कविता के कलमकार : कुमार बिन्दु, अख्तर इमाम अंजुम, मिथिलेश दीपक, कृष्ण किसलय

 

गजल/ कुमार बिन्दु

हर सुबहो-शाम हसीं गुनाह करता हूं।
सर झुका के हुस्न को सलाम करता हूं।।

जाहिद काफिर कहे या बुतपरस्त कहे,
हर सूं उसका जलवा दीदार करता हूं।

शमां की मानिंद जलती है तू रातभर,
मैं परवाने की तरह परवाज करता हूं।

दिल में सजा रखा है सनम का बुतखाना,
उसके सजदे में दिल बेकरार करता हूं।

कभी न कभी तो वो आएंगे अंजुमन में,
ये सोच के हर शब को गुलजार करता हूं।

-पाली, डेहरी-आन-सोन (रोहतास), बिहार 9939388474

 

 

दो गजलें/अख्तर इमाम अंजुम

गुबारेशह है कोई तो आईना है कोई।
अगर खामोश कोई है तो बोलता है कोई।।

जमीं पर सोच सही रख के आसमान उठा,
जमींपर तू है मगर तुझको देखता है कोई।

मुकद्दरों में जफाएं वफा के नाम पर हैं,
अगर है तो गनीमत के बवफा है कोई।

किसी की कोई भी हमदर्दियां जताएं तो,
जरूर उससे समझिए के वास्ता है कोई।

किसी रईस की मुफलिस की बात क्या करना,
हरेक शख्स के रहने का दायरा है कोई।

–0-0-0-0–

हम शामेअवध में भी गुजारा नहीं करते,
और सुबहेबनारस को भी देखा नहीं करते।

सूली मिले या लाख प्रताडऩा मुझे,
सच बोलने में हम कभी सोचा नहीं करते।

जो हैं जुबान वाले निपटते हैं उनसे हम,
शिकवा हो बेजुबान का ऐसा नहीं करते।

हम जो भी मसअले का हो हल, हैं तलाशते,
पीछे कभी भी मुड़ के भी देखा नहीं करते।

अब कौन बांटता है भला किसके दर्द को,
हालात अपने जो भी हों चर्चा नहीं करते।

जिस शाख पे भी सांप सिफत आदमी चढ़े,
उस पे परिन्दा भी तो बसेरा नहीं करते।

-सासाराम (रोहतास), बिहार 9430437182

 

 

कविता/मिथिलेश दीपक

सारी उमर
जिनके लिये जीते रहे
एक उम्र के बाद उसने पूछा-
मेरे लिये क्या किये?
न यह रवायत नई है,
न यह शिकायत नई है,
गुजरती रही है दुनिया
सदा इसी फितरत में।
जाहिर है कि
यह सिलसिला यूं ही
आगे भी चलता रहेगा,
जब तक अपनी सारी उमर
लोग किसी के लिए जीते रहेंगे।

-बारुण (औरंगाबाद), बिहार 9102536080

 

 

क्षणिका/कृष्ण किसलय

मोहब्बत का दिया
जो जला दिया है
तेरे दिल में,
डर है कि
जमाने की हवा
कहीं उसे बुझा न दे।

-सोनमाटी प्रेस, डेहरी-आन-सोन (रोहतास), बिहार 9708778136

 

 

 

 

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