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  • 'भारत के सोन नदी अंचल के अग्रणी न्यूजपोर्टल sonemattee.com में जन्मदिन विशेष अदम गोंडवी ------------------------------------- नागार्जुन-त्रिलोचन-केदार जैसे जनकवियों ने जो अलख जगाई थी, उस परंपरा को आगे बढ़ाने का काम प्रसिद्ध जनकवि अदम गोंडवी और गोरख पांडेय जैसे कवियों ने ही किया। दिल्ली से वीणा भाटिया की प्रस्तुति- हिन्दू या मुस्लिम के अहसासात को मत छेड़िए। अपनी कुर्सी के लिए जज़्बात को मत छेड़िए। हममें कोई हूण कोई शक कोई मंगोल है। दफ़्न है जो बात अब उस बात को मत छेड़िए। अदम गोंडवी की यह गज़ल आज के समय में पूरी तरह मौजू हैं। यही नहीं, अपनी रचनाओं के माध्यम से वे हमारे समय की उन चुनौतियों से दो-चार होते हैं, जो आने वाले समय में मानवता के भविष्य को तय करेंगी। दुष्यंत कुमार के बाद अदम गोंडवी वे पहले शायर हैं, जिन्होंने जनता से सीधा संवाद स्थापित किया। वे कबीर की परंपरा के कवि हैं फक्कड़ और अलमस्त। कविता लिखना उनके लिए खेती-किसानी जैसा ही सहज कर्म रहा। अदम गोंडवी उन जनकवियों और शायरों में अग्रणी हैं, जिन्होंने कभी प्रतिष्ठान की परवाह नहीं की और साहित्य के बड़े केंद्रों से दूर रहकर जनता के दुख-दर्द को स्वर देते रहे, अन्याय और शोषण पर आधारित व्यवस्था पर प्रहार करते रहे। लगभग ढाई दशक पहले एक साहित्यिक पत्रिका में इनकी ग़ज़लें प्रकाशित हुई थीं- काजू भुने प्लेट में व्हिस्की गिलास में, उतरा है रामराज विधायक निवास में, पक्के समाजवादी हैं तस्कर हों या डकैत, इतना असर है खादी के उजले लिबास में। हिंदी ग़ज़ल में यह एक नया ही स्वर था। सीधी-सीधी खरी बात, शोषक सत्ताधारियों पर सीधा प्रहार। प्राइमरी तक शिक्षा प्राप्त और जीवन भर खेती-किसानी में लगे अदम गोंडवी ने ज्यादा तो नहीं लिखा, पर जो भी लिखा वह जनता की ज़बान पर चढ़ गया। प्रसिद्ध आलोचक डॉ. मैनेजर पांडेय ने उनके बारे में लिखा है- कविता की दुनिया में अदम एक अचरज की तरह हैं। अचरज की तरह इसलिए कि हिंदी कविता में ऐसा बेलौस स्वर तब सुनाई पड़ा था, जब कविता मज़दूरों-किसानों के दुख-दर्द और उनके संघर्षों से अलग-थलग पड़ती जा रही थी। पूरा आलेख पढ़ें-देखें- sonemattee.com में'

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  • Krishna Kisalay's photo.

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  • 'sonemattee.com में अब मिल जाएगी मुनिया को जमीन -------------------------------------------- सोनमाटीडाटकाम की खबर का असर, सीओ आफिस से बना कागजात, एसडीएम कार्यालय से एक हफ्ते में प्रक्रिया पूरा होने का आश्वासन सवाल : कैसे मिलेगी मुनिया को जमीन? इस शीर्षक से सोनमाटीडाटकाम में खबर फ्लैश हुई थी। इस खबर पर बिहार के औरंगाबाद जिले के हसपुरा स्थित संवाददाता ने यह जानकारी दी है कि प्रखण्ड विकास पदाधिकारी ने संज्ञान में लेकर अंचलाधिकारी से जमीन उपलब्ध कराने के कागजात बनवा दिया है। अब अनुमण्डल कार्यालय स्तर काम रह गया है, जिसकी प्रक्रिया एक सप्ताह में पूरी हो जाने का आश्वासन हसपुरा के बीडीओ ने दिया है। सोन अंचल के ग्रामीण क्षेत्र के लोग इसे उपलब्धि मान रहे हैं। इसके लिए बीडीओ, हसपुरा सोनमाटी परिवार की ओर से धन्यवाद के पात्र हैं। 06 अक्टूबर को जो खबर प्रसारित हुई, वह नीचे दी जा रही है- बिहार के औरंगाबाद जिले के हसपुरा प्रखंड अंतर्गत रतनपुर ग्राम की विधवा मुनिया देवी के लिए इंदिरा आवास बनाने की सारी प्रक्रिया पूरी हो चुकी है और उसके बैंक खाते में रकम भी आ गई है। मगर मुनिया के पास अपनी जमीन ही नहीं है। वह तो सड़क किनारे झोपड़ी डालकर वर्षों से किसी तरह अपना जीवन बसर कर रही है। जमीन के लिए गांव के सरपंच ने अंचलाधिकारी से कई बार संपर्क कर चुके हैं। अब तक सिर्फ आश्वासन ही मिला है। मुनिया देवी जिलाधिकारी के जनता दरबार में भी अपना दुखड़ा सुना चुकी है। उसका आवेदन ले लिया गया है, जो व्यवस्था के मुताबिक फिर अंचलाधिकारी के पास ही अग्रसारित कर दिया जाएगा। पिछले वर्ष ठंड के मौसम में मुनिया देवी के पति की मृत्यु इलाज के अभाव में हो गई। स्थानीय लोगों एवं सामाजिक कार्यकर्ताओं ने दाह-संस्कार एवं ब्रह्मभोज तक के खर्च का इंतजाम किया था। फिलहाल मुनिया देवी जिलाधिकारी को दिए गए आवेदन की छाया प्रति लेकर अपने बच्चों के साथ दरवाजे-दरवाजे भटक रही है कि शायद जमीन देन-दिलाने वाला कोई मददगार मिल जाए और खुले आकाश के नीचे उसका भी अपना छत (आवास) हो जाए। (वेब रिपोर्टिंग : शंभुशरण सत्यार्थी)'

