कर्नाटक : मोदी ब्रांड मजबूत, राहुल की साख कमजोर!

समाचार विश्लेषण

सबकी निगाहें कर्नाटक के राजभवन की ओर है कि वहां से क्या फैसला आता है ? बड़ा सवाल यह है कि 104 सीटें जीतने वाली बीजेपी 112 के जादुई आंकड़े को कैसे हासिल करेगी ? कर्नाटक विधानसभा चुनाव परिणाम से यह तो तय हो चुका है कि राजनीति का नया मोदी ब्रांड सारे कयासों, किंतु-परंतु को पीछे छोड़ते हुए और मजबूत हुआ है। सियासत के पुराने ब्रांड कांग्रेस की साख लगातार कमजोर हुई है। अब देखना है कि चुनाव परिणाम और बदले हुए घटनाचक्र में कांग्रेस का यह किला बच पाता है या नहीं ? भाजपा को दक्षिण भारत में बतौर प्रवेश-द्वार कब्जा कायम करने का मौक मिलता है या नहीं ?

 

बेंगलुरू (सोनमाटी समाचार)। कर्नाटक में पिछले विधानसभा चुनाव के मुकाबले इस बार ज्यादा मत प्राप्त करने और ज्यादा सीटों पर जीत हासिल करने वाली भाजपा की सरकार बनेगी या बहुमत (सबसे अधिक मत प्रतशित) प्राप्त कर भी दूसरे स्थान पर सिकुड़ जाने वाली कांग्रेस के समर्थन से जेडीएस की? इस सवाल का जवाब आने वाले कुछ घंटों के लिए फिलहाल भविष्य के गर्भ में है। फिर भी कर्नाटक विधानसभा चुनाव परिणाम से यह तो तय हो चुका है कि राजनीति का नया मोदी ब्रांड सारे कयासों, किंतु-परंतु को पीछे छोड़ते हुए और मजबूत हुआ है। सियासत के पुराने ब्रांड कांग्रेस की साख लगातार कमजोर हुई है। अब देखना है कि चुनाव परिणाम और बदले हुए घटनाचक्र में कांग्रेस का यह किला बच पाता है या नहीं? भाजपा को दक्षिण भारत में बतौर प्रवेश-द्वार कब्जा कायम करने का मौक मिलता है या नहीं?

 काम नहीं आई प्रधानमंत्री पद के दावेदार होने की स्पष्ट स्वीकारोक्ति
कर्नाटक विधानसभा के चुनाव परिणाम यह बता रहे हैं कि राहुल गांधी के प्रधानमंत्री पद के दावेदार होने की स्पष्ट स्वीकारोक्ति काम नहीं आ सकी। क्या जनता राहुल गांधी को राजनीतिक खिलाड़ी के रूप में अभी भी परिपक्व नहीं मान रही? जबकि 2004 में ही कांग्रेस की ओर से राहुल को प्रधानमंत्री बनाया जा सकता था, मगर सत्ता डा. मनमोहन सिंह को सौंप दी गई। तब क्या 2004 में ही राहुल गांधी के केेंद्रीय सरकार में मंत्री पद दिया जाना चाहिए था और राहुल को ऐसा स्वीकार करना चाहिए था, जिससे जनता में उनकी सरकार चलाने की योग्यता पर मुहर लगती? कांग्रेस ने कर्नाटक चुनाव इस प्रचार के साथ भी लड़ा कि नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता उतार पर है और उनकी नीतियों को लेकर जनता में आक्रोश है। मगर चुनाव परिणाम ने बता दिया कि जनता का भरोसा नरेंद्र मोदी में अभी बना हुआ है। परिणाम से यह सवाल भी उभरकर सामने आया है कि क्या गुजरात में कड़ी टक्कर देने वाली कांग्रेस में राहुल गांधी का नेतृत्व कर्नाटक में कमजोर हो गया ?

इन सारे सवालों-कयासों का जवाब भले ही आने वाले समय में ही मिल सकेगा, मगर कर्नाटक का नतीजा तो राहुल गांधी के नेतृत्व पर सवाल खड़ा करता ही है। कांग्रेस का अध्यक्ष बनने के बाद उनके लिए कर्नाटक का चुनावी नतीजा पहला बड़ा झटका है। बेशक, इससे उनकी अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री के उम्मीदवार होने की दावेदारी कमजोर पड़ गई है और सहयोगी दलों के कांग्रेस पर दबाव बढ़ाने की स्थिति ताकतवर हो गई है।

