सुप्रीम कोर्ट का निर्णय : अयोध्या में रामलला विराजमान / डालमियानगर में चिकित्सा शिविर / पटना में सीताराम दीन जयंती

चार सौ सालों तक चला अयोध्या का विवाद

दिल्ली/अयोध्या/डेहरी-आन-सोन (बिहार)-सोनमाटी समाचार नेटवर्क। 70 साल तक चली कानूनी लड़ाई में 40 दिनों की लगातार मैराथन सुनवाई के बाद 09 नवम्बर को सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की पीठ ने सर्वसम्मति से रामलला विराजमान के पक्ष में ऐतिहासिक फैसला सुनाया। बाबरी ढांचे के नीचे 12वीं सदी का मंदिर होने के सबूत पर सुप्रीम कोर्ट ने विवादित भूमि पर मंदिर निर्माण का फैसला दिया। सुप्रीम कोर्ट ने केेंद्र सरकार को आदेश दिया कि सुन्नी वक्फ बोर्ड को अयोध्या में 05 एकड़ जमीन दे और निर्मोही अखाड़े को प्रतिनिधित्व देते हुए मंदिर निर्माण के लिए तीन महीने में ट्रस्ट बनाए। सुप्रीम कोर्ट नेइलाहाबाद हाई कोर्ट द्वारा जमीन को तीन पक्षों में बांटने के फैसले को अतार्किक करार दिया।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर कहा कि रामभक्ति हो या रहीमभक्ति, यह समय सभी के लिए भारतभक्ति की भावना को सशक्त करने का है। देशवासियों से मेरी अपील शांति, सद्भाव और एकता बनाए रखने की है। सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील जफरयाब जिलानी ने कहा कि वह फैसले का सम्मान करते हैं लेकिन संकेत दिया कि सुन्नी वक्फ बोर्ड फैसले के खिलाफ क्यूरेटिव या रिव्यू पिटिशन दाखिल कर सकता है। अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद एआईएमआईएम के नेता असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि मेरी निजी राय है कि मस्जिद के लिए 05 एकड़ की जमीन के आफर को खारिज कर देना चाहिए।
क्या है मुकदमा का इतिहास?
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 30 सितंबर 2010 को 2.77 एकड़ जमीन को सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और रामलला विराजमान के बीच बराबर-बराबर बांटने का आदेश दिया था। हाई कोर्ट के फैसला के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में 14 याचिकाएं दायर की गईं। सुप्रीम कोर्ट ने मई 2011 में हाई कोर्ट के फैसले की तामील पर रोक लगाने और विवादित स्थल पर यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया। इन 14 अपीलों पर लगातार सुनवाई हुई। इस बीच सुप्रीम कोर्ट ने मध्यस्थता के जरिए सुलझाने की सलाह भी दी, मगर बात नहीं बनी। अंतत: दोनों पक्षों के अलावा देशभर में यही राय बनी कि इसका फैसला सुप्रीम कोर्ट ही करे। अयोध्या में विवादित स्थल पर मालिकाना हक से जुड़े मामले में सुप्रीम कोर्ट में 16 अक्टूबर को सुनवाई पूरी हो गई और संवैधानिक पीठ ने इस मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया। अयोध्या जमीन विवाद मामला देश का सबसे लंबे चलने वाले मुकदमों में से एक है। इस विवाद की जड़ करीब चार सौ साल पहले तब रोपी गई, जब वहां मस्जिद का निर्माण हुआ। वर्ष 1528 में मुगल बादशाह बाबर ने मस्जिद बनवाया। हिंदु पक्ष का यह दावा रहा है कि यह भगवान राम की जन्मभूमि है, जहां पहले मंदिर था। 1853 में इस जगह के नजदीक पहली बार दंगा हुआ। 1859 में अंग्रेजी प्रशासन ने विवादित जगह के आस-पास बाड़ लगा दी और मुसलमानों को ढांचे के अंदर, हिंदुओं को बाहर चबूतरे पर पूजा करने की इजाजत दी गई।

देश की आजादी के बाद शुरू हुआ नया विवाद
वर्ष 1949 में नया विवाद तब शुरू हुआ, जब 23 दिसंबर 1949 को मस्जिद में भगवान राम की मूर्तियां पाई गईं। मुसलमानों ने आरोप लगाया कि रात में मूर्तियां वहां रख दी गईं। हिंदुओं ने कहा कि भगवान राम प्रकट हुए। यूपी सरकार ने मूर्तियां हटाने का आदेश दिया। जिला मजिस्ट्रेट केके नायर ने हिंदू-भावना भड़कने और दंगे के डर से आदेश को पूरा करने में असमर्थता जताई। तब सरकार ने वहां ताला लगा दिया। वर्ष 1950 में फैजाबाद सिविल कोर्ट में दो अर्जी दाखिल की गई। एक में रामलला की पूजा की इजाजत देने और दूसरे में विवादित ढांचे में भगवान राम की मूर्ति रखे रहने की इजाजत मांगी गई। 1959 में निर्मोही अखाड़ा ने तीसरी अर्जी दाखिल की। फिर 1961 में यूपी सुन्नी वक्फ बोर्ड ने अर्जी देकर मूर्तियां हटाने और कब्जा दिलाने की मांग की। 23 साल बाद 1984 में विवादित बाबरी ढांचा की जगह मंदिर बनाने के लिए विश्व हिंदू परिषद ने कमिटी बनाई।
हिन्दुओं को पूजा की इजाजत, गिरा दिया गया बाबरी ढांचा
यूसी पांडे की याचिका पर फैजाबाद के जिला न्यायाधीश केएम पांडे ने 01 फरवरी 1986 को हिंदुओं को पूजा करने की इजाजत देते हुए विवादित ढांचे से ताला हटाने का आदेश दिया। करीब सात साल बाद 06 दिसंबर 1992 को भारतीय जनता पार्टी, विश्व हिन्दू परिषद और शिवसेना सहित अन्य हिंदू संगठनों के लाखों कार्यकर्ता अयोध्या में जुटे। विवादित बाबरी ढांचा गिरा दिया गया। देश भर में हिंदू-मुस्लिम दंगा भड़का। 2002 में हिंदू कार्यकर्ताओं को ले जा रही ट्रेन में गोधरा में आग लगा दी गई। 58 लोगों की मौत हुई। फिर इस वजह से हुए दंगा में दो हजार से ज्यादा लोग मारे गए। 2010 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने विवादित स्थल को सुन्नी वक्फ बोर्ड, रामलला विराजमान और निर्मोही अखाड़ा के बीच बराबर-बराबर बांटने का आदेश दिया। 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या विवाद पर इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी।

