(प्रसंगवश/कृष्ण किसलय) :अब सिवान का साहेब कौन ?

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अब सिवान का साहेब कौन ?
-कृष्ण किसलय  की अंतिम रिपोर्ट ( संस्थापकसंपादक : सोनमाटी)

राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव के प्रबल समर्थक बिहार के सिवान जिला में साहेब नाम से पुलिस, अदालत, प्रशासनिक फैसलों से अलग अपने दंडविधान के मुताबिक फैसला देने वाली समानांतर सरकार चलाने वाले और सिवान के बहुचर्चित तेजाब हत्याकांड के सजायाफ्ता पूर्व सांसद बाहुबली मोहम्मद शहाबुद्दीन की दिल्ली तिहाड़ जेल में मौत के बाद यह सवाल खड़ा है कि सिवान का नया साहेब कौन होगा? मोहम्मद शहाबुद्दीन की राजनीतिक विरासत संभालने वाली उनकी बीवी हीना शहाब या उनका विदेश रिटर्न बेटा ओसामा शहाब?

शहाबुद्दीन की मौत तक रहा खौफ :

राजसत्ता चाहे कांग्रेस की रही हो, लालू-राबड़ी सरकार की रही हो या नीतीश सरकार की, पुलिस में बमुश्किल तीन दर्जन मुकदमे वाले डॉन मोहम्मद शहाबुद्दीन की खौफनाक माफियागिरी कम नहीं हुई थी। उनकी ड्रग, हथियार, वसूली का अंडरवल्र्ड बदस्तूर जारी रहा था। जमानत मिलने के बाद भी उनका साहेब दरबार किसी राजा के फैसले की तरह लगता रहा था। चार बार सांसद और दो बार विधायक रहे विदेशी आतंकवादी संगठन से तार जुड़े होने की चर्चा वाले मोहम्मद शहाबुद्दीन का दबदबा ऐसा था कि सिवान शहर की दुकानों में उनकी ओर से वितरित उनकी तस्वीर वाला कैलेंडर ही टांगा जाता था। किसी दूसरे दल या पार्टी का नहीं। जिस दुकान में कैलेंडर पहुंचा और वहां नही टांगा गया तो उस दुकान का शटर गिरा दिया जाता था।

फैसला तो साहेब दरबार से ही, हटाए गए डीजीपी :

1980 में बिहार की राजनीतिक क्षितिज पर अवतरित हुए इस बाहुबली राजनेता के बारे में लालू-राबड़ी सरकार के राज में आम चर्चा थी की वह दिन में जेल में होते थे और रात में घर में। थानाध्यक्ष, प्रशासनिक अधिकारी और जज भी कहा करते थे कि फैसला तो वहीं से होगा। शहाबुद्दीन का दुस्साहस ऐसा कि मार्च 2001 में वारंट लेकर गिरफ्तार करने गए दारोगा को थप्पड़ मार दिया और अन्य पुलिसकर्मियों की पिटाई की गई। इसके बाद फिर पुलिस छापेमारी की कार्रवाई करने शहाबुद्दीन के गांव प्रतापपुर पहुंची तो दोनों ओर से हुई गोलीबारी में आठ ग्रामीण मारे गए। 2003 में बिहार के पुलिस महानिदेशक डीपी ओझा ने पुराना मामला खोला और शिकंजा करने का प्रयास किया। मगर माले नेता मुन्ना चौधरी हत्याकांड में शहाबुद्दीन के कोर्ट में आत्मसमर्पण करने के बाद राज्य सरकार ने डीपी ओझा को डीजीपी पद से हटा दिया।

अंतिम सांस तक लालू के साथ :

