अध्यात्मिक गुरु जीयर स्वामी ने सरांव गांव में आयोजित लक्ष्मीनारायण ज्ञान यज्ञ समारोह में कहा
सरांव, अकोढ़ी गोला (बिहार)-सोनमाटी समाचार। मानव जीवन उद्देश्यहीन नहींहोना चाहिए, क्योंकि उद्देश्यहीनता से समाज और देश को क्षति पहुंचती है। मंदिर में जाने और नदियों में स्नान करने से पाप नष्ट नहींहोते। पाप-कर्म का बोध आत्मज्ञान से होता है और आत्मबोध होने पर ही पाप नष्ट होता है। मनुष्य के पास सब कुछ है, पर विवेक नहींहै तो उसका जीवन बेकार है। यह विचार अध्यात्मिक गुरु जीयर स्वामी ने रोहतास जिले के अकोढ़ी गोला स्थित सरांव गांव में आयोजित लक्ष्मीनारायण ज्ञान यज्ञ समारोह को संबोधित करते हुए कही।
जीयस स्वामी ने भक्त और भक्ति की सविस्तार व्याख्या करते हुए बताया कि चार तरह के भक्त होते हैं। भक्तों की एक श्रेणी ऐसी है, जो धन, पद, वैभव, प्रतिष्ठा के बावजूद घमंड से मुक्त अर्थात सबके लिए सरलता से उपलब्ध और सरल हृदय वाला होता है। दूसरे प्रकार के भक्त ईश्वर से प्रेम करते हुए भक्त-मित्रों की चिंता नहींकरते। तीसरी श्रेणी के भक्तों में उनको माना जाता है, जो हवा के रुख के अनुरूप अर्थात जब जैसा तब वैसा के अंदाज में भक्ति-कर्म करते हैं। चौथी श्रेणी उन भक्तों की है, जो इस नीति में विश्वास रखते हैं कि न ऊधो का लेना, न माधो को देना अर्थात न काहू से दोस्ती और न काहू से दुश्मनी। प्रथम श्रेणी के भक्तों को ही श्रेष्ठ माना गया है।
उन्होंने कहा कि ईश्वर, धार्मिक संत और धर्मशास्त्र परीक्षण के नहीं, बल्कि श्रद्धा के विषय होते हैं। धार्मिक ज्ञान, दान और योग मनुष्य के जीवन को सुधारने वाले सर्विस टुल्स हैं। धर्म का अर्थ और व्यवहार बहुत ही व्यापक है और यह सदा याद रखना चाहिए कि आदमी का कार्य-व्यवहार अधार्मिक नहीं हो। धर्म जीवन में संतोष और शांति के लिए संदेश देता है।
( वेब रिपोर्टिंग : जगनारायण पांडेय)