श्मशान वैराग्य : जीवन की संवेदना की गहन यात्रा
पुस्तक समीक्षा/कुमार कृष्णन, मुंगेर
समकालीन हिन्दी कविता जीवन-यर्थाथ के हर कठिन प्रश्न के सामने खड़ी मिलती है। खड़ी ही क्यों, निरंतर उससे जूझती भी है और जीवन की सार्थकता के प्रति सचेष्ट होकर बेहतर भविष्य की नींव भी रखती है। समकालीन जीवन के विविध एवं व्यापक परिदृश्यों से सीधे जुड़ती है, जिसमें होती है जीवन की संवेदनात्मक कल्पना और होता है जीवन का निश्चित कर्तव्य-बोध भी। काव्य-परंपरा का मूल उद्देश्य भी यही रहा है। जो इसके वेहतर साहित्य सृजन का संकेत है। श्रेष्ठ कविता समाज में श्रेष्ठ सामाजिक मूल्यों के संवहन में महत्वपूर्ण योगदान देती है और समाज को एक दिशा प्रदान करती है। सृजन यदि अपने समकालीन परिवेश से आंखें चुराता है तो वह न तो जीवंत बन पाता है, न उसका प्रभाव स्थायी होता है और न ही समकालीन मूल्यों को उत्प्रेरित करता है। साहित्य वस्तुगत सत्य प्रकट करें, सभ्य और उदात्त समाज के लिए प्रयास करे, यही उसका उद्देश्य होता है।
कविता संग्रह श्मशान वैराग्य के बरक्स औरंगाबाद (महाराष्ट्र) की चर्चित युवा कवियित्री दोलन राय की कविताओं के भीतर जब हम प्रवेश करते हैं तो महसूस होता है कि वे समकालीन परिवेश की सच्चाइयों के प्रति जागरूक हैं और विद्रुपताओं के विरूद्ध आवाज उठाने में सक्षम है। डोलन राय के इस दूसरे कविता संग्रह में साठ छोटी-बड़ी कविताएं हैं। कविताओं के शिल्प के रूप-रंग में विविधता होने के बावजूद स्वर एक जैसा है। कविताओं में जीवन की वास्तविकताओं से सामना और मानवीय संवेदना के बारीक तंतुओं की बुनावट है। जीवन का उल्लास और विश्वास भी कविताओं में गुंथा है। संग्रह की कविता (गुरुत्वाकर्षण) इन पंक्तियों को देखिए– बंधे हो जुड़े हो कुशलता और सफलता के साथ, तुम खींचे जा रहे हो उस धैर्य-धारा के साथ अनुकूलता में प्रतिकूलता में, जो सरस और निर्दोष है वह सदैव खींचेगा, खींचा नहीं जाएगा, अलौकिकता और परलौकिकता के साथ, जाना होगा उसी ऊर्जा की ओर, जुडऩा होगा अनंत की श्रृंखला के साथ, ऊर्जा से ओत-प्रोत हों, वही गुरुत्वाकर्षण है।
किसी भी रचनाकार की संवेदना को उसका परिवेश प्रभावित करता है और रचनाकार अपने स्वभाव के अनुसार परिवेश से कच्चा माल ग्रहण कर अपने लेखन में तराशता है। उसके परिवेश के अंतर्गत ही जीवन का यथार्थ, समय की यात्रा और दर्शन की तात्विक सच्चाई निहित होती है। डोलन राय की संग्रह की कविताएं मानवीय सरोकार की रक्षा में खड़ी महत्वपूर्ण की दस्तावेज की तरह हैं। बेबसी, लाचारी, गुस्सा-बौखलाहट और आंसू के बीच जीवन की आकांक्षाओं को आवाज देने वाला एक उत्साह भी है। दोलन राय अपनी कविताओं में नाकारात्मक प्रवृतियों का विरोध करती नजर आती है– अथाह की ओर दृष्टि, और मेरे ये दो शून्य नयन, अलौकिक चयन, अभि-भक्त अनावृत, उसी प्रवाह में, उसी अथाह में, दिव्यमान है, जहां सत्य का औचित्य विद्यमान है। दोलन राय का रचनात्मक विस्तार जीवन के अनेक पक्ष तक है।
———————— ————–
समीक्षित कृति : श्मशान वैराग्य (कविता संग्रह)
कवयित्री : दोलन राय मूल्य : 240 रुपये
प्रकाशक : अयन प्रकाशन, महारौली, नई दिल्ली
——————————————–
०- कविताएं / कुमार बिन्दु
1. ओ पागल कवि !
ओ पागल कवि,
यह कविता का शीर्षक नहीं
एक नायिका का संबोधन है
उस नायक के लिए जो कवि तो है
पर सिरफिरा हैए पागल है
सच तो यही है कि कवि पागल होते ही हैं
क्योंकि जब पूरी दुनिया में हर कोई
सोने के बिस्किट और अमेरिकी डालर से
अपनी जेबें भरना चाहता है
नीरो और नेपोलियन-सा
नया इतिहास रचना चाहता है
वहीं मामूली औकात वाला कवि
अपनी जेबों को डालर के बजाय
प्रेम-पत्रों से भरना चाहता है
वह खेत-खलिहानों, पेड़, पर्वत, नदी और जंगलों के गीत
लोकधुनों पर गाना चाहता है
और तो और
वह सातवें आसमान पर विराजमान
ब्रह्मांड के सर्वशक्तिमान ईश्वर के बजाय
अपने महबूब को खुदा कहता है
वह न मंदिर में पूजा करता है न मस्जिद में इबादत
आदम का यह औलाद तो काफिर है
क्योंकि वो अजीम अल्लाह को नहीं
दौलत को नहीं, सियासत को नहीं
इंसानी मोहब्बत को सजदे करता है
वह अपने महबूब के कदमों में सिर झुकाता है
इसीलिए धारा के प्रतिकूल बहने वाले
प्रेम के, सौंदर्य के मधुर गीत गाने वाले
अपने प्रिय कवि को नायिका संबोधित करती है
अरे, ओ पागल कवि!
2. जब मैं उनसे मिला..!
जब मैं उनसे मिला.
मैं जब चांद से मिला
उसने मेरी आंखों में अपनी हसीन रोशनी भर दी
मैं जब विंध्य पर्वत से मिला
उसने मेरे इरादों में अपनी चट्टानी ताकत भर दी
मैं जब रजनीगंधा से मिला
उसने मेरे सांसों में अपनी नशीली खुशबू भर दी
मैं जब महानद सोन से मिला
उसने मेरी रगों में अपनी मुसलसल रवानी भर दी
मैं अपनी आंखों में
चांद की हसीन रोशनी लिए
मैं अपनी सांसों में
रजनीगंधा की नशीली खुशबू लिए
मैं अपनी रगों में
महानद सोन की मुसलसल रवानी लिए
मैं अपने इरादों में
विंध्य पर्वत की चट्टानी ताकत लिए
अंधेरे में डूबी इस दुनिया को रोशनी
दिलों के वीराने को रजनीगंधा की खुशबू
सदियों से थमी जिंदगियों को सोन की रवानगी
अंधेरे के साम्राज्य के खिलाफ
रात-दिन जूझ रहे नन्हें-नन्हें जुगनुओं की देह को
विंध्य पर्वत की चट्टानी ताकत अर्पित कर रहा हूं
मैं उनको यह सबकुछ सस्नेह समर्पित कर रहा हूं।
0- कुमार बिंदु
पाली, डेहरी-आन-सोन (बिहार)
फोन 9939388474