बिहार में रोहतास जिला के सिमरी गांव के मुस्लिम हिन्दुओं के पर्व को और हिन्दू मुस्लिमों के पर्व को मिलजुल कर अपने-अपने पर्व की तरह मानते हैं। हिन्दू-मुस्लिम एकता का यह अद्भुत मेल हर साल रोमांचकारी अनुभव वाला होता है, जिसमें बजरंग बली की जयघोष से वातावरण मुखरित हो उठता है, भीड़ से गांव की सड़क भर जाती है और खिलाड़ी तीर-तलवार, लाठी-गदका-बनेठी के खेल दिखाते हैं। वेदपाठी ब्राह्मणों द्वारा लोक देवता हनुमान की विशेष पूजा (पंचोपचार विधि) की जाती है। सौ सालों से मौजूद अखाड़े का झंडा, मुद्गर, पोशाक, लंगोटा, छत्र आदि को दशहरा के दिन निकाला जाता है। भजन-कीर्तन मण्डली, खिलाडिय़ों के खेल, बजरंगी का स्वांग, नर्तकों की मंडली, जुलूस और दर्शकों की भीड़ सब मिलकर अनोखे परिवेश की रचना करते हैं। सोनमाटीडाटकाम के पाठकों के लिए दशहरे के अवसर पर विशेष रूप से प्रस्तुत है भारतीय संस्कृति की जीवंत सांझी गंगा-जमुनी परंपरा को ऐतिहासिक तथ्यों के साथ रेखांकित करता लक्ष्मीकांत मुकुल का यह लेख।
– समूह संपादक, सोनमाटीडाटकाम
धरोहर : सौ साल से सांप्रदायिक समरसता की मिसाल बिहार का सिमरी गांव
देश में मुस्लिम बिरादरी द्वारा हिन्दू देवी-देवताओं और ग्रन्थों के प्रति सम्मान के अनेक उदाहरण हैं। देव-चरित्र हनुमान तो इस बिरादरी के भी प्रिय हैं। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने लिखा है- हनुमानजी जैसा परोपकारी एकनिष्ठ भगवत्सेवक का चरित्र भारतीय साहित्य में दुर्लभ है। लोक देवता हनुमान के प्रति मुस्लिम समाज के सम्मान का विवरण कल्याण (हनुमान अंक) में मिलता है। इसमें बताया गया है कि लखनऊ के अलीगंज मुहल्ले में गोमती के पास तत्कालीन अवध के नवाब मुहम्मद अली शाह की बेगम रबिया (1792-1802) ने इस्लामबाड़ी में हनुमान मंदिर बनाया था। हनुमान मूर्ति टीले की खुदाई में निकली थी, जिसकी पूजा मुस्लिम बिरादरी के लोग भी करते हैं। फैजाबाद के प्रशासक नवाब मंसूर अली ने अयोध्या के हनुमानगढ़ी में विशाल मंदिर का निर्माण कराया तथा बावन बीघा भूमि मंदिर को दान में दिया और साधुओं को धूप में आराम करने के लिए इमली के पेड़ लगवाए। आज वहां मेला लगता है।
सामाजिक-धार्मिक समरसता का उल्लेखनीय उदाहरण
बिहार के रोहतास जिला का गांव सिमरी सामाजिक-धार्मिक समरसता का उल्लेखनीय उदाहरण है, जहांं दशहरे में महावीरी झंडा उठाने की प्रथा शिया मुस्लिम समाज द्वारा सौ वर्ष पूर्व आरम्भ की गई थी, जो आज भी बतौर बेहतर दस्तूर जारी है। शाहाबाद महोत्सव स्मारिका में प्रकाशित जाफर हसन बेलग्रामी के लेख में कहा गया है कि सद्भावना को अक्षुण्ण बनाये रखने की भावना की गहराई को समझते हुए इस झंडा उत्सव में सभी समुदाय, सभी संप्रदाय और सकल समाज के लोगों को भाग लेना चाहिए। दो हजार की आबादी वाला रोहतास जिले के दावथ प्रखंड के गांंव सिमरी में शिया व सुन्नी मुस्लिमों के अलावा हिन्दू भी बड़ी संख्या में हैं। यह गांव आरा-मोहनिया राष्ट्रीय उच्च मार्ग (एनएच-30) पर मलियाबाग के पाश्र्व में दो बरसाती पहाड़ी नदियों ठोरा और काव नदियों के दोआब में बसा है। ब्रिटिश शासन द्वारा खान की उपाधि से विभूषित होने के कारण गांव को खान की सिमरी भी कहा जाता है। बेलग्रामी परिवार उदारता, भाईचारा और विद्वानों-सन्तों-फकीरों को आदर देने वाला माना जाता है। सिमरी गांव के काली स्थान, महावीरी अखाड़ा और जोगीवीर आदि हिन्दू स्थलों के जमीन बेलग्रामी परिवार ने ही दान में दी थी।
