धरती का शैतान : कृष्ण किसलय की चर्चित विज्ञान कथा

पुस्तक : धरती का शैतान
लेखक : कृष्ण किसलय
20वीं सदी के आठवें दशक के अंत में रचित चर्चित साइंस फिक्शन (औपन्यासिक बाल विज्ञान कथा )
–0 संक्षिप्त संशोधित प्रस्तुति 0–

बोनिन द्वीपसमूह का एक मिनी टापू निशिनोशिमा शिंता करीब 500 मीटर लंबा और 200 मीटर ही चौड़ा है। एक साल पहले समुद्र के भीतर से ज्वालामुखी के साथ उभर कर पानी की सतह के ऊपर आया पृथ्वी का यह सबसे नया द्वीप है। समुद्र के पानी के बीच इस निर्जन द्वीप पर खड़े होकर इसके विस्तार को आसानी से एक नजर में देखा जा सकता है। इस विराना भूमि के बारे में भूगोलवेत्ताओं को अभी बहुत कम जानकारी है।
बोनिन द्वीप-समूह के फ्री-एयरपोर्ट रन-वे पर उद्योगपति रिचर्ड और उनकी सुरक्षा टीम का काफिला निजी बोइंग विमान से उतरा। विमान से उतरने के बाद वह एक होटल में ठहरे गए। उनके निजी इंटेलिजेंस विंग के विश्वसनीय लोग विभिन्न दिशाओं में निशिनोशिमा शिंता द्वीप के बारे में जानकारी हासिल करने निकल पड़े। द्वीप के बारे में विभिन्न जानकारी प्राप्त की गई।
दो दिन बाद रिचर्ड ने होटल की लाबी में अपने चुनिंदा स्टाफ के साथ बैठक की और प्राइवेट सिक्रेटरी को जरूरी निर्देश दिए। कहा, ‘कल सुबह मैं मोटरवोट से निशिनोशिमा शिंता द्वीप की ओर निकलूंगा। मेरे साथ द्वीप पर सिर्फ दो सुरक्षाकर्मी जाएंगे, बाकी लोग निगरानी करते रहेंगे। अगर दूसरे दिन वह होटल नहींलौटते हैं तो उनकी खोज में इंटेलिजेंस विंग के लोग भेजे जाएंगे और मदद के लिए पुलिस को भी सूचित किया जाएगाÓ।
प्राइवेट सिक्रेटरी ने अपने बास के निर्देश के अनुसार तैयारी की। रिचर्ड के स्टाफ को यही पता था कि एडवेंचर प्रेमी रिचर्ड समुद्र के गर्भ से निकले निशिनोशिमा शिंता द्वीप को देखने जा रहे हैं। सभी यह अंदाजा भी लगा रहे थे कि शायद भविष्य में कोई कारखाना लगाने का कार्यक्रम हो या फिर उनकी योजना होटल, पर्यटन स्थल बनाने की हो।


दूसरे दिन सुबह रिचर्ड दो मोटरवोटों में अपने सुरक्षाकर्मियों के साथ समुद्र में उतर पड़े। कुछ घंटों बाद मोटरवोट निशिनोशिमा शिंता द्वीप के किनारे पहुंच गए। एक मोटरवोट रस्सी के जरिये खींचकर द्वीप की पथरीली जमीन पर चढ़ा दिया गया। टापू पर कोई हलचल नहीं थी। सिर्फ समुद्र के पानी की लहरों का द्वीप के चट्टानों से एक अंतराल के बाद टकराने की आवाज गूंज उठती थी और था समुद्र से आने वाली हल्की गर्म हवा का झोंका। टापू निर्जन तो था ही, वनस्पति विहीन भी था। किसी पशु-पक्षी का नामोनिशान नहींथा। रिचर्ड टापू पर अपने विश्वस्त सुरक्षाकर्मियों के साथ आगे बढ़े। द्वीप की रहस्यमयी खामोशी को चीरते हुए अचानक बड़े शिलाखंड के पार से आतिशबाजी फूंटी और वातावरण में एक आवाज तैर गई, ‘कम आन ब्रेभ मैनÓ।
वह शिलाखंड से कुछ दूरी पर थे कि आवाज फिर आई, ‘धैर्य रखें, घबराएं नहीं। वार्ता में सिर्फ आप शामिल होंगे, आपके आदमी नहींÓ। आवाज देने वाला आदमी शिलाखंड के उपर खड़ा था। उसकी बाहों, छाती और सिर में छोटे-छोटे एंटिनानुमा यंत्र लगे हुए थे। उस विदेशी व्यक्ति की मूंछ, सिर के बाल सुनहरे थे और आंखों की पुतली हरी थीं। रिचर्ड ने इशारा किया। सुरक्षाकर्मी दूर हट गए। वह विदेशी की ओर बढ़े। शिलाखंड की दूसरी तरफ चार कुर्सियां, एक मेज थी। तीन कुर्सी एक जैसी, मगर चौथी चौड़ी थी। मेज पर पैक किए खजूर, तरल पेय, पानी का जार, गिलास थे।
