पुस्तक समीक्षा : गंवई और जनवादी चेतना का स्वर है कुमार बिंदु की कविता संग्रह ‘साझे का संसार’


जन कवि कुमार बिंदु बिंबों के सहारे मजदूर-किसान की कहानी का कविता में लंबा वितान रचते हैं। आमजन की तरफ़दारी और संघर्षों को कविता का विषय बनाना इनकी कला की महत्वपूर्ण देन है। कवि के पास जीवन और राग का गहरा अनुभव है। अभावग्रस्त लोगों की चेतना को प्रतीकों में ढालना और इंसानी मस्तिष्क को झकझोर देना इनकी कलम की विशेषता है। संवेदना की समझ अभाव से उपजती है और यह अभाव आजीवन कवि के साथ रहा। किंतु प्रेम और हृदय की विशालता कवि के जीवन पर हावी रही जो उसे कभी टूटने नहीं दी। इनकी सारी कविताएँ संघर्ष को समर्पित व खालीपन को भरने वाली है। कवि का मुस्कुराता हुआ चेहरा जीवन जीने की कला को अभिव्यक्त करती है और इससे निर्विघ्न यह संदेश जाता है कि कवि अभी हारा नहीं है और न ही हारने में उसे यकीन है।’साझे का संसार’ कवि का पहला कविता-संग्रह है जो आमलोग के स्वप्नों और आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व कर रहा है। निश्चित ही इस संकलन की कविताएँ अपनी रोशनाई से अंधेरे घर को जगमग कर दी है।
कुमार बिंदु के भीतर एक विराट कवि नागार्जुन छुपा है जिससे इनकी कविताएँ सहज ही दर्शन करा देती हैं। ‘मेरी बात’ में उन्होंने स्वीकार किया है कि “बचपन से ही संगीत और सौंदर्य के प्रति मेरी गहरी आसक्ति रही है।” ‘साझे का संसार’ में संगीत और सौंदर्य जीवन व कविता के अभिन्न अंग बन चुके हैं। ‘साझेदारी’ कविता में उन्होंने लिखा है-‘मैं वो शब्द तलाश रहा हूँ/जो प्रेम का बीज-मंत्र बन सके/ मैं वो गीत तलाश रहा हूँ/ जिसे दिल नितांत अकेले में गुनगुना सके” इससे साफ है कि कवि प्रेम को जीवन की धूरी मान रहा है। वह अकेला होने पर भी गीत के साथ जीना चाह रहा है। आज इंसान अकेलापन का शिकार है, उसके जीवन में तनाव है और जीवन घुटने पर विवश है। ऐसी परिस्थिति में गीत का गुनगुनाना जीवन को आस से भरना है। कवि ‘ओ पितरों’ के बहाने हिंसा और हत्या की संस्कृति का तिरस्कार कर रहा है। पर उसे कृष्ण का मधुवन, वृंदावन तथा उनकी प्रेम की वंशी बहुत पसंद है। ‘भूगोल की किताब’ में गाँव के लोगों की उत्सवधर्मिता सामने आती है जहाँ कवि दिल्ली-मंबई कमाने गए लोग नाचते-गाते दिखाई देते हैं। जीवन को रसमयी बनाने के लिए यह जरुरी है।

आज विश्व आधुनिक हथियारों की वजह युद्ध की विभीषिका के मुहाने पर है। कई बड़े व किकसित देश हथियारों के बाजार के रूप में विश्व को बदल दिए हैं। हथियार मानव जीवन के लिए खतरा है। कवि उन हथियारों को विनष्ट करने का सपना देख रहा है और उसे प्रबल जल धारा में बहा देना चाहता है।

” चलो मीत, आज हम-तुम

उफनती नदी बन जाएँ

और नरमेध यज्ञ के लिए बनाये गए

आधुनिक ब्रह्मास्त्रों को

उन ब्रह्मास्त्रों के सौदागरों को

अपनी प्रबल जल-धारा में बहा ले जाएँ

और उन्हें हिंद महासागर में ले जाकर डुबो दें”

