देहरादून (दिल्ली कार्यालय) से प्रकाशित समय-सत्ता-संघर्ष की हिन्दी पाक्षिक पत्रिका चाणक्य मंत्र के 01-15 जून अंक में
बिहार से प्रकाशित विशेष रिपोर्ट
- कृष्ण किसलय, पटना
बिहार में 17वीं लोकसभा के लिए 40 सीटों के चुनाव-परिणाम से यह साबित हो गया कि जाति आधारित राजनीति के लिए दशकों से चिह्निïत इस राज्य के मतदाताओं ने सबका साथ सबका विकास वाले राष्ट्रवाद पर सर्वानुमति की मुहर लगाई और समाज को बांटने वाले जाति आधारित मंडलवाद की उस राजनीति को नकार दिया, जिसमें वंश-परिवार को ही दिन दुनी रात चौगुनी वाला पोषण मिलता रहा है। बिहार के इस परिणाम का एक निष्कर्ष यह है कि दशकों से जड़ जमाए छद्म सेक्युलर का खोल ओढ़े माई (मुस्लिम-यादव) समीकरण के जातीय गठजोड़ को जड़ से उखाड़ फेेंकने के लिए अन्य जातियां गोलबंद हुईं। दूसरा निष्कर्ष यह भी कि विकास का काम कर चुनाव जीता जा सकता है। 1984 के बाद बिहार में पहली बार ऐसा हुआ कि मतदाताओं ने लोकसभा क्षेत्रों के स्थानीय उम्मीदवारों के चेहरों को नहीं, बल्कि केेंद्र में फिर मोदी सरकार बनाने के लिए मतदान किया तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की छवि और सुशासन के उनके वादे पर भरोसा भी किया। बेशक, बिहार में भाजपा की पंचलाइन (सबका साथ सबका विकास) के साथ सबसे बड़े सहयोगी दल जदयू की पंचलाइन (न्याय के साथ विकास) कामयाब हुई। जाहिर है, भाजपा-जदयू की दोस्ती ने कमाल किया और लोजपा ने इसमें बोनस जोड़कर इस दोस्ती को ऐसा अपराजेय बनाया कि लोकसभा की 40 में 39 सीटें एनडीए के पास आ गईं।
लालू जेल में, हार गई बेटी
बिहार में 17वीं लोकसभा चुनाव की उल्लेखनीय बात यह थी कि किसी लहर के प्रति जनता का स्पष्ट रुझान सतह पर नहीं था और किसी राजनीतिक दल, गठबंधन की जीत को लेकर कोई दावा करना मुश्किल था। मगर नतीजा ऐसा कि कांग्रेस की एक अदद परंपरागत सीट को छोड़ दें तो महागठबंधन की हथेलियों में शून्य ही आया। अपनी स्थापना वर्ष 1997 से ही यादवों-मुसलमानों के आधार वोट वाले राजद का एक भी यादव या मुसलमान प्रत्याशी जीत नहीं सका। यहां तक कि लालू यादव परिवार की लोकसभा चुनाव लडऩे वाली एकमात्र सदस्य बेटी मीसा भारती भी चुनाव नहीं जीत सकीं। बिहार में कांग्रेस के साथ बने महागठबंधन में राजद सबसे बड़ा घटक है, जिसने 19 सीटों पर चुनाव लड़ा। बिहार में इस बार लालू प्रसाद चुनाव के मैदान में नहीं थे, क्योंकि वह चारा घोटाला में रांची (झारखंड) के जेल में सजा काट रहे हैं। महागठबंधन के घटक राजद ने 19, कांग्रेस ने नौ, रालोसपा ने पांच, हम ने तीन और वीआईपी ने तीन सीटों पर चुनाव लड़ा। इसके मुकाबले में एनडीए के घटक भाजपा ने 17, जदयू ने 17 और लोजपा ने छह सीटों पर चुनाव लड़ा।
महागठबंधन के सैन्य बेड़े के टूट-फूट गए सभी पोत
अपने को सन आफ मल्लाह कहने वाले मुकेश सहनी की विकासशील इंसाफ पार्टी (वीआईपी), महादलितों के प्रतिनिधित्व का दावा करने वाले पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी का हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) और कुशवाहा समाज का सर्वस्वीकृत नेता बताने वाले उपेंद्र कुशवाहा की रालोसपा तीनों की नाव एनडीए की सुनामी में सियासत का समन्दर पार नहीं कर सकीं। इन्हें एक भी सीट पर कामयाबी नहीं मिली। कहा जा सकता है कि महागठबंधन के सैन्य बेड़े में शामिल एक की पतवार टूट गई, दूसरे का पाल उखड़ गया तो तीसरे की नाव ही डूब गई। मंडलवाद के अवतार के बाद बिहार से उखड़ चुका वामपंथ का भविष्य इस बार भी धूल-धूसरित ही रहा। कन्हैया कुमार इसकी बैसाखी बनने में कामयब नहीं हो सके। दूसरी ओर सियासी सच यह भी है कि कन्हैया कुमार कहीं बिहार में तेजस्वी यादव के समानांतर युवा नेतृत्व का नया चेहरा न बन जाए, इसके लिए राजद ने बेगूसराय में कन्हैया कुमार के मुकाबले अपना भी प्रत्याशी उतार दिया। और, कन्हैया भाजपा के फायरब्रांड नेता गिरिराज सिंह से हार गए।
