सत्याग्रह कर सरकार से की गई मदद की अपील
सासाराम (रोहतास)-कार्यालय प्रतिनिधि। प्राइवेट स्कूल्स एंड चिल्ड्रेन वेलफेयर एसोसिएशन के आह्वान पर प्रदेश के सभी जिलों में निजी विद्यालयों के संचालकों ने समाहरणालयों के समक्ष सत्याग्रह कर जिलाधिकारी के माध्यम से राज्य सरकार को आठ सूत्री मांगों का ज्ञापन सौंपा। इस सिलिसिले में एसोसिएशन के प्रदेश महासचिव डा. एसपी वर्मा के नेतृत्व में रोहतास जिला समाहरणालय के सभी उन्नीसो प्रखंडों के निजी विद्यालयों के संचालकों ने भी सत्याग्रह किया और जिलाधिकारी को ज्ञापन सौंपा। सत्याग्रह में रोहतास जिला के अध्यक्ष रोहित वर्मा, उपाध्यक्ष सुभाष कुमार कुशवाहा, सचिव समरेंद्र कुमार समीर, सह सचिव संग्राम कांत, महामंत्री अनिल कुमार शर्मा सुनील कुमार, संजय त्रिपाठी, कोषाध्यक्ष कुमार विकास प्रकाश, संयोजक धनेन्द्र कुमार, जनसंपर्क पदाधिकारी दुर्गेश पटेल आदि के साथ प्रखंड अध्यक्षों अरविंद भारती (डिहरी), दिनेश्वर तिवारी (चेनारी), अजय सिंह (नासरीगंज), सुनील कुमार (काराकाट), अनिता देवी (विक्रमगंज), यमुना चौधरी (राजपुर), सत्येंद्र कुमार (दिनारा), तेजनारायण पटेल (सासाराम), अजित कुमार पटेल (करगहर), श्यामसुंदर सिंह (संझौली), शिवयश पाल (सूर्यपुरा), विश्वजीत कुमार (दावथ), चंदनकुमार राय (शिवसागर), अशोक पाल (अकोढ़ीगोला) के नेतृत्व में स्कूल संचालकों ने भाग लिया।
स्कूलों के लिए राहत पैकेज घोषित करे सरकार : डा. एसपी वर्मा
एसोसिएशन के प्रदेश महासचिव डा. एसवी वर्मा ने बताया कि सौंपे गए ज्ञापन में कोविड-19 के कारण बंद निजी स्कूलों के संचालकों की आर्थिक रीढ़ टूट चुकी है। लाखों शिक्षक-कर्मचारी स्कूल खुलने की प्रत्याशा में बेरोजगार और उनके परिवार भुखमरी के शिकार बने हुए हैं। केंद्र सरकार ने विद्यालयों को खोलने से संबंधित दिशानिर्देश राज्य सरकारों को दिया गया है। राज्य सरकार की ओर से स्कूलों के भौतिक संचालन की घोषणा की प्रतीक्षा है। स्कूलों पर वेतन के अलावा भवन ऋण, किराया, बैंक ऋण-ब्याज, गाडिय़ों की किस्त, बीमा किस्त, व्यावसायिक टैक्स, मेन्टेन्स आदि मासिक खर्चों का बोझ है। जबकि आय का अभाव है। इससे स्कूलों के प्रबंधक, शिक्षक, कर्मचारी अत्यंत मानसिक तनाव में हैं। सरकार की ओर से दिशा-निर्देश नहीं होने की वजह से अभिभावकों और विद्यालयों के बीच तनाव की स्थिति है। मार्च से निजी विद्यालय बंद है। ऊपरी कक्षाओं में आनलाइन पढ़ाई की जाती रही है और इससे जुड़े शिक्षक-शिक्षिकाओं-कर्मचारियों का वेतन भुगतान भी होता रहा है। फिर भी मोबाइल, लैपटाप या डेस्कटाप के जरिये आनलाइन कक्षा की चुनौतियां और सीमाएं हैं। अभिभावकों की ओर से विद्यालयों को लगभग नहीं के जैसा शुल्क भुगतान होता रहा है। निजी विद्यालय दिवालिया होने के हालत तक पहुंच चुके हैं। कई वर्षों से शिक्षा के अधिकार के मद की राशि निजी विद्यालयों को नहीं दी गई है। जबकि बीते वर्षों में निजी विद्यालयों ने सरकार की शिक्षा निति के अनुसार गरीब विद्यार्थियों को शिक्षण देने का कार्य किया है। सरकार इस मद की राशि निजी विद्यालयों को भुगतान कर दे तो थोड़ी राहत मिल सकती है। सरकार विभिन्न टैक्स, बैंक ब्याज, बीमा किस्त, भवन किराया माफ करने का आदेश जारी करे। विद्यालयों की पुनस्र्थापना और लाखों शिक्षक-शिक्षिकाओं-कर्मचारियों के लिए उचित राहत पैकेज की घोषणा करे।
