डेहरी-आन-सोन (रोहतास) विशेष संवाददाता। आलू की खेती में उत्तर प्रदेश का देश में प्रथम स्थान है। आलू का प्रयोग मुख्य रूप से सब्जियों, चिप्स, पापड़, चाट, पकौड़ी, समोसा, डोसा, चोखा आदि के रुप में किया जाता है। पूर्वांच्चल में व्रत- त्योहार में फलाहार में भी काम आता है। आलू रबी में बोयी जाने वाली फसल है। इसकी सफल खेती के लिए तकनीकी जानकारी देते हुए डॉ. संदीप मौर्य, सहायक प्रोफेसर एवं प्रभारी बागवानी, नारायण कृषि विज्ञान संस्थान, गोपाल नारायण सिंह विश्विद्यालय जमुहार, सासाराम, बिहार के द्वारा किसानों को बताया कि खेत की तैयारी के लिए बरसात कम होने के साथ समय मिलते ही खेत की जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से तथा 2-3 जुताइयाँ देशी हल, कल्टीवेटर/हैरो से करके पाटा देकर मिट्टी भुरभुरी बना लेनी चाहिए।
आलू की प्रमुख प्रजातियाँ कुफरी चन्द्र मुखी, कुफरी अशोका, कुफरी नीलकंठ, कुफरी अरुण, कुफरी गरिमा 70-80 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है।जिसकी उपज क्षमता 80-100 कुन्तल प्रति एकड़ है। कुफरी बहार, कुफरी लालिमा, कुफरी पुष्कर, कुफरी गौरव कुफरी गंगा, कुफरी मोहन, कुफरी ख्याति, 90-110 दिन , उपज क्षमता 100-120 कु.प्रति एकड़, कुफरी बादशाह, कुफरी सिन्दूरी, कुफरी आनंद, कुफरी सतलुज 110-120 दिन, उपज क्षमता,120-160 कुन्तल प्रति एकड़, प्रसंस्करण योग्य किस्में कुफरी चिप्सोना-1, कुफरी चिप्सोना-2 अवधि 110 दिन, उपज 140-160 कु.प्रति एकड़ है। कंद बीज की मात्रा एवं बीजोपचार 35-40 ग्राम वजन या 3.50 -4.00 सेमी. आकार वाले 12-14 कु.बीज प्रति एकड़ की दर से प्रयोग करना चाहिए।
बीज जनित रोगों से सुरक्षा के लिए उपचारित एवं प्रमाणित बीज ही बोना चाहिए। बुआई का समय- मुख्य फसल की बुआई का उचित समय माह अक्टूबर का दूसरा पखवारा है। खाद एवं उर्वरक- मृदा परीक्षण के आधार पर खाद एवं उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिए, यदि मिट्टी परीक्षण न हो सके तो 60 कुन्टल गोबर की सड़ी खाद का प्रयोग प्रति एकड़ में करें। 80 किग्रा. युरिया ,200 किग्रा सिंगल सुपरफास्फेट एवं 66किग्रा. म्यूरेट आफ पोटाश, जिंक सल्फेट 10 किग्रा, फेरस सल्फेट 20 किग्रा, प्रति एकड़ की दर से अंतिम जुताई के समय खेत मे मिला दे। बुआई के 30 से 35 दिनों के बीच सिंचाई के बाद टाप ड्रेसिंग के रूप में 80 किग्रा. यूरिया मिट्टी चढा़ने के समय प्रति एकड़ में देना चाहिए।
बुआई की विधि पंक्ति से पंक्ति की दूरी 60 से.मी. कंद से कंद की दूरी 20 सेमी. 8 से 10 सेमी. की गहराई पर करनी चाहिए। सिंचाई-बुआई के 8-10 दिन बाद अंकुरण से पूर्व पहली हल्की सिंचाई करें। सिंचाई करते समय यह ध्यान रखें कि आलू की गुले ( मेंड) पानी से दो तिहाई से ज्यादा न डूबे। उसके बाद आवश्यकतानुसार 15 दिनों के अन्तराल पर करें। अंतिम सिंचाई खुदाई के लगभग 10 दिन पहले बन्द कर दें। आलू बुआई के 20-25 दिन बाद पौधे 8-10 से.मी. ऊँचाई के हो जाते है। खरपतवार निकाल कर यूरिया गुलों में डालकर मिट्टी चढ़ा दे। कीट एवं रोग प्रबंधन नाशीजीवों का सही पहचान कर उचित प्रबंधन करना चाहिए।
(रिपोर्ट, तस्वीर : भूपेंद्रनारायण सिंह, पीआरओ, जीएनएसयू)