त्रिशंकु लोकसभा, कमजोर सरकार की कामना ध्वस्त
बिहार में पिछड़ा आरक्षण को अस्त्र बनाने की राजद की नई रणनीति ध्वस्त हो गई। क्षेत्रीय दलों के लिए जाति के रूप में पहले से मौजूद समाज के विभाजन का इस्तेमाल कर मतदाताओं का अलग-अलग समूह खड़ा करना सरल रहा है। इसीलिए जातिवादी ध्रुवीकरण का काम क्षेत्रीय राजनीतिक दलों के नेता करते रहे हैं। लेकिन इस बार इस सूत्र ने असर दिखाया कि यदि कुछ जातियों को गोलबंद किया जाएगा तो स्वाभाविक तौर पर अन्य जातियां प्रतिक्रिया में गोलबंद हो जाएंगी। और, ऐसा ही हुआ। यही कारण है कि मुस्लिम और यादव मतों के गठजोड़ का राजद का टेस्टेड फार्मूला फेल हो गया। जाति की राजनीति करने वाले क्षेत्रीय दल त्रिशंकु लोकसभा और कमजोर सरकार चाहते हैं। ताकि वे सौदेबाजी कर अपनी जगह बना सकेें। मगर देवेगौड़ा जैसे कमजोर प्रधानमंत्री बनाने और मनमर्जी करने की उनकी मंशा कामयाब नहीं हुई। बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशीलकुमार मोदी (भाजपा) चुनाव प्रचार के दौरान मतदाताओं को बड़े तरीके से यह बताने में सफल रहे कि अल्पमत सरकार और कमजोर प्रधानमंत्री की चाह रखने वाले बहुचर्चित चारा घोटाला के चार मामलों के सजायाफ्ता राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव और इनके सहयोगी मंत्री रहे मोहम्मद इलियास हुसैन भी अलकतरा घोटाला में झारखंड जेल में ही हैं। लालू-पुत्र राजद नेतृत्व के उत्तराधिकारी तेजस्वी यादव रेलवे टेंडर घोटाले में चार्जशीटेड हैं। और, प्रधानमंत्री के दावेदार राहुल गांधी नेशनल हेराल्ड मामले में जमानत पर हैं तो दूसरी दावेदार पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी चिटफंड घोटाले में आरोपित हैं।
जीत से रखी गई विधानसभा चुनाव की आधारशिला
लालू प्रसाद यादव 1990 में भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी का अयोध्या-यात्रा रामरथ रोककर भारतीय राजनीति के हीरो बनकर उभरे थे। आज भाजपा हीरो है। जिस समय लालकृष्ण आडवाणी गिरफ्तार किए गए थे, उस समय बिहार के मुसलमान कांग्रेस से भागलपुर दंगा के कारण खफा थे। आडवाणी की गिरफ्तारी के बाद राजद (तब जनता दल) मुसलमान मतदाताओं का प्रिय दल बन गया। इसी प्रतिक्रिया में गैर मुस्लिम मतदाता भाजपा की ओर झुक गए। इसके बाद 1991 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने बिहार में पांच सीटें हासिल कीं। 2014 में उसे 23 सीटें हासिल हुईं। अब 2019 में एनडीए (भाजपा, जदयू, लोजपा) ने 40 में 39 सीटें जीतकर बिहार में एक साल बाद होने वाले विधानसभा चुनाव की आधारशिला रख दी है। जाहिर है, अब नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार की राजनीतिक ताकत का लाभ पिछड़े बिहार को विकसित बनाने में होना चाहिए। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा भी है कि जनता ने कटुता फैलाने वालों, समाज को बांटने वालों को नकार दिया है। लोगों को प्रेम, सौहार्द, विकास चाहिए। पब्लिक इफेक्ट वाली इस जीत ने हमारी जिम्मेदारी बढ़ी है। पहले की तरह आगे भी क्राइम, करप्शन और कम्यूनिलिज्म से समझौता नहीं होगा।
…और हार गए बिहारी बाबू !
