आवाज गूंज उठी ! (आंचलिक रंगमंच का जासूसी नाटक) : नाटककार कृष्ण किसलय

राष्ट्रीय पृष्ठभूमि पर आधारित 20वींसदी के आठवें-नौवें दशक के आंचलिक रंगमंच का मातृभूमि के लिए बलिदान और धर्म, राजनीति के छल-प्रपंच को उजागर करने की कथा वाला जासूसी नाटक

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(चालीस साल बाद प्रकाशन)

यह नाटक पहली बार 1977 में सैनिक दिवस पर 07 दिसम्बर को रंगमंच पर मंचस्थ हुआ था। निर्देशन तब शहर डेहरी-आन-सोन के डिलियां नहर टोला पर रहने वाले स्व. विशू दादा (वाराणसी विश्वनाथ मंदिर) ने किया था। सह निर्देशन, रूप-सज्जा जोड़ा मंदिर के स्व. ललन भारती की थी।

लेखक की  बात : यादों के झरोखे से
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20वींसदी के आठवें दशक में बिहार के सोन नदी के तट पर स्थित शहर डेहरी-आन-सोन और इसके आस-पास के आंचलिक (ग्रामीण) इलाके में रंगमंच (अस्थाई) पर होने वाले नाटकों में धार्मिक, ऐतिहासिक और डाकू प्रधान विषयों का बोलबाला था। उस समय कोई सात-आठ साल सक्रिय रहे जोड़ा मंदिर मुहल्ले के तरुणों-युवकों के जय जवान संघ ने अलग तरह के नाटकों का मंचन किया था, जिनमें भारतीय राजनीति में प्रवेश कर चुके छल-प्रपंच, भ्रष्टाचार, धर्म की आड़ में लूट-खसोट और मातृभूमि के लिए शहादत को रेखांकित करने वाला नाटक आवाज गूंज उठी भी था। तब लेखक (मेरी) की उम्र 20-21 साल थी। चार दशक से अधिक समय बाद नाटक उसी रूप में प्रकाशित हो रहा है, जिस रूप में प्रथम मंचन हुआ था। 20वीं सदी के बीते दौर की राष्ट्रीय पृष्ठभूमि के जासूसी नाटक आवाज गूंज उठी की कथावस्तु आज भी प्रासंगिक है। इसमें रूप में कोई बदलाव नहीं किया गया है, ताकि इसका महत्व धरोहर के रूप में बना रहे और उस वक्त के समाज की युवा मन:स्थिति को समझा जा सके। सिर्फ कोई-कोई शब्द, वर्तनी, व्याकरण आदि ठीक किए गए हैं।

हिन्दी समाचार-विचार पत्र सोनमाटी के संपादन-प्रकाशन, प्रिंटिंग प्रेस (फैक्ट्री एक्ट के तहत पंजीकृत रोहतास प्रिंटिंग एंड बाइंडिंग वर्क्स) के संचालन और फिर दैनिक पत्रकारिता (आर्यावर्त, नवभारत टाइम्स, अमर उजाला, दैनिक जागरण, दैनिक प्रभात आदि में जिला संवाददाता से संपादक की जिम्मेदारी तक) की व्यस्तता में नाटक, कहानी, कविता, उपन्यास लिखने का मेरा आरंभिक सघन श्रम ऐसा छूटा कि कथा लेखन की उस पटरी पर मैं फिर वापस नहीं लौट सका। कहानी, कविता, निबंध तो छिट-पुट ही पत्र-पत्रिकाओं में और आकाशवाणी, पटना से प्रकाशित-प्रसारित हुईं। भारत के प्रसिद्ध रोहतास इंडस्ट्रीज, डालमियानगर के कारखानों के बंद हो जाने से इस पर आश्रित प्रिंटिंग प्रेस की पूंजी, कारोबार डूब जाने के कारण मुझे 2001 में 43 साल की उम्र में घर से बाहर निकलकर वाराणसी, देहरादून, आगरा, मेरठ में अखबारों के संपादकीय विभाग में नौकरी करनी पड़ी।

तरुणों के लायक साइंस फिक्शन (उपन्यास) धरती का शैतान भी प्रकाशित नहीं हुआ, जिसे मैंने शायद हिंद पाकेट बुक्स को ध्यान में रखकर या किसी अन्य प्रकाशक के लिए लिखा था, मगर उसे दुबारा मांज नहीं सका। धरती का शैतान की पांडुलिपि के प्रथम पाठक तब जासूसी उपन्यासों के धुंआधार पढ़ाकू रहे चंद्रवंशी गोपाल प्रसाद (जोड़ा मंदिर) ने कहा था- यह रोचक है, लगता नहीं कि नए लेखक ने लिखा है। हालांकि वह कथावस्तु से प्रभावित थे। मेरा लेखन शिल्प तो तब अपने आरंभिक दौर में अनाड़ी था ही। करीब चार दशक बाद मुझे पता नहीं है कि इसकी (धरती का शैतान), लघु नाटक समस्याएं, और अन्य रचनाओं की पांडुलिपी किस हाल में हैं? प्रकाशित और अप्रकाशित सामग्री के बंडलों में उन्हें ढंूढना बाकी है। तब (1977) तक मेरा सामाजिक विषय वाला नाटक समाज ने क्या दिया प्रकाशित हो चुका था, जिसकी चर्चा प्रतिष्ठत पत्र-पत्रिकाओं में हुई थी और तीन साल बाद इसका दूसरा संस्करण भी प्रकाशित हुअा, जिसका वितरण उज्ज्वल प्रकाशन, इलाहाबाद ने किया था। इस नाटक का मंचन बिहार के दक्षिणी छोर डेहरी-आन-सोन (रोहतास) से उत्तरी छोर के राष्ट्रपति डा. राजेन्द्र प्रसाद के गांव जीरादेई (छपरा) तक के ग्रामीण रंगमंच पर हुआ था।

यहां आपरेशन गूंज की पहली पांडुलिपि प्रस्तुत है, जिसमें दोष यह रहा है कि दृश्य छोटे-छोटे हैं। इससे दृश्य-परिवर्तन का इंतजाम तेजी से करने और दृश्य-परिवर्तन का प्रभाव बाधक व्यवधान झेलने की मजबूरी जुड़ी है। इस नाटक का दूसरी बार हुए मंचन के संवादों वाले पन्ने नहींमिल सके और दृश्यों में बदलाव वाली दूसरी पांडुलिपि भी अधूरी ही मिली है। पात्रों के संवाद-विस्तार से दृश्य-अवधि नहीं बढ़ाने की वजह से नाटक पुस्तक रूप में प्रकाशित नहीं हुआ, क्योंकि तब एक बार फिर नाटक का मंचन कर रंगमंच की निरंतरता के हिसाब से परीक्षण कर लेने की योजना थी। अभिनय के पात्रों के अभाव में परीक्षण मंचन जब दो-तीन साल बाद संभव हो सका, तब नाटक का नाम बदल दिया– आवाज गूंज उठी।

  • कृष्ण किसलय, नाटककार
    (तस्वीर : 1977, 2017)

आवाज गूंज उठी ! (नाटक आरम्भ)

नेपथ्य से आवाज आ रही है- ‘असतो मा सद्गम्य, तमसो मा ज्योतिर्गम्य, मृत्योर्मा अमृतम्गम्य…।Ó
रंगमंच का पर्दा धीरे-धीरे उठता है। तालियों की गडग़ड़ाहट और जयघोष होती है। मंच पर आंखें मुंदे हुए ध्यान की मुद्रा में बैठा स्वामी सत्यानंद होठों से संस्कृत के श्लोक का उच्चारण धीमे स्वर में करने के बाद व्याख्यान देने की मुद्रा में आता है।

स्वामी सत्यानंद : आज मैं आत्मा पर प्रवचन दूंगा। मानव जीवन में अंतिम महत्वपूर्ण अपरिहार्य पक्ष है मृत्यु। मनुष्य के अंतिम समय में उसकी आत्मा की जो दशा होगी, वह अनंत काल तक बनी रहेगी। यदि मेरी आत्मा उस घड़ी परमेश्वर की मित्रता में है तो वह अनंत काल तक परमेश्वर का मित्र बनी रहेगी। यदि परमेश्वर को अप्रसन्न कर उससे अलग हो गई है तो अनंत काल तक वह अलग ही बनी रहेगी। अर्थात, वह अनंत काल तक स्वर्ग में या नरक में निवास करेगी। इस संसार से, इस मृत्युलोक से मनुष्य की अंतिम यात्रा इतनी महत्वपूर्ण है कि परमेश्वर ने इसका निर्धारण मनुष्य से मिलने की एक विशेष मिलन-पल, विलय-बिन्दु के रूप में किया है।
(मंच के एक कोना से पिस्तौल लिए काला दस्ताना वाला हाथ बाहर निकलता है। धाय…! गोली चलने का धमाका होता है। हाथ गायब हो जाता है। गोली पुजारी के कंधे में लगती है। वह मंच पर तड़पता नजर आता है। मंच पर रोशनी धीरे-धीरे धीमी होती जाती है। बीच का पर्दा गिरता है। पात्र-परिचय प्रस्तुत होने के बाद दृश्यांतर।)

