

- प्रस्तुति : निशांत राज
हर साल 20 मार्च को विश्व गौरेया दिवस मनाया जाता है। इस दिन को मनाने का उद्देश्य गौरैया और अन्य सामान्य पक्षियों की घटती संख्या के प्रति जागरूकता बढ़ावा और उनके संरक्षण के लिए प्रयास करना है। शहरों में गौरैया के कम होने की वजह उनकी प्रजनन क्षमता का कमी नहीं बल्कि उनको रहवास के लिए जगह न मिलना है।
विश्व गौरैया दिवस 2025 का थीम है ‘ प्रकृति के नन्हे दूतों को श्रद्धांजलि ‘। इस थीम का उद्देश्य गौरैया के प्रति मानवीय स्नेह को बहाल करना और लोगों को संरक्षण गतिविधियों के लिए प्रेरित करना है।
2010 में भारत की नेचर फॉरएवर सोसाइटी और फ्रांस की इको-सिस एक्शन फाउंडेशन के संयुक्त प्रयास से हुई थी। नेचर फॉरएवर सोसाइटी के संस्थापक मोहम्मद दिलावर ने गौरैया संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण कार्य किए हैं, जिसके परिणामस्वरूप यह दिवस स्थापित किया गया।
लघुकथा : गौरैया का आशियाना
“पिताजी, आपकी यह मढ़ी पुरानी हो गई है। ये मिट्टी की दीवारें और फूस का छप्पर अब ठीक नहीं लग रहा है। इसमें छोटी – छोटी चिड़ियाॅऺ घोंसला बनाकर गंदगी फैलाती रहती हैं। मजदूर भी नहीं मिल रहे हैं इसकी मरम्मत करने के लिए। हर साल मरम्मती के खर्च और परेशानी से अच्छा है कि इसका रीमाॅडलिंग कर दिया जाए। मिट्टी के घर में चूहे और चिड़ियों का शिकार करने जहरीले सांप भी आ जाते हैं। हमलोग भी यहां नहीं रहते हैं। आपसे मिलने जब हम यहां आते हैं तो सांप के डर से ठीक से सो नहीं पाते। हमें आपकी भी चिंता लगी रहती है। इसलिए मिट्टी के इस घर को गिराकर मैं पक्का घर बनवा देता हूं। सारा खर्च मैं करूंगा।” ” नहीं …नहीं। इसका रीमाॅडलिंग करने से पहले तुमने यह नहीं सोचा कि कितनों के आशियाने उजड़ जाएंगे, जिसे मैंने बचपन से बुढ़ापे तक पाला, उसे तुम आधुनिकता की भेंट चढ़ा दोगे….. ” किसके आशियाने की बात कर रहे हैं आप? ” पिताजी चिल्लाकर बोले,” गौरैया का आशियाना।”
– डॉ. पुष्प कुमार राय सहायक प्राध्यापक, गणित विभाग टी एन बी कालेज, भागलपुर (बिहार ) संपर्क नं . -6206053528
कविता – मैं गौरैया बोल रही हूं
मैं गौरैया बोल रही हूं, पोल खोल रही हूं,
सुनो दुनियावालों, मेरी दर्द भरी कहानी!
मैं मरती रही, मिटती रही, चीखती रही,
किसी ने नहीं की, थोड़ी भी मेहरबानी।
मैं गौरैया बोल रही हूं………..
किसी ने घर से, घोंसला उजाड़ दिया था,
किसी ने बंद कर दिया मेरा दाना पानी।
बहुत गिरगिराई थी और रोई थी मैं तब,
जब लोग ले रहे थे, मेरे कल की कुर्बानी।
मैं गौरैया बोल रही हूं………..
मेरे घाव बहुत गहरे हैं, और भरे नहीं है,
इंसान के लिए बात हो सकती है पुरानी।
अब मैं सिमट गई हूं, विलुप्त हो रही हूं,
पता नहीं दुनिया क्यों हो रही है दीवानी?
मैं गौरैया बोल रही हूं…………..
प्रकृति नाराज हुई तो, मेरी याद आई है,
मेरे साथ, हर प्राणी ने की थी बेईमानी।
मेरी जाति ने, पर्यावरण का साथ दिया,
कौन लौटाएगा मुझे, मेरी शाम सुहानी?
मैं गौरैया बोल रही हूं………….
सूबेदार कृष्णदेव प्रसाद सिंह,नासिक (महाराष्ट्र)/जयनगर (मधुबनी) बिहार संपर्क नं.- 90117 77572