कोआथ के नवाब नुरुल हसन के परिवार की जमींदारी का उल्लेख है शाहाबाद सर्वेक्षण रिर्पोट में
सिमरी में बसा शिया मुस्लिम परिवार कोआथ के नवाब परिवार के वंशज हैं। अंग्रेजी शासन काल में ईस्ट इंडिया कंपनी के सर्वेयर फ्रांसिस बुकानन द्वारा 1812-13 में शाहाबाद सर्वेक्षण रिर्पोट में कोआथ के नवाब नुरुल हसन के परिवार और उनकी बड़ी जमींदारी का उल्लेख है, जिनके पुरखे शुजाउद्दौला की फौज के कमांडर थे। इस परिवार को शाहाबाद जिला के आरा परगना में 105 मौजे और दनवार-दिनारा परगने में 153 गांव बे-लगान मिले थे, जिसे लखराज संगता गंग कहा जाता था। यह जमींदारी इस परिवार के ही पंद्रह हिस्सों में बंटी थी। कोआथ और सिमरी गांव इन्ही खान-लोग के कोठियों के कारण मशहूर थे। अवध के बेलग्राम नामक स्थान से आए परिवार ने अपने नाम के अंत में बेलग्रामी शब्द जोड़कर अपनी पृथक पहचान कायम रखी। शाहाबाद गजेटियर के मुताबिक, इस परिवार में अनेक कवि-शायर, अधिकारी हुए हैं। जिले की मशहूर मिठाई बेलग्रामी का चलन इसी परिवार के कारण आज तक है। इनके वंशजों के पास मुगलकाल, औपनिवेशिक काल के अनेक ऐतिहासिक दस्तावेज, पाण्डुलिपियांं और चित्र सुरक्षित हैं।
नवाब ने चार सौ रुपये (चांदी के विक्टोरियन सिक्के) देकर बनारस से झंडा बनवाने का दिया आदेश
सिमरी मध्य विद्यालय से सेवानिवृत्त शिक्षक 76 वर्षीय हनुमान सिंह ने अपने बाप-दादों से सुनी कहानी बताते हैं। इख्तिखार हसन बेलग्रामी के पितामह सर सैय्यद हसन बेलग्रामी नरसिंह दूबे और अन्य सिपहसलारों के साथ कोठी में बैठे थे। उन्होंने देखा कि गांव के लोग सज-धजकर कहीं जा रहे हैं। पूछने पर पता चला कि बभनौल में दशहरे के दिन झंडा उठता है. जिसकी जुलूस में शामिल होने और अखाड़े में दंगल-करतब देखने जा रहे हैं। नवाब परिवार ने अगले दिन डुगडुगी पिटवा कर ऐलान कराया कि आज नवाब साहब की कोठी पर मजलिस जमेगी, जिसमें आम व खास सभी सिरकत करेंगे। सैय्यद हसन बेलग्रामी ने प्रस्ताव रखा कि क्या महावीरी झंडा हमारे गांंव सिमरी में नहीं हो सकता? सबने एकमत समर्थन किया। अगले वर्ष दशहरा से एक माह पहले नवाब साहब ने चार सौ रुपये (चांदी के विक्टोरियन सिक्का) देकर बनारस से झंडा बनवाने-मंगवाने का आदेश दिया। लाल रंग के मखमल के कपड़े का एकरंगा झंडा बनारस में नारियल बाजार की मशहूर दुकान नारायण के. दास के यहांं बना, जिस पर सोने के तार से महावीरजी की आकृति उभारी गयी। जगमनन साह, जोगी चौधरी, सिपाही सिंह, गुदानी सिंह आदि बनारस से झंडा लेकर आए थे। महावीर जी की आंख के लिए नवाब साहब ने अपनी तिजोरी से दो बेशकिमती मनके दिए थे।
दालान में होती है झंडा उठाने की रस्म, मुहर्रम कमेटी के अखाड़े द्वारा दी जाती है सलामी
