पटना (सोनमाटी समाचार नेटवर्क)। साहित्य हमारे जीवन की अभिव्यक्ति है। साथ ही व्यक्ति और समाज का आईना भी। साहित्य की सशक्त विधाओं में हैं कहानी और उपन्यास। आज सोशल मीडिया के आ जाने के बाद भी कहानी और उपन्यास लिखे जा रहे हैं। कहानियां उपन्यास की पुस्तकें प्रकाशित हो रहीं हैं। लेकिन यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि 2।वीं सदी में साहित्य की किसी भी विधा की पुस्तकों के प्रति लोगों की रुचि कम हुई है। इसकी खास वजह सोशल मीडिया के माध्यम से उपलब्ध साहित्य है, जो आसानी से जन जन तक पहुंच जाता है। इसके लिए मोटी रकम खर्च करने की भी आवश्यकता नहीं पड़ती, और ना ही बाजार जाने की जरूरत पड़ती है। कम समय में और आसान तरीके से साहित्य उपलब्ध कराने में सोशल मीडिया सबसे अधिक कामयाब साबित हुई है। यह अलग बात है कि सोशल मीडिया पर भी अधिक लंबी चीजें पढ़ने के लिए किसी के पास समय नहीं है। सोशल मीडिया पर गीत, गजल, कविता और गद्य में लघुकथा सर्वाधिक पठनीय विधा बन गई है। यही वजह है कि साहित्यक पत्र पत्रिकाएं जिस गति से बंद होते जा रही हैं, उससे चौगुनी गति में, साहित्य सोशल मीडिया पर अपना पांव फैला रही है।
भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के तत्वाधान में ऑनलाइन गूगल मीट और फेसबुक के अवसर साहित्यधर्मी पत्रिका के पेज पर आयोजित ” हेलो फेसबुक कथा सम्मेलन” का संचालन करते हुए सिद्धेश्वर उपरोक्त उद्गार व्यक्त किया।
अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में युवा लेखिका डॉ नीलू अग्रवाल ने कहा कि सिद्धेश्वर के संयोजन में यह आयोजन काफी महत्वपूर्ण और उपयोगी रहा। पहले सत्र में डॉ अनुज प्रभात की कहानी ‘गर्ल्स प्लीज’ का पाठ किया गया,जो काफी सराहनीय रहा। डॉ प्रभात की कहानी ऐसे पुष्पों का गुच्छा है जिसमें हर रंग, हर गंध, हर मिजाज वाली कहानियां मिलती हैं, जो पाठक में अलग-अलग भाव पैदा करती हैं। कभी आह्लाल्दित करती हैं, तो कभी सोचने पर विवश करती हैं। उनकी कथा और शिल्प के अपने तेवर हैं। शानदार शिल्प और कथ्य के साथ जब प्रभावमयी भाषा का प्रयोग होता है तो कथा निखर उठती है।
‘गर्ल्स प्लीज’ स्त्री सबलीकरण की कथा है। लेखक पास पड़ोस के प्रति सक्रियता, नारी सुलभ जिज्ञासा, महत्वकांक्षी स्त्री, महंगाई, आदि विषयों पर गहराई से चिंतन करता हैं। डा. प्रभात की कहानी आपसी संबंधों, ग्रामीण परिवेश, नारी मन की संवेदना, सामाजिक विसंगतियों एवं प्रेम प्रसंगों की सूक्ष्म पड़ताल करने वाली हैं, जो तत्कालीन समय को प्रतिबिंबित करती हैं।
दूसरा सत्र में ‘कहानी उपन्यास के पुस्तकों की अपेक्षा सोशल मीडिया के प्रति पाठकों का आकर्षण क्यों?’ विषय पर चर्चा किया गया। सभी ने अपनी अपनी बातें रखी और सभी की बातों से निष्कर्ष सामने आया कि उपन्यास, कथा या अन्य पुस्तकें पढ़ना कम इसलिए हो गया है क्योंकि आजकल लोग आराम पसंद हो गए हैं। सभी के हाथों में मोबाइल आ गया है। नेट उपलब्ध है। लोगों के पास समयाभाव है। मनुष्य यंत्रवत हो गया है और अगर इसके परिणामों की बात करें तो वह यह है कि लोगों की पढ़ने की क्षमता घट गई है। सभी लिखना ही पसंद करते हैं और भाषाई अशुद्धि बहुत ज्यादा होती है।पहले अभिभावकों को भी पढ़ने की आदत थी। पहले मैगजीन, पेपर आदि घर में लगातार आते थे इसका प्रभाव बच्चों पर पड़ता था, परंतु अब जब पढ़ने की स्थिति कम हुई है और लोग सोशल मीडिया पर ज्यादा पढ़ने लगे हैं तो साहित्य की गुणवत्ता में कमी आई है। लोगों की कल्पना शक्ति कुंद हो गई है। मानसिक स्वास्थ्य पर खराब प्रभाव पड़ा है। ऐसे ही कितने विचार आज के मंथन में सामने आए।
