डेहरी-आन-सोन (रोहतास)- निशांत राज। पाली रोड स्थित श्री राम कृष्ण आश्रम में रविवार शाम मां दुर्गा की प्रतिमा का विसर्जन किया गया। विसर्जन से पूर्व महिलाओं द्वारा सिंदूर खेला की रस्म अदा की गई। महिलाओं ने एक-दूसरे को सिंदूर लगाकर सिंदूर खेला और लंबे सुहाग की कामना करते हुए माता को विदा किया।
सिंदूर की होली खेलने की परंपरा सदियों से :
बंगाली समाज में नवरात्रि के त्योहार के अंतिम दिन सिंदूर खेलने की परंपरा सदियों से चली आ रही है, इसमें शादीशुदा महिलाएं एक-दूसरे के साथ सिंदूर की होली खेलती हैं। सिंदूर की होली खेलकर मां दुर्गा को विदा करती है। सिंदूर की होली खेलने से पहले पान के पत्ते से मां दुर्गा के गालों को स्पर्श किया जाता है। फिर उनकी मांग और माथे पर सिंदूर लगाया जाता है। इसके बाद मां को मिठाई खिलाकर भोग लगाया जाता है। फिर सभी महिलाएं एक-दूसरे को सिंदूर लगाकर लंबे सुहाग की कामना करती हैं। सिंदूर खेला की रस्म केवल शादीशुदा महिलाओं के लिए ही होती है मगर कुछ सालों में सामाजिक बदलाव देखे गए हैं, जिनमें कुंवारी लड़कियां भी अब इस रस्म को निभाती हैं। यह रस्म प्रतिमा विसर्जन से पूर्व किया जाता है।
मान्यता है कि मां दुर्गा सालभर में एक बार मायके आती हैं और 10 दिन रुकने के बाद फिर सुसराल जाती हैं। मां के रुकने को दुर्गा पूजा के उत्सव के रूप में मनाया जाता है।
सिंदूर खेला के साथ बंगाली समाज में धुनुची नृत्य की परंपरा भी रही है। दुर्गा पूजा में धुनुची नृत्य खास है। धुनुची मिट्टी से बना बर्तन होता है जिसमें नारियल के छिलके जलाकर मां की आरती की जाती है। धुनुची नृत्य असल में शक्ति नृत्य है।
महिलाओ ने पारंपरिक वस्त्र पहनकर धुनुची नृत्य करते मां दुर्गा को विदाई दी। प्रतिमा को हदहदवा पुल पर विसर्जित किया गया। विसर्जन में प्रदीप दास, सांगली दास, अनु भट्टाचार्य, कार्तिक मजूमदार,कंचन, सौरव सौरव, सौरभ व अन्य मौजूद रहे।