दृश्य : एक

सीआईडी इंस्पेक्टर प्रकाश चहलकदमी कर रहा है। थका हुआ सब-इंस्पेक्टर शमशेर ंिसंह मेज के सहारे उढ़का नींद के झोंके भी ले रहा है।
प्रकाश : (स्वगत) मेरी समझ में नहींआ रहा, इतने बड़े धर्माचार्य की हत्या की साजिश करने का राज आखिर क्या हो सकता है?
शमशेर : (चौंककर) जी, सर, जी सर…।
प्रकाश : वह व्यक्ति जो सबके कल्याण की बात करता हो, सबके मित्र होने का विचार रखता हो, उसे मारने की योजना? क्यों? क्या है रहस्य? क्या है?
शमशेर : जी सर, जी सर… (फिर उंघता है)।
इं. प्रकाश : यह घटना देश-समाज में मजहबी दंगा पैदा कर सकती है। यह चिंगारी आग की भयानक लपटों में बदल सकती है।
शमशेर : (अपने को संभाल कर) सर, मुझे तो लगता है कि धर्म उपदेशक की हत्या की कोशिश करने में किसी पेशेवर गुंडा का हाथ है। हजारों लोगों की मौजूदगी में एक बड़ी भीड़ के बीच कोई पेशेवर कातिल ही दुस्साहस कर गोली चला सकता है।
प्रकाश : आपका अनुमान सही है। लेकिन अहम सवाल यह है कि गोली चलाने वाले ने अपनी मर्जी से गोली चलाई या उसने किसी की योजना के अनुसार ऐसा किया?
शमशेर : सर, मेरी समझ से व्यक्तिगत दुश्मनी, वह भी स्वामी सत्यानंद जैसे संत से, इसका तुक नजर नहींआता।
प्रकाश : एक काम करना पड़ेगा।
शमशेर : वह क्या, सर?
प्रकाश : सबसे पहले हत्या करने वाले शूटर अपराधियों की छानबीन करनी होगी। उनकी गुजरी गतिविधियों की ठीक-ठीक, गहराई और बारीकी से जानकारी हासिल करनी होगी कि गोली चलाने के दिन और उससे पहले उनकी स्थिति क्या थी, वे कहां थे?
शमशेर : गुड आइडिया, सर।
प्रकाश : इसमें हमें काफी श्रम करना होगा। समय भी लगेगा। सूझबूझ से काम लेना है। भनक नहींलगनी चाहिए कि हम छानबीन किसलिए कर रहे हैं? चलिए, इस काम में हमें अभी से ही जुट जाना है।
शमशेर : जी, सर।
(दोनों मंच से प्रस्थान कर जाते हैं। मंच पर बत्ती बुझती है। दृश्यांतर।)

दृश्य : दो
एक तरफ से हाथ में शराब की बोतल लिए लडख़ड़ाते हुए बिरजू का प्रवेश। शराब पीता है। सिगरेट सुलगाता है। जीप रुकने की आवाज पर चौंकता और झांकने के अंदाज में देखता है।
बिरजू : (स्वयं से) साला, सीआईडी इंस्पेक्टर की औलाद, हाथ धोकर पीछे पड़ा है। (झुंझलाकर सिगरेट फेेंकता है। सजग मुद्रा में होता है। इंस्पेक्टर के मंच पर आते ही तेजी से पलटकर पिस्तौल तान देता है) यह शेर का मांद है इंस्पेक्टर, लौट जाओ। मुझे शांत छोड़ दो।
प्रकाश : लगता है, तुमने काफी शराब पी ली है। मुझे पता है, जहां शेर नहींहोता, वहां तुम जैसा गीदड़ ही शेर की खाल ओढ़ लेता है। तुम्हारा यह मांद पुलिस के घेरे में है। चालाकी की कोई कोशिश की तो जान से भी हाथ धोना पड़ सकता है। चुपचाप मेरे साथ चलो।
बिरजू : मैं तुम्हारा नौकर नहींहूं। मैं कहींनहींजाऊंगा। मुझे परेशान मत करो…। इस वक्त अकेला छोड़ दो। इंस्पेक्टर, अगर जान प्यारी है तो…। (पिस्तौल तान लेता है।
प्रकाश : शाबाश, शमशेर सिंह, कवर कर लो। (बिरजू पीछे मुड़कर देखता है। इंस्पेक्टर फुर्ती के साथ बिरजू की कनपटी से अपना रिवाल्वर सटा उसकी कलाई पकड़ लेता है) अब अपनी पिस्तौल फेेंक दो, बिरजू।
बिरजू : (पिस्तौल नीचे गिराता है) आखिर मेरे पीछे क्यों पड़े हो? तुम्हें पहले ही साफ-साफ बता चुका हूं कि धर्म उपदेशक पर गोली चलाने के तीन दिन पहले से मैं अपनी बहन के गांव में था।
प्रकाश : क्या तुम बहन के गांव सुबह की रेलगाड़ी से जाकर शाम की रेलगाड़ी से नहींलौट सकते?
बिरजू : मैं बहन के गांव से पांच दिनों तक कहींगया।
प्रकाश : हमने छानबीन कर पुख्ता जानकारी हासिल की है कि गोली तुमने ही चलाई थी, बिरजू।
शमशेर : (मंच पर प्रवेश करते हुए) जी सर, जी सर, सबूत जुट गए हैं, गवाह भी तैयार हो गए हैं।
बिरजू : मैं कहे दे रहा हूं इंस्पेक्टर, तुम्हें इसकी बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी।
प्रकाश : गीदड़ भभकी न दिखाओ।
शमशेर : बिरजू, जिस शाम में अपनी बहन के गांव से चले थे, उस शाम तुमने जल्दबाजी में रेलवे स्टेशन की बुकिंग खिड़की पर ही अपना लाइटर छोड़ दिया था।
बिरजू : बहुत अच्छी कहानी गढ़ ली। (हंसता है) मेरा लाइटर मेरे पास है, वह देखो, मेज पर।
शमशेर : चालबाजी मत कर, बिरजू के बच्चे। सर, इसका यह लाइटर एकदम नया है।
प्रकाश : तुम्हारी बात मान लेता, बिरजू। मगर तुम्हारे दोस्तों ने ही बरामद लाइटर देखकर बताया है कि यह बिरजू का है, जिसे तुमने दो साल पहले खरीदा था। वैसे फोरेंसिक प्रयोगशाला में तय हो जाएगा कि दोनों लाइटर कब से इस्तेमाल किए जा रहे हैं?
शमशेर : चूहेदानी में फंस चुके हो, तेज दांत वाले चूहे।
प्रकाश : (बिरजू का पिस्तौल और लाइटर रूमाल के सहारे उठाता है) बिरजू, तुम्हें बताना है कि स्वामी सत्यानंद पर जानलेवा हमला की योजना क्यों और कैसे बनाई गई? कौन है वह मास्टरमाइंड?
बिरजू : मैं किसी स्वामी सत्यानंद को नहीं जानता। मैंने किसी का खून करने की कोशिश नहींकी।
प्रकाश : (शमशेर सिंह से) यह सीधे ढंग से नहीं बताएगा। इसे हथकड़ी लगाकर जीप में डालिए।
शमशेर : जी सर। (तभी एक कोने से रिवाल्वर लिए काला दस्ताना वाला हाथ उभरता है। कई गोलियां चलती हैं। बिरजू गिर पड़ता है। बाहर से मोटरसाइकिल की आवाज आती है। शमशेर सिंह बाहर की ओर दौड़ता है।)
प्रकाश : (घायल बिरजू को संभालते हुए) बता दो बिरजू, अब तो बता दो। जिंदगी के आखिरी वक्त में झूठ नहींबोला जाता। मैं वादा करता हूं, तुम्हारी मौत का बदला लूंगा।
शमशेर : (शमशेर वापस लौटकर) भाग गया सर, काली मोटरसाइकिल पर दो लोग थे।
प्रकाश : डाक्टर को फोन कीजिए इसका बचना और इसका बयान बेहद जरूरी है।
बिरजू : मुझे भी मार डालेंगे, मैंने नहींसोचा था। वे… वे… देश के दु…दु… दुश्मन हैं। उनका अड्डा…।
प्रकाश : हां-हां, बोलो। बोलो, उनका अड्डा कहां है? कौन हैं वे लोग?
बिरजू : होटल… हो..ट..ल.. डाय..मंड

(मर जाता है। दृश्यांतर होता है। बीच का पर्दा उठता है।)

दृश्य-तीन

स्वामी सत्यानंद का आश्रम। स्वामी के कंधे से गले तक सफेद पट्टी बंधी है। इंस्पेक्टर प्रकाश का प्रवेश।

प्रकाश : मैं स्वामी सत्यानंद जी से मिलना चाहता हूं।
सत्यानंद : अवश्य, आओ वत्स। यहां आज्ञा लेने की परंपरा नहीं। यह तो परमेश्वर का दरबार है।
प्रकाश : मैं बातचीत के लिए समय चाहता हूं।
सत्यानंद : इसमें अनुमति का कैसा प्रयोजन? कहो, वत्स। तुम्हारी व्यथा क्या है? तुम्हें क्या कहना है?
प्रकाश : स्वामी जी, मैं कानूनी दायित्व के लिए आपके सम्मुख उपस्थित हुआ हंू।
सत्यानंद : निसंकोच कहो, तुम क्या पूछना चाहते हो?
प्रकाश : आप जैसे धर्म उपदेशक की हत्या की का प्रयास करने वाला कौन हो सकता है? आखिर साजिश करने वाले को क्या लाभ मिल सकता है?
सत्यानंद : न मेरा कोई मित्र है और न कोई शत्रु। हम तो सांसरिक बातों से दूर के प्राणी हैं, वत्स।
प्रकाश : कुछ तो, कुछ तो कहें, कुछ बताएं? गोली चलाने या हत्या का प्रयास करने के बारे में?
सत्यानंद : मेरे पास दुष्ट भी आते हैं और साधु भी। दोनों ही तरह के लोग मेरे लिए समान रूप से ग्राह्यï हैं। मुझे दुख है कि इस संबंध में मैं तुम्हारी कोई सहायता नहीं कर सकता।