देश के बड़े नेता राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव का एकबाल बुलंद करने वाले शहाबुद्दीन ने अंतिम सांस (एक मई 2021) तक साथ दिया। जनता दल तोड़कर राजद की स्थापना में और मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव पर चारा घोटाला का मुकदमा दर्ज होने के बाद उनकी पत्नी राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बनाने में मोहम्मद शहाबुद्दीन की भी एक अहम भूमिका थी। शहाबुद्दीन ने सिवान के विधायकों को डरा कर राजद के साथ कर रखा था। उनके साथ सात विधायक थे। 1990 में लालू की पहली सरकार बनी थी और शहाबुद्दीन अपनी दबंगई के बूते निर्दलीय विधायक बनकर विधानसभा पहुंचे थे। लालू प्रसाद ने बिहार में पहली बार एम-वाई (मुस्लिम-यादव) के सियसी फार्मूला की ईजाद की तो शहाबुद्दीन उनकी जरूरत बन गए।

डरते थे रघुवंश बाबू :

मो. शहाबुद्दीन वही बाहुबली थे, जिनसे राजद के शीर्ष नेता और लालू प्रसाद के आरंभिक दिनों से ही अग्रणी सहयोगी रहे डा. रघुवंश प्रसाद सिंह भयभीत रहते थे। यही वजह है कि शहाबुद्दीन की बीवी हीना शहाब को वर्ष 2009 में राजद का टिकट सिवान संसदीय क्षेत्र से दिया गया तो विरोध किया था। जब मो. शहाबुद्दीन को 2019 में राजद नेता बनाया गया तो डा. रघुवंश प्रसाद सिंह ने राजद के राष्ट्रीय पद से इस्तीफा दे दिया था और फिर दिल्ली में अपने निधन से कुछ दिन पहले राजद की प्राथमिक सदस्यता से भी इस्तीफा दे दिया था। डा. रघुवंश सिंह शहाबुद्दीन का संभव प्रतिकार राजद में अपने स्तर से करते थे।

शहाबुद्दीन को मिली राजनीतिक चुनौती भी :

मो. शहाबुद्दीन की बीवी हीना शहाब के विरुद्ध सिवान का संसदीय चुनाव लड़ 2009 और 2014 में ओमप्रकाश यादव सांसद बने। सिवान के दरौंदा विधानसभा क्षेत्र से 2011 में बाहुबली अजय सिंह की जदयू से विधायक बनीं। अजय सिंह के परिवार के कई सदस्यों की हत्या कर दी गई और उन्हें अपना गांव छोड़ देना पड़ा था। चुनौती देने वालों में सिवान के दरौंदा विधानसभा क्षेत्र से भाजपा विधायक व्यास सिंह उर्फ करनजीत सिंह भी हैं, जिनके जमींदार परिवार में कभी दरवाजा पर हाथी बंधा होता था और जिनकी जमीन पर सर्कस लगता था। 1994 में इनके चाचा की हत्या की गई। परिवार के कई सदस्यों को मार डाला गया। 1995 की घटना है। व्यास सिंह भाग रहे थे और उनके पीछे शहाबुद्दीन की हथियारों से लैस क्रिमनलफौज 4-5 गाडिय़ों में पीछा कर रही थी। संयोग से थाना नजदीक ही था। उन्होंने थाना में जाकर अपनी जान बचाई। 1999 में आपोपुर गांव में भाजपा के फहरते झंडे पर गोलियां चलाई गईं, क्योंकि शहाबुद्दीन सिर्फ राजद का हरा झंडा फहराया जाना चाहता था। सिवान भाकपा माले की भी चुनौती मिली। फिर बाहुबली मो. शहाबुद्दीन का खौफ सिवान मेंंकम नहींकिया जा सका।

shahbudin

माले की भी चुनौती :

मो. शहाबुद्दीन के विरोध में आईपीएफ (अब भाकपा माले) ने सिवान बंद का आह्वन किया तो व्यापारी मनोज कुमार की हत्या कर दी गई। सीपीएम नेता चंद्रशेखर यादव की हत्या हुई। आईपीएफ के नेता छोटेलाल गुप्ता का अपहरण कर हत्या कर दी गई। दरौली के भाकपा माले नेता अमरनाथ यादव का तो यह कहना है कि मो. शहाबुद्दीन के साथ संघर्ष में दोनों तरफ से 153 लोग मारे गए।

