-आदिवसी मुखिया के घर में नहीं था एलपीजी कनेक्शन, खजूरी में लगने वाली एलपीजी पंचायत में निर्वाचित जनप्रतिनिधि रामजीत उरांव की पत्नी हुई रसोई गैस की प्रथम कार्डधारक
-पर्वतों-जंगलों में रहने वाली वंचित आदिवासी-वनवासी महिलाओं ने सोचा भी नहींं था कि लकड़ी-गोईठा-कोयले के धुएं-राख की नियति से कभी मिलेगी निजात
-अति निर्धन परिवारों और ग्रामीण क्षेत्रों में निम्न-मध्य वर्ग की महिलाओं तक रसोई गैस सिलेंडर की पहुंच प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना से अब हुआ संभव
डेहरी-आन-सोन (बिहार)-कृष्ण किसलय। बिहार के रोहतास जिले के दक्षिणवर्ती कैमूर पर्वत की तलहटी में सोन नद के तट पर स्थित गांव तेलकप की आदिवासी महिला सोनादेवी उरांव के घर का भी चूल्हा अब रसोई गैस (एलीपीजी) से जलने लगा और लकड़ी-गोईठा-कोयले के रोजमर्रे की धुएं-राख भरी जिंदगी से निजात मिली। पति रामजीत उरांव के मुखिया (निर्वाचित जनप्रतिनिधि) होने के बावजूद उनके घर में रसोई गैस कनेक्शन नहीं था। मगर अब प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना (विस्तारित) से उनकी राख-धुएं की जिंदगी से मुक्ति की हसरत पूरी गई। ग्राम खजूरी में एलपीजी पंचायत में उन्हें (सोनादेवी उरांव) बतौर रसोई गैस कनेक्शन के प्रथम कार्डधारक सिलेंडर सहित गैस चूल्हा मिला और उनके घर में घर में पहली बार वह चूल्हा जला, जिसमें धुआं और राख नहीं है।
हजारों सालों से धुआंती रही है महिलाओं की जिंदगी
सभ्यता के हजारों सालों से महिलाएं अपनी पूरी जिंदगी रसोई के चूल्हे में लकड़ी-गोईठा-कोयले की राख, धुएं में खपाती रही हैं। पर्वतों-जंगलों में रहने वाली सदियों से वंचित आदिवासी-वनवासी महिलाओं ने तो सोचा ही नहींं था कि उनकी भी जिंदगी कभी लकड़ी-गोईठा-कोयले के धुएं-राख की नियति से मुक्त होगी। रसोई गैस की ईजाद होने के बावजूद आज भी बड़ी संख्या में अति निर्धन परिवारों और ग्रामीण क्षेत्रों में निम्न-मध्य वर्ग की महिलाओं तक भी, रसोई गैस सिलेंडर की पहुंच नहीं थी। मगर प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के कारण ऐसा संभव हो सका है। इसीलिए वंचित परिवारों तक उज्ज्वला रसोई गैस कनेक्शन देने का लक्ष्य पांच करोड़ से बढ़ाकर आठ करोड़ कर दिया गया है।
43 लाख मौत लकड़ी-गोईठा-कोयले के चूल्हे के धुएं-राख से
बिहार सहित देश के 14 राज्य अभी भी ऐसे हैं, जहां रसोई गैस का इस्तेमाल राष्ट्रीय औसत से काफी पीछे है। दुनिया भर में 43 लाख महिलाओं की मौत चूल्हे के धुएं से स्वास्थ्य के खराब होने के कारण होती है। जाहिर है कि बीपीएल परिवारों की अधिक संख्या भारत में होने के कारण इस तरह की मौत की संख्या भी इस देश में अधिक है। इस योजना से ऐसे परिवारों की महिलाओं को रोजमर्रे की धुआंती जिंदगी से मुक्ति तो मिलेगी ही, उनका भविष्य स्वास्थ्य की दृष्टि से सुरक्षित होगा और लकड़ी-कोयले के धुएं के कारण होने वाले पर्यावरण-प्रदूषण पर भी अंकुश लगेगा। प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के तहत एपीएल श्रेणी की तरह बीपीएल श्रेणी के परिवारों को भी साल में 14.2 किलो रसोई गैस के 12 सिलेंडर, चूल्हा-सिलेंडर आदि अनुदान-दर पर मिल रहा है।