रिचर्ड के दिल की धड़कनें तेज हो गईं। उनकी जेब में रखे रिवाल्वर पर स्वाभाविक तौर पर उनके पंजे का दबाव बढ़ गया। विदेशी ने मुस्कुरा कर स्वागत की मुद्रा में अपना हाथ आगे बढाया और कहा, ‘आई एम एक्स, डोन्ट वरी, रेस्पेक्टेड मिस्टर रिचर्ड, मोस्ट वेलकम यूÓ। दोनों ने एक-दूसरे से हाथ मिलाए।
एक्स ने कहा, ‘प्लीज टेक योर सीट, मीटिंग के लिए हमें थोड़ा इंतजार करना होगाÓ। रिचर्ड ने जवाब में कहा, ‘थैंक्सÓ।
एक्स ने कहा, ‘तब तक हम इस खास खजूर के अनोखे स्वाद का आनंद लेते हैं। आप मुझे यंत्रों से लैस देखकर चौंक रहे होंगे। दरअसल मैं साई-बोर्ग मैन हूं। मैं शरीर के यंत्रों के जरिये पूरी दुनिया के सूचना संचार-तंत्र से जुड़ा हुआ हूं। हाथ का इस्तेमाल किए बिना ही दिमाग के तरंगों से एक साथ कई काम कर सकता हूंÓ।
दोनों एक साथ कुर्सी पर बैठे। दोनों पैक किया हुआ निकाल कर साथ-साथ खाने लगे। दोनों के बीच इधर-उधर की, अपने-अपने अंदाज में एक-दूसरे को टटोल पाने की, बौद्धिक थाह लेने की अनौपचारिक बातें हुर्इं। कुछ समय गुजर होगा कि एक कड़कती हुई आवाज आई, ‘हैंड्सअप प्लीजÓ। दोनों चौंक कर मुड़े। सामने हाथ में रिवाल्वर ताने व्यक्ति ने मुस्कुराते हुए कहा, ‘आई एम माफिया किंग, राबर्टÓ।
विदेशी ने शांत लहजे में कहा, ‘कम, माई फ्रेेंड। हम जानते हैं कि यह आपका अंदाज है। कम प्लीज, टेक योर सीटÓ। राबर्ट ने रिवाल्वर जेब में रख लिया। मुस्कुराते हुए आगे बढ़ा और दोनों से हाथ मिलाया। फिर कुर्सी पर बैठ गया। विदेशी ने खजूर का एक पैकेट राबर्ट की ओर बढ़ाया और बोला, ‘मिस्टर कास्मोस द्वीप पर पहुंचने ही वाले हैं। तब तक हम लोग थोड़ा एनर्जी ड्रिंक लेते हैं। माफ करेंगे, इसमें नशा नहींहैÓ।
ड्रिंक लेने के कुछ पल बाद विदेशी साईबोर्ग मैन के एक एंटिना ने सिग्नल देना शुरू किया तो उसने कहा, ‘मिस्टर कास्मोस द्वीप पर पहुंच गए हैंÓ। थोड़ी ही देर बाद उस शिलाखंड के ऊपर आसमान में कार जैसा एक छोटा हेलीकाप्टर मंडराने लगा। हेलीकाप्टर टापू की जमीन पर नहींउतरा। ऊंचाई से ही एक मानव आकृति नीचे कूद पड़ी, जो अंतरिक्ष यात्रियों जैसे स्पेस-सूट में थी। हेलीकाप्टर वापस लौट गया। स्पेस-सूट वाले आदमी के पांव द्वीप के जमीन पर टिके। स्पेस-सूट से आंखों को चुंधिया देने वाली नीली रोशनी निकलकर चारों ओर बिखर रही थी। राबर्ट और रिचर्ड दिल थामकर स्पेस-सूट धारी के पांव जमीन पड़ते हुए देख रहे थे। स्पेस-सूट से नीली रोशनी निकलनी बंद हुईं। स्पेस-सूट धारी ने अपने सिर से हेलमेट हटाया। चमकते चेहरे, गंजे सिर वाले उस आदमी की दाढ़ी-मूंछ सुनहली थी और आंखों की पुतली नीली थी। उसके सिर पर छोटे-छोटे यंत्र चिपके हुए थे। उसने अभिवादन के स्वर में कहा, ‘वेलकम टु आल, माई फ्रेेंड्सÓ।
मिस्टर कास्मोस चौथी चौड़ी कुर्सी पर बैठ गया। स्पेस-सूट जैसी सुरक्षा कवच धारण करने की वजह से वह कम चौड़ी कुर्सी पर अंट नहींसकता था। उसने कहा, ‘आज हम अपने मिशन के लिए, पृथ्वी ही नहीं बल्कि पूरे सौरमंडल पर एकछत्र राज करने की योजना को लेकर यहां मौजूद हुए हैं। योजना को अंजाम तक पहुंचाने की दिशा में कदम-से-कदम मिलाकर चलने के लिए ही हम आज दुनिया की दो नई हस्तियों से मिल रहे हैं। मिस्टर रिचर्ड, हमारे मिशन यूनिवर्स में आपका नाम मिस्टर वाई होगा। मिस्टर राबर्ट, आपका नाम जेड। हम योजना के आरंभिक ब्लू-प्रिंट पर चर्चा करेंगे। कुछ महीनों तक, कुछ सालों तक एक-दूसरे को परखेंगे और इस दौरान सांझेदारी, सहमति के जरूरी कार्य संपन्न करेंगे। सबको इस बात की पूरी छूट होगी कि वह मिशन के फाइनल स्टेज से पहले वापस अपनी दुनिया में लौट जाए, मगर फाइनल स्टेज में प्रवेश के बाद किसी की भी अपनी पुरानी दुनिया में वापसी संभव नहींहोगीÓ।
