विशेष : विश्व गौरेया दिवस

  • प्रस्तुति : निशांत राज

सुनो दुनियावालों, मेरी दर्द भरी कहानी!

मैं मरती रही, मिटती रही, चीखती रही,

किसी ने नहीं की, थोड़ी भी मेहरबानी।

मैं गौरैया बोल रही हूं………..

किसी ने घर से, घोंसला उजाड़ दिया था,

किसी ने बंद कर दिया मेरा दाना पानी।

बहुत गिरगिराई थी और रोई थी मैं तब,

जब लोग ले रहे थे, मेरे कल की कुर्बानी।

मैं गौरैया बोल रही हूं………..

मेरे घाव बहुत गहरे हैं, और भरे नहीं है,

इंसान के लिए बात हो सकती है पुरानी।

अब मैं सिमट गई हूं, विलुप्त हो रही हूं,

पता नहीं दुनिया क्यों हो रही है दीवानी?

मैं गौरैया बोल रही हूं…………..

प्रकृति नाराज हुई तो, मेरी याद आई है,

मेरे साथ, हर प्राणी ने की थी बेईमानी।

मेरी जाति ने, पर्यावरण का साथ दिया,

कौन लौटाएगा मुझे, मेरी शाम सुहानी?

मैं गौरैया बोल रही हूं………….

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