प्रकाश : मात्र संकेत करें, अपनी शंका भर प्रकट करें।
सत्यानंद : आत्मा-परमात्मा के अलौलिक संबंध के अलावा सांसरिक हित-अहित में मेरी रूचि नहीं। मैं नहींचाहता कि मेरे प्रति श्रद्धा को लेकर समाज के दो समूह के बीच शत्रुता हो। मैं तो यही मानता हूं, वह हिंसक घटना सत्य-पथ के मेरे धैर्य की अग्निपरीक्षा थी। पुलिस के अधिकारी, भूल जाओ कि मुझ पर किसी ने गोली चलाई, हत्या का प्रयास किया। मुझे उस घटना पर कुछ नहींकहना।
प्रकाश : स्वामी जी, गोली चलाने वाले नराधम को कानून के कटघरे में खड़ा करना जरूरी है। अपराधी को दंड मिलना ही चाहिए। अन्यथा, समाज निरंकुश हो जाएगा।
सत्यानंद : क्या शारीरिक दंड आत्मा में परिवर्तन ला सकता है? कभी नहीं। चेष्टा मनुष्य की मनोवृत्ति को बदलने की होनी चाहिए। तभी धरती से अपराध का बोझ कम हो सकता है। मनुष्य की गंदी आत्मा के परिवर्तन का, उसकी स्वच्छता का उपक्रम होना चाहिए। पुलिस के अधिकारी, ईश्वर के लिए अपराधी को पकडऩे का झंझट छोड़ दो।
प्रकाश : परन्तु….
सत्यानंद : कोई किन्तु, परन्तु नहीं। इतने व्याकुल हो, मेरे नश्वर शरीर पर गोली चलाने वाले को पकडऩे के लिए। मेरे नौजवान मित्र, पाप से घृणा करना चाहिए, पापी से नहीं। जाओ, इस प्रसंग में मुझसे मिलने की आवश्यकता नहीं।

(इंस्पेक्टर प्रकाश मंच से प्रस्थान करता है। नेपथ्य से धीरे-धीरे आवाज गूंजती है- असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय……। दृश्यातंर।)

दृश्य-04

खुफिया पुलिस के उच्च अधिकारी का कक्ष। खुफिया पुलिस प्रमुख रंजन, खुफिया अधिकारी अशोक और शमशेर सिंह मंत्रणा कर रहे होते हैं।