आज रूस-युक्रेन और चीन-ताइवन के बीच जो कुछ देखने को मिल रहा है उससे हथियार के सौदागर का चेहरा स्पष्ट है। पर हिंद महासागर में उन हथियारों को डुबोेने की बात कवि जो कह रहा है उससे स्पष्ट है कि अपना मुल्क भी कहीं न कहीं ऐसे सौदागरों के जद में है। ‘पोटली’ कविता एक बुढ़िया के मनोदशा को ठीक से अभिव्यंजित कर रही है। ‘बोलो शंकराचार्य बोलो’ वैचारिक रूप से प्रौढ कविता है। जहाँ मिथ्या और माया की आड़ में संसार को उदासीन बनाने वाले आचार्यों को कठघरा में खड़ा किया गया है। ‘पेड़’ आज मंडी की वस्तु बन गया है। फिर भी कवि ‘अभी मैं हारा नहीं ‘ की उद्घोषणा करता है और कहता है-

“रोटी के लिए

पानी के लिए

जीवन के लिए

जो आग जलाती थी मुझे

जो आग डराती थी मुझे

एक दिन मैंने उसे भी जीत लिया”

“साझे का संसार” कविता संग्रह में ‘ मुझे ईश्वर की जरूरत नहीं ‘ एक महत्वपूर्ण कविता है जहाँ कवि ईश्वर और हिटलर में कोई अंतर नहीं समझता है। उसे ईश्वर या हिटलर या किसी की तनाशाही पसंद नहीं । वह यह भी चाहता है कि यह प्यारी दुनिया ईश्वर विहीन रहे। कवि मोहन दास गाँधी, भिखारी ठाकुर, शेक्सपीयर के बहाने गाँव की खबर लेता है। ग्वालों, औरतों, हलवाओं का एक सुंदर चित्र बनाता है और वे चित्र ही सबकुछ कह डालता है। ‘नाच रहा प्रेत’ कविता पर मुक्तिबोध के ब्रह्मराक्षस का प्रभाव है। प्रेत पूँजीवाद का प्रतीक है। चारों तरफ तबाही है। फिर भी कवि प्रेम का दानकर जीवन को उत्कर्ष से भर देना चाहता है। ‘ओ रघुनिया पासी’,’अब मैं शहर नहीं जाऊँगा’,’गुमशुदगी’ आदि कविताओं में कवि का ग्रामीण मन कई सवालों से जुझता व संघर्ष करता नजर आता है। ‘डरा हुआ आदमी’ आज के दौर में सहमा और दहशत की वजह तुच्छ सा बन गया है। समाज और शहर में ऐसा माहौल है कि कोई गलती का प्रतिकार नहीं कर रहा है। राजसत्ता जिनके हाथ में है उनकी मनमानियों की वजह जनता की खुशी छीन चुकी है। कवि तो इतना डरा है इस दौर में कि वह कहता है-“सोये में मंद-मंद मुस्कुराते शिशु को/एकांत क्षणों में प्रेयसी के अधरों को/ वह हुलसकर चूम भी नहीं सकता है।” इसी बहाने कवि युग के सच को प्रस्तुत करता है।’दरिद्दर’,’तथागत से सवाल”तनाशाह का सपना’ कुमार बिंदु की ऐसी कविताएँ हैं जहाँ वह सवाल पूछने से चूकता नहीं है।

‘आज सूर्य कुछ इस तरह मिला’ कविता उत्साह व आंदोलन की कविता है। “लुकवारी भांजने” और ” इंकलाब जिंदाबाद” से कवि की जनवादी चेतना का पता चलता है। ‘रिश्तों की मंडी में’ में कवि आदमी को बाजार बनाने के विरुद्ध है। वह चाहता है कि इसका निक्षेप हो। ताकि मनुष्य रिश्तों की अहमीयत समझ सके। ‘संसार का सबसे सुंदर दृश्य’ कविता श्रमशीलों के नाम सपर्पित कविता है। श्रम में सौदर्य की खोज है, और वह कवि को आकर्षित करता है। उसे धान का बोझ लेकर खेत से खलिहान की ओर जा रही धूप से सांवलाई स्त्री का रंग सबसे सुंदर लग रहा है। यह कविता मार्क्सवादी पाठशाला की बेहतरीन कविता हो सकती है। ‘तुम आओगे’ कविता प्रेम से पैदा हुई कविता है पर भाव से वह ग़ज़ल के नजदीक है। कवि को दूध पीता शिशु और अमलतास के पीले फूल बहुत पसंद हैं। शोख हवा से वह अठखेलिया करता नजर आता है। वह दिल को पढ़ना चाहता है। ‘मोहब्बत की किताब’ वह रचना चाहता है। ‘चतुर्भुज’ किसानों की कविता है। ‘ठठाकर मत हँसो कवि’ अपसंस्कृति के उत्कर्ष की कविता है जहाँ सीताराम और जय श्रीराम के बीच के अंतर को समझा जा सकता है । और यह भी कि महानगरीय जीवन कितना बनावटी हो गया है! इस कविता संग्रह में संकलित ‘खूँटे से बंधी गाय’,’ओ मेरी बिटिया’,’जाग मेरे मन मछेरे’ आदि भी कुमार बिंदु की महत्वपूर्ण कविताएँ हैं। ‘सुनो कबीर’ को भूलना गुनाह होगा।