सिमरी गांव में 50 घर उज्जैनी राजपूत के हैं, जो गांव की पूरब-पश्चिम पट्टी में हैं। पूरब पट्टी में चौरस आंगन वाला एक घर है, जिसे दालान कहा जाता है। वहीं पर झंडा उठाने की रस्म होती है, जहां से जुलूस नेशनल हाइवे के पास अखाड़े तक जाती है। जुलूस के अखाड़े पर मुहर्रम कमेटी के अखाड़े द्वारा सलामी दी जाती है। पूरे उत्सव में बेलग्रामी नवाब परिवार के वंशज की भागीदारी होती है। कुश्ती में भाग लेने दूर-दूर तक के पहलवान आते और इनाम पाते हैं। अखाड़ा के मालिक पहले स्व. बसगीत सिंह थे। बसगीत सिंह के बाद अखाड़े के उत्तराधिकारी सरयू सिंह और राजेन्द्र सिंह हुए। वर्तमान में धीरेन्द्र सिंह अखाड़े के मालिक हैं, जो रांची में बीएसएफ में इन्स्पेक्टर हैं।
गांव सभी लोग मिलजुल कर मानते हैं हिन्दू-मुस्लिम के पर्व
सिमरी गांव के मुस्लिम हिन्दुओं के पर्व को और हिन्दू मुस्लिमों के पर्व को मिलजुल कर अपने-अपने पर्व की तरह मानते हैं। हिन्दू-मुस्लिम एकता का यह अद्भुत मेल हर साल रोमांचकारी अनुभव वाला होता है, जिसमें बजरंग बली की जयघोष से वातावरण मुखरित हो उठता है। वेदपाठी ब्राह्मणों द्वारा लोक देवता हनुमान की विशेष पूजा (पंचोपचार विधि) की जाती है। भीड़ से गांव की सड़क भर जाती है।खिलाड़ी तीर-तलवार, लाठी-गदका-बनेठी के खेल दिखाते हैं। सौ सालों से मौजूद अखाड़े का झंडा, मुद्गर, पोशाक, लंगोटा, छत्र आदि को दशहरा के दिन निकाला जाता है। भजन-कीर्तन मण्डली, खिलाडिय़ों के खेल, बजरंगी का स्वांग, नर्तकों की मंडली, जुलूस और दर्शकों की भीड़ सब मिलकर अनोखे परिवेश की रचना करते हैं।
बेहद मशहूर है सिमरी की महावीरी झंडा शोभा-यात्रा तथा मुहर्रम की ताजिया जुलूस
सिमरी गांव के युवक सत्येन्द्र सिंह का कहना है कि उनके दादा के कथनानुसार, झंडा 1913 में बनारस में बना था। काफी पुराना होने से फट-सा गया है, पर सोने के तार से उकेरा गया हनुमान देव का शिल्पांकन यथावत है। हालांकि आंख का एक मनका गायब हो गया है। अनगराहित चौधरी के यहांं 25 वर्ष पहले डकैती हुई थी, जिसमें डकैत झंडा उठा ले गए थे, पर उसे अनुपयोगी समझ ईख के खेत की मेड़ पर छोड़ गए थे। पुराना झंडा अब इस्तेमाल में नहीं आता, वह अब धरोहर है। उसके बदले नया झंडा दस साल पहले बना था। पुराने झंडे की पूजा भी दशहरा के दिन होती है। नया झंडा अब उनके यहां अलग कोठरी में रखी जाती है, जहां सुबह-शाम धूप-दीप, गूगूल-अगरबत्ती जलाया जाता है और सुंदरकाण्ड का पाठ किया जाता है। बेलग्रामी नवाब परिवार के बुजुर्ग वंशज सैय्यद इख्तिखार हसन बेलग्रामी उर्फ रसूल भाई का कहना है कि सिमरी गांव की महावीरी झंडा शोभा-यात्रा तथा मुहर्रम की ताजिया जुलूस शुरू से ही मशहूर रही है, जिसमें दोनों समुदाय के लोग भागीदार होते हैं। बेशक बेलग्रामी के नवाब द्वारा शुरू किया गया सिमरी का महावीरी झंडा-उत्सव आज सांप्रदायिक और जातीय उन्माद के घनघोर अंधेरी घाटी में प्रकाश की उजली लकीर की तरह है। उम्मीद है कि आने वाली पीढिय़ां भी इसी तरह इस गौरवशाली उत्सव-परंपरा का निर्वहन सफलतापूर्वक करती रहेंगी।
(संपादन : कृष्ण किसलय, तस्वीर संयोजन : निशांत राज)
– लेखक : लक्ष्मीकान्त मुकुल 9162393009
ग्राम : मैरा, पोस्ट : सैसड़-802117,
भाया धनसोई, जिला : रोहतास
ऐसी खबरों को प्राथरमिकता मिलनी चाहिए क्योंकि कि हम सब बुरे हालात के शिकार हैं और एक दूसरे को अपने लिए शिकार की नजर से देखते हैं ।
इस गंगा जमुनी तहजीब को अल्लाह नजरे बद से बचाए ।
डॉ तारिक असलम तस्नीम
पटना
उचित कहा आपने।सार्थक टिप्पणी।धन्यवाद आपको