संभावनाओं के द्वार खोलती है पंकज साहा की लघुकथाएं : सिद्धेश्वर

भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के तत्वावधान में- लघुकथा

पटना (कार्यालय प्रतिनिधि)। भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के तत्वावधान में गूगल मीट के माध्यम से अवसर साहित्यधर्मी पत्रिका के फेसबुक पेज पर हेलो फेसबुक लघुकथा सम्मेलन का संचालन करते हुए सिद्धेश्वर ने कहा कि छोटे आकार में कुछ भी लिख देना लघुकथा नहीं। सच पूछे तो लघुकथा, हिंदी ग़ज़ल और कविता की तरह एक बहुत ही नाज़ुक विधा है। छंदमुक्त कविता की तरह यह आज़ाद नहीं है। लघुकथा का अपना शास्त्रीय आकार- प्रकार आरंभ और अंत होता है और वह कालदोष से मुक्त होता है । किंतु इन बातों को बहुत कम लोग स्वीकार करते हैं या उपयोग में लाते हैं, जो लघुकथा के साथ मखौल है। माधव नागदा ने जैसा की एक जगह लिखा है-आधुनिक लघुकथा का जन्म 1970 से माना जाता है किंतु अब यह 50 वर्ष की युवा और सयानी हो चुकी है। लघुकथाओं में डॉ. पंकज साहा की लघुकथाएं भी शामिल है। जिसे एक नजर में कदापि अनदेखा नहीं किया जा सकता। एक कुली की मजबूरी को नंगी आंखों से देखा है लेखक ने। ठीक उसी प्रकार कातर आंखें भी गहरी संवेदना की मार्मिक लघुकथा है।

पंकज साहा की एक जिंदा लघुकथा है “जिंदा मछली।” अपने जीभ के स्वाद के लिए हम सिर्फ राक्षस नजर नहीं आते बल्कि मरी हुई संवेदनाओं का चादर ओढ़े हुए 21वीं सदी के रूढ़ि ग्रस्त मानव नजर आते और इसी बात को उन्होंने अपनी इस लघुकथा में व्यंग पूर्ण प्रहार करते हुए प्रकट किया है। डॉ. पंकज साहा की नवीन कृति “संभावना” में प्रकाशित अधिकांश लघुकथाएं एक तीखा व्यंग्य मारते हुए, पाठकों के हृदय में रच बस जाती है जाती है। उनकी इस लघुकथा कृति में प्रकाशित कुली, तरकीब, सृजन कर्म, कविता की समझ ,श्रद्धा,उतर गया पानी,युग धर्म, स्मार्टफोन व्यवस्था असर जवाब देही, देशभक्त जैसी कई लघुकथाओं को पढ़ने के बाद मैंने भी महसूस किया कि संभावनाओं के द्वार खोलती है पंकज साहा की लघुकथाएं।          

  अपने अध्यक्षीय टिप्पणी में लेखिका निशा भास्कर ने कहा कि विभिन्न प्रयोगों के द्वारा रचनात्मक शक्ति को प्रश्रय मिलता है। इस मंच के संयोजक और संस्थापक आदरणीय सिद्धेश्वर जी हैं,जो साहित्य सेवा के लिए समर्पित है। इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ. पंकज साहा जिन्होंने लघुकथा के तत्वों पर अपने बेहतरीन विचार रखा। पंकज जी एक समृद्ध लघुकथाकार है। इनकी लघुकथाएं कबीर की वाणी की तरह सटीक और व्यंग्यात्मक संवाद शैली में समाज की विभिन्न विसंगतियों पर प्रश्न खड़ा करती हैं। जो मानवीय संचेतना को सजग करने के लिए रामबाण की तरह कारगर है। मंच पर उपस्थित अन्य लघु कथाकारों ने भी अपनी-अपनी लघुकथाएं सुनाई। कुछ लघुकथाएं प्रयोगात्मक शैली पर आधारित थी। जिन पर अभी बहुत काम करना बाकी है। सिद्धेश्वर के द्वारा निरंतर किये जा रहे हैं प्रयासों से यह संभव है की लघुकथा विधा एक दिन साहित्यकारों के लिए पूंजी का काम करेगी। कार्यक्रम प्रभारी ऋचा वर्मा अपने प्रभार को विधिवत पूर्ण करते हुए कहा कि अपने पटल पर हर बार एक वरिष्ठ साहित्यकार को मुख्य अतिथि के रूप में पेश कर सिद्धेश्वर नए पुराने साहित्यकारों के लिए बहुत बड़ा कार्य कर रहे हैं उन्हे साधुवाद है।

प्रथम सत्र में मुख्य अतिथि डॉ. पंकज साहा की एक दर्जन लघुकथाओं का पाठ किया गया। इस ऑनलाइन लघुकथा सम्मेलन में पढ़ी गई  लघुकथाओं पर समीक्षात्मक टिप्पणी करते हुए मुख्य अतिथि डॉ. पंकज साहा कहा कि काया में लघु होने के बावजूद कथ्य, शिल्प एवं उद्देश्य की दृष्टि से लघुकथा ने हिंदी साहित्य में अपना कद ऊॅंचा कर लिया है। लघुकथा न छोटी कहानी है और न किसी कहानी का छोटा रूप। यह किसी विषय की फ्रेम के साथ पूरी तस्वीर होती है।

एक जमाना था जब पत्र-पत्रिकाओं में लघुकथाओं का इस्तेमाल फीलर के रूप में होता था, परंतु नये तेवरों एवं जन सरोकारों से जुड़ने के कारण लघुकथा साहित्य-भवन का जरूरी पीलर बन गयी है। आज हिंदी की लगभग सभी पत्र-पत्रिकाओं में लघुकथाऍं सम्मान के साथ छापी जा रही हैं। लघुकथाओं के अनेक एकल एवं साझा संग्रह छप चुके हैं। लघुकथाओं पर अनेक समीक्षात्मक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। इन पर अनेक विश्वविद्यालयों में शोधकार्य भी हो रहे हैं। इसके लिए मैं हृदय तल से उनका आभारी हूॅं।

इस कार्यक्रम में ऋचा वर्मा ने श्रेय, मंजू गुप्ता ने अनहद, सपना चंद्रा ने प्राइवेसी, गार्गी राय ने उपयोगिता, डॉ. पुष्पा जमुआर ने उपहार, अशोक दर्द ने आया, निर्मला कर्ण ने राम कसम, विजया कुमारी मौर्या ने कुत्ते का रोना, राज प्रिया रानी ने भिखारी का दर्द, निधि गौतम ने अच्छी रोशनी, नलिनी श्रीवास्तव ने तंज और रितु प्रज्ञा ने नदी बहती रही शीर्षक लघुकथाओं का पाठ किया। इसके अलावा अर्चना कोहली, रंजीत कुमार, अनिल कुमार, सुनील कुमार उपाध्याय, मानसी खान, निर्मल कुमार आदि ने भी लघुकथा का पाठ किया।

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