मिस्टर कास्मोस का कहना जारी था, ‘हमारे यूनिवर्स मिशन का पहला चरण निशिनोशिमा द्वीप होगा, क्योंकि इसी बात की अधिक संभावना है कि अति अल्प ज्ञात यह निर्जन टापू हरियालीहीनता के कारण भी अगले कई सालों या दशकों तक बाकी दुनिया के संपर्क में नहींआएगा। मिशन का पहला चरण इसी टापू पर पूरा होगा। यहां स्थापित होने वाले पायलट प्लांट के परीक्षण की कामयाबी के बाद एक्जीक्यूटिव प्लांट की स्थापना होगी। एक्जीक्यूटिव प्लांट जमीन, समुद्र या बर्फ के पहाड़ के भीतर पृथ्वी के उत्तरी-दक्षिणी किसी ध्रुव पर स्थापित होने वाली फ्यूचर कास्मोस सिटी में बनेगा। फ्यूचर कास्मोस सिटी के लिए बहुत बड़ी पूंजी और वहां जरूरी मशीनों, रा-मैटेरियल पहुंचाने के लिए तस्करी के भूमिगत तंत्र की जरूरत होगी। तो आइए,मिशन यूनिवर्स की कसौटी पर अपने को कसने की तैयारी करें। सबके सौभाग्य की हम कामना करते हैं, बेस्ट आफ लकÓ!
फिर उस निर्जन, हरियाली विहीन, पथरीले, समुद्र के गर्भ के नवजात और दुनिया के लिए बेहद अल्प ज्ञात निशिनोशिमा शिंता द्वीप पर उन चारों अर्थात मिस्टर कास्मोस, एक्स, वाई, जेड के बीच क्या गुफ्तगूं हुई? उनके अलावा किसी को जानकारी नहीं। यह जानकारी दुनिया में किसी को नहीं कि मिशन यूनिवर्स आखिर क्या है और उसका अंजाम क्या होने वाला है?

अखिल विश्व के किसी अगम गुप्त हिस्से में जलते-बुझते, लाल-पीले-नीले बल्ब लगे यंत्रों से भरे कक्ष में विचित्र-सी दिखने वाली कुर्सी पर सफेद लिबास में सुनहले दाढ़ी-मूंछों, आंखों की नीली पुतली, गंजा सिर और कसावटी बदन वाला सृष्टि का वह बूढ़ा रहस्यमय इंसान बेचैनी के साथ कसमसा रहा था। उसकी बाहों और सिर पर एंटिना लगे यंत्र चमक रहे थे। कभी वह अपनी कुर्सी से उठकर सामने लगे बड़े स्क्रीन तक जाता और किसी सूचना, डाटा का इंतजार करता। वह उस कक्ष में बेचैनी के साथ टहलता और फिर कुर्सी पर जा बैठता। स्क्रीन पर एक आकृती उभरी। कुर्सी पर कसमसाने, कक्ष में टहलने और स्क्रीन पर टकटकी लगाने का उस रहस्यमय बूढ़े व्यक्ति का सिलसिला थमा। उसने बटन दबाया तो किलाबंद कक्ष का एक हिस्सा हट गया और दरवाजा उभर आया। दरवाजे से एक बूढ़ा ही आदमी दाखिल हुआ, जिसके बालों का रंग सुनहरा, मूंछ सुनहरी और आंखों की पुतलियां हरी थीं। उसके सिर, बाहों में छोटे-छोटे एंटिना वाले यंत्र लगे हुए थे।
नीली आंखों वालों बूढ़े ने आगंतुक से पूछा-‘मिस्टर एक्स, कोई खास तरह की सूचना है? आपको कोई खटका, किसी तरह की कोई आशंका हैÓ?
‘नहीं, मिस्टर कास्मोस, हमारा मिशन यूनिवर्स तो दशकों से पृथ्वीवासियों के लिए पूरी तरह अज्ञात है। इस मिशन के राजदार पृथ्वी के अपने-अपने कार्य-क्षेत्र के चंद चुनिंदा और विश्वसनीय लोग ही रहे हैंÓ। आंगतुक ने अपनी आंखों की हरी पुतलियां नचाते हुए उत्तर दिया।’ मगर क्या आपको पता है कि कई दिनों से कहींसे हमारी आवाज सुनने की कोशिश हो रही हैÓ।
-‘यह कैसे संभव है? भगवान को भी नहींमालूम कि हम जमीन पर है कि आकाश या पाताल मेंÓ?
-‘आप भूल रहे हो, मिस्टर एक्स कि गुजरे जमाने की 20वींसदी नहीं, अब नई वैज्ञानिक तकनीक और ज्ञान से लैस 21वींसदी है। 20वींसदी तक ही आदमी इतना बुद्धिमान हो चुका था कि दीवारों के भी कान हो गए थे यानी कुछ भी पूरी सावधानी से करना होता था। 21वींसदी में ज्ञान और तकनीक की नई क्षमता से हवा और रोशनी की भी आंख-कान हो गई हैंÓ।
‘आप कहना क्या चाहते हैं, मिस्टर कास्मोसÓ?