कोई समूह-वर्ग-समुदाय रसोई गैस कनेक्शन से अब नहीं रहेगा वंचित
इंडियन आयल कंपनी की अग्रणी रसोई गैस एजेंसी मोहिनी इंटरप्राइजेज (डेहरी-आन-सोन) के प्रबंध निदेशक उदय शंकर ने सोनमाटीडाटकाम से बातचीत में बताया कि प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के दायरे को बढ़ाने के बाद समाज में शायद ही कोई समूह-वर्ग-समुदाय होगा, जो रसोई गैस कनेक्शन से वंचित रह जाएगा। जहां उज्जवला योजना से पहाड़ से लेकर नदी के किनारों तक बसर करने वाले समाज के हर अंतिम आदमी के लिए है, वही इसका वाणिज्यिक लाभ रसोई गैस एजेंसी के लिए व्यापार के विस्तार के नए अवसर के रूप में है। योजना के तहत अब छह सिलेंडर रसोई गैस की सब्सिडी महिला कार्डधारक के बैंक खाते में जाएगी, जबकि मई 2016 में शुरू हुई इस योजना में रसोई गैस कनेक्शन के ऋण (अनुदानित रकम) का समायोजन आरंभ में ही सब्सिडी से किया जाता था। अब अप्रैल से किसी तरह की रकम नहीं ली जा रही है अर्थात यह आरंभिक तौर पर पूरी तरह मुफ्त है।
अप्रैल 2018 से पहले आर्थिक-जातीय जनगणना के आधार पर बीपीएल परिवार को आवंटित एएचएल नंबर के आधार पर उस परिवार की महिला को रसोई कनेक्शन देने का प्रावधान था। इसका दायरा बढ़ाकर इसमें सात नए सामाजिक समुदाय की महिलाओं को भी शामिल किया गया है। इसी दायरा विस्तार की वजह से निर्वाचित जनप्रतिनिधि (आदिवासी मुखिया) के परिवार की महिला को भी रसोई गैस कनेक्शन मुहैया नहीं हो सका था, क्योंकि जातीय-आर्थिक जनगणना में उनके परिवार का एएचएल नंबर उपलब्ध नहीं था। अब उज्जवला रसोई गैस कनेक्शन उस जनजाति, अनुसूचित जनजाति परिवार की महिला सदस्य को मिलेगा, जिसे प्रशासन की ओर से एससी-एसटी का प्रमाणपत्र निर्गत किया गया है। अब इस योजना में रसोई गैस कनेक्शन पाने की पात्र प्रधानमंत्री आवास योजना के लाभुक परिवार की महिला, अति पिछड़ा वर्ग (एनेक्सचर-1) परिवार की महिला, अन्त्योदय अनाज योजना के लाभुक परिवार की महिला और वनवासी होने के प्रमाणपत्र धारक परिवार की महिला भी हैं। दियारा क्षेत्र या द्वीपों (टीलों) पर बसे परिवारों की महिलाओं और चाय बगानों में कार्यरत श्रमिक महिलाओं या पूर्व श्रमिक महिलाओं को भी इस योजना के तहत रसोई गैस कनेक्शन देने का प्रावधान किया गया है।
उदय शंकर ने बताया कि देश भर में 20 अप्रैल को उत्सव के रूप में मनाए जाने वाले उज्जवला दिवस की थीम थी- कुछ सीखें, कुछ सिखाएं। उज्ज्वला एलपीजी पंचायत (20 अप्रैल) में कनेक्शन देने और वंचित वर्ग की महिलाओं को आमंत्रित कर कनेक्शन से समय बचत, सुरक्षा, स्वास्थ्य, बीमा आदि की जानकारी देकर प्रेरित किया गया। बहुत कम रसोई गैस उपभोक्ताओं को यह जानकारी है कि संबंधित दुर्घटना होने पर परिवार के हर प्रभावित सदस्य को 25 हजार रुपये तत्काल मदद मिलने, इलाज के लिए या संपत्ति नुकसान होने पर दो लाख रुपये तक क्षतिपूर्ति और मृत्यु होने पर छह लाख रुपये मुआवजा का प्रावधान है। रोहतास जिले में मौजूद तीनों गैस कंपनियों (आईओसी, एचपीसी, बीपीसी) की ओर से सनतकुमार पात्रा (आईओसी, क्षेत्रीय विक्रय अधिकारी) उज्जवला दिवस के नोडल अधिकारी थे।
