-कृष्ण किसलय-
बिहार में काराकाट लोकसभा क्षेत्र से 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के बावजूद जमानत गंवा देने वाले जदयू प्रत्याशी पूर्व सांसद महाबलि सिंह क्या इस बार चुनाव जीत सकेेंगे? यह सवाल मतदाताओं के मन में तैर रहा है। क्योंकि, कुशवाहा समाज से आने वाले उपेंद्र कुशवाहा इनके मुकाबले कद्दावर नेता हैं। मगर माना यह भी जा रहा है कि इस सीट पर महाबली सिंह नहीं, नीतीश कुमार लड़ रहे हैं। महाबली सिंह के पक्ष में दूसरी बात यह है कि क्षेत्र के मतदाता अगर दिल्ली में मोदी सरकार के बनने की गणना करें तो इनका पलड़ा भारी माना जा सकता है।
राजनीतिक दल बनाने, टिकट देने में सफल
उपेंद्र कुशवाहा का महत्व यह है कि वह पहली बार राजनीतिक दल बनाने में सफल रहे और अपनी बिरादरी (कुशवाहा) के लोगों को चुनाव लडऩे के लिए टिकट दिए। यह काम इनसे पहले कुशवहा समाज के बड़े कद्दावर नेता भी नहींकर सके थे। हालांकि उपेंद्र कुशवाहा काराकाट और उजियारपुर दो लोकसभा सीट से चुनाव लड़ रहे हैं, जिसके पीछे वोट की संख्या में पीछे रह जाने का संशय है। उपेंद्र कुशवाहा अपने राजनीतिक करियर के बड़े रिस्क फैक्टर से भी जूझ रहे हैं। पिछले चुनाव में उनके पास खोने के लिए कुछ नहींथा। इस बार हार गए तो उनकी पार्टी का अस्तित्व खत्म हो सकता है। इसीलिए वह दो जगहों से लड़कर एक जगह से अपनी जीत सुनिश्चित करना चाहते हैं। इस बार बिहार में दो जगहों से चुनाव लडऩे वाले उपेंद्र कुशवाहा बिहार में एकमात्र प्रत्याशी हैं। राष्ट्रीय राजनीति में पहचान बनाने और साख जमाने वाले बिहार के नीतीश कुमार और लालू प्रसाद भी दो सीटों पर लड़ चुके हैं।
लिया है राजनीतिक जीवन का बड़ा रिस्क
उपेंद्र कुशवाहा ने एनडीए छोड़कर अपने राजनीतिक जीवन का बड़ा रिस्क लिया है। उपेंद्र कुशवाहा ने 2013 में भी राज्यसभा की सदस्यता से त्यागपत्र देकर रिस्क लिया और रालोसपा का गठन किया था। वे जदयू से राज्यसभा के सदस्य थे और उनका साढ़े तीन साल का कार्यकाल बाकी था। रालोसपा बनाकर वह एनडीए का हिस्सा बने और तालमेल में आई तीनों सीटों पर 2014 के लोकसभा चुनाव में जीत हासिल की थी। महत्वाकांक्षी उपेंद्र कुशवाहा के केंद्रीय राज्यमंत्री के पद से इस्तीफा देकर राजग से नाता तोडऩे के फैसले से उनकी पार्टी के प्रमुख कुशवाहा नेता नागमणि, श्रीभगवान सिंह कुशवाहा, सम्राट चौधरी अलग हो गए। शहीद जगदेव प्रसाद के बाद कुशवाहा समाज की अगुआई करने वालों चंद्रदेव प्रसाद वर्मा, शकुनी चौधरी, नागमणि, सम्राट चौधरी और उपेंद्र कुशवाहा में उपेंद्र कुशवाहा ने ही दल बनाने, टिकट बांटने की युक्ति निकाली। सांसद डा. अरुण कुमार ने रालोसपा से अलग हो राष्ट्रीय समता पार्टी बना ली और तीसरे सांसद रामकुमार शर्मा एनडीए के साथ हैं। रालोसपा से अलग होने के बाद विधायक ललन पासवान ने भी अलग दल (राष्ट्रवादी लोक समता पार्टी) बना लिया।
टिकट बेचने का आरोप, मगर अपनी बिरादरी पर भरोसा
अब उपेंद्र कुशवाहा अपनी पार्टी (रालोसपा) में अकेले रह गए हैं, मगर उन्हें अपने स्वजातीय वोटरों पर भरोसा है। महागठबंधन में उपेंद्र कुशवाहा के दल (रालोसपा) को पांच सीटें मिली हंै, जिसे सम्मानजनक माना जाएगा। मगर इन पर लोकसभा सीट बेचने का भी आरोप बाजाप्ता प्रेस-कान्फ्रेन्स कर लगाया जा चुका है। डिहरी विधानसभा सीट की खरीदी-बेची की खामोश चर्चा भी स्थानीय सियासी फिजां में में तैरती रही है, जिस पर उनकी पार्टी की ओर से या उनकी पार्टी छोड़कर दूसरे दल में चले गए नेता-कार्यकर्ता की ओर से वस्तुस्थिति स्पष्ट करने की जरूरत नहीं समझी गई। मतदान से पता चल सकेगा कि कुशवाहा समुदाय का फैसला क्या होता है? वह दोनों में से किसे अपना नेता स्वीकार करता है और किस दल के प्रति अपने भरोसे को ज्यादा मुखर करता है। दोनों ही कुशवाहा प्रत्याशी काराकाट क्षेत्र से बाहर के हैं। उपेंद्र कुशवाहा के पक्ष में मल्लाह, दलित के साथ यादव-मुस्लिम की ताकत है और महाबलि सिंह के पक्ष में कुर्मी, महादलित, सवर्ण, वैश्य की। नाराजगी दोनों तरफ है। डा.कांति सिंह का टिकट कटने से यादव नाराज हैं तो राजपूत नाराज हैं कि डिहरी विधानसभा के उपचुनाव में उनकी बिरादरी के प्रत्याशी को तरजीह नहींदी गई। बहरहाल, मतदाताओं का फैसला 19 मई को होगा।
(तस्वीर संयोजन : निशांत राज)