पटना (सोनमाटी समाचार नेटवर्क)। आज के व्यस्ततम समय में एवं लिखी जा रही बोझिल कविताओं के दौड़ में यदि किसी की लयात्मक कविताएँ आपके हृदय को छू ले, तो यह उस समकालीन कवि की सबसे बड़ी उपलब्धि मानी जाएगी। ऐसे में लयात्मक कविताओं के धनी वरिष्ठ कवि डा. शरद नारायण खरे कवियों की श्रेणी में अग्रणी नज़र आते हैं।
उन्होंने इस कार्यक्रम के दौरान एक दर्जन के करीब गीत- गजलों का पाठ भी किया। एक तरफ उनकी कविताएँ देशभक्ति की भावना से ओतप्रोत थी, तो दूसरी तरफ उनकी गज़लें जीवन के कटु यथार्थ को लिए हृदय में चुभन का एहसास करा रही थी।
भारतीय युवा साहित्यकार परिषद् के तत्वधान में यूट्यूब के पेज पर सिद्धेश्वर ने ऑनलाइन अवसर साहित्य पाठशाला के 28वें एपिसोड के अवसर पर हेलो फेसबुक कवि सम्मेलन का संचालन करते हुए उपरोक्त उद्गार व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि कविता, कहानी, गज़ल आदि किसी भी विधा में रचना की बात करें और लेखक-कवियों की चर्चा करें तो प्रेमचंद, निराला, मुक्तिबोध, राहुल सांकृत्यायन आदि को लेखक बनने के लिए किसी विश्वविद्यालय में जाकर डिग्री लेने की जरूरत नहीं पड़ी थी। सतत साहित्य का अध्ययन और सृजन ही उन्हें महान लेखक के रूप में स्थापित किया।
हमारे इस एपिसोड से बहुत सारे नए रचनाकार, सृजनात्मक जानकारी प्राप्त कर रहे हैं। आज की कविता पाठशाला में छंद में लिखी जारी कविताओं पर विशेष चर्चा की गई तथा मुख्य अतिथि डा. शरद नारायण खरे से एक छोटी सी भेंट वार्ता भी ली गई। डा. खरे से पूछे गए प्रश्नोत्तर से नए कवियों को छँद कविताएं लिखने की शैली की जानकारी हुई।
इस ऑनलाइन कार्यक्रम में मंडला(मप्र) के कवि-लेखक प्रो.शरद नारायण खरे ने बताया कि वर्तमान में साहित्य तो बहुतेरा लिखा जा रहा है,पर अधिकांश निरर्थक व साहित्य के मापदंडों के बाहर का है। उन्होंने ने बताया कि चाहे छंदबद्ध या मुक्तछंद में रचा जाए पर वह गुणपूर्ण होना चाहिए। कथ्य, लय, प्रवाह, बिम्ब के अभाव में सपाटबयानी वाली कविता को कविता मानना ही बेमानी है। वे कहते हैं कि आज के कवि-लेखक पढ़ने व सीखने की प्रवृत्ति से दूर हो गए हैं। वे दस-बीस कविताएँ लिखकर व कुछ डिजीटल सम्मान पत्र पाकर ही स्वयं को महान रचनाकार मानने के भुलावे में खोये हैं। जबकि सीखने से ही बेहतरी आती है। वैसे भी कवि-लेखक सदा विद्यार्थी होता है, उसे निरंतर सीखना चाहिए, तभी उसकी रचनाओं में स्तर का समावेश हो सकेगा। प्रो.शरद नारायण खरे ने न केवल दोहों, गीतों, छंदों के विधानों पर चर्चा की बल्कि अपने दोहों, गीतों व ग़ज़लों के माध्यम से मात्रा-गणना करना व लय को पकड़कर दोषमुक्त रचना लिखना भी बताया।
मुख्यातिथि के रूप में शामिल प्रो.शरद नारायण खरे जो मूलत: इतिहास के प्रोफेसर व वर्तमान में मध्यप्रदेश में डिग्री कॉलेज के प्रिंसिपल हैं। डा. खरे ने अन्य रचनाकारों की कविताओं का मनोयोग से न केवल श्रवण किया, बल्कि उन पर सार्थक टिप्पणियाँ भी कीं।
इस ऑनलाइन सम्मेलन के दूसरे सत्र में हेलो फेसबुक कवि सम्मेलन आयोजित की गई। जिसमें एक दर्जन कवियों ने अपनी कविताओं से समां बांध दिया। एकलव्य केसरी, डा. पूनम श्रेयसी, डा. सुधा पांडे, पुष्प रंज, सपना चंद्रा, संतोष मालवीय, नमिता सिंह, इंदू उपाध्याय, योगराज प्रभाकर, रजनी श्रीवास्तव अनंता, माधुरी जैन, बीना गुप्ता, राज प्रिया रानी, डा. गोरख प्रसाद मस्ताना, विजया कुमार विजय आदि ने अपनी प्रस्तुति दी।
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प्रस्तुति : बीना गुप्ता , जनसंपर्क पदाधिकारी, भारतीय युवा साहित्यकार परिषद, (मोबाइल –923 4760365)
Email : [email protected]
( इनपुटः निशांत राज)