बिन तारों की रात रे बादल बोलो चंदा किधर गया
एक बूंद छू कर निकल गया
अरे सावन इधर फिसल गय
जरा याद पिया को कर बन्दे
चंचल मन बावरा सकल गया
वो गांठ बांध कर बैठा है
मतलब से अपने ऐंठा है
मासूम निवाला डकार लिया
विष उसके भीतर पैठा है!
सावन तन-मन जलाए हाय बूंद बूंद को तरसाये
चाबियों के गुच्छे मन के ताले कहां खोलती
सबकुछ बंद है बस हौले हौले बोलती
चौखट के आर-पार उसी का स्वराज है
हक़ के हिसाब का दरवाजे नहीं खोलती
ताला बेचारा अपना राज नहीं जानता
महल और झोपडी का भेद नहीं मानता
चलता नहीं राज उसका मन के खजाने पर
मजलूम के खजाने को अपना है मानता!
तारे गाये बारात कि बादल डाका डाला
धरती प्यासी खेत प्यासा
बोल रे बादल तू है आशा
माथे हाथ किसान धरा है
मेघा का यह कैसा पासा
चकमा देकर आषाढ़ भागा
थोड़ा दर्द यह सावन दागा
किया निराश बरसात ऐसा
भूल गयी मिट्टी अनुरागा
– लता प्रासर
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