–एक कविता पाकिस्तान से–
फूलों जैसी धरती पर
नशे का बिछा दिया जाल
कब्रों-सा हो गया
मेरे पंजाब का हाल
नशे की लत में घुलते
रिश्तों पर जुल्म हैं करते
बोलना भी हो गया कहर
फैलता नशे का जहर
कब्रों-सा हो गया
मेरे पंजाब का हाल
बाप के मोह से दूर
माँ को भी गए भूल
भगत सिंह के सच्चे वारिस
चिट्टे में हो गए धूल
जिधर देखें हर कोई फंसा
लालच का बिछा है जाल
कब्रों-सा हो गया
मेरे पंजाब का हाल
मिट्टी में जहर घुल गया
कर्जे में भी वो फंस गया
पेट जगत का भरने वाला
देखो खुद भूखा मर गया
मजबूरी के साथ लड़ता
हाल हुआ उसका बेहाल
कब्रों-सा हो गया
मेरे पंजाब का हाल
ऐसा हाल अगर रहा
सब खत्म हो जाएगा
हरा-भरा पंजाब मेरा
पतझड़-सा हो जाएगा
रूह देखो काँप जाए
आए जब भी ये ख्याल
कब्रों-सा हो गया
मेरे पंजाब का हाल़
(कवि : सरदार जसपाल सूद, फैसलाबाद, पाकिस्तान,
अनुवाद : वीणा भाटिया, नई दिल्ली, भारत)
Poet – Sardar Jaspal Soos, Faisalabad, Pakistan
Translator – Vina Bhatia, New Delhi, India
बहुत मर्म स्पर्शी रचना है