6 अगस्त से रोजाना सुनवाई, 16 अक्टूबर को पूरी

छह साल बाद 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने आउट आफ कोर्ट सेटलमेंट का सुझाव दिया। भाजपा के शीर्ष नेताओं पर आपराधिक साजिश के आरोप बहाल किए गए। 08 मार्च 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने मामले को मध्यस्थता के लिए पैनल को आठ सप्ताह में कार्यवाही खत्म करने को कहा। 01 अगस्त 2019 को मध्यस्थता पैनल ने रिपोर्ट प्रस्तुत की। इसके बाद 02 अगस्त 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मध्यस्थता पैनल मामले का समाधान निकालने में विफल रहा। 6 अगस्त 2019 से सुप्रीम कोर्ट में मामले की रोजाना सुनवाई शुरू की, जो 16 अक्टूबर 2019 को पूरी हुई।

(रिपोर्ट, तस्वीर : कृष्ण किसलय, निशांत राज और सोनमाटी समाचार नेटवर्क)
1. फैसले के बाद अयोध्या, 2. अयोध्या राममंदिर कार्यशाला, 3. डेहरी-आन-सोन में पूर्व विधायक प्रदीप जोशी और पूर्व विधायक रश्मि जोशी।

400 का नेत्र परीक्षण, अगले सप्ताह लेंस के साथ मुफ्त आपरेशन

डेहरी-आन-सोन (रोहतास)-कार्यालय संवाददाता। जमुहार स्थित नारायण चिकित्सा महाविद्यालय एवं अस्पताल (एनएमसीएच) की ओर से डालमियानगर बंगाली क्लब में मोतियाबिंद पीडि़त मरीजों के लिए निशुल्क चिकित्सा शिविर का आयोजन किया गया, जिसमें 400 से अधिक लोगों का नेत्र परीक्षण किया गया। 60 से अधिक लोगों को आपरेशन के योग्य पाया गया, जिनका अगले सप्ताह (एनएमसीएच) में आपरेशन किया जाएगा और लेंस लगाया जाएगा, जो निशुल्क होगा। शिविर में अलग काउंटर पर आयुष्मान भारत योजना के अंतर्गत गोल्डन कार्ड भी बनाया गया। गोल्डन कार्ड धारकों का पांच लाख रुपये तक इलाज निशुल्क करने का प्रावधान है।
(रिपोर्ट : भूपेन्द्रनारायण सिंह, पीआरओ, एनएमसीएच)

सीताराम दीन जयंती पर कविगोष्ठी

पटना (सोनमाटी प्रतिनिधि)। डा. सीताराम दीन कबीर साहित्य के विद्वान, बड़े अध्येता और हृदय को झंकृत करने वाले कवि थे। यह बात बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के सभागार में दीन जयंती समारोह और कवि सम्मेलन के अवसर पर विद्वान वक्ताओं ने कही। समारोह का उद्घाटन पटना विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डा. एसएनपी सिन्हा, नृपेन्द्रनाथ गुप्त ने किया और अध्यक्षता साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष डा. अनिल सुलभ ने की। बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के साहित्य मंत्री के रूप में भी उन्होंने सेवाएं दी थीं। डा. दीन की पुत्री डा. मंगला रानी ने अपने पिता के व्यक्तित्व-कृतित्व पर प्रकाश डाला। इसके बाद मृत्युंजय मिश्र करूणेश की गजलों से कवि-गोष्ठी का आरंभ हुआ। डां शंकर प्रसाद, कवयित्री सविता मिश्र माधवी, डा. विजय प्रकाश, पूनम श्रेयसी, ओम प्रकाश पांडे, मीना कुमारी परिहार, पूनम आनंद, जनार्दन मिश्र, घनश्याम, प्रभात कुमार धवन, जय प्रकाश, डा. शालिनी पांडेय, सिद्धेश्वर, राजेन्द्र प्रसाद सिंह, उषा सिन्हा, बीएन विश्वकर्मा, डा. अर्चना त्रिपाठी, पूनम सिंह श्रेयसी, राजकुमार प्रेमी, शहनाज फातमी, श्रीकांत सत्यदर्शी, पूनम आनंद, सुधा सिन्हा, सुनील कुमार दुबे, बिंदेश्वर प्रसाद गुप्ता, बच्चा ठाकुर, माधुरी लाल आदि ने अपनी रचनाओं का पाठ किया। मंच संयोजन योगेन्द्र प्रसाद मिश्र ने किया और अंत में कृष्णरंजन सिंह ने धन्यवाद ज्ञापन किया।
(रिपोर्ट : सिद्धेश्वर)

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