हिन्दी दिवस पर अरुण दिव्यांश की कविता
अहा ! आज का दिवस अतीव पावन ,
प्रकृति हिन्द संस्कृति ध्वज लहराया है ।
हिन्दी विश्वबन्धुत्व क्षमायाचना दिवस ,
आज धरा पर देखो उतरकर आया है ।।
आज का दिवस कर लें विशेष हम वंदन ,
धरती माता का धूल लगाकर चंदन ।
आज के दिवस को विशेष यह नमन ,
हिन्दी विश्वबन्धुत्व क्षमा का करें अभिनंदन ।।
आओ तुम्हारी भूल चूक सब क्षमा करें हम ,
तुम भी मेरी हर भूल चूक अब क्षमा कर दो ।
दूर करें हम निज अंतर्मन की बुराई ,
अंतर्मन में हम प्रेम सौहार्द ही जमा करें ।।
इस सृष्टि का भी तो पावन यही कथन है ,
देवलोक में भी यह प्रेम सौहार्द है धरोहर ।
अंतस् पटल से सबको क्षमा करें हम ,
प्रेम सौहार्द कहीं भी नहीं होता है ओहर ।।
हिन्दी भी तो हमको यही है सिखाता ,
क्षमा करते हुए भी तुम क्षमा अब माॅंग लो ।
प्रेम सौहार्द को अंतर्मन में बैठाकर ,
करवद्ध पावन विश्वबन्धुत्व तुम माॅंग लो ।।
हृदय से आज ही संकल्प यह करें हम ,
निज जीवन को भी कर लें आज सार्थक ।
यही जीवन की सच्ची श्रद्धा देव पूजन ,
हिन्दी विश्वबन्धुत्व क्षमा नहीं है निरर्थक ।।
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