राबड़ी सरकार का पतन, नीतीश सरकार का अवतरण :

2005 में राबड़ी सरकार का पतन हो गया। नीतीश सरकार (2005-2009) का अवतरण हुआ। बिहार पुलिस सेवा के अधिकारी सुधीर कुमार सिवान के एसडीपीओ बनाए गए। इस अधिकारी को लालू-राबड़ी सरकार में न तो सरकारी आवास मुहैया था, न व्यक्तिगत लैंडलाइन फोन और न ही गाड़ी। सिवान पोस्टिंग से पुलिस आफिसर घबराते और जाने से बचने का जुगाड़ भिड़ाते थे। सुधीर कुमार ने राजीव रौशन को गवाही देने के लिए तैयार किया था और उसी गवाही के आधार पर 2007 में शहाबुद्दीन को आजीवन कारावास की सजा कोर्ट ने सुनाई। 2005 में दिल्ली से शहाबुद्दीन गिरफ्तार कर जेल भेजे गए। जब शहाबुद्दीन की उम्र कैद की सजा हुई तो चंदा बाबू ने बाल-दाढ़ी कटवाए और एसडीपीओ सुधीर कुमार की पहल सिवान घर लौटे। आयोग चुनाव ने शहाबुद्दीन को लड़ाने पर रोक लगा दी।

बड़ी चुनौती चंदा बाबू, कैसे मिले लालू प्रसाद से?

छपरा निवासी चंद्रेश्वर प्रसाद उर्फ चंदा बाबू ने सिवान में आकर मकान-दुकान बनाया था। दुकान का उद्घाटन मो. शहाबुद्दीन ने ही किया था। मगर शहाबुद्दीन की निगाह चंदा बाबू मकान-दुकान का हड़पने पर थी। अपने दो बेटों को शहाबुद्दीन के हाथों गंवाने वाले चंदा बाबू लंबी दाढ़ी-बाल बढ़ाए पटना की सड़कों पर पैदल चलते हुए लालू प्रसाद से मिलने की ताक में रहते थे। एक दिन मौका मिला। मुख्यमंत्री राबड़ी देवी के आवास परिसर में मुलाकातियों में सिर्फ सोनपुर के एक दल को बुलाया गया तो चंदा बाबू उसी में शामिल हो गए। लालू प्रसाद ने कहा, आप जिस तरफ पैदल घूम रहे हैं, आपको कुछ हो गया तो! चंदा बाबू के बड़े बेटे राजीव रौशन पर दबाव था कि वह तेजाब हत्याकांड में शहाबुद्दीन का नाम हटवा दे, जो भय से चुपचाप गोरखपुर में दुकान खोलकर अपने परिवार का पालन-पोषण कर रहा था।

इतनी धमकी कि हार्टअटैक हो गया :

शहाबुद्दीन ने बहुचर्चित तेजाब कांड में सिवान के कारोबारी चंदा बाबू (चंद्रेश्वर प्रसाद) के दो बेटों को 2004 में सरेबाजार तेजाब से नहलाकर जिंदा मरवा दिया था और शवों को टांगी से अपने हाथों टुकड़ा-टुकड़ा कर बोरा में कस जमीन में कहीं गड़वा दिया था। दो बेटों की हत्या के बाद 2004 में पटना रिजर्व बैंक में वरिष्ठ अधिकारी रहे अपने बड़े भाई के परिचित एक नेता के साथ चंदा बाबू ने दिल्ली में एक कैबिनेट मंत्री से भेंट की, जो शहाबुद्दीन का नाम आते ही सहम गए। उनसे अपील की गई कि जो लड़का जिंदा रह गया है, उसे तो बचा लीजिए। मंत्री ने कहा कि मामला सिवान का है, हम कुछ नहीं कर सकेंगे। चंदा बाबू के बड़े भाई पटना से ट्रांसफर कर मुंबई शिफ्ट हो गए, जिनका 24 जनवरी 2005 को हार्टअटैक में निधन हो गया। उन्हें लगातार धमकाया जाता था।

