पटना (सोनमाटी समाचार नेटवर्क)। पटना में ‘‘युगानुगूँज‘‘ के तत्वाधान में डा.निशि सिंह के आवास पर ‘‘पटना काव्य गोष्ठी‘‘ का आयोजन हुआ। ‘‘युगानुगूँज ग्रुप‘‘ एक साहित्यिक संस्था है जो हिंदी, उर्दू और अंग्रेजी साहित्य को बढ़ावा देती है। नए साहित्यकारों को मंच देना इस संस्था का खास मकसद है। यह संस्था देश व्यापी तो है हीं और इसके साथ प्रवासी भारतीय को जोड़कर विदेश में भी अच्छा काम कर रही है। इस संस्था ने अपने सदस्यों का बाल साहित्य और उनकी रचनाएं विदेशी शिक्षण संस्थानों के पाठ्यक्रम में भी शामिल हैं स सोशल मीडिया के माध्यम से भी कविता को एक सकारात्मक दिशा देने का पहल कर रहे हैं।
पटना काव्य गोष्ठी की अध्यक्षता कवयित्री डॉ पंकजवासिनी ने किया, जो इस संस्था की बिहार प्रमुख भी हैं। इस संस्था की सिटी प्रमुख डॉ निशि सिंह अपने आवास पर आयोजित इस संगोष्ठी के आरंभ में आगत कवियों का स्वागत करते हुए कहा कि नए-पुराने साहित्यकारों को एक मंच पर लाकर एक दूसरे से कुछ सीखने-सिखलाने के इस सारस्वत आयोजन में आप लोगों की सहभागिता हमारे लिए वंदनीय है।
पटना काव्य गोष्ठी में शहर के नए-पुराने कवियों ने अपनी एक से बढ़कर एक कविताओं का पाठ किया स इस संगोष्ठी का संचालन करते हुए तर्पण एवं राइजिंग बिहार के साहित्य संपादक सिद्धेश्वर ने कहा कि इस तरह की छोटी-छोटी सार्थक घरेलू साहित्यिक गोष्ठियां उर्वरा का काम करती हैं जिससे अच्छे साहित्य का सृजन होता है। युगानुगूँज संस्था की सक्रियता स्वागत योग्य है।
पटना काव्य गोष्ठी के इस आयोजन में सरिता कुमारी ने अपनी कविता के माध्यम से समकालीन कविता को एक नई दिशा दी।
‘‘नदी के नीचे भी एक नदी बहती है। पत्थर से टकरा-टकरा कर अकस्मात ही, नीचे की ओर, उतर आती है नदी !‘‘
तो दूसरी तरफ प्राकृतिक सुंदरता को बिखेरती हुई वरिष्ठ कवयित्री डॉ निशि सिंह ने काव्य पाठ किया
‘‘ कश्मीर तो बस कश्मीर है, डल झील पर तैरता शिकारा, उसकी ओट से झांकती हुई, वो खामोश सुबह”
आज के परिपेक्ष में खो रही इंसानियत की ओर इशारा करते हुए अपूर्व कुमार ने अपनी कविता सुनाया –
‘‘बड़ा अच्छा हुआ! बन गया, उनका बड़ा छोरा, बड़ा आदमी! बड़ा अच्छा होता! बन पाता, उनका बड़ा छोरा, अच्छा आदमी !”
तेरे सवालों का जवाब मैं क्या दूं ? अपने जख्म का हिसाब मैं क्या दूं ? तूफान बनकर बुझा दिया झोपड़ी का दीया, भींगी हुई आंखों को मैं ख्वाब क्या दूं ? ‘‘ गजल का पाठ कर सिद्धेश्वर ने माहौल को यादगार महफिल में तब्दील कर दिया।
‘‘खनकती हंसी में छुपी मेरी खामोशी का लहर है, सवालों में उलझे लोगों के तानों का कहर है। राज बन जाना कभी मंजूर न था मेरा जीवन, पिघलते शोलो में सुलगते आंसुओं का ही डर है!” (राज प्रिया रानी)
“आसमां में परिंदे उड़े जा रहे हैं, सपनों को पंख लगे जा रहे हैं!” (मधुरेश नारायण)
तुमने देखे हैं बस, चूड़ी, कंगन, हार, अरे तुम क्या जानो श्रृंगार !” अल्पना कुमारी ने कविता का पाठ कर नारी के विविध रूपों एवं कामकाजी महिलाओं के श्रृंगार का वर्णन किया।
भक्ति रस में डूबी कविता का पाठ किया कृष्णानंद कनक ने
‘‘तुम्हारा नाम लेकर राम, बने बिगड़े सब का काम, भज लो राम-सीता-राम”
डॉ पंकजवासिनी ने मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामलला जन्मोत्सव से संबंधी दोहे का पाठ कर माहौल को भक्तिमय में बना दिया
‘‘जन्म हुआ श्री राम का, हर्षित हुआ त्रिलोक”
‘‘हल्के हल्के ये शाम के बादल, धुंध में लिपटा ये तेरा आंचल, दूर पर्वत के पीछे सूरज छुप रहा!” (स्मिता प्रासर)
‘‘ मैं अदृश्य होना चाहती हूं‘‘ और ‘‘सृजन करो मेरी कलम” (शिल्पी कुमारी)
‘‘लिखती है ये लेखनी प्यार और मनुहार” (मधु रानी)
तथा लता प्रासर ने सामाजिक विसंगतियां पर प्रहार करती हुई अपनी कविताओं का पाठ कर पटना काव्य गोष्ठी को यादगार बना दिया।
साहित्य, संस्कृति एवं मानवता को समर्पित अंतरराष्ट्रीय संस्था ‘‘युगानुगूँज‘‘ की राज्य प्रमुख डा. पंकजवासिनी के अध्यक्षीय उद्घोषणा एवं धन्यवाद ज्ञापन के साथ अविस्मरणीय बनाने वाले शानदार ऑफलाइन कार्यक्रम की समाप्ति की घोषणा हुई।
प्रस्तुति : बीना गुप्ता (जन संपर्क पदाधिकारी) भारतीय युवा साहित्यकार परिषद, पटना ( बिहार) मोबाइल :9234760365 ईमेल :[email protected]
Beautiful programme as well as report!
Actually small get togethers like these are very good and one can learn from these get togethers.