रंजन : हमें तेजी से काम करना होगा। सजग रहते हुए दिन-रात सक्रिय रहना होगा। लूट-खसोट की शक्तियां जोर पकड़ती जा रही हैं। इनके पीछे देश के दुश्मनों के हाथ हैं।
शमशेर : जी सर।
अशोक : सर, रिपोर्ट आई है कि बीते एक साल में उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, असम और कश्मीर में विदेशी यात्रियों की संख्या में बड़ा इजाफा हुआ है। इस मसले पर सोचने और अलग नजरिये से देखने की जरूरत है।
रंजन : बिल्कुल। रिपोर्ट के अंदर और बाहर के प्रभाव के मद्देनजर विभाग पूरी गंभीरता से विचार कर रहा है। नोट करने वाली बात है कि विदेशी यात्री दलों में अधिसंख्य धर्म प्रचारक हैं। इनमें से अनेक किसी गुप्त मिशन के तहत देश के विभिन्न भागों में फैल गए हो सकते हैं। इन दलों पर निगाह रखते हुए इनकी अवांछित गतिविधि नोट करनी है।
शमशेर : सर, धर्म प्रचारकों के दल तो पहले से निर्धारित तय कार्यक्रम के तहत भारत में आए हैं और राज्यों में भ्रमण कर रहे हैं।
रंजन : हां, देखना यह है कि उनकी उपदेश यात्रा में क्या गोपनीय हो सकता है? क्या गुप्त योजनाहो सकती है? हमारे मुख्यालय को मिली खुफिया रिपोर्ट के मुताबिक देश की जल सीमा से सटे अंतरराष्ट्रीय जल क्षेत्र के बंदरगाह पर जहाज से पहुंचे धर्म प्रचारकों के जत्थों ने भारत में प्रवेश किया है। आरंभिक तौर पर पहचान कर पाना मुश्किल है कि धर्म प्रचारकों में उनके भेष में जासूस कौन हो सकता है?
अशोक : धर्म प्रचार की आड़ में प्रशिक्षित विदेशी एजेंट सीमांत राज्यों में असंतोष फैलाने का काम कर रहे हैं। इनके प्रभाव में आकर जनता तोड़-फोड़ में लिप्त भी हो रही है।
शमशेर : कश्मीर के लेह और गुलमर्ग में देखे गए एक विदेशी काफिले का फिलहाल अता-पता नहीं है।
रंजन : पहचान बदल कर देश में प्रवेश करने वाले विदेशी एजेंट यहां आने के बाद अब अपनी अलग पहचान बनाकर रह रहे होंगे। वास्तविक धर्म प्रचारक नहींहोने की दशा में वह स्थानीय पुलिस को अपने पहुंचने, आने-जाने की सूचना भी नहींदी होगी। जाहिर है, ऐसे लोग अब अपनी नई पहचान के रूप में, नए भेष धर देश के भीतर रहे हैं। अब तो विस्तृत सघन पड़ताल के बाद ही पता चलेगा कि किन-किन इलाकों में गए धर्म प्रचारकों के दल के कितने लोग सूचना-विहीन हो गए? अर्थात गायब हो गए। (बोलते हुए थोड़ी देर रूकने और अपने सहकर्मियों की मौन प्रतिक्रिया टटोलने के बाद) इस बहुधमी, बहुभाषी देश में फिलहाल परिस्थिति ऐसी है कि विदेशी गुप्तचर अपना जाल आसानी से फैलाने में कामयाब हो सकते हैं। गरीबी, अशिक्षा, बेरोजगारी, बढ़ती आबादी की समस्याएं विदेशी एजेंटों के लिए रास्ता आसान बना रही हैं। खबर है कि बर्मा (अब नाम म्यांमार) के पर्वतीय इलाके के एक अड्डा के जरिये चीन असंतुष्टों को विद्रोही बनाने, विद्रोहियों को संगठित करने, उन्हें हथियार देेने, ट्रेनिंग देने का काम कर रहा है। वे विद्रोही बांग्लादेश और बर्मा के हैं, भारत के भी। चीन विद्रोहियों को हथियार और धन ही नहीं, अनेक तरीकों से अनाज, दवा, कपड़ा, उपहार जैसी सामग्री पहुंचाकर सहानुभूति अर्जित कर रहा है। वह बांग्लादेश, बर्मा के साथ भारत की भी सरकार को गिराने और अपनी मनचाही सरकार बनवाने की कोशिश में है। चीन और पाकिस्तान का लगातार प्रयास हमारी निर्वाचित सरकार पर दबाव बनाने का है।
(इंस्पेक्टर प्रकाश का प्रवेश, रंजन का अभिवादन करता है।)
रंजन : (इंस्पेक्टर प्रकाश की ओर मुखातिब होकर) क्या रिपोर्ट है इंस्पेक्टर प्रकाश?
प्रकाश : दुश्मनों के एक अड्डे का पता चल चुका है।
रंजन : गुड, आपसे यही उम्मीद थी।
प्रकाश : सर, वह एक ब्रांच है और जिस हेडक्वार्टर से वह जुड़ा है, वह कहींऔर है। कहां है, यह जानकारी नहीं है?
रंजन : देखिए, अभी छापा मारने की जरूरत नहीं है। दुश्मन सावधान हो जाएगा। यह भी हो सकता है कि फिर वह हमारे हाथ कभी नहींलगे। जानकारी यह करनी है कि उस ब्रांच की गतिविधि से जुड़े लोगों का संपर्क कहां-कहां है? कैसे-कैसे लोग उससे किस-किस रूप में जुड़े हैं?
प्रकाश : हो सकता है, सर, तुरंत छापा नहीं मारने की स्थिति में हमारे लिए देर हो जाए?
रंजन : देखिए, हल्की भनक भी दुश्मनों को नहीं मिलनी चाहिए कि हमारी निगाह उन पर है और हम उनके पीछे लगे हुए हैं। वे गफलत में रहें, तभी हम असली मुजरिम तक नहीं पहुंच पाएंगे। हमारे लिए वक्त दोधारी तलवार की धार पर चलने जैसी है। सरकार की ओर से जिस विशेष खुफिया विशेष टास्क फोर्स का गठन किया गया है, उसमें हम सभी शामिल हैं। अन्य खुफिया अधिकारियों के बारे में हमें विस्तार से जानकारी नहीं है। न ही हमें जानकारी लेने की कोशिश करनी है। दिया गया टास्क हमें पूरा करना है। हमारे मिशन का नाम ‘लाल कमलÓ है। यह केवल हम ही जानेंगे कि हम किस भेष में, कहां काम कर रहे हैं? हम एक-दूसरे को इसी कोडवर्ड ‘लाल कमलÓ से पहचानेंगे। अभी हमें विदेशी एजेंटों की गतिविधियों पर बारीकी से नजर रखनी है। समय आने पर सरकार के उच्च के निर्देश के मुताबिक एक्शन लेंगे। हर कीमत पर, कुर्बानी भी देकर देश के दुश्मनों के सफाये के लिए मिशन को सफल बनाना है।
अशोक : सर,  जब तक दुश्मनों की गूंज को कुचल नहीं देते, तब तक पूरी नींंद नहींसोएंगे। दुश्मनों का सफाया करने के बाद ही हम चैन की नींद सोएंगे।
शमशेर : सर…। हम सब इसके लिए कृतसंकल्प हैं।
रंजन : ठीक है। आप सबको अपनी-अपनी भूमिका की जानकारी है, जिसका निर्वाह बखूबी करेंगे। यही अपेक्षा है। साथियों, मिशन के अपने-अपने काम में जुट जाइए।
(शमशेर, अशोक और प्रकाश अभिवादन कर प्रस्थान करते हैं। फोन घनघनाता है। रंजन फोन उठाता है।)
रंजन : भेज दो उसे।
(वह इंतजार में चहलकदमी करता है। मंच पर संगीता का प्रवेश)
संगीता : मे आई कम इन, सर।
रंजन : यस, कम इन। बैठो।
संगीता : जी सर, मुझे यहां क्यों बुलाया गया है?
रंजन : मैंंने तुम्हें बैठने के लिए कहा है।
संगीता : धन्यवाद (मगर वह बैठती नहीं है)
रंजन : क्या नाम है तुम्हारा?
संगीता : बचपन से लोग मुझे संगीता पुकारते रहे हैं।
रंजन : पिता का नाम।
संगीता : पता नहीं।
रंजन : क्या तुम्हारे मां-बाप नहीं हैं?
संगीता : पता नहीं।
रंजन : (तीखे स्वर में) लड़की, ठीक से जवाब दो।
संगीता : जब से मैंने होश संभाला है, मां क्या है? बाप क्या है? इन सबका अनुभव ही नहीं किया।
रंजन : संगे-संबंधी?
संगीता : इतनी बड़ी दुनिया में जो अपना समझता है, वही संगा-संबंधी है।
रंजन : लड़की, मैंने कहा न, ढंग से बात करो।
संगीता : बड़े साहब, इस उम्र तक मेरा साबका हर तरफ इन्सान की शक्ल में भेडिय़ों से ही होता रहा है। इस अहसास के बीच जीते हुए, होशोहवास को संभालकर बड़ी होते हुए मुझे यह कल्पना करने का मौका ही नहीं मिला कि एक लड़की की घरेलू, पारिवारिक और सामाजिक जिंदगी कैसी होती है?
रंजन : क्या तुम जानती हो, तुम जो कुछ भी कर रही हो, वह देशद्रोह की श्रेणी में आता है।
संगीता : जानती हूं। मगर इस दुनिया में मुझे भी तो जीने का हक है? आखिर मैं एक अबला बनकर ही अपनी जिंदगी क्यों जिऊं? व्यवस्था के विरोध में खड़ा होने के लिए मैं व्यवस्था द्वारा ही विवश की गई हूं। जब नारी को समाज में सम्मान नहीं मिलेगा तो क्या वह विद्रोहिनी नहीं बनेगी?
रंजन : देखो, मुझे तुमसे व्यक्तिगत तौर पर हमदर्दी है। मगर खुफिया पुलिस का मुखिया होने के नाते मैं तुमसे वहींसुलूक करने के लिए बाध्य हूं, जो पुलिस और अभियुक्त के बीच होना चाहिए। मैं तुम्हें यह बताना चाहता हूं कि तुम भारत की बेटी हो। देश के करोड़ों लोगों के बीच का एक अविभाज्य हिस्सा हो। यह जरूर है कि तुम्हें तुम्हारे मां-बाप की जानकारी नहीं है। समझो कि तुम्हारे लिए देश ही तुम्हारा बाप है, मां है, पालक है। भारत की बेटियों की गौरवशाली परंपरा है। तुम इसी वतन की मिट्टी में पलकर बड़ी हुई हो। वतन की तुम्हारी जरूरत है। देश की माटी तुम्हें पुकार रही है।
संगीता : मैंने अपनी जिंदगी के उम्र जिन कठिन हालात में गुजारे हैं, जिन दुश्विारियों को कम उम्र में मैंने झेले हैं, वह बयान करने लायक नहीं। वह अनकही, दर्दभरी दास्तां मेरे सीने में आग की तरह निरंतर सुलग रहती है। बचपन से मेरा वास्ता ऐसे लोगों से रहा, जो मुझे व्यवस्था से विद्रोह करने के तरीके सीखाते रहे हैं, जो इस देश के हूक्मरानों से नफरत करना सिखाते रहे हैं। इस के बीच मैंने तो सिर्फ जीने का अपना तरीका अख्तियार कर रखा है। मैं नहींजानती कि मेरा तरीका देशद्रोह के पायदान पर खड़ा है या अ्रपने तरीके से जीने के अधिकार की राह पर? मेरे लिए दूसरा रास्ता भी नहींहै। यह समाज मुझे एक लड़की, एक औरत के रूप में स्वीकार करने को तैयार नहीं। और, आपकी व्यवस्था को मुझे चैन से रहने देना मंजूर नहीं। मुझ जैसी गरीब, अभागी, वक्त की मारी, परिस्थिति की दास न जाने कितनी लड़कियां देश-समाज के दुश्मनों के संरक्षण में है, जिन्हें आपकी व्यवस्था ने देशद्रोहिनी की सूची में दर्ज कर रखा है।
रंजन : देखो, आज देश को तुम्हारी बेहद जरूरत है। मैंने तुम्हारे बारे में जानकारी इकट्ठी की है। तभी तुम्हें बड़े मिशन के लिए चुना है। खतरा दोनों तरफ है। जो जिंदगी जी रही हो उस तरफ भी। और, इस तरफ भी। तुम्हारी मर्जी कि तुम चुनाव किस ओर का करती हो? मैं तु्म्हारी जिंदगी के बीते हुए लम्हों को, गुजरी हुई परतों को उघाडऩा नहीं चाहता। मैं जानता हूं, तुम जो कर रही हो, तुम्हारे पास उसके अलावा दूसरा रास्ता नहीं है। संगीता, कानून की नजर यही समझती है कि तुम जो कर रही हो, वह कारोबारियों के लिए सिर्फ स्मगलिंग नहीं, देशद्रोह है। कानून नहींसोचता कि तुम ऐसा क्यों कर रही हो या करने पर क्यों लाचार हो? जिंदगी रही तो मैं तुम्हें समाज में सम्मान के साथ जीवन बसर करने का अवसर मुहैया कराऊंगा यह मेरा वादा है।
संगीता : मुझे क्या करना होगा?
रंजन : तुमसे हमें केवल सूचनाएं चाहिए। हर जानकारी चाहिए। चाहे लगे कि वह सूचना काम की हो सकती है या नहीं। हमें उनकी गतिविधियों से पल-पल बावास्ता होना है, जिनके लिए तुम काम करती हो। वैसी भी तुम्हारी जान हमेशा दांव पर ही लगी होती है। अब एक दांव देश के लिए सही।
संगीता : मतलब… मुझे डबल एजेंट की भूमिका निभानी होगी? तो… मुझे कानून की आड़ में शतरंज का मोहरा बनाया जाएगा।
रंजन : संगीता, आदमी को परिस्थितिवश फर्ज के शतरंजी दांव का मोहरा बनना पड़ता है। जो काम तुम जिनके लिए कर रही हो, वहां जान देने पर भी कोई पूछने वाला नहीं होगा। कोई नामलेवा नहीं होगा। मैं जो काम सौंप रहा हूं, उसमें तुम्हारा नाम कम-से-कम मिशन के रिकार्ड में देश की बेटी के रूप में तो दर्ज रहेगा ही। तुम्हें फैसला करना है, अपने लिए नहीं, देश के करोड़ों लोगों के लिए, जिनमें ही तुम्हारे मां-बाप होंगे, तुम्हारा परिवार होगा। तुम्हें एक व्रती की तरह राष्ट्रीय जीवन के चरणों में समर्पित होना है। अब फैसला तुम्हारे हाथ में है। सोचो, विचार करो। हमें तुम्हारे फैसले का इंतजार रहेगा।
(संगीता खामोश धीरे-धीरे कदमों से मंच से प्रस्थान करती है। दृश्यांतर।)

दृश्य-05

पर्दे पर एक बड़ा नक्शा टंगा है। मंच पर एक लाल नकाबपोश है और दूसरा सफेद नकाबपोश। लाल नकाब वाला अपनी योजना बता रहा है। वह इस तरह अभिनय कर रहा होता है, जैसे मंच अन्य पात्र भी मौजूद हों।