बसपा ने लिया  सपा को छोड़कर जेडीएस से हाथ मिलाने का फैसला
मायावती की बहुजन समाज पार्टी ने कर्नाटक विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के साथ रहने की रणनीति को छोड़कर अचानक एकतरफा फैसला लेकर जेडीएस से हाथ मिला लिया था। हालांकि इस फैसले के बावजूद कर्नाटक विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी एक ही सीट पर जीत हासिल कर सकी और उसका मत प्रतिशत भी पिछले चुनाव के 1.16 फीसदी से घटकर 0.3 फीसदी पर सिमट गया। 1996 में पार्टी की कमान संभालने के बाद पहली बार मायावती ने प्री-पोल अलायन्स किसी राजनीतिक पार्टी के साथ किया।

कांग्रेस को 38 फीसदी मत, भाजपा को 36 फीसदी
कर्नाटक विधानसभा में कुल 224 सीटों में 222 पर मतदान हुआ, जिसमें भारतीय जनता पार्टी  को 104, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को 78, जनता दल सेक्युलर (जेडीएस) को 38, बहुजन समाज पार्टी को एक और अन्य को एक सीट हासिल हुई है। कर्नाटक में 2013 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 122 सीटें जीतकर किला फतह किया था। 2018 में यह संख्या घटकर 78 हो गई। फिर भी कांग्रेस के मतदान प्रतिशत में इजाफा हुआ है। इस बार कांग्रेस को 38 फीसदी मत मिला, जबकि 2013 में 36.6 फीसदी मत मिला था।

भाजपा के मत प्रतिशत में तो चार फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। उसे 2013 में 32 फीसदी वोट मिला था। चुनाव परिणाम बता रहा है कि लिंगायत समुदाय के साथ अन्य समुदायों के लोग भी इस बार के चुनाव में भाजपा के साथ आ गए। लिंगायत समुदाय में कांग्रेस सेंध नहीं लगा सकी। दलितों की बहुलता वाली सबसे ज्यादा (25 सीटों पर) भाजपा आगे है। संभवत: आरएसएस की ओर से आदिवासियों-दलितों के बीच काम का लाभ भाजपा को मिला है। 24 फीसदी दलित आबादी वाले इस राज्य में एससी एसटी के लिए 51 सीटें सुरक्षित है।

जेडीएस को 2013 में 20.2 फीसदी मत प्राप्त हुआ था, जो 2013 की तुलना में 2 फीसदी कम 18.3 फीसदी है। फिर भी सीटों के आंकड़े में जेडीएस निर्णायक भूमिका में आ गई है। पिछले चुनावों में जेडीएस ने 40 सीटें हासिल की थी। जेडीएस ने इस बार भी सभी को चौंकाते हुए पिछली बार के मुकाबले अच्छा प्रदर्शन किया है।

कर्नाटक विधानसभा चुनाव में अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी (आप) को दिल्ली और पंजाब से बाहर पांव पसारने के प्रयासों को झटका लगा है। भाजपा की जीत दर्ज होने के के बाद कांग्रेस प्रवक्ता संजय निरुपम ने कहा कि जो जीतता है उसकी रणनीति को सलाम किया जाता है।  उन्होंने कहा कि बीजेपी की जीत अच्छी बात है, ये लोकतंत्र के लिए ये ठीक नहीं है।

निगाहें राजभवन की ओर, किसे मिलता है सरकार बनाने का न्योता
बहरहाल, कांग्रेस ने सियासत के मैदान में भाजपा को सत्ता हासिल करने से रोकने के लिए मौके पर चौका मारते हुए बड़ा दांव चला है। उसने पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा की पार्टी जनता दल सेक्युलर (जेडीएस) को समर्थन देने का ऐलान कर दिया। इसके बाद कांग्रेस-जेडीएस की ओर से जेडीएस के कुमारस्वामी ने सरकार बनाने का दावा राज्यपाल के सामने पेश किया। अब सबकी निगाहें राजभवन की ओर है कि वहां से क्या फैसला आता है? आमतौर पर राज्यपाल बहुमत में आए बड़े दल को ही सरकार बनाने का आमंत्रण देते हैं। हालांकि सबसे बड़ी पार्टी को ही सरकार बनाने के लिए न्योता दिया जाए, यह तयशुदा नियम नहींहै। माना जा रहा है कि कांग्रेस के इस दांव के पीछे किंगमेकर के रूप में मायावती का हाथ है, जिन्होंने कांग्रेस की सोनिया गांधी और जेडीएस के एचडी देवागौड़ा से बात करने की अग्रणी पहल की।