‘हम मानते हैं कि हमारी कास्मोस सिटी अति गुप्त है, अगम्य है। फिर भी पिछले कई साल से मुझे आशंका होती रही है। हो सकता है कि मेरी आशंका निरर्थक हो। फिर भी हर हाल में चौकन्ना रहना है, क्योंकि हम अब अपने मिशन की कामयाबी से चंद कदमों की दूरी पर ही रह गए हैं। हमें हर कदम फूंक-फूंक कर आगे बढ़ाना हैÓ। वह चहलकदमी करने लगा। फिर रुक गया। उसने कक्ष के एक यंत्र का बटन दबाया और एक ओर इशारा कर हरी पुतलियों वाले बूढ़े आगंतुक से कहा-‘उधर देखो, मिस्टर एक्सÓ।
उस यंत्र से मंद-मंद झंकार निकल रही थी, तरंगों के आडोलन से यंत्र की सुई थरथरा रही थी। मिस्टर एक्स के मुखमंडल पर प्रश्नवाचक मुद्रा थी और चिंता की लकीरें खिंचती जा रही थीं।
मिस्टर कास्मोस ने कहा, ‘धैर्य रखो, मिस्टर एक्स, जल्द पता चल जाएगा, हमें खोजने या हमसे संपर्क करने की कोशिश कहां से हो रही है? हमें टटोलने की कोशिश किस आधार पर की जा रही है? कहींसे जो प्रयास किया जा रहा है वह किसी संदेह के कारण है या जिज्ञासा वश है? यह हमारे लिए जानना जरूरी है। हो सकता है, यह हमारा संदेह भर हो। लेकिन शक की गुंजायश बन गई है तो सतर्क बने रहने में ही हमारी भलाई हैÓ।
‘मगर हमारी गोपनीय गतिविधियां तो मानव आबादी से हजारों मील दूर हैं। और, हमारे इस अगोचर स्थल पर कार्यरत वैज्ञानिक और अन्य लोग तो अब दूसरी पीढ़ी के हैंÓ।
‘यह सही है कि हमें अनुसंधान करते चार दशक गुजर चुके हैं। अनुसंधानकर्ताओं की हमारी पूर्ववर्ती पीढ़ी ने अत्यंत कठिन, बेहद तपस्यापूर्ण जिंदगी गुजारी है। नई पीढ़ी भी उसी नक्शेकदम पर हैं। अपने परिवार, अपने समाज से अलग कैदी जैसी स्थिति में दशकों से रहने का दुख ही हमारा साथी रहा है। हम जंगल में जीवन जीने सेे कठिनतम परिस्थितियों में कभी-कभी भूख, प्यास, बीमारी भी झेलकर आगे बढ़ते रहे हैं। एक समय तो ऐसा आया कि लगा कि आक्सीजन के अभाव में हमारा अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगाÓ।
‘क्या हमारा मिशन यूनिवर्स इतनी लंबी तपस्या के बावजूद पूरा नहींहो पाएगा? क्या हमारी योजना कहींलिक-आउट कर ली जाएगी और नष्ट हो जाएगीÓ?
‘नहीं, कभी नहीं… ! हमें जल्द पता लग जाएगा कि हमारी जासूसी कहां से की जा रही है? जरूर किसी से कहींचूक हुई है, जाने या अनजाने। हमें यही पता करना है कि कही वह चूक जान-बूझकर तो नहीं की गई है? मिस्टर एक्स, हमें अब मीटिंग की तैयारी करनी है। आगे की पूरी योजना पर आपसे मैं पहले ही विमर्श कर चुका हंूं। आप मीटिंग स्थल पर पहुंचने की तैयारी कीजिए। आपको पता ही है कि निशिनोशिमा शिंता द्वीप पर हमें नए मेहमान सदस्यों से वार्ता करनी है। इसके बाद हम फ्यूचर कास्मोस सिटी के पुराने बाशिंदों से अलग-अलग बात-चीत करेंगे। किसी को शक-सुबहा न होने पाए कि हम कुछ जानने का प्रयास कर रहे हैं। सामान्य दिनचर्चा और कामकाज का हिस्सा बने रहते हुए ही हमें जानकारी हासिल करने का प्रयास करना है। हमारे लिए समय कम हो सकता है, हफ्तों, महीनों लग सकता है। धीरज रखकर हमें पूरी सावधानी बरतनी है।
‘ओ.के., मिस्टर कास्मोसÓ।

दक्षिण ध्रुव जैसा इलाका, दूर-दूर तक रेत की ढेर की तरह बर्फ ही बर्फ। न कोई पेड़, न कोई पौधा, न कोई जीव-जंतु। फर्क यह कि रेगिस्तान में रेत के टीले होते हैं, यहां बर्फ की ऊंची-उंची चोटियां थीं। रेगिस्तान की तरह बर्फ चोटियां भी स्थिर नहींरहतीं। मौसम के बदलते ही उनका रूप बदल जाता है। किसी निश्चित इलाके की पहचान एक समय में अलग और दूसरे समय में अलग हो जाती है। रेगिस्तान की तरह दूर-दूर तक फैली बर्फ की वादियों में दिक्सूचक और अक्षांश-देशांतर से ही स्थान निर्धारण हो सकता है। बर्फ के ऊंचे-ऊंचे पर्वतों से बहुत दूर, सैकड़ों मील दूर बर्फीली पहाड़ी ढलान पर बिना पत्ते वाले कंटीले पौधों थे। उससे भी दूर ढलान में नुकीले पत्तों वाले ताड़ से भी ऊंचे-ऊंचे पेड़ थे। चारों ओर बर्फबारी जारी थी। बर्फीले प्रांत की वनस्पतियों का जैविक विकास इस तरह हुआ था कि बर्फवारी उन्हें ढंकतीं, बर्फ की फुहारें ढरककर नीचे आ जाती हैं।