रेडबास : हम एहसानमंद हैं कि हमारे मिशन को परवान चढ़ाने में आप सबके लीडरशीप में भरपूर मदद मिल रही है। कल रात पांच शहरों के मंदिरों और मस्जिदों पर एक साथ खास तरीके से बम फेेंकना है। सभी को अपनी-अपनी जिम्मेदारी और अपना-अपना काम ठीक-ठीक समझ लेनी है। मुसलमान के खिलाफ हिन्दू और हिन्दु के खिलाफ मुसलमान भड़केेंगे, तभी हमें कामयाबी मिलेगी। भड़के हुए लोगों से, हिन्दुओं से, मुसलमानों से हमारे एजेंट संपर्क करेंगे। उनकी आर्थिक मदद करेंगे। उनकी जरूरत का ख्याल रखेंग। फिर दोनों पक्षों को हथियार सौंपेंगे। (ठठा कर हंसता है) हम हिन्दुस्तान में जगह-जगह दंगा फैलाएंगे। दंगे की आग की लपटें गृहयुद्ध में तब्दील होगी। सरकार गृहयुद्ध की परेशानियों में उलझी होगी। और, माकूल मौका देखकर हमारी फौज इस देश की धरती पर धावा बोल देगी। (चारों तरफ निगाह दौड़ाने के बाद सफेद नकाबपोश से इशारा करता है।)
सफेद नकाबपोश : संगीता…।
संगीता : यस बास (कहते हुए मंच पर आती है)। जी, रेडबास, मेरे लिए क्या आदेश है?
रेडबास : क्या प्रोग्रेस है?
संगीता : जासूस अशोक मेरे असर में आ चुका है, बड़ा नादान है, बड़ा भावुक युवक है वह।
रेडबास : वेरी गुड, मगर होशियार रहना। हमेशा ध्यान रखना कि वह हिन्दुस्तान का एक काबिल खुफिया अधिकारी है। हो सकता है, तुम्हे फ्लर्ट भी कर रहा हो। इस बात का ध्यान रखना। उसकी हर हरकत पर नजर रखो। तुम्हें उसके साथ साये की तरह लगा रहना है और हर रिपोर्ट हेडक्वार्टर को देनी है।
संगीता : ओके बास। (मंच से प्रस्थान कर जाती है)
रेडबास : (सफेद नकाबपोश से) योजना के बारे में संगीता को अच्छी तरह समझा देना। (वह सफेद नकाबपोश को फिर किसी को बुलाने का इशारा करता है)
सफेद नकाबपोश : पिन्टू और राका। (पुकार सुनकर दोनों मंच पर आते हैं) देखो, तुम दोनों, गौर से नक्शा को समझ लो। यहां ब्लाक हाल्ट है। (नक्शे पर छड़ी रखता है) छोटी पहाड़ी की सुरंग से मालगाड़ी गुजरेगी। उसे बम से उड़ाना है। मालगाड़ी रात दो बजे सुरंग से गुजरने वाली है। तुम दोनों को प्लान के बारे में पहले भी बताया जा चुका है।
दोनों : (एक साथ बोलते हैं) यस बास।
रेडबास : इस साल हिन्दुस्तान के कुछ भाग में बारिश नहींहोने से अकाल है। और, कुछ भाग अधिक बारिश होने से बाढ़ के शिकार हंै। दोनों तरह के इलाकों की फसलें नष्ट हुई हैं। गांव-गांव के तबाही झेल रहे हैं। लोग जिंदगी और मौत के बीच झूल रहे हैं। मालगाड़ी से गेहूं उन तक नहींपहुंचेगा। कभी नहींपहुंचेगा। लोग मरेंगे। हाहाकार मचेगा। उन्हें सबसे पहले रोटी चाहिए। रोटी का टुकड़ा चाहिए। हम रोटी के टुकड़े की लालच देकर उन्हें सरकार के खिलाफ बगावत के लिए उकसाएंगे। हा.. हा.. हा..। भूखे-नंगों का देश, हा.. हा.. हा..। (रेडबास फिर सफेद नकाबपोश से इशारा करता है)
सफेद नकाबपोश : पीटर, सामने आओ। (पीटर का सकपकाते हुए मंच पर प्रवेश)
रेडबास : पीटर, कहां है वह पीली फाइल?
पीटर : माफ कर दीजिए, रेडबास। फ्रेेंच स्मगलर ब्लैकटाइगर वह फाइल मुझसे छीन ले गया। उसने बदले में दस लाख रुपये की मांग की है।
रेडबास : छिन ले गया। रेडबास के आदमी से छिन ले गया। अफसोस पीटर, रेडबास का वसूल नहींछिना है। कबूतर के बच्चे।
पीटर : मुझे माफ कर दो रेडबास, माफ कर दो।
रेडबास : हा..हा..हा..। तुम अब संगठन के लिए दूध की मक्खी हो। हा..हा..हा..।
पीटर : (जेब से रिवाल्वर निकाकर) मुझे जाने दो, कोई अपनी जगह से नहींहिलेगा। (पीटर गोली चलाता है। गोली रेडबास से टकराकर छिटक जाती है। रेडबास जोरदार ठहाका लगाता है। पीटर फिर गोली चलाता है। गोली का असर रेडबास पर नहींहोता है। रेडबास फिर ठहाका लगाता है।)
रेडबास : (झुककर फर्श से एक गोली उठाता है और जोरदार ठहाका लगाता है) नादान कुत्ते, मौत के डैने मेरे पास नहींफटकते हैं। (सफेद नकाबपोश से) एस, इस कुत्ते का भौंकना बंद कर दो।
(सफेद नकाबपोश गोली चलाता है। पीटर जमीन पर गिरकर तड़प रहा होता है।)
रेडबास : उम्मीद है, संगठन से गद्दारी करने की कोई नहींसोचेगा। गद्दारों का वहींअंजाम होता है, जो पीटर का हुआ। मेरी सैकड़ों आंखें हैं… मैं हजारों हाथ रखता हूं… हा.. हा.. हा..।
(दृश्यांतर होता है)

दृश्य-06

मंच पर अंधेरा है। फिर मद्धिम रोशनी धीरे-धीरे उभरती है।

राका : सब कुछ ठीक हो चुका है पिन्टू। पहला बम सुंरग की छोर पर है। दूसरा बीच में है।
पिन्टू : अब हमें बस मालगाड़ी के सुरंग के भीतर आने का इंतजार करना है।
राका : बस, दो मिनट और। मालगाड़ी आने ही वाली है। हमें बम ब्लास्ट करने के लिए तैयार हो जाना है।
पिन्टू : समय ज्यादा गुजर चुका। मालगाड़ी पहुंची नहीं।
राका : आती होगी। थोड़ा और इंतजार करना पड़ सकता है। वह देखो, बंशी लाइट जलाकर इशारा कर रहा है। तुम यहींठहरो। मैं बंशी को देखकर आ रहा हूं।
(पिन्टू सिगरेट जलाकर वक्त काटता है। थोड़ी देर बाद राका आता है।)
राका : बहुत बुरा हुआ पिन्टू, सिर्फ एक इंजन चला आ रही है। उससे एक डिब्बा ही जुड़ा हुआ है।
पिन्टू : मालगाड़ी कहां रह गई? कहींबास को गलत सूचना तो नहीं मिलीथी?
राका : नहीं, बास की सूचना गलत नहींहो सकती।
पिन्टू : सावधान हो जाओ, इंजन रुक रही है।
राका : सिगरेट बुझा दो। कुछ गड़बड़ लगता है। हमें झाडिय़ों में छुपना होगा।
पिन्टू : राका, संभलो, डिब्बे से पुलिस उतर रही है…।
(मंच पर सर्चलाइट घूमती है।)
राका : हमारा प्लान फ्लाप हो गया। पिन्टू, पार्टी के किसी गद्दार की करतूत है। वर्ना पुलिस क्यों पहुंचती? अभी चुपचाप निकल भागने में ही खैरियत है। अब बम के पलीते में आग लगाने में समय बर्बाद नहीं किया जा सकता। जल्दी भागो, पुलिस हमें घेर रही है।
पिन्टू : मगर बास को पता चला कि हम मौकेवारदात से भागकर आए है तो वह हमें जिन्दा जला देगा।
राका : भागो पिन्टू, भागो…।
पिन्टू : नहीं-नहीं,राका। हो सकता है कि हम पुलिस से बच जाएं, मगर रेडबास से, उफ… नहीं-नहीं।
राका : बम के पलीते में आग लगाने की कोशिश मत करना। पुलिस को हमारे होने का अंदाजा हो जाएगा।
पिन्टू : मगर हम अपना काम तो कर लेंगे। चाहे इंजन नष्ट हो या मालगाड़ी। हम तो काम कररेडबास के सामने खड़े होंगे।
राका : गलती मत करो पिन्टू, हम पुलिस के हत्थे चढ़ जाएंगे।

पिन्टू : मुझे अपना काम करने दो, राका।
राका : मैं फिर कह रहा हूं, मुर्खता मत करो। पुलिस करीब आ चुकी है। जिंदगी बची रही तो दूसरे काम को अंजाम दे सकते हैं। पिन्टू, तुम्हारे पीछे पुलिस। (पिन्टू पीछे पलटता है और राका उसे गोली मार देता है और भागता है।)

(दृश्यांतर होता है)

दृश्य-07

रेडबास और सफेद नकाबपोश के सामने राका सहमा खड़ा है। उसकी हालत से लगता है कि उसे बुरी तरह शारीरिक प्रताडऩा दी गई है।