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  • 'sonemattee.com में –एक कविता पाकिस्तान से– फूलों जैसी धरती पर नशे का बिछा दिया जाल कब्रों-सा हो गया मेरे पंजाब का हाल नशे की लत में घुलते रिश्तों पर जुल्म हैं करते बोलना भी हो गया कहर फैलता नशे का जहर कब्रों-सा हो गया मेरे पंजाब का हाल बाप के मोह से दूर माँ को भी गए भूल भगत सिंह के सच्चे वारिस चिट्टे में हो गए धूल जिधर देखें हर कोई फंसा लालच का बिछा है जाल कब्रों-सा हो गया मेरे पंजाब का हाल मिट्टी में जहर घुल गया कर्जे में भी वो फंस गया पेट जगत का भरने वाला देखो खुद भूखा मर गया मजबूरी के साथ लड़ता हाल हुआ उसका बेहाल कब्रों-सा हो गया मेरे पंजाब का हाल ऐसा हाल अगर रहा सब खत्म हो जाएगा हरा-भरा पंजाब मेरा पतझड़-सा हो जाएगा रूह देखो काँप जाए आए जब भी ये ख्याल कब्रों-सा हो गया मेरे पंजाब का हाल़ (कवि : सरदार जसपाल सूद, फैसलाबाद, पाकिस्तान, अनुवाद : वीणा भाटिया, नई दिल्ली, भारत) Poet – Sardar Jaspal Soos, Faisalabad, Pakistan Translator – Vina Bhatia, New Delhi, India'

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  • 'जिधर जवानी चलती है, इतिहास उधर ही बढ़ता है ---------------------------------------------------------- सोम प्रकाश बिहार के ऐसे शख्स हैं, जो व्यवस्था से विद्रोह कर दारोगा की सरकारी और दबदबे वाली नौकरी छोड़ सियासत के दुर्घष पथ पर 2010 में निहत्थे कूद पड़े थे। निहत्थे से आशय यह है कि संगठित, दलगत राजनीति के मुकाबले उनका राजनीतिक युद्ध बिना किसी दलीय शक्ति या विचारधारा रहित निर्दलीय योद्धा का था। उनकी शक्ति थी, जनता से स्थानीय जुड़ाव और नौकरी में रहते हुए बिहार के सोन अंचल के पिछड़े इलाके में शिक्षा विस्तार की ज्योति जलाने वाले समाजसेवक जैसी छवि। तब वह बिहार के औरंगाबाद जिले के ओबरा में थानाध्यक्ष थे। एक अपहरण कांड में अपने थाना क्षेत्र के शराब-बालू माफिया को गिरफ्तार करने के कारण उन्हें लाइन हाजिर कर दिया गया था। जाहिर है कि पुलिस की निश्चित और पदोन्नति की संभावनाशील नौकरी छोड़कर राजनीति का अनिश्चित कंटीला मार्ग अख्यितार करना सियासत व नौकरशाही की गठजोड़ के विरुद्ध जंग का ऐलान ही था। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के अंडर करंट के बावजूद वे निर्दलीय विधायक के रूप में विजयी हुए थे। इनकी जीत के बाद हैदराबाद नेशनल पुलिस अकादमी ने इस कारण की पड़ताल करने की कोशिश की थी कि किस कार्य, आचरण या व्यवहार से सोम प्रकाश पुलसिया छवि के बावजूद जनता में लोकप्रिय हुए थे। 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में सोम प्रकाश चुनाव जीत नहींसके। वह फिर चुनाव लडऩे की तैयारी में हैं और स्वराज पार्टी (लो.) के बैनर तले अपने संगठन को विस्तार देने में जुटे हुए हैं। इसी क्रम में उन्होंने रोहतास जिले के नासरीगंज हाई स्कूल परिसर में युवाओं की बड़ी बैठक की। विस्तृत रिपोर्ट भारत के सोन नद अंचल के अग्रणी न्यूजपोर्टल sonemattee.com में'

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