आकाश में नन्हा हेलीकाप्टर मंडरा रहा था, जिसके इंजन की धीमी आवाज कुछ मीटर के बाद नहींसुनी जा सकती थी। हेलीकाप्टर पेड़ों की झुरमुट के बीच लैंड कर छिप गया। हेलीकाप्टर का दरवाजा खुला और उससे सफेद भालू नीचे कूदा। श्वेत रीछ के माथे से बाइक की हेडलाइट की तरह रोशनी फूट रही थी। रीछ सालों से यहां आ रहा था। माइनस 50 डिग्री से भी ज्यादा ठंड में सूनी बर्फानी वादियों में कुछ ढूंढता, चित्र बनाता, कहीं बात करता और लौट जाता था।
श्वेत रीछ एक दिशा में चीते की गति से दौड़ पड़ा। सामने बर्फ की ऊंची चोटी थी। घाटियों वाला रास्ता आगे दुर्गम, अनजाना था। उसने मुंह से विचित्र ध्वनि निकाली। चोटी पर हलचल हुई। छह बर्फ के कुत्ते स्लेज ट्राली खींचते हुए नीचे उतरे। श्वेत रीछ ट्राली पर बैठकर उसमें लगे यंत्रों में उलझ गया। कुत्ते ट्राली को कछुए की चाल से खींचते चल पड़े। रुकते-सुस्ताते, रास्ते को सुंघते हुए बर्फ के कुत्ते 48 घंटे चल़ते रहे। बर्फ की उस वादी में रात नहीं हुई, सूरज नहीं डूबा। कुत्ते गंतव्य पर जाकर रुके। सामने इगलू (बर्फ में रहने वाली आदिम-जाति की झोंपड़ी) जैसा प्लास्टिक का गुंबदाकार गोलघर था। रीछ स्लेज ट्राली से उतरा। कुत्तों को इशारा किया। कुत्ते ट्राली लेकर वापस लौट गए। रीछ ने गोलघर में प्रवेश किया, जहां खाने-पीने और रहने का इंतजाम मौजूद था। फर्श पर मानव आकृति वाला रोबोट पड़ा था। रीछ ने रोबोट को चालू किया। रोबोट से नहीं समझ में आने वाली भाषा में आवाज आने लगी। रीछ भी नहीं समझ में आने वाली भाषा में जवाब देता रहा। फिर रीछ ने रोबोट को निष्क्रिय कर दिया। कुछ देर बाद बर्फ का कुत्ता गोलघर में प्रवेश किया और रीछ के पैरों को सुंघा। रीछ ने पेन-ड्राइव जैसी कोई चीज कुत्ते के मुंह में पकड़ाई। कुत्ता लौट गया।
बर्फ की उस रहस्यमयी दुनिया में सांझ घिरने लगी। सूरज ढलने लगा। हालांकि रात नहीं हुई। रीछ कई घंटों तक गोलघर में सोता रहा। हियरिंग-एड पर सनसनाहट हुई तो वह जगा। उसने उठकर बाहर झांकने की कोशिश की। एक तीर सनसनाता हुआ उसके पैरों के करीब बर्फ में आ धंसा। तीर के पृष्ठभाग पर पत्तरनुमा कोई चीज लिपटी थी। सामने विचित्र लबादे में लिपटी महिला आकृति दिखी। वह आकृति तेजी के साथ बर्फ की चोटियों के बीच कहीं ओझल हो गई। तीर से उसने संदेश-पत्र निकाला। लिखा था, ‘रुको नहीं, फौरन लौट जाओ, इसमें अब तक का विवरण हैÓ। रीछ ने दोनों बाहें ऊपर कीं, पंंखा चलने जैसी घरघर की आवाज होने लगी। रीछ आकाश में बाहें फैलाए पंछी की तरह उड़ चला।

भारतीय समय के अनुसार सुबह का सात बजा था। अचानक ऐसा लगा कि पूरी धरती कांप उठी है, समूचा आकाश थर्रा उठा है, बहती हवाएं सहम कर थम गई हंै। वजह थी, विचित्र संगीत, बेहद डरावना संगीत, गंभीर नाद की तरह गूंजती हुई धुन। धुन कुछ ऐसा प्रतीत होता था कि जैसे कोई सपेरा बेहद ऊंचे आरोह में बीन बजाकर नाग-नागिन को आमंत्रित कर रहा हो। दिल को दहलाने वाला धारा प्रवाह संगीत-नाद दुनियाभर में सबके रेडियो पर, सभी बैंडों पर, सबके टेलीविजन सेट पर, सभी चैनलों पर गूंज रहा था। सोशल मीडिया के यू-ट्यूब, फेसबुक, ई-मेल, ट्वीटर सभी प्लेटफार्म पर उस संगीत के डिजिटल पोस्ट मौजूद थे। सोशल मीडिया पर तो लोग एक-दूसरे को मैसेज कर पूछ भी पा रहे थे कि यह क्या हो रहा है? मगर रेडियो और टीवी पर सवाल के लिए गुंजायश ही नहींथी। जो भी अपना रेडियो-टीवी सेट स्टार्ट करता, बस वही डरावनी धुन सुनाई पड़ती। निजी, कारपोरेट, सरकारी, ई-मेल, वेबसाइट हैक हो चुके थे। सभी जगह काली पट्टियां दिखती थीं। सोशल मीडिया के सभी प्लेटफार्म उसी संगीत के लिंक से भरे पड़े थे।