रेडबास : (फूंफकारने के अंदाज में) बोल राका, बोल। सच बता। बता कि तुम कैसे पुलिस के घेरे से बचकर निकल आए। सिर्फ तीन आदमी को मालगाड़ी को बम से उड़ाने के प्लान की जानकारी थी। फिर पुलिस तक सूचना कैसे पहुंच गई?
राका : मैं नहीं जानता। कुछ नहीं जानता, बास।
सफेद नकाबपोश : खुफिया पुलिस के कुत्तों तक हमारे प्लान की गंध कैसे मिली?
राका : मैं निर्दोष हूं बास…।
रेडबास : गद्दार…।
राका : मैं गद्दार नहीं हूं…। मैं गद्दार नहीं हूं…।
रेडबास : (सफेद नकाबपोश को इशारा करता है) एस,
(सफेद नकाबपोश अपने लबादे से छुरा निकाल कर राका की ओर बढ़ता है)
राका : नहीं, नहीं, मैं गद्दार नहींहूं। मेरा कोई कसूर नहीं है। मैं नहींजानता कि पुलिस कैसे पहुंची? मैं नहीं जानता कि खुफिया पुलिस को सूचना किस तरह पहुंची? मेरे साथ इन्साफ होना चाहिए, बास। (वह रेडबास के पैरों पर गिर पड़ता है)
रेडबास : (ठोकर मारता है) इन्साफ…। हा..हा..हा..।
राका : मेरे साथ धोखा हो रहा हैं, अन्याय है।
रेडबास : तुम्हारा कहना है, तुम्हें बांह में पुलिस की गोली लगी। इसलिए तुम बच गए। मगर यह खंजर तुम्हारे सीने में उतरेगी, तुम नहीं बचोगे। एस, इसे हमारी फोरेसिंक लैंब की रिपोर्ट दिखाओ। बताओ कि इसकी बांह से निकाली गई गोली सिर्फ और सिर्फ हमारे गुप्त कारखाने में बनती है।
सफेद नकाबपोश : (कागज का टुकड़ा दिखाते हुए) गद्दार देख, मरने से पहले तसल्ली कर ले कि तुम्हारी गद्दारी पकड़ी गई है।
राका : मुझे बचकर आना होता तो अपनी बांह में अपने से ही गोली क्यों मारता?
रेडबास : इसलिए कि हमारा भरोसा जीत सको। इसलिए कि हमें धोखे में रख सको।
राका : यह रिपोर्ट गलत है। यह सब झूठ है। एक जाल है। मेरे खिलाफ साजिश है।
सफेद नकाबपोश : बास, इसका जिंदा रहना हमारे लिए खतरे से खाली नहीं। (पलटकर) बदजुबान गद्दार, यह खंजर तुम्हारे कलेजे का कतरा-कतरा करेगा।
रेडबास : ठहरो, जरा इसके गले की ताबीज तो देखो।
सफेद नकाबपोश : (ताबीज देखकर) लाल कमल।
रेडबास : क्या कहा, लाल कमल…! यह तो बड़े खुफिया अफसर रंजन की टीम का जासूस है।… इसके चेहरे की मूंछ और मस्सा देखना…।
सफेद नकाबपोश : (राका के चेहरे की मूंछ और मस्सा उखाड़ता है) तुम, इंपेक्टर प्रकाश…! मुझे उम्मीद नहीं थी, तुम यहां तक पहुंच आओगे। (चाकू प्रकाश के सीने से सटाकर) बताओ, कहां-कहां तुम्हारे आदमी घुस आए हैं? तुम्हारी खुफिया पुलिस को हमारे किस-किस अड़्डे की जानकारी हाासिल हो चुकी है?
प्रकाश : मुझे कुछ नहींमालूम।
रेडबास : तुम्हें सब कुछ उगलना पड़ेगा। तुम्हारी जान हम इतनी आसानी से नहींलेंगे।
सफेद नकाबपोश : (इंस्पेक्टर प्रकाश की बांह में चाकू घुसेड़ देता है) जवाब दो, खुफिया कुत्ते।
प्रकाश : मेरी जुबान कभी नहींखुलेगी, घिनौने सूअर।
रेडबास : हर हाल में तुम्हें अपनी जुबान खोलनी होगी।
प्रकाश : हिन्दुस्तानी का फैसला हिमालय की तरह अटल होता है।
रेडबास : हमारी ताकत हमारे कदमों पर हिमालय को झुकाना जानती है, गुस्ताख।
प्रकाश : तुम्हारी शैतानी ताकत हिमालय के उन चंद कमजोर पत्थरों को तोड़ सकती है, जो वक्त के थपेड़ों में कमजोर रह गए।
रेडबास : एस, इसकी बदजुबान को अंकुश लगाओ।
(सफेद नकाबपोश रुक-रुक कर इंस्पेक्टर प्रकाश पर चाकू से वार करता है। इंस्पेक्टर मूर्छित हो जाता है।)
प्रकाश : (मूच्र्छा की हालत में मंच पर इधर-उधर भागते हुए) पानी… पानी…।
रेडबास : हा..हा..हा..। बताओ, तुम्हारे खुफिया विभाग को हमारे बारे में क्या जानकारी हासिल हुई है।
प्रकाश : नहीं बताऊंगा, कभी नहीं।
रेडबास : मान लो मेरी, हिन्दुस्तानी पुलिस के नौजवान। तुम्हें अभी जिंदगी की दरकार है। मौज करने की उम्र में मौत को गले मत लगाओ।
प्रकाश : लालच मत दिखाओ शैतान। मैंने हिन्दुस्तानी मां का दूध पिया है। और भी आजमा चाहो तो आजमाईश कर देख लो। मौत अपना फैसला बदल देगी। भारत मां के सपूत का फैसला नहीं बदलेगा।
रेडबास : (सफेद नकाबपोश को इशारा करता है। सफेद नकाबपोश इंस्पेक्टर के शरीर में चाकू घुसाता है) अच्छी तरह सोच लो, तुम्हें सोचने का वक्त दिया जा सकता है। फिर सोच लो। आखिरी मौका दे रहा हूं।
(सफेद नकाबपोश बेरहमी से चाकू फिर घुसेड़ता है। इंस्पेक्टर चित्कार कर उठता है)
प्रकाश : मेरा फैसला अटल है, जल्लाद।
रेडबास : तो मेरा फैसला भी देख, हिन्दुस्तानी पुलिस के पिल्ले…। (रिवाल्वर निकाल कर गोली मार देता है) हम हिन्दुस्तान की धरती पर तब तक खून की नदी बहाएंगे, इसे तब तक लाल करते रहेंगे, जब तक हम कामयाब नहींहो जाते।
(इंस्पेक्टर प्रकाश के शरीर में पिस्तौल की सारी गोलियां उतार देता है। इंस्पेक्टर की मौत हो जाती है। रंगमंच के बीच का पर्दा गिरता है।) (दृश्यांतर)

दृश्य-08

संगीत का फ्लैट। संगीता उदास बैठी है। अशोक का प्रवेश।

अशोक : हल्लो, संगीता।
संगीता : आओ, अशोक।
अशोक : कैसी हो? आज कुछ उदास लग रही हो तुम।
संगीता : शायद…। सोच रही हूं…. कि शायद हम दोनों की यह अंतिम मुलाकात हो।
अशोक : अंतिम मुलाकात?
संगीता : हां, अशोक, रेडबास मुझे सरहद की पहाडिय़ों की ओर भेजने की योजना बना चुका है। पहाडिय़ों के रास्ते दुश्मन के दस्ते देश की धरती पर लाने के लिए मुझे गाइड बनने के टास्क पर लगाया गया है।
अशोक : यह तो सूचना है कि सीमा के पार दुश्मन की गतिविधियां तेज हो गई हैं। अनेक शिविरों में दुश्मन की ट्रेनिंग जोर-शोर से दिन-रात जारी है।
संगीता : मुझे लगता है कि दुश्मन का दस्ता किसी भी समय साजिश को अंजाम तक पहुंचा सकता है। दुश्मन की साजिश का ठीक-ठीक मुझे भी पता नहींहै। मैं सिर्फ अंदाजा लगा सकती हूं। मगर इतना तय है कि उसका निशाना देश की सीमा के पास फौजी चौकियों तक रसद, जरूरी सामग्री को नहींपहुंचने देना और रास्तों को बाधित करने का है।
अशोक : चीन ने न्यूज एजेंसी के जरिये एक अफवाह फैलाई है। कि, भारत ने तिब्बत में अपना शक्तिशाली सैन्य बना लिया है। भारत के सैनिक चीन के इलाके से करीब सौ याक, एक हजार भेड़ चुरा ले गए हैं।
संगीता : लेकिन चीन तो पहले से ही तिब्बत पर आक्रमण कर अपना कब्जा जमा रखा है।
अशोक : दरअसल, चीन ने समझी-बूझी कूटनीति के तहत यह अफवाह फैलाई है। अंतरराष्टीय जगत में वह यह संदेश देने की कोशिश कर रहा है कि यदि भारत अपनी सैनिक चौकी तिब्बत से नहींहटाता है तो चीन सख्ती से पेश आएगा। अर्थात, चीन ने हमला करने की कूटनीति अपनाई है। वह यही प्रचारित करेगा कि पहले भारत ने दुश्मनी मोल ली तो उसने कड़ा जवाब दिया। चीन पाकिस्तान को भी शह देता रहा है। खबर है, पाकिस्तान के दहशतगर्दों को ट्रेनिंग देने में चीन का भी हाथ है।
संगीत : पाकिस्तान जल्द ही अपनी सैनिक टुकडिय़ां छुप-छुप कर सीमा पार भारतीय सरहद में भेजने की तैयारी में जुटा है। पाकिस्तान का बर्बर हौसला और चीन का शातिर दिमाग एक हो गए हैं। मैं जीते-जी वतन के दुश्मनों के नापाक पैर भारत की पवित्र भूमि पर पडऩे नहींदूंगी। चाहे मुझे क्यों न मर मिटना पड़े। उन्हें दर्रे में दफन कर दूंगी।
अशोक : होशोहवास से तो काम लो। तुमने यह जीने-मरने की बात क्या छेड़ दी? इतना भावुक न बनो।
संगीता : अरे, तुम अचानक उदास क्यों हो गए?
अशोक : नहींतो, मैं उदास कहां हूं?
संगीता : क्या देश के करोड़ों भाई-बहनों के खातिर एक संगीता की जिंदगी कुर्बान नहीं हो सकती?
अशोक : क्या तुमने मुझे इतना बुजदिल समझ रखा है?
संगीता : कल तक देश के लिए शहादत का पाठ पढ़ाने वाला आज उदास दिख रहा हो तो बोलना पड़ा।
अशोक : संगीता हम भी आखिर आदमी हैं। हमारे भीतर भी तो भावनाएं हैं।
संगीता : खतरे की इस घड़ी में अब मेरे सिर की आजमाईश है, अशोक। मुझे ताकत दो, शक्ति दो कि मैं देश के दुश्मनों से पूरे जज्बे के साथ लड़ सकूं।
अशोक : मेरा धैर्य और संकल्प तो पहले की तरह अटल है। बस सोच रहा हूं कि क्या हम दोनों का साथ और सफर यही तक था?
संगीता : तुमने ही बताया है, वतन के पहरेदारों का कुर्बानी से पवित्र रिश्ता होता है। तुमने सिखलाया है, अशोक कि खुद के लिए जीने से सबके लिए मरना आदमी का सबसे बड़ा धर्म है।
अशोक : दूसरे लोग जीकर सबके जीने की बात करते हैं। तुम मरकर सबको जिंदगी देने की बात कर रही हो? कितने ऊंचे हैं, तुम्हारे विचार संगीता।
संगीता : जानती हूं, रास्ता लंबा है, डगर कठिन है। अशोक, तुम मेरी हिम्मत हो। मुझे हंसकर हौसला दो, साथी।