प्रशांत भूषण ने रद्द कराई जमानत :

सिवान के जीवट, तेजाब कांड में अपना दो बेटा गंवा चुके चंदा बाबू उर्फ चंद्रेश्वर प्रसाद शहाबुद्दीन के लिए सबसे बड़ी चुनौती बने। 10 साल पुराने दोहरे तेजाब हत्याकांड के इस एकमात्र चश्मदीद गवाह राजीव रौशन की भी हत्या 2014 में कर दी गई। राजीव रौशन चंदा बाबू का सबसे बड़ा बेटा था। राजीव रोशन हत्याकांड में शहाबुद्दीन जेल तो गए, पर 2016 में हाईकोर्ट ने जमानत दे दी। जेल से बाहर आने के बाद शहाबुद्दीन ने फिर से साहेब सरकार लगाई। नीतीश सरकार ने शहाबुद्दीन की जमानत का सुप्रीम कोर्ट में प्रतिरोध किया। देश के प्रतिष्ठित वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने मामला खुद संभाला और शहाबुद्दीन की जमानत रद्द हुई। शहाबुद्दीन जेल पहुंच गए।

अब साहेब सरकार नामुमकिन मगर…

मौजूदा भाजपा-जदयू सरकार के दौर में राजा की तरह फैसला देने और ऊपरी तौर पर जनता के मददगार होने का नाटक कर अंदरूनी तौर पर जुर्म की दुनिया का संचालन करने वाला साहेब यानी मोहम्मद शहाबुद्दीन बनना तो नामुमकिन दिखता है, मगर 2009, 2014 और 2019 में लगातार सिवान संसदीय क्षेत्र का चुनाव हारती रहीं उनकी बीवी हीना शहाब पर भी निर्भर है कि विदेश से पढ़ाई कर लौटे अपने बेटे को सिवान की राजनीति में किस रूप में, कब, कैसे पेश करती है? फिलहाल हीना शहाब अपनी ससुराल सिवान शहर से तीन किलोमीटर दूर गांव प्रतापपुर में हैं और पूरी तरह खामोश हैं। वह इस्लाम धर्म की रस्म इद्दत का निर्वाह कर रही हैं, जिसमें शौहर की मौत के बाद बीवी सौ दिनों तक गैरमर्द के सामने नहीं होती हैं। जाहिर है, वह अगस्त में सार्वजनिक होगी और तभी अपना सियासी पत्ता खोलेंगी। उनका कहना है कि साहेब (मो. शहाबुद्दीन) ने बड़़ी मेहनत से अपने व्यापक जनसमर्थन का आधार तैयार किया था।

शहाबुद्दीन के बेटा से मिले कई नेता :

राजद के पूर्व विधानपरिषद सभापति सलीम परवेज और तकनीकी प्रकोष्ठ प्रदेश सचिव मोहम्मद शोहराब कुरैशी सहित राजद और अन्य दलों के कई नेता प्रतापपुर जाकर हीना शहाब से मिलने में विफल रहे हैं। जन अधिकार पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पप्पू यादव ने शहाबुद्दीन के गांव प्रतापपुर पहुंचकर मोहम्मद ओसामा शहाब के साथ ईद का रोजा खोला और यह बयान दिया कि लालू की पार्टी ने मोहम्मद शहाबुद्दीन से सब कुछ लियाए दिया कुछ नहीं।


इनपुट : निशांत राज

देहरादून (दिल्ली कार्यालय) से प्रकाशित समय-सत्ता-संघर्ष की पाक्षिक ‘चाणक्य मंत्र’ में प्रकाशित इस पखवारा (16-30 जून ) की बिहार से राजनीतिक रिपोर्ट

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