-राष्ट्रीय पुस्तक न्यास और ग्रामीण पत्रकारिता विकास संस्थान द्वारा किताबें कैसे पहुंचे गांव विषय पर ग्वालियर में परिसंवाद
-आज भी गांवों तक नहीं है किताबों की सरल पहुंच
– मोबाइल वैनों के जरिये गांव-गांव किताब पहुंचाने की जरूरत
ग्वालियर (मध्य प्रदेश)-विशेष प्रतिनिधि। राष्ट्रीय पुस्तक न्यास (नेशनल बुक ट्रस्ट आफ इंडिया) और ग्रामीण पत्रकारिता विकास संस्थान की ओर से आयोजित ग्वालियर पुस्तक मेले में ‘किताबें कैसे पहुंचें गांवÓ विषय पर आयोजित परिसंवाद में बतौर मुख्य अतिथि बोलते हुए वरिष्ठ संपादक डा. राम विद्रोही ने कहा कि बेशक आज यह विचारणीय है कि गांव तक किताबें कैसे सुविधाजनक तरीके से पहुंच सकेें? आज भी सुदूर अंचल के गांवों तक किताबों की पहुंच सरल नहीं है। इस पर सभी संबंधित स्तरों पर विचार किए जाने और व्यावहारिक हल निकाले जाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि आज जो लिखा जा रहा है, जो छापा जा रहा है, वह पाठकों को, आम आदमी को उद्वेलित क्यों नहीं करता? लेखक गांव से जुड़ेगा, तभी उसकी रचना (किताब) ग्रामीण-आंचलिक पाठकों से जुड़ेगी और रचना या किताब गांव तक पहुंचेगी। दूसरी बात यह भी है कि लेखक आजकल लिखने के मुकाबले पढ़ कम रहे हैं। शिक्षा की प्रणाली बदलने के कारण समाज किताबों से दूर होता जा रहा है। छपे हुए शब्द की अपनी अलग महत्व होने के बावजूद आज हालात बदल गए हैं।
इंटरनेट-टीवी से किताबों जैसा जुड़ाव संभव नहीं
वरिष्ठ पत्रकार सुरेंद्र माथुर ने कहा कि आज बिजली, इंटरनेट जैसे संसाधन गांव तक पहुंच गए हैं, लेकिन किताब नहीं पहुंच रही है। दुनिया की, समाज की, अपने समय के मूल्यों और व्यापक अनुभवों की जानकारी किताबों से ही मिलती है। किताब किसी को धोखा नहीं देती। आदमी का किताबों जैसा जुड़ाव टीवी या इंटरनेट से सम्भव नहीं है।
बाजारवाद का असर किताबों और लेखकों पर भी
वरिष्ठ पत्रकार रविन्द्र झारखरिया ने कहा कि आज बाजार ख़ुद चल कर उपभोक्ता के दरवाजे पर आ गया है और हर साल गांवों के 10 लाख लोग उपभोक्ता के रूप में बाजार से जुड़ रहे हैं। बाजारवाद में संवेदनाएं मर रही हैं, खतरनाक स्थिति है। बदलते दौर में गांव की तस्वीर ही उलट-पुलट गयी है। बाजारवाद का असर किताबों और लेखक पर भी पड़ा है।
उत्तर-पूर्व के राज्यों में पाठकीय प्रवृत्ति बेहतर
जनसंपर्क विभाग के सेवानिवृत्त जनसंपर्क अधिकारी सुभाष अरोरा ने कहा कि लोककल्याणकारी राज्य का पहला काम नागरिकों को आवश्यक सुविधा प्रदान करना है, जिसमें समाज को शिक्षित करने का काम भी शामिल है। पाठकीय लिहाज से देश के उत्तर-पूर्व के राज्यों में अन्य राज्यों की तुलना में पाठकीय प्रवृत्ति बेहतर है। गांव-गांव तक किताबों को पहुंचाने के लिए पुस्तकालय आंदोलन को बढ़ाना देना होगा और मोबाइल वैनों के जरिए किताबों को पहुंचाए जाने की योजना पर गंभीरता से काम करने की जरूरत है।
इंटरनेट ने किया है पुस्तक बिक्री को प्रभावित
वरिष्ठ पत्रकार-कथाकार प्रमोद भार्गव ने कहा कि ग्रामीण समाज मिथकों और लोककथाओं का संरक्षण करता रहा है। वाचिक परम्परा के जरिये गांवों ने हजारों सालों ने अपने-अपने समाज के साहित्य को सुरक्षित रखा है। जाहिर है कि आज गलत नीतियों के कारण ही किताबें या ज्ञान गांव तक पहुंच नहीं पा रही। जिला स्तर पर लगने वाले मेले बंद हो गए हैं। इंटरनेट ने किताबों की बिक्री को प्रभावित किया है।
गांव-गांव तक पुस्तकालय की जरूरत
ग्रामीण पत्रकारिता विकास संस्थान के अध्यक्ष देव श्रीमाली ने कहा कि गांवों और स्कूलों में पुस्तकालयों का वजूद ही नहीं है। हालांकि इस मामले में विश्वविद्यालयों के पुस्तकालयों की मौजूदा हालत बेहतर नहीं कही जा सकती। चूंकि साहित्य समाज को सुसंस्कृत बनाता है, इसलिए गांवों तक पुस्तकालयों की श्रृंखला स्थापित होनी चाहिए।
पुस्तक न्यास की गतिविधियों की दी जानकारी
परिसंवाद का विषय प्रर्वतन करते हुए राष्ट्रीय पुस्तक न्यास के हिंदी सम्पादक पंकज चतुर्वेदी ने राष्ट्रीय पुस्तक न्यास द्वारा किताबों के प्रचार-प्रसार के लिए किए जा रहे कामों की विस्तार से जानकारी दी।
पुस्तक का विमोचन
इस अवसर पर एयर कमोडोर जसजीत सिंह की पुस्तक के परितोष मालवीय द्वारा हिंदी अनुवाद (अशांत विश्व में भारत की सुरक्षा) का विमोचन किया गया। परितोष मालवीय ने इस पुस्तक के बारे में जानकारी दी।
रश्मि सबा, अतुल अजनबी का सम्मान
इस अवसर पर मध्य प्रदेश उर्दू अकादमी द्वारा शिफा ग्वालियरी अवार्ड से सम्मानित शायरा रश्मि सबा और पन्नालाल नूर अवार्ड से सम्मानित अतुल अजनबी का अभिनंदन भी किया गया। परिसंवाद के मंच पर रश्मि सबा और अतुल अजनबी ने अपनी चुनिंदा रचनाओं का पाठ भी किया।