‘साझे का संसार’ कविता-संग्रह में कुल अठत्तर कविताएँ। भाषा और शिल्प के आधार पर सुगठित व विकसित कविताएँ हैं। कुमार बिंदु की ग्रामीण जीवन से जुड़ी कविताएँ अपने गठन और वैचारिकी के स्तर पर विश्व की जनवादी चेतना की कविताएँ हैं। नए बिंबों, प्रतीकों व बालाघातों की वजह से लगभग सारी कविताएँ बहुत आकर्षक व रुचिकर हैं।

पुस्तक समीक्षा कुमार बिन्दु

कवि-कुमार बिंदु

समीक्षा– डा. हरेराम सिंह

प्रकाशक-अभिधा प्रकाशन

मूल्य-250 रुपये

  • Related Posts

    जलवायु अनुकूल कृषि कार्यक्रम के द्वारा धान परती भूमि प्रबंधन एवं किसानों का सशक्तिकरण

    पटना – कार्यालय प्रतिनिधि। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद का पूर्वी अनुसंधान परिसर, पटना के निदेशक डॉ. अनुप दास (प्रोजेक्ट लीडर), डॉ. राकेश कुमार, वरिष्ठ वैज्ञानिक-सह-प्रधान अन्वेषक एवं टीम के अन्य…

    पुस्तक समीक्षा: ‘साझे का संसार’ में जीवन मूल्य और सौन्दर्य

    मनुष्य और साहित्य के बीच गंभीर और पवित्र रिश्ता है। दोनों एक दूसरे को सुंदर बनाने में सहयोग करते हैं। इस रूप में मनुष्य और साहित्य की संस्कृति सामासिक और…

    One thought on “पुस्तक समीक्षा : गंवई और जनवादी चेतना का स्वर है कुमार बिंदु की कविता संग्रह ‘साझे का संसार’

    1. बहुत अच्छी समीक्षा। यथार्थ से टकराती कुमार बिंदु sir की कविताएं।

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

    You Missed

    खेतीबाड़ी कृषि–क्लिनिक योजना अंतर्गत चयनित प्रशिक्षुओं को कृषि संबंधीत दी गई जानकारी

    खेतीबाड़ी कृषि–क्लिनिक योजना अंतर्गत चयनित  प्रशिक्षुओं को कृषि संबंधीत दी  गई जानकारी

    परिश्रम ही सफलता की कुंजी है : डॉ. महापात्र

    परिश्रम ही सफलता की कुंजी है : डॉ. महापात्र

    पटना जीपीओ की स्थापना के 107 वर्ष पूर्ण होने पर जारी हुआ स्टाम्प

    पटना जीपीओ की स्थापना के 107 वर्ष पूर्ण होने पर जारी हुआ स्टाम्प

    सोनपुर मेला में एक महीने तक चलने वाले “फोटो प्रदर्शनी सह जागरुकता अभियान” का हुआ शुभारंभ

    सोनपुर मेला में एक महीने तक चलने वाले “फोटो प्रदर्शनी सह जागरुकता अभियान” का हुआ शुभारंभ

    कार्यालय और सामाजिक जीवन में तालमेल जरूरी : महालेखाकार

    व्यावसायिक प्रतिस्पर्धा में हुई थी आभूषण कारोबारी सूरज की हत्या

    व्यावसायिक प्रतिस्पर्धा में हुई थी आभूषण कारोबारी सूरज की हत्या