्रथम श्रेणी में ऑनर्स डिग्री मिली। उन्होंने अपनी पीएचडी (प्रॉपर्टीज ऑफ एक्सपेंडिंग यूनिवर्सेज) 1965 में पूरी की थी। उन्होंने ब्लैक होल और बिग बैंग (ब्रह्म्ïाांड की उत्पति के सिद्धांत) को समझने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। 1974 में स्टीफेन हाकिंग ने दुनिया को अपनी सबसे महत्वपूर्ण खोज (ब्लैक होल थियूरी) में बताया कि ब्लैक होल क्वॉन्टम प्रभावों की वजह गर्मी फैलाते हैं। इसके पांच साल बाद वह कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में गणित के प्रोफेसर बने। इस पद पर महान वैज्ञानिक ऐलबर्ट आइंस्टिन भी काम कर चुके थे।

व्हीलचेयर पर काटी पूरी जिंदगी
प्रो.स्टीफेन हाकिंग एक कम्प्यूटर सिस्टम के जरिए पूरी दुनिया से जुड़ते थे और सिंथाइजर के जरिये बातचीत (भावना का आदान-प्रदान) करते थे। वे ह्वीलचेयर पर ही रहते, सोते-जागते, चलते-फिरते थे। 1974 में हाकिंग ने भाषा विज्ञान की छात्रा जेन विल्डे से शादी की थी। दोनों से तीन संतानें हुईं, मगर 1999 में इनका तलाक हो गया। इसके बाद हाकिंग ने दूसरी शादी की।
एक करोड़ बिकी उनकी पुस्तक
जब 1988 में उनकी पहली पुस्तक (ए ब्रीफ हिस्ट्री ऑफ टाइम : फ्रॉम द बिग बैंग टु ब्लैक होल्स) आई, तब बह ज्यादा चर्चित हुए थे। इसके बाद ब्रह्म्ïाांड पर आई उनकी पुस्तक की 1 करोड़ से ज्यादा प्रतियां बिकीं, जो दुनिया में साइंस से जुड़ी सबसे ज्यादा बिकने वाली पुस्तक है। उनके कार्य को देखते हुए अमेरिका का सबसे उच्च नागरिक सम्मान दिया गया। चार साल पहले 2014 में उनकी प्रेरक जिंदगी पर फिल्म (द थिअरी ऑफ एवरीथिंग) रिलीज हुई थी। प्रो.स्टीफेन हाकिंग विज्ञान की दुनिया के सबसे बड़े सिलेब्रिटी थे।

मगर उन्हें नहीं मिला नोबेल !
अपनी खोजों के लिए दुनिया के उंगली पर गिने जाने वाले भौतिक वैज्ञानिक प्रो. स्टीफेन हाकिंग ने ब्रह्मांड के कई रहस्यों से पर्दा उठाया, फिर भी उन्हें अपने काम के लिए नोबेल पुरस्कार नहीं मिला। ब्लैक होल को लेकर उनकी खोज को सैद्धांतिक भौतिकी में स्वीकार किया जा चुका है, लेकिन इसे साबित करने का कोई तरीका अभी तक सामने नहीं होने के कारण इन्हें नोबेल पुरस्कार नहींमिल सका। क्योंकि ऐसी घटना करोड़ों-अरबों सालों में होती है। ब्लैक होल कोई काला छिद्र नहीं है, बल्कि तारा के जीवन की अंतिम अवस्था है, चमकते तारे का पुरावशेष है। अरबों सालों में किसी तारा की जिंदगी खत्म होती है और वह ब्लैक होल में तब्दील हो जाता है। प्रसिद्ध वैज्ञानिक पीटर हिग्स ने भी 1964 में ही हिग्स-बोसान कण की भविष्यवाणी की थी, लेकिन इसका प्रमाण 2012 में मिला। जब यूरोपियन रिसर्च ऑर्गनाइजेशन ने हिग्स-बोसान (ब्रह्मांड के सबसे छोटे कण) के अस्तित्व की घोषणा की, तब 2013 में पीटर हिग्स को फ्रांसोआ आंगलेया के साथ नोबेल पुरस्कार दिया गया। हिग्स-बोसान की चर्चा ईश्वरीय कण के रूप में की जाती है और अभी तक के वैज्ञानिक खोज के अनुसार, इस कण से ही सभी पदार्थ व जीव-जंतु और यूनिवर्स (अनंत विश्व) का निर्माण हुआ है।
ईश्वर और स्वर्ग की परिकल्पना को किया खारिज
प्रो. स्टीफन हॉकिंग ने ईश्वर और स्वर्ग की परिकल्पना को खारिज किया था। ईश्वर के बारे में उन्होंने कहा था कि जब यूनिवर्स (ब्रह्मांड) का विकास नियमानुसार हुआ है, तब ईश्वर नियम से बाहर कैसे हो सकता है? इस विषय पर लियोनार्ड म्लोदिनोव के साथ लिखी अपनी पुस्तक (द ग्रैंड डिजायन) में उन्होंने बताया है कि सृष्टि की रचना ईश्वर ने नहीं की, उसका निर्माण भौतिकी (प्रकृति) के बुनियादी नियमों के अंतर्गत हुआ है। पोप के आमंत्रण पर वेटिकन सिटी में उन्होंने ईश्वर और स्वर्ग पर वैश्विक बहस में भाग लिया था। स्वर्ग की कल्पना को वह अंधेरे से डरने वाली कहानी मानते थे। स्वर्ग और उसके बाद का कोई जीवन नहीं है। प्रो. स्टीफन हाकिंग ने यह चेतावनी दी थी कि धरती पर जिस तेजी से आबादी और ऊर्जा की खपत बढ़ रही है, उसमें अगली पांच सदियों के भीतर धरती आग का गोला बन जाएगी।