पूरी दुनिया थम गई थी। जन-जीवन ठिठका हुआ था। धरती के सात अरब लोगों की भीड़ दहशत, उत्सुकता के साथ जगह-जगह, अपने पास-पड़ोस, अपने-अपने दफ्तरो-कारखानों-दुकानों में जमी हुई। इलेक्ट्रिानिक दूरसंचार माध्यम नकाम हो गए थे। हर स्तर पर गड़बड़ी को ढंूढने का पुरजोर प्रयास हो रहा था। सभी उपाय निष्फल होने के बाद समस्या को जानने-समझने और संभव उपाय किए जाने के लिए गुजरी सदियों की तरह पैदल और मोटर वाहनों से संदेश एक से दूसरी जगह पहुंचाए जाने के प्रबंध होने लगे। इस स्थिति के घंटों गुजर गए। संसार हर हिस्सा गनगना-झनझना रहा था। दुनिया भर के वैज्ञानिक चकित थे, सभी देशों की सरकारें परेशान थीं, जनजीवन पूरी तरह भयभीत था। लोग मान रहे थे कि ईश्वर का कहर है यह। लोग मान रहे थे कि पृथ्वी पर पाप का घड़ा भर चुका है। परमात्मा से नहींडरने वालों, उनमें विश्वास नहींकरने वालों और पापियों से क्रुद्ध ईश्वर ने भगवान रुद्र की तरह प्रलय का रौद्र तांडव शुरू कर दिया है। सभी पूजा-घरों मंदिरों, गिरिजाघरों, मस्जिदों, गुरुद्वारों में प्रार्थनाएं होने लगीं।
ब्रह्म्ïाांड की गुत्थी को सुलझाने वाले महान वैज्ञानिक प्रो. स्टीफेन हाकिंग याद किए जाने लगे, जिन्होंने चेतावनी दी थी कि पृथ्वीवासियों को दूसरे ग्रहवासियों से संपर्क करने का प्रयास करना, एलियन को खोजना खतरनाक साबित हो सकता है। क्योंकि, पारग्रही सभ्यता का लक्ष्य दोस्ती के बजाय धरती के प्राकृतिक संसाधनों पर कब्जा जमाना होगा। प्रो. हाकिंग के कथन का हवाला देकर कहा जाने लगा कि दूसरे ग्रहवासियों को, एलियनों को पृथ्वी के बाशिंदों और उनके सोना-चांदी, महलों से क्या मतलब, कैसी मोह-ममता? पृथ्वी तो उनके लिए कच्चा माल की तरह है।
घंटों बाद एक झन्नाटे के साथ अजीब डरावनी संगीत लहरी थम गई। लगा जैसे पूरी पृथ्वी थम गई हो, लोगों के दिल की धड़कनें थम गई हों। अज्ञात भय की सिहरन लोगों के चेहरों से अभी गायब भी नहींहुई थी, अशांति की धुन के अचानक गायब होने की खुशी के भाव वातावरण में अभी पूरी तरह प्रकट भी नहींहुए थे कि संसार के प्रमुख रेडियो स्टेशनों और टीवी चैनलों पर सूं-सूं की पाश्र्व ध्वनि के बीच अजीब ऊंची आवाज गूंज उठी। मानो आवाज किसी लंबी गुफा, समुद्र के पानी के बहुत नीचे या फिर सुदूर आकाश के किसी अगोचर नक्षत्र से निकल कर आ रही हो…।
‘पृथ्वीवासियों, गौर से सुनो, धरती के सभी देशों की सरकारों के लिए संदेश। अब पूरी पृथ्वी पर कास्मोस इंपायर का साम्राज्य होगा। पृथ्वीवासियों, फ्यूचरिस कास्मोस सिटी लैंड का हुक्म नहींमाना गया तो अंजाम भुगतना होगा। सभी राष्ट्रध्वज, सभी धर्मध्वजा, सभी पंथों के पताका झुका दिए जाएं। सभी देश आत्मसमर्पण करें। पृथ्वीवासियों, तुम्हारे पास सिर्फ 72 घंटों का समय है। समर्पण करो या युद्ध लड़ोÓ।


उस दिन हर घंटे के अंतराल पर वही संदेश सैटेलाइटों से जुड़े रेडियो स्टेशनों और टीवी चैनलों पर गुंजता रहा। शाम पांच और छह बजे के संदेश में और दो वाक्य जुड़े हुए थे- ‘पृथ्वीवासियों, आखिरी चेतावनी है। चार रात बीतने के बाद जो सुबह आएगी, वह पृथ्वी पर प्रलय की दस्तक होगीÓ।