उदय शंकर का मानना है कि गरीब परिवारों का पूरा जीवन ही मुख्य रूप से पेट भरने और भूख मिटाने के संसाधन जुटाने में ही गुजर जाता है। ऐसे परिवारों की लड़कियों को सबसे अधिक दुश्वारी झेलनी पड़ती है। लकड़ी के चूल्हे के कारण महिलाओं के फेफड़े में हर रोज 400 सिगरेट के बराबर धुआं प्रवेश करता है, जिससे उनका और उनकी पैदा होने वाली संतानों का भी स्वास्थ्य खराब रहता है। यदि उज्जवला योजना में कनेक्शन धारक को साल में 14.2 किलो वाला 12 रसोई गैस सिलेंडर के बजाय पांच किलो वाला 34 रसोई गैस सिलेंडर देने का प्रावधान हो जाए तो उपभोक्ता और बिक्रेता दोनों के लिए खरीद-बिक्री व परिवहन के लिहाज से काफी सहूलियत होगी। अति निर्धन परिवार के लिए 734 रुपये (सब्सिडी 242 रुपये सहित) के बजाय 279 रुपये (सब्सिडी 86 रुपये सहित) खर्च करना ज्यादा आसान है। मगर सरकारी निर्देश में फिलहाल 14.2 किलो सिलेंडर देने का ही प्रावधान है।
उज्ज्वला दिवस पर देश भर में एलपीजी पंचायत
इंडियन आयल कंपनी के क्षेत्रीय विक्रय अधिकारी सनद कुमार पात्रा के अनुसार, श्री पात्रा के अनुसार, रोहतास जिले में उज्जवला योजना के अंतर्गत लगी 29 एलपीजी पंचायतों में महिलाओं को न्यूनतम कनेक्शन देने का लक्ष्य प्राप्त नहीं किया जा सका। खुजरी गांव में लगी एलपीजी पंचायत में मोहनी इंटरप्राइजेज द्वारा 157 महिलाओं के आवेदन प्राप्त किए गए, जिनमें से 102 को स्थल पर ही कनेक्शन दिए गए। शेष आवेदनों पर जरूरी कागजातों से सत्यापन कर कनेक्शन दे दिए जाएंगे।
सनद कुमार पात्रा के अनुसार, समाज के आखिरी पायदान के अति निर्धन परिवार के लिए जारी उज्ज्वला योजना के आठ करोड़ कनेक्शन देने के महालक्ष्य को पाने के लिए ही केन्द्र सरकार के पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय ने देश भर में 20 अप्रैैल को उज्ज्वला दिवस का आयोजन किया गया, जिसमें पूरे देश में 15 हजार एलपीजी पंचायत लगाई गई। बिहार में 1080 एलपीजी पंचायत और रोहतास जिले में 29 एलपीजी पंचायत लगाई गई। देश में 31 दिसम्बर 2019 तक एक लाख एलपीजी पंचायत लगाई जानी है और हर एलपीजी पंचायत में कम-से-कम सौ एलपीजी कनेक्शन दिया जाना है। उज्ज्वला योजना के पर्यवेक्षण की हर जिले की जिम्मेदारी दूसरे राज्यों के आईएएस अफसरों को सौंपी गई है, ताकि सरकारी खानापूर्ति नहीं हो और बेहतर मानीटरिंग हो सके। रोहतास जिले की 12 रसोई गैस विक्रेता एजेंसियों को जिले के 22 गांवों को धुआंमुक्त बनाने लक्ष्य भी दिया गया है अर्थात लक्षित गांवों के हर घर में रसोई गैस कनेक्शन होगा।
(साथ में उपेन्द्र कश्यप, निशांत राज)