पृथ्वी से परे जीवन और कहां ?
अति-अति विस्तृत ब्रह्मांड के विस्तार में कहीं आकाशगंगा (तारों के समूह) में किसी ग्रह या उपग्रह पर भी जीवन है या नहीं? इस बारे में उनका कहना था कि खरबों साल पुराने ब्रह्मांड के अनके ग्रहों पर जीवन का विकास हुआ हो सकता है, जिसके जीव अभी तक हमारी पहुंच से बाहर हैं। उन्होंने एलियन (अंतरतारकीय सभ्यता के प्राणी) से सतर्क रहना चाहिए, क्योंकि वे हमारे लिए कई कारण से खतरनाक हो सकते हैं। अगर वे तकनीकी दृष्टि से अधिक उन्नत प्राणी हुए तो पृथ्वी का जीवन संकट में पड़ सकता है। ठीक उसी तरह जैसे कोलंबस ने अमेरिका की खोज तो की, मगर वहां के मूल निवासियों (रेड इंडियन) को बली चढऩी पड़ी।

यूनिवर्स की मैपिंग की थी योजना
प्रो. स्टीफेन हाकिंग पूरे ब्रह्मांड की मैपिंग करना चाहते थे, जिसके लिए वह एक सुपर कंप्यूटिंग सेंटर की मदद लेना चाहते थे। उन्होंने इस सुपर कंप्यूटिंग सेंटर की स्थापना कैंब्रिज विश्वविद्यालय में की थी। इस मानचित्र में शुरुआती ब्रह्मांड के मानचित्र के साथ अरबों आकाशगंगाओं, ब्लैकहोल, सुपरनोवा, अन्य ब्रह्मांडीय संरचनाओं की स्थिति और चाल का निर्धारण किया जाने वाला था। उनकी यह महत्वाकांक्षी योजना अधूरी रह गई और वे इस निष्ठुर दुनिया को 14 मार्च 2018 की सुबह अलविदा कह गए। (तस्वीर : निशांत राज)

– कृष्ण किसलय
समूह संपादक, सोनमाटी मीडिया समूह
प्रिंट और डिजिटल संस्करण

 

  • Related Posts

    खेतीबाड़ी कृषि–क्लिनिक योजना अंतर्गत चयनित प्रशिक्षुओं को कृषि संबंधीत दी गई जानकारी

    खेतीबाड़ी कृषि–क्लिनिक योजना अंतर्गत चयनित 40 प्रशिक्षुओं ने वनस्पति संरक्षण, संगरोध एवं संग्रह निदेशालय, की रूपरेखा एवं कार्यप्रणाली के बारे में हासिल की विस्तृत जानकारी पटना- कार्यालय प्रतिनिधि। ​भारत सरकार…

    परिश्रम ही सफलता की कुंजी है : डॉ. महापात्र

    पटना- कार्यालय प्रतिनिधि। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद का पूर्वी अनुसंधान परिसर, पटना में गुरुवार को डॉ. त्रिलोचन महापात्र, अध्यक्ष, पौधा किस्म और कृषक संरक्षण प्राधिकरण एवं पूर्व सचिव, डेयर एवं…

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

    You Missed

    खेतीबाड़ी कृषि–क्लिनिक योजना अंतर्गत चयनित प्रशिक्षुओं को कृषि संबंधीत दी गई जानकारी

    खेतीबाड़ी कृषि–क्लिनिक योजना अंतर्गत चयनित  प्रशिक्षुओं को कृषि संबंधीत दी  गई जानकारी

    परिश्रम ही सफलता की कुंजी है : डॉ. महापात्र

    परिश्रम ही सफलता की कुंजी है : डॉ. महापात्र

    पटना जीपीओ की स्थापना के 107 वर्ष पूर्ण होने पर जारी हुआ स्टाम्प

    पटना जीपीओ की स्थापना के 107 वर्ष पूर्ण होने पर जारी हुआ स्टाम्प

    सोनपुर मेला में एक महीने तक चलने वाले “फोटो प्रदर्शनी सह जागरुकता अभियान” का हुआ शुभारंभ

    सोनपुर मेला में एक महीने तक चलने वाले “फोटो प्रदर्शनी सह जागरुकता अभियान” का हुआ शुभारंभ

    कार्यालय और सामाजिक जीवन में तालमेल जरूरी : महालेखाकार

    व्यावसायिक प्रतिस्पर्धा में हुई थी आभूषण कारोबारी सूरज की हत्या

    व्यावसायिक प्रतिस्पर्धा में हुई थी आभूषण कारोबारी सूरज की हत्या