

डेहरी-आन-सोन (रोहतास)-कार्यालय प्रतिनिधि। 151 साल पहले अंग्रेजो द्वारा निर्मित प्राचीन धूप घड़ी की सूई को चोरों ने चुरा लिया। यह ऐतिहासिक धूप घड़ी डेहरी ऑन सोन के एनीकट इलाके में स्थित है। सिंचाई विभाग के कैंपस में एक चबूतरे पर बनी इस धूप घड़ी को क्षतिग्रस्त कर उस में लगी धातु की प्लेट वाली सुई चुरा लिया। इसकी सुरक्षा को लेकर पहले कई बार सामाजिक कार्यकर्ता, मीडिया कर्मी, विभिन्न संस्थान द्वारा आवाज उठाई गई थी। स्थानीय प्रशासन, नेता और सिंचाई विभाग द्वारा इसकी सुरक्षा और रखरखाव की व्यवस्था नहीं की गई। जिसका नतीजा यह हुआ कि घड़ी में लगी प्लेट को चुरा लिया गया। हालांकि पुलिस प्रशासन को सूचना मिलते ही छानबीन शुरू कर दी गई है। डॉग स्क्वायड का भी इस्तेमाल किया गया। धूप घड़ी की चोरी होने से शहरवासियों में मायूसी छा गई हैं।

धूप घड़ी की स्थापना
आजादी के पूर्व सन 1871 ईसवी में ब्रिटिश सरकार द्वारा सोन नहर प्रणाली को विकसित करने के उद्देश्य से बनाये गए यांत्रिक कार्यशाला में धूप घड़ी बनाई गई थी ताकि मजदूर से लेकर अधिकारी तक सही समय देखा कर अपने कार्य स्थल पर ससमय पहुंच सकें। अपनी ड्यूटी कर सकें। सिंचाई विभाग के कैंपस में खुले आसमान के नीचे एक पत्थर के चबूतरे पर इस घड़ी को स्थापित किया गया था।
धूप घड़ी काम कैसे करता है
चबूतरे पर हिंदी और रोमन अंक खुदे हुए हैं। घड़ी के बीच में धातु की त्रिकोणीय प्लेट लगी है। कोण के माध्यम से सूर्य का प्रकाश लाइनों वाली सतह पर छाया पड़ता है, जिससे समय का पता चलता है। ऐसा यंत्र है जिससे दिन में समय की गणना की जाती है। इसे नोमोन कहा जाता है। यहां यंत्र इस सिद्धांत पर काम करती है कि दिन में जैसे-जैसे सूर्य पूर्व से पश्चिम की तरफ जाता है उसी तरह किसी वस्तु की छाया पश्चिम से पूर्व की तरह चलती है। घड़ी की कार्यशैली और क्षमता दिन के समय तक सीमित होती है। सूर्य के प्रकाश से समय का पता चलने के कारण इस घड़ी का नाम धूप घड़ी रखा गया।
रिपोर्ट, तस्वीर : निशान्त राज ( संपादक, सोनमाटी)