अशोक : संगीता, चाहे मंजिल कितना भी कठिन, कितना भी दूर हो, तुम्हें बढऩा है, दुश्मनों के सीने को रौंदते हुए मंजिलेमुकाम तक पहुंचना है। तुम्हारी आहुति देशवासियों के जीवनदान के लिए है। मेरी संगीता, अच्छी संगीता।
संगीता : अशोक, मेरे अशोक… मैं तैयार हूं, पूरी तरह चंडी की शक्ति से लबालब… बिजली की तेजी से भरपूर…
(संगीता अशोक से लिपट जाती है। धीरे-धीरे अलग होती है। तन कर खड़ी होती है। सैल्यूट देती है। दृश्यांतर।)

दृश्य-09

गृहमंत्री का बंगला। गृहमंत्री के साथ नेता प्रभुनाथ।

प्रभुनाथ : सोचिए, मंत्री जी, जिन अफसरों पर देश का दायित्व है, जिन्हें सरकार की रीति-नीति को जमीन पर अमली जामा पहना कर उतारना है, वे कितने गिर गए हैं?
मंत्री : हां, आजादी मिलने के तीन दशक बाद भी देश की एक्जिक्यूटिव मशनरी अंग्रेजी राज की ही मनोवृत्ति में है। हम सब की चिंता लगातार बढ़ती जा रही है कि कार्यपालिका अपने दायित्व बोझ का निर्वहन ठीक-ठीक कैस करे? (फोन घनघनाता है। गृहमंत्री रिसीवर उठाते हैं।) हां, आने दीजिए। (वरिष्ठ खुफिया पुलिस अधिकारी रंजन का प्रवेश) आइए, आईजी साहब, आपकी प्रतीक्षा कर रहा था। बैठिए। (रंजन सैल्यूट अभिवादन के बाद बैठता है।) आईजी साहब, इन्हें जानते हैं आप?
रंजन : क्यों नहीं, सर। आप प्रभुनाथ बाबू हैं। खास इलाके में काम करने वाले नेता को सभी जानते हैं।
मंत्री : कर्नल राव की हत्या के बाद आई रिपोर्ट में एक महत्वपूर्ण पीली फाइल के गायब होने की बात कही गई है।
रंजन : जी, जानकारी है। खुफिया विभाग खोज-बीन में जुटा है। मैडम शान-ली नाम की महिला से कर्नल राव की दोस्ती थी। मैडम शान-ली का कर्नल राव के घर तक आना-जाना था। कर्नल की हत्या के बाद शान-ली का सुराग नहीं है। वह चीन की एजेंट हो सकती है। मैडम शान-ली के साथ पीटर नाम का आदमी देखा जाता रहा है। पीटर की कुचली हुई लाश मिली है। संदेह है, पीटर की हत्या कर भारी वाहन से एक्सीडेंट होने का नाटक किया गया हो सकता है।
मंत्री : देश के भीतर दुश्मनों ने डेरा डाल दिया है। जनता को सांप्रदायिक दंगा के लिए और सीमांत इलाकों में सरकार से, व्यवस्था से विद्रोह के लिए भड़काने का प्रयास हो रहा है। साजिश का समय से पहले पर्दाफाश करना होगा।
रंजन : सर। जरूरत धीरज, दिमाग और शांति से काम लेने की है। बेहद चौकन्ना, चाक-चौबंद होने का वक्त है।
मंत्री : इस गाढ़े समय में देश की जनता को जगाने का काम करना होगा। देशभक्ति का नया जज्बा भरना होगा। एक नई जनशक्ति तैयार करनी होगी। प्रभुनाथ बाबू जैसे नेता की भी सक्रियता का समय है यह, सबकी परीक्षा का वक्त है।
प्रभुनाथ : कभी पीछे नहींरहूंगा मंत्री जी। रंजन साहब जैसे अफसरों पर देश को नाज है। मैं चलना चाहता हूं। आप दोनों जरूरी मशवरा करें। यह कीमती समय है।
(अभिवादन कर प्रभुनात का मंच से प्रस्थान।)
मंत्री : मणिपुर, मिजोरम, नगालैंड, त्रिपुरा, असम पूर्वोत्तर भारत के इन राज्यों की हालात नाशाद हैं। देश की सुरक्षा खतरे मेंहै। पाकिस्तान से तो खतरा सीधा दिख जाता है। मगर चीन से घुमकर आने वाले खतरे की ओर भी हमारी निगाह होनी चाहिए। तिब्बत पर कब्जा कर लेेने के बाद चीन भारत का पड़ोसी बन चुका है। भारत-चीन सीमा आज दुनिया की सबसे लंबी किलाबंद सरहद बन गई है। रूस के प्रभाव को कम करने के लिए अमेरिका भी अपनी तरह से कूटनीति की शंतरंजी बिसात बिछा रहा है। हमें हर तरफ से आने वाली खतरे की घंटी को सर्तकता से सुनना और जरूरी एक्शन लेना है।
रंजन : जी, सर। यह वक्त सही-गलत फैसले पर विचार का नहीं, बल्कि एक्शन का ही है। हम तैयार हैं। एक्शन प्लान पर विस्तृत चर्चा हो चुकी है। आपके दफ्तर से आपके आदेश की प्रतीक्षा थी, जो मिल चुकी है। आज्ञा दें, सर।
मंत्री : गुडलक, मिस्टर रंजन।
(रंजन का सैल्यूट के साथ प्रस्थान । दृश्यान्तर)

दृश्य-10

एक ओर मेज पर अंग्रेजी शराब की बोतल। सफेद नकाबपोश इंतजार में है। काला चश्मा लगाए काले लिबास में दाढ़ी वाला वाला व्यक्ति मंच पर प्रवेश करता है।

सफेद नकाबपोश : वेलकम ब्लैकटाइगर। तुम्हारा ही इंतजार था। बैठो, कौन सी ब्रांड पीते हो।
ब्लैकटाइगर : थैक्यू। वक्त कम है। मुझे अपने देश भी लौटना है। हम काम की बातें कर लें।
सफेद नकाबपोश : हिन्दुस्तानी जासूसों का एक नामी सरदार है, नाम है आईजी रंजन। हमारे मिशन की कामयाबी की राह का सबसे बड़ा रोड़ा है। जब तक वह है, हमें कामयाबी हासिल नहींहो सकती।
ब्लैकटाइगर : पता है मुझे, उसकी निगाह तो मुझ पर भी लगी हुई है। वह हमारी राहों का भी कांटा है। इसीलिए मुझे अपने देश वक्त से पहले लौटना पड़ रहा है। उसके कारण ही इंडिया में मेरे रेजीडेंट टाइम का एक्सटेंशन नहींबढ़ा।
सफेद नकाबपोश : आईजी रंजन तुम्हारी राह का कांटा है तो मेरे रास्ते का रोड़ा।
ब्लैकटाइगर : देखो, काम हो जाएगा। रास्ते का यह रोड़ा हट जाएगा। मगर कब, कैसे यह मैं तय करूंगा। मुझे किस समय, कहां-क्या चाहिए, उसकी पूर्ति तुम्हें करनी होगी।
सफेद नकाबपोश : हमारे पास हफ्ते भर का वक्त है।
ब्लैकटाइगर : हमने दुनिया भर के मशहूर जासूसों का अध्ययन किया है। आईजी रंजन के बारे में बारीकी से जानने के लिए एक हफ्ते का वक्त काफी कम है। फिर भी सात दिन में डन करने की कोशिश होगी। सौदा पक्का करो।
सफेद नकाबपोश : तुम्हारी चतुराई के बारे में दुनिया के क्राइम वल्र्ड को पता है। इसीलिए तो तुम्हें लिबिया से बुलाया गया है।
ब्लैकटाइगर : मुझे चाहिए, एक करोड़ रुपये का सोना। प्रिंस इथोपिया के नाम एक्सपोर्ट होगा।
सफेद नकाबपोश : मंजूर है।
(ब्लैकटाइगर हाथ मिलाकर निकल जाता है)
सफेद नकाबपोश : (नकाब हटाता है। शराब पीता है। हंसता है) हां..हां..हां..। अब वह दिन दूर नहीं, जब सत्ता की ताज मेरे माथे पर होगी। हा.. हा.. हा..।
(मंच पर साधु का रिवाल्वर ताने प्रवेश)
साधु : सिर पर ताज नहीं, हाथों में हथकड़ीं होगी। कैदखाने का शहंशाह बनने के लिए तैयार हो जाओ, ढोंगी।
सत्यानंद : क्या बकते हो, आग उगलने वाला खिलौना दूर हटा। शिवानंद का बच्चा।
साधु : हर ओर से पुलिस से घिर चुके हो। भागने की जरा भी कोशिश सीधी मौत को दावत होगी। नमकहराम, जिस देश के अन्न से पेट की भूख शांत करते हो। जिस देश के कपड़ों से अपने नंगे को ढंकते हो। जिस देश की जीवनदायी हवा में सांस लेते हो। जिस देश के भोल-भाले लोगों की श्रद्धा पाकर गौरवमंडित होते हो। उस देश की आबरू दुश्मन देश के हाथों नीलाम करना चाहते हो। कुत्ते, मेरे हाथ कानून से बंधे हैं, वर्ना तुम्हारे जिस्म की बोटी-बोटी कर चील-कौओं के आगे फेेंक देता। जल्लाद…।
(तमतमाकर रिवाल्वर के हत्थे से सत्यानंद के सिर पर वार करता है। सत्यानंद बेहोश होकर गिरता है।)

