(प्रसंगवश/कृष्ण किसलय) : इस उपद्रव की स्वीकृति नहीं, मगर इस कृत्य की पड़ताल भी जरूरी

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इस उपद्रव की स्वीकृति नहीं, मगर इस कृत्य की पड़ताल भी जरूरी
-कृष्ण किसलय (संपादक : सोनमाटी)

जरा कल्पना करें कि किसी शहर के अति व्यस्त प्रमुख सड़क पर उपद्रवी हाथों में ईंट-पत्थर हों, करीब चार घंटों तक हंगामा-उत्पात करने वाली भीड़ की अराजकता कायम हो, शहर और आस-पास का जनजीवन दहशत में अस्त-व्यस्त हो गया हो। अराजक माहौल पर काबू पा लेने के बाद भी अगला कई दिन इस संशय में गुजरा हो कि उपद्रवियों के कारण कहींमाहौल फिर बिगड़ न जाए और दूसरी जगहों पर भी उपद्रव फूट न पड़े। ऐसा 05 अप्रैल को हुआ बिहार के रोहतास जिला मुख्यालय शहर सासाराम में, जहां के गौरक्षिणी मुहल्ला में पुलिस टीम कोचिंग सेंटरों को बंद कराने गई थी और कोचिंग संचालक छात्र को आगे कर पुलिसटीम से उलझ गए। फिर बात ऐसी बढ़ी कि उत्पातियों की बड़ी भीड़ (झुंड) दो किलोमीटर दूर समाहरणालय तक जा घुसी और वहां तोड़-फोड़, आगजनी की। छात्र उपद्रवी भीड़ में कंधों पर बैग लटकाए, कपड़ा से मुंह ढांपे हुए थे।
जाहिर है कि कतिपय कोचिंग संचालकों ने विद्यार्थियों को गलत दिशा में उकसाने का कार्य किया। उनका कुकृत्य छात्रों के भविष्य को अंधकारमय बनाने वाला है। दोषी सिद्ध होने पर विद्यार्थियों का चरित्र प्रमाणपत्र नहीं बन सकेगा और न ही उन्हें सरकारी नौकरी मिल सकेगी। बेशक किसी सभ्य समाज के लिए अराजक और हिंसा का कृत्य निंदनीय है। ऐसे कृत्य पर सख्त कानूनी कार्रवाई होनी ही चाहिए। प्रशासन ने ऐसा किया भी। चिह्निïत उपद्रवी गिरफ्तार किए गए और कोचिंग सेंटर सील कर दिए गए।
इस तरह के उपद्रव की स्वीकृति तो किसी परिस्थिति में नहीं दी जा सकती, मगर इसके पीछे के मनोविज्ञान और अचानक फूटे आक्रोश के विस्फोट में बदल गई इस घटना के पीछे के कारण की पड़ताल भी जरूरी है। छात्रों में क्षोभ है कि शिक्षण संस्थान बंद होने से पढ़ाई बाधित होती है। वे पिछले साल ऐसी स्थिति झेल चुके हैं। सामूहिक आक्रोश ने इसलिए भी उपद्रव का आकार ग्रहण कर लिया कि कई राज्यों में चुनावी रैली हो रही हंै, बिहार में भी कई तरह के आयोजन हो रहे हैं, जबकि शिक्षण संस्थान बंद कराए जा रहे हैं। सवाल यह भी है कि क्या पुलिस टीम ने दुव्र्यवहार किया या फिर चिंगारी भड़कने की कोई और वजह थी?
दरअसल कोरोना प्रोटोकाल लागू करने वाली प्रशासन की आपदा टीम पर हमलावर हो जाना आम जनता का रिसता हुआ आक्रोश है, जो कोरोना काल में आर्थिक और अन्य संकट से जूझ रही है। सासाराम का गौरक्षिणी मुहल्ला कोचिंग सेंटरों का हब है, जहां शहर और ग्रामीण इलाकों से घंटा वाले किस्तों में अध्ययन के लिए हजारों की संख्या में छात्र-छात्राएं पहुंचते हैं। इन सेंटरों से सैकड़ों की संख्या में शिक्षक-शिक्षिकाओं के रोजागर जुड़े हैं। लगातार शिक्षण संस्थानों की बंदी से छात्रों का करियर प्रभावित हो रहा है। विद्यार्थियों के इस सवाल को गैरवाजिब तो नहींकहा जा सकता कि जब चुनाव होंगे, दफ्तर, कचहरी खुले रहेंगे, तब आखिर कोचिंग संस्थान क्यों बंद रहेंगे? कोरोना गाइड लाइन के तहत कोचिंग और शिक्षण संस्थान ही बंद रखने का दबाव क्यों? वास्तव में पूरी मानवता को निरुत्तर बनाए रखने वाली महामारी कोविड-19 के वैश्विक प्रकोप के इस कठिन दौर में कई स्तरों पर समुचित पहल की दरकार है। पहले खुद विद्यार्थियों के स्तर पर, अभिभावक-परिवार के स्तर पर और फिर समाज के स्तर पर पहल होनी चाहिए। सरकार को कारगर व्यावहारिक वैकल्पिक रास्ता अपनाना चाहिए। विद्यार्थियों को यहभूलना नहीं चाहिए कि बड़ा होकर उन्हें जिम्मेदार नागरिक बनना है और वे ही समाज-देश के भविष्य हैं। कितना अच्छा होता कि सड़कों पर पत्थराबाजी में बर्बाद हुई छात्रों की सामूहिक ऊर्जा स्कूलों-कालेजों में पढ़ाई के लिए दबाव बनाने में लगी होती।

संपर्क : सोनमाटी-प्रेस गली, जोड़ा मंदिर, न्यू एरिया, डालमियानगर-821305, जिला रोहतास (बिहार) फोन 9523154607, 9955622367 व्हाट्सएप 9708778136

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