ऋचा वर्मा के विचार से – सोशल मीडिया केवल टाइम पास का ही साधन नहीं बल्कि ज्ञान का अक्षय भंडार के रूप में भी शोहरत पा गया है । इसलिए अगर कहानी या उपन्यास की पुस्तकों की अपेक्षा लोग सोशल मीडिया पर ज्यादा सक्रिय होते हैं तो इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं है। टीवी पर बहुत सारे कार्टून शो आते हैं जो अक्सर बच्चों वाले घरों में चलते रहते हैं। जब बच्चों को रंगीन पुस्तकों के बदले मोबाइल और टीवी पकड़वा दिया जाए तो भला उन्हें किताबों से जान पहचान भी होगी तो कब और कैसे! बड़ों के साथ भी यही बात हैं। अब किताबें खरीदने और फिर उन्हें बैठकर पढ़ने से बेहतर उन्हें लगता हैं, वे टीवी खोल कर अपने पसंदीदा कार्यक्रम देख ले। लोगों की इसी पसंद को नजर में रखते हुए दूरदर्शन ने बहुत सारे क्लासिक उपन्यासों का फिल्मीकरण किया जिसमें प्रेमचंद, शरदचंद, आशापूर्णा देवी की कृतियों पर आधारित शोज से लेकर वागले की दुनिया जैसी प्रसिद्ध कृतियों पर फिल्में बनीं जिन्होंने लोकप्रियता के उच्चतम शिखर को छुआ।
वंदना सहाय ने कहा – संवेदनशुन्यता के इस दौर में अधिकतर लोग साहित्य में भी मनोरंजन ढूँढ़ रहे है। कहानी, उपन्यास की किताबें उबाऊ हो सकतीं हैं, पर सोशल मीडिया पर मिलती हर सामग्री मनोरंजन को बढ़ावा देती है।
डॉ लोकनाथ मिश्र ने कहा कि बदलती जिंदगी और यह बदलाव हाल के कुछ वर्षों में बहुत तेजी से हुआ है। सूचना के सुपर हाईवे पर त्वरित गति से चीजें बदल रही हैं और इस बदलाव की दस्तक दूर दूर तक सुनी जा रही है । टीवी सीरियल, टीवी मूवी ( छोटे अवधि की मूवी), या बड़े पर्दे की मूवी जिसे सिल्वर स्क्रीन कहते हैं शुरू से आकर्षण के केंद्र रहे हैं । ऑडियंस की संख्या बहुत ज्यादा रहती हैं । फिल्मी गाने तो लोग हमेशा से गुनगुनाते रहे हैं। फिल्मों के जो डायलॉग हैं, लोगों की जबान पर रहते हैं। बहुत कम समय में दर्शक अपने आपको फिल्म के नायक के चरित्र से जोड़ लेते हैं। फिल्मों का नाटकीय पक्ष काफी प्रभावी होता हैं। यही कारण है कि टीवी सीरियल हो या फिल्म के प्रति लोगों की दीवानगी देखी जाती रही हैं।
राज प्रिया रानी के कहा आज अध्ययन को नापसंद किया जाता है बल्कि पाठक ज्यादा समझदार पढ़े-लिखे गहराइयों को समझते हुए और अधिक पठनशील हो गए हैं। पढ़ने की रुचि आज भी कम नहीं सोशल मीडिया के माध्यम से पता कर लेते हैं क्या पढ़ना है क्या नहीं देखना है अपना मनोरंजन किस विधा से पूर्ण हो सकता है इसका मूल्यांकन सोशल मीडिया के माध्यम से ही लोग कर लेते हैं। आज भी पुस्तकों की अलमारी सजी हुई होती है और बीते कल भी थी। परंतु अंतर या था कि बीते कल हर सवाल का जवाब भरी अलमारी होती थी।
” हेलो फेसबुक कथा सम्मेलन” में विचार गोष्ठी के साथ-साथ देश के छः प्रतिनिधि कथाकार, डॉ अनुज प्रभात ने ‘गर्ल्स प्लीज’, डॉ नीलू अग्रवाल ने ‘चाह’, अजित कुमार ने ‘अंधभक्ति’ , डॉ अनिता रश्मि ने ‘मणिकार्णिका घाट पर’, वंदना सहाय ने ‘डूबती सांझ का सवेरा’ पाठ किया। संचालन में भागीदारी करते हुए अपूर्व कुमार ने कहा कि – पत्र पत्रिकाएं अच्छी कहानियां उपन्यास लघुकथाएं या कविताएं प्रकाशित करें या ना करें, लेखक स्वयं सोशल मीडिया के पेज पर, अपनी रचना पोस्ट कर देता है। जहां अच्छी रचनाएं होने पर ढेर सारे दर्शक और श्रोता भी मिल जाते हैं। क्योंकि सोशल मीडिया खुला मंच होता है।
लगभग तीन घंटे 30 मिनट तक चली इस कथा सम्मेलन में देशभर के दर्शकों और सदस्यों की भागीदारी रही ।
इस कथा सम्मेलन में मुरारी मधुकर, डॉ गोरख प्रसाद मस्ताना, हरि नारायण हरि, सुधा पांडे, श्रीकांत गुप्ता, अमलेश कुमार, शशि दीपक कपूर, संतोष मालवीय,आलोक चोपड़ा, मीना कुमारी परिहार, दुर्गेश मोहन, सागरिका राय, प्रियंका श्रीवास्तव शुभ्र, आदि लोगों ने अपने कमेंट के माध्यम से विचार व्यक्त किया ।
प्रस्तुति : ऋचा वर्मा, सचिव, एवं सिद्धेश्वर, अध्यक्ष, भारतीय युवा साहित्यकार परिषद, (मोबाइल –923 4760365)
( इनपुटः निशांत राज)