इस लोकसभा चुनाव में बिहार के पटना साहिब सीट पर देश-दुनिया की निगाहेंं अटकी हुई थीं, जहां के चुनाव को महामुकाबला बनाने वाले दो दिग्गज बिहारी बाबू के नाम से प्रसिद्ध सिनेस्टार शत्रुघ्न सिन्हा और देश के एक जाने-माने अधिवक्ता केेंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद चुनाव के मैदान में थे। दोनों प्रत्याशी कायस्थ जाति से थे। नौकरी-पेशा वाली कायस्थ जाति बिहार में न्यूनतम संख्या-बल के कारण गौण राजनीतिक स्थिति में है, मगर पटना साहिब लोकसभा क्षेत्र कायस्थों का गढ़ है। 2014 में शत्रुघ्न सिन्हा (भाजपा) ने भोजपुरी सिनेमा के सुपर स्टार कुणाल सिंह यादव (कांग्रेस) को करीब ढाई लाख मतों से हराया था। इस बार सियासी शतरंज का पासा उलट गया, क्योंकि उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा।
मीरा कुमार हारीं, तीन महिला प्रत्याशी ही विजयी
बिहार में इस बार तीन ही महिला उम्मीदवार जीत सकीं। एनडीए ने तीन और महागठबंधन ने पांच महिला प्रत्याशियों को चुनाव के मैदान में उतारा था। एनडीए के तीनों उम्मीदवारों सीवान से कविता सिंह (जदयू), शिवहर से रमा देवी (भाजपा) और वैशाली से वीणा देवी (लोजपा) जीत गईं, पर महागठबंधन की कोई महिला प्रत्याशी नहीं जीत सकी। यहां तक कि कांंग्रेस की दिग्गज पूर्व लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार भी भाजपा के छेदी पासवान को नहीं हरा सकीं। उन्हें छेदी पासवान ने 1989, 1991 और 2014 के बाद इस बार फिर हराया। छेदी पासवान पहले राजद के साथ थे, मगर 2014 में पाला बदल कर भाजपा खेमे में आ गए। सीवान में तो दो बाहुबलियों की पत्नियों के आमने-सामने होने के कारण लोकसभा चुनाव सनसनीखेज बना हुआ था। एक ओर खौफ का पर्याय कुख्यात सजायाफ्ता तिहाड़ जेल में बंद मोहम्मद शहाबुद्दीन की पत्नी हिना शहाब (राजद) थींतो दूसरी ओर अनेक गंभीर आपराधिक आरोपों से घिरे अजय सिंह की पत्नी कविता सिंह (जदयू) थीं। दो बार विधायक रहीं कविता सिंह के लिए यह पहली बार लोकसभा का चुनाव था। इनके जनप्रतिनिधि बनने की कहानी भी दिलचस्प है। कविता सिंह के पति अजय सिंह की मां विधायक थीं। मां की मृत्यु होने पर आपराधिक मामलों के कारण नीतीश कुमार ने अजय सिंह को टिकट देने से मना कर दिया। तब नामांकन तिथि खत्म होने से पहले अजय सिंह ने कविता सिंह से शादी कर ली। फिर कविता सिंह को टिकट मिला और वह जीतकर विधायक बनीं।
विशेष राज्य का दर्जा होगा आसन्न विधानसभा चुनाव का मुख्य एजेंडा