(दृश्यांतर। बीच का पर्दा उठता है।)

दृश्य-11

मेज पर ट्रांसमीटर रखा हुआ है। उससे जलती-बुझती हल्की लाल रोशनी बाहर निकल रही होती है और सूं-सूं आवाज भी। रेडबास चहलकदमी कर रहा है। ब्लैकटा्रइगर प्रवेश करता है।

रेडबास : आओ ब्लैकटाइगर, आज फैसले की घड़ी है।
ब्लैकटाइगर : मुझे तो अपना कंट्री लौटना है।
रेडबास : थोड़ा सब्र रखो। आज फैसले की घड़ी है। मुझे संगीता के सिगनल का इंतजार है। कामयाबी मिलने के बाद हिन्दुस्तान हमारी मुट्ठी में होगा।
ब्लैकटाइगर : तुम्हारी कामयाबी से मुझे लेना-देना नहीं। सौदे का मेरा सोना कहां है?
रेडबास : याद है, मैडम शान-ली से तुम पीली फाइल अपने देश के लिए छिन ले गए। जबकि कर्नल की हत्या मैंने कराई थी। कर्नल की हत्या के बाद वह पीली फाइल हासिल हुई थी। मगर वह फाइल तुम तक पहुंच गई। दे दो वह फाइल और ले लो अपने सौदे का सोना।
ब्लैकटाइगर : सोना मेेरे देश से बाहर नहीं जाएगा।

रेडबास : क्या मतलब?
ब्लैकटाइगर : तुम्हारा खेल खत्म हो चुका है, धोखेबाज, रेडबास। (अपना मेकअप हटाता है)

रेडबास : रेडबास : तुम… आईजी रंजन?
अशोक : (मंच पर साधु भेष में प्रवेश) धोखा देने वाला धोखा खा गया है। रेडबास, तुम और तुम्हारा अड्डा हिन्दुस्तान की बहादुर पुलिस के कब्जे में है। (अपनी बाल-दाढ़ी हटाता है) जिस संगीता के सिगनल का तुम्हें इंतजार है, वह वीरों के देश की बहादुर बेटी है। दुश्मन का लश्कर-ए-फौज पवित्र हिन्दुस्तान की धरती पर कदम नहीं रख सकता। दुश्मन के कदम जल जाएंगे। बदहौसले के परखचे उड़ जाएंगे। सुनो, ट्रांसमीटर से आ रही आवाज को गौर से सुनो। सुनो, उस गूंज को।
संगीता : मैं दुश्मन के लश्कर-ए-फौज को अपनी पीठ पर बांध रखे टाइमबम से उड़ाने जा रही हूं।
रेडबास : लड़की, क्या बकती हो।
संगीता : विदा रंजन साहब, विदा वतन के लोगों, अलविदा प्रिय अशोक….। कुछ पल बाद मेरा अस्तित्व नहींहोगा, पर मेरा वतन महफूज रहेगा, मेरे देश का तिरंगा हिमालय की तरह ऊंचा रहेगा।
रेडबास : (जेब से जहरीली दवा निकालकर मुंह में डालता है। विक्षिप्त अट्हास करता है।) हा..हा..हा..। मैं हूं हिन्द का नया सरताज, हा..हा..हा.. (भयानक धमाका होता है) यह कैसी आवाज गूंज उठी है?
अशोक : शैतान, सुन, जो आवाज गूंज उठी है। इस गूंज में अकेली संगीता का नहीं, हिन्दुस्तान के करोड़ों बेटियों की आवाज है। (रेडबास कटे पेड़ की तरह गिरता है। अशोक नकाब हटाता है तो चेहरा देख चौंक पड़ता है) प्रभुनाथ…!
(नाटक समाप्त)

—————–

नाटक : आवाज गूंज उठी
नाटककार : कृष्ण किसलय
संपर्क :
सोनमाटी.प्रेस गली, जोड़ा मंदिर, न्यू एरिया
पो. डालमियानगर-821305
डेहरी-आन-सोन, जिला रोहतास (बिहार)
फोन 9708778136, 9523154607


कृष्ण किसलय की प्रकाशित पुस्तकेें

1. समाज ने क्या दिया (20वींसदी के आठवें दशक का बहुचर्चित सामाजिक नाटक। सामाजिक समस्या दहेज के कारण नाटक की कथावस्तु अब भी प्रासंगिक। यह समस्या आज बिहार सरकार की चिंता का विषय है।)
2. पहचान (पुस्तक संपादक माधव नागदा, राजस्थान) में लघुकथा पहला उपदेश संकलित। टाइम्स इंडिया समूह की पत्रिका सारिका में प्रकाशित इस लघुकथा को अखिल भारतीय प्रतियोगिता में द्वितीय स्थान प्राप्त।
3. हिंदी पत्रकारिता : विधाएं और आयाम (पुस्तक संपादक अमरेंद्र कुमार) में हिंदी विज्ञान पत्रकारिता पर शोध आलेख। यह पुस्तक बिहार के दो विश्वविद्यालयों के पत्रकारिता विभाग में संदर्भ ग्रंथ के रूप में अनुशंसित।

प्रकाशनाधीन, पांडुलिपि कार्यपूर्ण, अप्रकाशित और लेखनाधीन पुस्तकेें :

1. हेलो जिंदगी तुम कहां हो : पृथ्वी से दूर दूसरे ग्रहों पर जीवन की वैज्ञानिक खोजों और अगली सादियों में आदमी की जीवनशैली को रेखांकित करने वाली विज्ञान पुस्तक।

2. कहीं देर न हो जाए (संकट में पृथ्वी, खतरे में जीवन) : पर्यावरण, विज्ञान से संबंधित विषयों पर दैनिक प्रभात (मेरठ, लखनऊ) में अपने साप्ताहिक स्तंभ (प्रतिबिंब) में और दैनिक जागरण (देहरादून, दिल्ली), उमर उजाला (वाराणसी) में बतौर विशेष रिपोर्ट प्रकाशित लेखों का पुस्तक रूप में संग्रह।

3. सूरज दादा चंदा मामा धरती मां मंगल भाई : तारा सूर्य और सौरमंडल के पृथ्वी, मंगल सहित आठ ग्रहों और चंद्रमा सहित अन्य उपग्रहों के बारे में वैज्ञानिकों खोजों की अपटुडेट कहानी। इनके बारे में संदर्भवश वैदिक, पौराणिक काल के ज्ञान के साथ पारंपरिक सांस्कृतिक जानकारी भी।

4. तिल-तिल मरने की दास्तां : एशिया प्रसिद्ध रहे बिहार के डालमियानगर कारखानों के हड़प्पा-मोहनजोदड़ो जैसा श्मशान नगर बनने की मार्मिक-प्रमाणिक कहानी। सोनमाटी के विशेषांक में प्रकाशित, अब पुस्तक रूप में प्रकाशन की योजना।

5. ब्रिटिश राज के प्रथम विद्रोही : कुंवर सिंह से भी बहुत पहले 18वीं सदी में अंग्रेजी हुकूमत से के आरंभ में ही विद्रोह करने वाले बिहार के औरंगाबाद जिले के पवईगढ़ के राजा नारायण सिंह की खोजपूर्ण इतिहास कथा। सोनमाटी के विशेषांक में प्रकाशित। (पुस्तकाकार प्रकाशन की योजना)।

6. आवाज गूंज उठी : धर्म और राजनीति की आड़ में समाज को दीमक की तरह खाने वाले कुत्सित चेहरों को बेनकाब करने वाला राष्ट्रीयता की पृष्ठभूमि पर गढ़ा गया 20वींसदी का रंगमंचीय नाटक।

7. धरती का शैतान : औपन्यासिक बाल विज्ञान कथा।

8. लाली : 20वींसदी के आखिरी दो दशकों में आकाशवाणी, पटना से प्रसारित भोजपुरी कहानियों, वार्ताओं और संभवत: भोजपुरी में प्रथम विज्ञान लेख का पुस्तक रूप में संग्रह।

9. सुनो-सुनो एक पुरानी कहानी (अंडमान की रानी सोन राजा सिंधु दीवानी) : अंडमान के जंगलों से बाहर आकर आदमी के कैमूर की गुफाओं में शरण लेने और गुफा से बाहर निकलकर सोन नद की घाटी में परिवार (समूह) बनाकर सभ्यता की प्रथम नींव रखने और सभ्यता यात्रा के दुनिया के सबसे पुराने पड़ाव सिंधु घाटी तक पहुंचने की वैज्ञानिक तथ्यों, ऐतिहासिक-सांस्कृतिक साक्ष्यों और वैदिक-पौराणिक आख्यानों के ज्ञान-तत्व पर आधारित शोध-खोजपूर्ण इतिहास कथा।

10. समय लिखेगा इतिहास : किशोर उम्र से जीवन-यात्रा और लेखन-पत्रकारिता के सफर में संघर्ष और सफलता-विफलता का आत्मकथात्कम लेखा-जोखा।

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