विद्यालय परिसर के कायाकल्प का नया उपक्रम है नो एंगर जोन की संकल्पना : डा. एसपी वर्मा
सासाराम (रोहतास)-विशेष प्रतिनिधि। सीबीएसई देश में अब नो एंगर जोन का प्रयोग आरंभ कर रहा है। इस दिशा में अगर सीबीएसई से संबद्ध विद्यालयों में गंभीरतापूर्वक और त्वरित गति से कार्य हुआ तो निकट भविष्य में यह शिक्षण-पद्धति का कायाकल्प करने वाला इनोवेशन (नवोन्मेष) साबित हो सकता है। यह प्रार्थना-घर जैसा शांतिमय वातावरण बनाने की नई संकल्पना है। इस अभियान (नो एंगर जोन) का उद्देश्य विद्यालय परिसरों को आक्रोश रहित बनाना है। यह विचार दक्षिण बिहार के सर्वश्रेष्ठ विद्यालय संतपाल सीनियर सेकेेंडरी स्कूल के अध्यक्ष डा. एसपी वर्मा ने सीबीएसई के नए परिपत्र (सर्कुलर) के आलोक में सोनमाटीडाटकाम से विशेष संक्षिप्त वार्ता में व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि विद्यालयों में शारीरिक दंड का निषेध बहुत पहले ही किया जा चुका है। अब आक्रोश-रहित वातावरण के निर्माण और इसको विस्तार देने की बात है। इसमें विद्यार्थियों के लिए उनके साथ काउंसिलिंग और इंटरेक्शन दो बड़े उपक्रम (टुल्स) होंगे। विद्यार्थियों में बौद्धिक विकास और अनुकूल शारीरिक दृढ़ता में बढ़ोतरी के साथ पार-इंद्रिय मानसिक-आध्यात्मिक क्षमता में वृद्धि ही इसका प्रयोजन है। औपचारिक विद्यालयी ज्ञान से अलग विद्यार्थियों में अनुभव आधारित अनौपचारिक सांसारिक-सामाजिक प्रतिबद्धता का उन्मेष इसका उद्देश्य है। फिजिकल एजुकेशन भी इसका सहयोगी उपक्रम होगा, जो पहले से ही सीबीएसई स्कूलों में अनिवार्य विषय बन चुका है। यह प्रयोग-सिद्ध रहा है कि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ बुद्धि का बीजारोपण और अनुकूल विकास होता है।
डा. एसपी वर्मा ने एक सवाल के जवाब में शिक्षण परिसरों के अपने अनुभव के आधार पर बताया कि किशोर-नवयुवा अवस्था में प्राकृतिक तौर पर प्रतिरोध और विचलन की प्रवृत्ति होती है। इसी प्रवृत्ति के मद्देनजर विद्यालयों में आमूल परिवर्तन के लिए नो एंगर जोन की नई संकल्पना की गई है। इससे संबंधित वातावरण के निर्माण के आरंभिक प्रयास के तौर पर विद्यालय परिसर में इस आशय का साइनबोर्ड लगाया जाएगा। इस संकल्पना को व्यवहार में ढालने के लिए अतिरिक्त कक्षाओं का प्रबंध किया जाएगा। जैसाकि उनके विद्यालय (संतपाल) में उदंड समझे जाने वाले और पढ़ाई में पिछड़े माने जाने वाले विद्यार्थियों के लिए अलग कक्षा की व्यवस्था का प्रयोग किया गया। इसका परिणाम यह रहा कि अतिरिक्त कक्षा, अलग सेक्शन के 50 फीसदी से अधिक विद्यार्थियों के परीक्षा परिणाम बेहतर आए और एटीच्यूड (व्यवहार) भी बदल गया। संक्षिप्त वार्ता-विमर्श में एक अन्य प्रश्न के उत्तर में डा. वर्मा ने कहा कि नो एंगर जोन का इनोवेशन बिहार के निजी विद्यालयों में सफल होगा, क्योंकि सिस्टम और प्रशासनिक क्षमता का बेहतर उपयोग यहां होता है। जबकि सरकारी विद्यालयों में बेहतर मानव संसाधन और बेहतर भौतिक संरचना की उपलब्धता के वाबजूद इच्छाशक्ति और व्यवस्था के पालन की सुनिश्चितता का अभाव बना रहता है। क्योंकि सरकारी सिस्टम में पेन (दर्द) लेने, प्रसव-पीड़ा जैसी स्थिति से गुजरने की कार्य-संस्कृति नहीं होती। उन्होंने इस विमर्श में प्रतिप्रश्न किया कि आखिर क्यों ऊंचे वेतन वाले शिक्षकों के बच्चे भी निजी विद्यालयों में ही पढऩे जाते हंै? कहा कि उनके इस सवाल के हर संभावित उत्तर में राज-समाज के नियंत्रण-संरचना की वस्तुस्थिति को समझा जा सकता है।
(रिपोर्ट : कृष्ण किसलय, तस्वीर : अर्जुन कुमार)
दी गई खोज की जानकारी, डा. प्रसाद को नववर्ष भेंट
