डेहरी-आन-सोन (रोहतास)-कार्यालय प्रतिनिधि। सोन तटीय स्थित श्री अरविंद सोसाइटी में रविवार शाम सिद्ध दिवस मनाया गया। समिति के अध्यक्ष प्रोफेसर संगीता सिंह ने कहा कि महर्षि अरविंद एक महान योगी और दार्शनिक थे उनके पूरे विश्व में दर्शनशास्त्र पर बहुत प्रभाव रहा है। उन्होंने जहां भेद उपनिषद् आदि लिखी वही योग साधना का मौलिक ग्रंथ लिखे, खासकर उन्होंने डार्विन जैसे जीव वैज्ञानिकों के सिद्धांत से आगे चेतना के विकास की एक कहानी लिखिए और समझाया किस तरह धरती पर जीवन का विकास हुआ। वेद और पुराण पर आधारित महर्षि अरविंद के विकासवादी सिद्धांत की उनके काल में पूरे यूरोप में धूम रही थी।
समिति के सचिव नरेंद्र सिंह ने कहा कि श्री अरविन्द आश्रम की स्थापना श्री अरविन्द ने 24 नवंबर 1926 (सिद्धि दिवस) को की थी। उस समय उनके 24 से अधिक शिष्य नहीं थे। इसी दिन श्री अरविन्द ने सिद्धि प्राप्त की थी और अपने ऊपर अधिमानसिक चेतना, जो कि श्री कृष्ण की चेतना है,का अवतरण किया था।
साधक व पूर्व बैंक प्रबंधक कृष्णा प्रसाद ने कहा कि महर्षि अरविंद 1926 से 1950 तक पुडुचेरी अरविंद आश्रम में तपस्या और साधना में लीन रहे। उन्होंने मानव कल्याण के लिए चिंतन किया। उनके निधन के बाद चार दिनों तक उनके पार्थिव शरीर से दिव्या बाबा बने रहने के कारण उनका अंतिम संस्कार नहीं किया गया और अंततः 9 दिसंबर को उन्हें आश्रम में समाधि दी गई।
साधक नंद किशोर ने कहा कि श्रीअरविंद और श्रीमां के भक्त इस दिवस को दर्शन दिवस और सिद्धि दिवस के रूप में मनाते हैं। सिद्धि दिवस का शुभारंभ उषा ध्यान से प्रारंभ हुआ।
मातृ ध्वजारोहण प्रो. उमा वर्मा ने किया।भजन, मन्त्रजप किया गया।