लोकसभा चुनाव के नतीजे के आते ही बिहार में एनडीए के महत्वपूर्ण घटक जदयू ने बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने की अपनी महत्वकांक्षा प्रकट कर दी है। जदयू के प्रधान राष्ट्रीय महासचिव केसी त्यागी ने कहा है कि बिहार को विशेष दर्जा दिलाने की पहली बार दमदार आवाज जदयू ने ही उठाई। जदयू के प्रतिनिधि मंडल ने विशेष राज्य का दर्जा दिलाने के लिए इसके अध्यक्ष वशिष्ठनारायण सिंह के नेतृत्व में पहली बार प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से मुलाकात की थी और सवा करोड़ बिहारवासियों के हस्ताक्षर वाला ज्ञापन सौंपा था। वशिष्ठ नारायण सिंह ने कहा है कि बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिलाना ही आसन्न 2020 के विधानसभा चुनाव में जदयू का मुख्य एजेंडा होगा। 15वें वित्त आयोग की रिपोर्ट के कारण बिहार को विशेष राज्य का दर्जा नहीं दिया जा सकता। मगर वित्त आयोग का नियम बदला जाना चाहिए। जब संविधान तक संशोधन किया जा सकता है, तब वित्त आयोग का नियम क्यों नहीं बदला जा सकता?
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चुनाव के स्याह पगचिह्न
बिहार के उप मुख्यमंत्री सुशीलकुमार मोदी द्वारा कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी के विरुद्ध पटना सिविल कोर्ट में सांसदों-विधायकों के लिए गठित विशेष अदालत में दायर मानहानि के मामले में राहुल गांधी की ओर से वकील के जरिये पैरवी करने की अर्जी दायर की गई है। दो अधिवक्ताओं वीरेंद्र शर्मा और अंशुल कुमार की ओर से दायर अर्जी में बताया गया है कि राहुल गांधी राष्ट्रीय पार्टी के अध्यक्ष हैं, चुनाव बाद की अति सक्रिय गतिविधियों में व्यस्त हैं, इसलिए दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 205 के तहत वकील के जरिये मुकदमे में उनका पक्ष रखने की अनुमति दी जाए। अगर न्यायालय आवश्यक समझेगा तो राहुल गांधी न्यायालय में भी उपस्थित होंगे। न्यायाधीश कुमार गुंजन की अदालत ने मानहानि से संबंधित इस मामले में लिखित जवाब दाखिल करने के लिए 6 जुलाई की तिथि निर्धारित की है। यह मुकदमा 18 अप्रैल को सुशीलकुमार मोदी ने दायर किया और 26 अप्रैल को उनका यह लिखित बयान दर्ज हुआ कि राहुल गांधी ने कर्नाटक में बंगलूरू के निकट कोलार की चुनावी सभा में कहा, सभी मोदी चोर क्यों?
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बिहार में दो सीटों पर उपचुनव भी
बिहार में लोकसभा चुनाव के साथ दो सीटों पर विधानसभा के लिए उपचुनाव भी हुआ। दोनों विधानसभा सीटें (डिहरी और नवादा) इन क्षेत्रों के विधायकों के सजायाफ्ता होने के कारण खाली हुई थीं। डिहरी सीट राजद के पूर्व पथ निर्माण मंत्री मोहम्मद इलियास हुसैन की और नवादा सीट राजद के ही राजवल्लभ यादव की थी। नवादा विधानसभा क्षेत्र पर जदयू नेता कौशल यादव ने श्रवण कुशवाहा को करीब 11 हजार मतों से हराकर कब्जा जमाया। डिहरी विधानसभा क्षेत्र में देश के लोकतंत्र में पहली बार भाजपा का कमल खिला। ओबरा (औरंगाबाद) के पूर्व विधायक सत्यनारायण सिंह यादव (भाजपा) ने बहुचर्चित अलकतरा घोटाला के सजायाफ्ता इलियास हुसैन के बेटे फिरोज हुसैन (राजद) को करीब 34 हजार मतों से हराया।
— कृष्ण किसलय
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