संदेश बंद हो चुका था। धुन बजनी भी बंद हो गई थी। धरती पर हर तरफ अफरा-तफरी थी। रेडियो-टीवी से सांत्वना के, ढांढस के, धीरज रखने के शब्द प्रसारित किए जाने लगे। यह आशंका व्यक्त की जाने लगी कि सौरमंडल के पार किसी दूसरे तारा-लोक के ग्रहवासी की करतूत हो सकती है। वैज्ञानिक टोह लेने का युद्धस्तर पर प्रयास कर रहे हैं। दुनिया की सभी सरकारें निदान निकालने में जुट गई हैं।
एक देश से दूसरे देश के राजनयिक प्रमुखों के हाटलाइटन टेलीफोन घनघनाने लगे। संयुक्त राष्ट्र के न्यूयार्क मुख्यालय में सुरक्षा परिषद के पांचों देश अमेरिका, रूस, चीन, फ्रांस और ब्रिटेन सहित सभी 194 सदस्य देशों की सरकारों की आपात बैठक बुलाई गई। तय हुआ कि पृथ्वीवासी अज्ञात संकट से मुकाबला करेंगे। अमीरों ने संकट से निपटने के लिए तिजोरियां खोल देने की घोषणा की। सभी देशों ने अपनी सीमाओं पर और सागरों में तात्कालिक रणनीति बनाई। हर देश के आकाश में टोही विमान उड़ान भरने लगे। उपग्रहों (सैटेलाइटों) से धरती और आकाश के आंकड़ों का गहन विश्लेषण होने लगा। रेडियो दूरबीनों से सुदूर अंतरिक्ष की ईंच-ईंच निगेहबानी की जाने लगी। यक्ष प्रश्न यह था कि मुकबला कहां, किस स्थान पर, कैसे होगा?
अल्टीमेटम का समय बीत चुका था। चाार दिन बाद ठीक सुबह सात बजे निकट आकाश में दक्षिण दिशा में बेहद चमकील एक मिनी सूरज चमक रहा था। अमेरिका सहित विभिन्न देशों की सेनाओं के ड्रोनों ने उसे घेरने का प्रयास किया। मिनी सूरज से निकली गर्म किरणों ने ड्रोनों को पिघला कर नष्ट कर दिया। मिसाइलें दागींगईं, जो नाकाम हो गई। मिसाइलों का निशाना चूकने से उनके जमीन पर गिरने से जान-माल का भारी नुकसान होने लगा। तरंग बाधा के कारण मिसाइलों के निशाने सटीक नहीं हो पा रहेथे।
सांझ ढलने लगी। असली सूरज लाल आकार ग्रहण करने लगा। बेहद चमकीला मिनी सूरज जमीन के करीब आ गया। किसी ड्रैगन की लपलपाती जीभ की तरह उससे लाल किरणें निकलकर नीचे आने लगीं। धरती के जिस हिस्से तक लाल किरणें पहुंची, उस हिस्से का अस्तित्व खत्म हो गया। जंगल राख में बदल गया, पहाडी चोटी का पत्थर पिघल कर पानी बन गया। उस दिन टीवी चैनल काम कर रहे थे। लोग प्रलय तांडव देख रहे थे। भारत में सांझ ढल चुकी थी। भारतीय आकाश में अपना सूरज रात की तिमिर-यात्रा पर जा चुका था। अचानक मिनी सूरज गायब हो गया।
पूरी दुनिया में हाहाकार मचा था। माना जाने लगा कि दूसरे ग्रहवासियों का कारनामा है। भारतीय समय के अनुसार दूसरे दिन सुबह ठीक सात बजे फिर टीवी चैनल ठप हो गए। वही डरावना संगीत गूजने लगा। संगीत थमा, संदेश फिर प्रसारित हुआ- ‘पृथ्वीवासियों, अगर संयुक्त राष्ट्र की ओर से सभी देशों की राज-सत्ता के समर्पण की घोषणा नहींहुई तो प्रलय का अगला तांडव अधिक उग्र होगाÓ।
रात किसी तरह गुजरी। दुनिया भर में लोग सरकारों पर समर्पण का दबाव बनाने के लिए सड़कों पर उतर आए। कहा जाने लगा, आदमी के जीवन और भविष्य की सुरक्षा से बड़ी कोई राज-सत्ता नहीं। जीवन होने पर पृथ्वी पर राज-सत्ता का अर्थ है। कई देशों में समर्पण की तैयारी भी शुरू हो गई।


संयुक्त राष्ट्र की आपात बैठक फिर हुई। संयुक्तराष्ट्र परिसर दुनियाभर के मीडिया प्रतिनिधियों से खचाखच भरा था। समझा गया कि पृथ्वीवासियों के दूसरे ग्रह की सत्ता के समक्ष समर्पण की घोषणा होगी। मगर यह क्या! संयुक्त राष्ट्र के महासचिव का जो संदेश दुनियाभर के टीवी चैनलों, इंटरनेट प्लेटफार्मों पर प्रसारित हो रहा था, उससे लोगों को अपने आंखों-कानों पर यकीन नहींहो रहा था।