डेहरी-आन-सोन (रोहतास)-कार्यालय प्रतिनिधि। नूतन-पुरातन ज्ञान-विज्ञान समागम की प्रतिनिधि संस्था सोनघाटी पुरातत्व परिषद की बिहार इकाई और सांस्कृतिक सर्जना की संवाहक संस्था सोन कला केेंद्र की बैठक हृदय रोग उपचार संस्थान प्रसाद क्लिनिक के परिसर में हुई, जिसमें पुरातात्विक स्थल अर्जुन बिगहा से संबंधित नई खोज और स्वास्थ्य सर्वेक्षण की जानकारी रखी गई। बैठक की अध्यक्षता सोन कला केेंद्र के संरक्षक उदय शंकर ने की। प्रसिद्ध हृदय रोग विशेषज्ञ डा. एसबी प्रसाद ने अर्जुन बिगहा में अपने क्लिनिकल स्वास्थ्य सर्वेक्षण की जानकारी देते हुए बताया कि पानी और खाद्य वस्तुओं में आयोडिन की कमी से अर्जुन बिगहा के ग्रामीणों में थायराड की भी समस्या है। सोनघाटी पुरातत्व परिषद (बिहार इकाई) के सचिव कृष्ण किसलय ने बताया कि 20 साल पहले परिषद ने पुरा अन्वेषण का कार्य आरंभ किया था। सोनघाटी पुरातत्व परिषद पंजीकृत संस्था है, जिसके कबरा कला (झारखंड) की खोज से संबंधित कार्य भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की रिपोर्ट में दर्ज हुआ है। बताया कि परिषद की बिहार इकाई ने रोहतास जिला में अर्जुन बिगहा, लेरुआ, घरी, रिऊर सहित अनेक महत्वपूर्ण पुरा-स्थलों की खोज की है। अर्जुन बिगहा से प्राप्त नई टेराकोटा, मनका आदि बताते हैं कि वहां तीन-चार हजार साल पुरानी आदिवासी, आर्य, असुर में से कोई सभ्यता दफन है, जिसके उत्खनन की मांग राज्य सरकार और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण से की गई है। परिषद के संयुक्त सचिव अवधेश कुमार सिंह ने बताया कि दो दशकों में वहां तीन टीले चिह्निïत किए गए हैं और प्राचीन काल की अनेक अति महत्वपूर्ण पुरा-सामग्री खोजी गई हैं। सोनघाटी पुरातत्व परिषद के कोषाध्यक्ष दयानिधि श्रीवास्तव द्वारा दिल्ली में बनवाया गया स्मृति-चिह्नï डा. एसबी प्रसाद को बतौर नववर्ष सम्मान भेंट सौंपा गया। इस अवसर पर सहधर्मी संस्थाओं सोन कला केेंद्र और टीम इंडिया बैडमिंटन क्लब द्वारा होली-पूर्व सोन महोत्सव के आयोजन पर चर्चा की गई। सोन कला केेंद्र के अध्यक्ष दयानिधि श्रीवास्तव ने बताया कि संस्था पंजीकरण प्रक्रिया पटना में अधिकृत अधिवक्ता के जिम्मे सौंपी जा चुकी है। चर्चा में सोनघाटी पुरातत्तव परिषद, टीम इंडिया बैडमिंटन क्लब, डेहरी चेस क्लब और सोन कला केेंद्र के पदाधिकारियों-सदस्यों में डा. सीके आनंद (बीएमपी चिकित्सक), अरुण शर्मा, सत्येन्द्र गुप्ता, प्रीति सिन्हा, राजीव सिंह, राजू सिन्हा, अमूल्य सिन्हा, रामनारायण सिंह, आलोक कुमार आदि उपस्थित थे।
(रिपोर्ट : निशांत राज, तस्वीर : अरुण शर्मा)
विद्यार्थियों में विज्ञान जागरूकता के लिए साइंस स्कूल
प्रयागराज (उत्तर प्रदेश)-सोनमाटी प्रतिनिधि। राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी भारत (प्रयागराज) द्वारा शीतकालीन वार्षिक विज्ञान विद्यालय का आयोजन किया गया, जिसमें उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश के विद्यार्थियों-शिक्षकों ने भाग लिया, जिसका उद्देश्य विद्यार्थियों को विज्ञान के प्रति नवीनतम वैज्ञानिक जानकारी देकर जागरूक करना था। विद्यार्थियों ने वैज्ञानिकों, विज्ञान लेखकों के व्याख्यान सुने और इलाहाबाद विश्वविद्यालय, भारतीय सूचना एवं प्रौद्योगिकी संस्थान (प्रयागराज) की प्रयोगशालाओं, आंनद भवन संग्रहालय का भ्रमण-अवलोकन किया। विज्ञान संचार कार्यक्रम समन्वयक प्रो. श्यामलाल श्रीवास्तव, संयोजक प्रो. यूसी श्रीवास्तव, डा. मदनगोपाल मिश्रा, डा. रुपेश त्रिपाठी आदि ने व्याख्यान सत्र में विज्ञान की दुनिया से संबंधित नई जानकारियां दीं। साइंस स्कूल में भाग लेने वाले विद्यार्थियों को प्रमाण-पत्र और विभिन्न विषयों मेंं अग्रणी स्थान प्राप्त करने वालों को पुरस्कृत किया गया। आयोजन के आरंभ-सत्र में राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी के महासचिव प्रो. सत्यदेव ने आगतों का स्वागत किया और समापन-सत्र में कार्यकारी सचिव संतोष शुक्ल ने धन्यवाद-ज्ञापन किया।
(रिपोर्ट, तस्वीर : डा. भगवान उपाध्याय)