दांत उखाडऩे में नहीं, जमाए रखने में है डाक्टरी दक्षता : डा. अभिषेक
डेहरी-आन-सोन (रोहतास)-विशेष संवाददाता। दर्द देने वाले दांत को उखाडऩे में नहीं, बल्कि डाक्टर की दक्षता शरीर के इस महत्वपूर्ण अंग को जमाए रखने और मजबूत बनाए रखने में है। दांत उखाडऩा तो दंतक्षरण का अंतिम उपचार है। क्षतिग्रस्त दांत तभी हटाया जाना चाहिए, जब वह इतना अधिक नष्ट हो चुका हो कि उसे पुनस्र्थापित करना संभव नहीं हो।स्वस्थ मुंह में दांत के क्षरण का खतरा कम होता है। इसलिए दांतों की सफाई जरूरी है। आधुनिक उपकरणों से दांतों व मसूड़ों के भीतरी हिस्से की स्वच्छता को बेहतर बनाए रखा जा सकता है। मुंह का स्वस्थ होना और दांत का मजबूत होना सबसे जरूरी है, क्योंकि जीवन के लिए भोजन का आरंभिक प्रस्थान मुंह ही है। अगर दांतों में चबाने की क्षमता नहीं होगी तो भोजन पचाने की पहली प्रक्रिया ही कमजोर होगी। यह कहना है रूट कनाल विशेषज्ञ सर्जन युवा दंत चिकित्सक और ब्राइट स्माइल डेन्टल क्लिनिक के प्रबंध निदेशक डा. अभिषेक सिद्धार्थ का।
डा. अभिषेक सिद्धार्थ ने सोनमाटीडाटकाम को बताया कि दांतों की सुरक्षा के लिए बेहतर चिकित्सकीय उपकरणों की दरकार है और आधुनिक दंत चिकित्सा विज्ञान इसके लिए प्रयासरत है कि बेहतर, सटीक व किफायती उपकरण दांत के मरीजों के उपचार के लिए उपलब्ध हो सकेें। दांत का पोषण शरीर के अन्य अंगों के पोषण से थोड़ा अलग किस्म का है, इसलिए दांत की चिकित्सा थोड़ी महंगी है, क्योंकि बेहतर उपकरणों के बिना मरीजों की बेहतर चिकित्सा नहींहो सकती और उनके साथ चिकित्सकीय न्याय नहीं किया जा सकता। दंतक्षरण (क्षय या छिद्र) की बीमारी दांत की सख्त संरचना को क्षतिग्रस्त करती है। ऊतकों के टूटने से दातों में छेद हो जाते हैं। दांत की पुनस्र्थापना एन्डोडॉन्टिक उपचार (रूट कनाल) तब ज्यादा जरूरी है, जब दंतक्षरण मसूड़े की मांस तक पहुंच चुका होता है और जिसका उपचार सिर्फ दवाई से संभव नहीं हो। रूट कनाल विधि में दांत के क्षतिग्रस्त भाग (मांस, नस आदि) औजारों द्वारा साफ कर रबर जैसा पदार्थ भर दिया जाता है। रूट कनाल के बाद लगाए गए कृत्रिम दांत संवेदनहीन (सेंसलेस) होते है, क्योंकि इसमें सजीव ऊतक नहीं होता। और पेट में गैस बनता रहेगा, जो धीरे-धीरे अन्य बीमारी का कारण बन जाता है।
डेन्टल सर्जन डा. अभिषेक सिद्धार्थ :
युवा चिकित्सक डा. अभिषेक सिद्धार्थ डेहरी-आन-सोन (रोहतास) में इंडेन के बिहार में एक अग्रणी रसोई गैस वितरक मोहिनी इंटरप्राइजेज के प्रबंध निदेशक और समाजसेवी उदय शंकर के पुत्र हैं। डा. सिद्धार्थ पटना (बिहार) में कार्यरत कंसलटेन्ट इंडोडोन्टिस एवं डेन्टल सर्जन हैं। इनकी पत्नी डा. सुप्रिया भारती डेन्टल सर्जन एवं ओरल पैथोलाजिस्ट हैं और डा.बीआर अंबेडकर डेन्टल कालेज, पटना में असिस्टेन्ट प्रोफेसर हैं। डेहरी-आन-सोन में संचालित विश्वस्तर के आधुनिक उपकरणों से लैस ब्राइट स्माइल डेन्टल क्लिनिक में दोनों चिकित्सक युगल सप्ताह में दो दिनों (मंगलवार और बुधवार) का सघन समय दे रहे हैं।