महासचिव ने बताया,’खतरा खत्म हो चुका है। इस खतरे से जूझने में भारतीय सैन्य बल, खुफिया दल और वैज्ञानिकों की सालों की मेहनत है। भारत ने बड़ी सतर्कता, बड़ी गुप्त तैयारी के साथ ‘सेव अर्थ प्लेनेट मिशनÓ योजना बनाई थी। सेव अर्थ प्लेनेट मिशन भारतीयों के बलिदान, मेधा और कठिनतम श्रम का फल है। बाद में इसमें कई राष्ट्रों का भी योगदान हुआ। इस महायज्ञ की सफलता में आखिरी बलिदान है दो बहुत-बहुत प्रिय भारतीयों की, सीनियर स्कूल के उन दो बच्चों की है,जिन्हें ध्रुव और ज्योति नाम से जानेंगे। उनके असली नाम, पहचान, आवाज को अनेक कारणों से न भारत, न संयुक्त राष्ट्र और न ही कोई सदस्य देश जाहिर कर सकेगा। सभी शपथबद्ध हैं। सारे तथ्य सविस्तार समय पर सार्वजनिक होंगे। पृथ्वी दोनों भारतीय बच्चों की ऋणी हैÓ।
संयुक्त राष्ट्र में अपने डैस से भारतीय राजनयिक प्रतिनिधि ने संक्षेप में बताया कि खतरा कैसे खत्म हुआ? कहा, ‘भारत ने अपने और विश्व के भविष्य की रक्षा के लिए अपना ही भविष्य दांव पर लगाया। बात दशकों पहले की है। भारत में मानव तस्करी के अंतरराष्ट्रीय जाल की छान बीन हो रही थी। बहुत बाद में जब अमेरिका के जीपीएस (ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम) की तरह भारत अपने आकाश में अपना स्पेस नेविगेशन सिस्टम (नाविक) की स्थापना कर रहा था, तब शीर्ष भारतीय खुफिया अधिकारी और भारतीय अंतरिक्ष संगठन इसरो के शीर्ष वैज्ञानिक की अवसर विशेष पर भेंट हुई थी। उनकी अनौपचारिक बातचीत में एक आशंका सामने आई। उसके तार भारतीय बच्चों के गायब होने से जुड़े थे। भारत के खुफिया कान खड़े हुए। भारत सरकार को विश्वास में लेकर गुप्त योजना बनाई गई। सरकार बदली, मगर योजना में बदलाव नहींहुआ। यह संयोग ही था कि शक तब हुआ, जब मानव तस्करी तंत्र की जांच हो रही थी। खोज-बीन में चौंकाने वाले अलग तरह के संकेत सामने आए। माना गया कि मामला पारग्रहीय सभ्यता का हो सकता है। हालांकि यकीन करना संभव नहींथा, पर हालात ऐसे थे कि सूचनाएं नजरअंदाज नहींकी जा सकती थी। भारत ने फूंक-फूंक कर कदम बढ़ाए। बाद में वैश्विक मुद्दा होने के कारण संयुक्त राष्ट्र की कोर कमेटी में रखा गया। गहन विमर्श के बाद अति गोपनीय अंतरराष्ट्रीय योजना बनी। पूरी पृथ्वी के भविष्य के लिए भारत को अपने दो बच्चों की बलि देनी पड़ी हैÓ। कहते-कहते वह रुक गए। उनकी आंखें नम हो गई।
संयुक्त राष्ट्र के महासचिव का चेहरा भी गमगीन हो उठा। उन्होंने कहा, ‘वे बच्चे, धरती के दो लाडले, ध्रुव और ज्योति कहां, किस हाल में होंगे? ढूंढ पाने में रडार सक्षम नहींहैं। दुनिया की सभी रेडियो दूरबीनें उस अंतरिक्षयान को ट्रेस-आउट करने की कोशिश कर रही हंै कि पृथ्वी-कक्षा के पार कहां है? अंतरिक्षयान में धरती का शैतान सवार है और उसमें हैं भारत की दोनों गौरव संतान। उनका रिकार्ड किया गया लास्ट मैसेज, अंतिम शब्द सुना रहे हैं। पृथ्वीवासी सुनेंÓ।
‘धरती मेरी मां, अलविदा! अलविदा पापा, अलविदा मम्मी, अलविदा मेरे दोस्तों! थोड़ी देर बाद आकाश ही हमारा आश्रय होगा। नहींजानते, हम दोनों कितने दिनों तक जीवित रहेंगे? हमें गर्व है, हम पूरी पृथ्वी की रक्षा के लिए धरती के शैतान को अंतरिक्षयान में पृथ्वी से बहुत-बहुत दूर ले जाएंगे। ताकि वह कभी वापस नआए। विश्वास है,धरती के अस्तित्व के लिए खतरनाक फ्यूचरिस कास्मोससिटी को हमारे मम्मी-पापा, हमारे प्रिय भारत और अन्य देशों के गुप्तचर-सैन्यकर्मी नेस्तोनाबूद करने में सफल होंगे। अलविदा धरतीवासियों!

पुस्तक : धरती का शैतान

पुस्तक : धरती का शैतान

20वीं सदी के आठवें दशक के अंत में रचित चर्चित साइंस फिक्शन (औपन्यासिक बाल विज्ञान कथा )
लेखक : कृष्ण किसलय
सोनमाटी-प्रेस गली, जोड़ा मंदिर, न्यू एरिया,
डेहरी-आन-सोन, जिला रोहतास (बिहार)
फोन 9708778136

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