मिट्टी पर बनती रही है लिट्टी, फूड फार सरवाइल की यह रेसेपी
बक्सर (कार्यालय प्रतिनधि)। पंचकोसवा में मनाया जाना वाला सामूहिक पिकनिक (वनभोज) देश-दुनिया में अपनी तरह का अनोखा मेला है, जहां लोग एक तरह की ही रेसिपी (भोजन) बनाने-खाने के लिए जुटते हैं। पूरा बक्सर शहर और आसपास के गांवों के लोग इस पिकनिक में शामिल होते हैं। जो परिवार पिकनिक में नहीं जा पाता, वह अपने घर में लिट्टी-चोखा पकाता-खाता है। इस पिकनिक (मेला) की विशालता का अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि बक्सर में एक करोड़ रुपये तक की गोबर के कंडा (गोइठा) की बिक्री इस दौरान होती है। जाहिर है कि गोइठा का इस्तेमाल लिट्टी पकाने के लिए ही होता है। कहावत है- माई बिसरी, बाबू बिसरी, पंचकोसवा के लिट्टी-चोखा ना बिसरी। किंवदंति है कि यह मेला महर्षि विश्वामित्र के साथ राजकुमार राम-लक्ष्मण यहां के चरित्रवन में आए थे और उन्हें एक दिन लिट्टी-चोखा पकाकर खिलाया गया था। इसी प्रसंग की स्मृति में बक्सर में पांच दिनों का पंचकोसी मेला का आरंभ होता है, जिसका समापन बक्सर के चरित्रवन में होता है। चरित्रवन में लिट्टी-चोखा का मेला लगता है। भले लिट्टी-चोखा आज देश की राजधानी के पांचसितारा होटलों का भी व्यंजन बन चुका हो, मगर बिहार सरकार के पर्यटन विभाग की सूची में यह मेला शामिल नहींहै। संभवत: यह देश-दुनिया में अपनी तरह का अनोखा पिकनिक मेला है।
मौर्यकाल में बना सैनिकों का भोजन :
लिट्टी को फूड फार सरवाइवल की विशेषता हासिल रही है। पावरोटी की तरह ही लिट्टी-चोखा युद्ध और लंबी यात्रा का भोजन रहा है। जहां पावरोटी की ईजाद आधुनिक काल में यूरोप में हुई, वही लिट्टी भारत में प्राचीन काल से प्रचलन में रहा है। मौर्य काल में लिट्टी का चलन खूब हुआ। एक ऐतिहासिक जिक्र है कि मगध देश के लड़ाके किसान यूनानियों की सेना में भी भाड़े पर जाते और अपने किराये के मालिक के लिए जान तक देते थे। संभवत: उसी दौर में देशी सैनिकों के लिए लिट्टी खूब चलन में आया था। यह स्वादिष्ट, सुपाच्य, बिना बर्तन-चूल्हा जमीन पर बनाया जाने वाला ऐसा भोजन था, जो कई दिनों तक खराब नहींहोता था। पहले लिट्टी सादी थी। बाद में घी जुड़ा और चोखा। मुगल काल में इसके साथ मांस खासकर बकरे के पाया (गोड़ी) का रसदार रेसेपी जुड़ी। 1857 के विद्रोह में क्रांतिकारी सैनिकों द्वारा लिट्टी-चोखा खाने का जिक्र है। तात्या टोपे और झांसी की रानी ने इसे सैनिकों के खाने के तौर पर चुना। यह राजस्थान की बाटी-चूरमा जैसा है।
भूतपूर्व अधिवक्ता की पुंयतिथि
हाजीपुर (सोनमाटी संवाददाता)। स्थानीय चित्रगुप्त घाट स्थित चित्रगुप्त मंदिर परिसर के चित्रांश सामुदायिक सभागार में स्वर्गीय अधिवक्ता अनील तेतरवे की पुंयतिथि कायस्थ महासभा के राष्ट्रीय महामंत्री रंजीत श्रीवास्तव की अध्यक्षता में मनाई गई। कार्यक्रम का संचालन मंदिर समिति के सचिव प्रतीक यशस्वी ने किया। स्वर्गीय तेतरवे के चित्र पर माल्यार्पण करने वालों में मंदिर समिति के अध्यक्ष डा. रंजन कुमार, पंचायत समिति सदस्य पुनीत गुड्डू, पंकज सिन्हा, चुन्नू प्रसाद श्रीवास्तव, सुरेंद्र प्रसाद श्रीवास्तव, रविभूषण श्रीवास्तव आदि शामिल थे। धन्यवाद ज्ञापन संदीप कुमार छोटू लाला ने किया।