‘कहो देव अपने मन की बात, बैठे रहोगे देवालय में चुप कब तकÓ
पुस्तक चर्चा
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कविता संग्रह : आंदोलित हुआ देवालय
कवयित्री : दोलन राय फोन : 9304706646
प्रकाशक : अनय प्रकाशन, दिल्ली कीमत : 220 रु.
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जो बात कविता के रूप में कही जाती है, वह लेखन के अन्य रूप में मजबूत तरीके से शायद ही कही जा सकती या किसी अन्य माध्यम में प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुतकी जा सकती है। किसी भी रचना में रचनाकार के अनुभव-अनुशीलन, भावना-भाषा और कथ्य-शिल्प का योग-समांजन ही उस रचना को उत्कर्ष और उत्कृष्टता प्रदान करता है। व्यक्ति जो देखता-समझता-सोचता और तलाशता है, वही उसकी होने की, उसके अस्तित्व की पहचान होती है। आदमी द्रष्टा के रूप में अपनी जिंदगी का रास्ता चुनता है और स्रष्टा के रूप में सृजन का सफर तय करता है। शब्द की प्रकृति ही अभिव्यक्त होना है और अभिव्यक्ति का कविता-रूप डोर पर चलने के संतुलन की चुनौती के साथ शब्दों की सघन साधना है। इस कसौटी पर युवा कवयित्री डोलन राय की कविताएं सामाजिक जड़ता को झकझोरती हुई, आदमी की स्वार्थी दुरभिसंधियों पर प्रहार करती हुई, समय के मौन को तोड़ती हुई, मूक विडम्बना को आवाज देती हुई, नई हिम्मत के लिए पुकार लगाती हुई और नई ऊर्जा का संचार करती हुई मानवीय सरोकार की अंधेरी पड़ी गलियों में उम्मीद की झीनी-झीनी किरन जैसी दिखती हैं।
कविताओं के रूप में फूटती-बहती उद्दाम निर्झरणी
उनके संग्रह ‘आंदोलित हुआ देवालयÓ की कविताओं को पढ़ते हुए यही अहसास होता है कि दोलन राय उमंग है, तरंग है और ऐसी उद्दाम धारा है, जो जीवन की अनगढ़, पथरीली राह पर बढ़ते हुए निर्झरणी बनकर कविताओं के रूप में फूटती-बहती हैं। संगीत, नृत्य, अभिनय, भ्रमण से लगाव रखने वाली और कला के इन क्षेत्रों में सक्रिय रहकर अपने को अभिव्यक्त करने वाली डोलन राय के लिए कविता-कर्म तो द्रोह है और अकेले का आंदोलन है। इनके लिए कविता सत्यम-शिवम-सुंदरम की तरह तो है, पर उसमें बदलाव की बेचैनी के साथ तीव्रात्मक आग्रह, वेगात्मक संदेश निहित है। उन्होंने काव्य-संग्रह की भूमिका में लिखा भी है- ‘पूर्णता का प्रयास साधना, यात्रा है और कर्तव्य, साहस, उत्कर्ष ही प्रेम हैÓ।
प्रतिरोध का शब्दबद्ध शस्त्र का साहस भी
कविता की आत्मा उसमें मौजूद रस तत्व है। रस तत्व जितना ही पुरअसर, प्रबल और ग्राह्य होगा, कविता उतनी ही ताकतवर होगी। कविता का काव्य-सौष्ठव जितना संगुफित होगा और शिल्प सौन्दर्य जितना ही प्रखर होगा, कविता सभी समय और सभी समाज के लिए स्वीकार्य होगी। इस दृष्टि से कवयित्री ने सामाजिक रूढिय़ों पर प्रहार किया है और व्यंग्य किया है। दरकती मानवीय संवेदनाओं को अपनी दृष्टि, अपने अनुभव और अपने प्रेक्षण-पर्यवेक्षण के आधार पर रेखांकित किया है। प्रतिरोध का शब्दबद्ध शस्त्र का साहस भी दिखाया है-
कुत्सित प्रथा से द्रोह कर
यूं न घुट अग्निशिखा-सी जल
अब तो विद्रोह कर।
मां, कोख में न मार
तेरी यह बेटी युद्ध करेगी
कुप्रथाओं को अवरुद्ध करेगी।
कविता के बारे में उनके विचार एक कविता में इस तरह ध्वनित हुआ है-
स्वतंत्र चिंतन
नैतिक आचरण
सत्य का वरण है कविता
कविता है प्रचंड विद्रोहिणी
इसीलिए कविता अब तक
नहींगई है ब्याही।
सदियों की धर्मान्धता-जड़ता पर वह कविता के माध्यम से इस तरह सवाल खड़ा करती हैं-
कहो देव अपने मन की बात,
कब तक बैठे रहोगे चुप देवालय में
बिकता है, सब कुछ बिकता है
सौ रुपये में मिट्टी का खुदा
हजारों में सोने का खुदा
करोड़ों में हीरे का खुदा
कितने संपन्न हो,
मगर अंधे हो, बहरे हो, गूंगे हो।
जब झांकती हो फटी चादर से दुर्दशा
तब कैसे करें उत्कर्ष की आशा
न चाटुकारिता देवों-देवियों की
न ही दानव से डरेगा,
संघर्षरत रहेगा
झूठे रीति-रिवाजों से क्रुद्ध है,
आग है वह
और यह जानता है कि
संघर्ष ही कुंभ है, प्रयाग है।
अंबिकापुर (छत्तीसगढ़) में जन्मी जनसंपर्क एवं पत्रकारिता में स्नातक डोलन राय औरंगाबाद (महाराष्ट्र) में स्वतंत्र पत्रकारिता करती हैं। इनकी कविताएं आकाशवाणी के अंबिकापुर केेंद्र से प्रसारित हुई हैं और उनके लेख दैनिक भास्कर, नवभारत टाइम्स आदि में प्रकाशित हुए हैं।
-®- समीक्षक : कृष्ण किसलय, संपादक, सोनमाटी मीडिया समूह
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०- कविता
महानद सोन
ओ कवि!
क्या तुमने महानद सोन को
कभी गौर से देखा है
उसकी जलधारा में झांका है
तुम सोन के व्यक्तित्व को
आग्नेय पुराण की धार्मिक दृष्टि से नहीं
बिंध्य पर्वत और सोनघाटी में बसे
आदिवासियों के लोकगीतों से देखो, जानो।
ओ कवि!
सुनो,आदिवासी लोक गायक
कुड़ुख बोली में अपने पुरखों का रचा
लोकगीत गा रहा है
सोन की परिणय-गाथा सुना रहा है
पराक्रमी सोन और रूपवती नर्मदा में
कैसे प्रेम के फूल खिले
ब्याह से पहले नर्मदा की क्रोधाग्नि में
कैसे दोनों प्रेमियों के भाग्य जले
तब जोहिला नाइन से सोन ने ब्याह रचाया
ऊ ंच-नीच और जाति-पाति का
उसने भेद मिटाया
राह में बाधक बने
पुरातनपंथी केहेंजुवा की छाती फाड़ी
पुरोहित कैमूर का सिर झुकवाया
अहंकार की मारी रूपवती राजकुमारी
हाय नर्मदा, रह गई कुंवारी।
ओ मेरे प्रिय कवि!
महानद सोन प्रेम पुजारी है
एक आदिम क्रांतिकारी है
वह जाति, धर्म, रंग, नस्ल भेद के खिलाफ
सदियों से चल रहे जंग का
एक जांबाज सिपाही है।
0- कुमार बिंदु
पाली, डेहरी-आन-सोन (बिहार)
फोन 9939388474