भाजपा ने भी किया सरकार बनाने का दावा, कैसे हासिल करेगी जादुई आंकड़ा 

उधर, बहुमत के हिसाब से सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते भाजपा ने भी सरकार बनाने का दावा किया है। सबसे बड़ा सवाल है कि 104 सीटें हासिल करने वाली भाजपा आखिर बहुमत सिद्ध करने का जादुई आंकड़ा 112 को कैसे हासिल करेगी? क्या वह कांग्रेस के विधायकों को या जेडीएस के विधायकों को तोड़ेगी? अगर राज्यपाल का फैसला तुरंत नहींआता है तो इस बात की आशंका से इनकार नहींकिया जा सकता कि विधायकों की खरीद-फरोख्त का बाजार परवान चढ़ेगा। भले ही बिक जाने वाले विधायक अंतरआत्मा का फैसला बताएं। देखना यह भी है कि कांग्रेस और जेडीएस अपने-अपने विधायकों को खरीद-फरोख्त की हार्स ट्रेडिंग की सियासी तिजारत से कैसे बचा पाती है?

विश्लेषण//समाचार संयोजन : कृष्ण किसलय
(सोनमाटी समाचार के लिए इनपुट : डेहरी-आन-सोन में निशांत राज, बेंगलुरू में राहुल अभिषेक )

 

वाराणसी हादसा : चार निलंबित, जांच समिति गठित, मृतकों को पांच लाख मुआवजा

लखनऊ (विशेष प्रतिनिधि)। वाराणसी में कैंट स्टेशन के पास निर्माणाधीन पुल का हिस्सा गिरने और 18 लोगों की मौत होने की घटना के कुछ घंटों के बाद उत्तर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने वाराणसी पहुंचकर पुल निर्माण से जुड़े चार अधिकारियों को सस्पेंड कर दिया। जबकि घटना के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी वाराणसी पहुंच कर अधिकारियों को घायलों के इलाज के लिए हर संभव इंतजाम का निर्देश दिया।

वाराणसी में 15 मई की शाम निर्माणाधीन पुल का हिस्सा गिरने के कारण दर्जनों लोग मलबे में दब गए। हादसे में 18 लोगों की तत्काल मौत होने की पुष्टि हुई, जबकि हादसे में 50 से ज्यादा लोग घायल हुए। एनडीआरएफ और सेना की टीमें राहत कार्यों में लग गई हैं। उत्तर प्रदेश सरकार ने हादसे में मृत लोगों के परिजनों को पांच लाख और गंभीर रूप से घायलों को दो लाख रुपये का मुआवजा देने की घोषणा की है।

जांच के लिए एक हाई पावर कमिटी

मुख्यमंत्री के अनुसार, हादसे की जांच के लिए एक हाई पावर कमिटी का गठन कर 48 घंटे में जांच रिपोर्ट सौंपने का आदेश दिया गया है। रिपोर्ट में जो भी दोषी पाया जाएगा, उस पर सरकार कठोर कार्रवाई करेगी। राज्य सरकार द्वारा गठित जांच कमिटी में उत्तर प्रदेश के कृषि उत्पादन आयुक्त राजप्रताप सिंह, सिंचाई विभाग के प्रमुख अभियन्ता भूपेंद्र शर्मा और उत्तर प्रदेश जल निगम के प्रबंध निदेशक राजेश मित्तल शामिल है।

हादसे के बाद जिन अफसरों पर निलंबन की गाज गिरी है, उनमें चीफ प्रॉजेक्ट मैनेजर एचसी तिवारी, प्रॉजेक्ट मैनेजर केएस सूदन, सहायक अभियंता राजेंद्र सिंह और अवर अभियंता लालचंद शामिल है। प्रदेश सरकार की ओर से मृतकों के परिवार को 5 लाख रुपये और घायलों को 2 लाख रुपये की आर्थिक सहायता देने की घोषणा की गई है।
घटना के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घटनास्थल पर चल रहे राहत कार्य के संबंध में जानकारी ली है। वाराणसी हादसे पर दुख जताते हुए प्रधानमंत्री ने अपने ट्वीट में लिखा है कि सरकार हादसे से प्रभावित लोगों की मदद के लिए जमीनी स्तर पर काम कर रही है।

वेब रिपोर्ट : विजय कुमार श्रीवास्तव

 

न्यायिक दंडाधिकारी  का डेहरी अनुमंडल विधिज्ञ संघ ने किया स्वागत

डेहरी-आन-सोन (रोहतास)-सोनमाटी संवाददाता। अनुमंडल व्यवहार न्यायालय में न्यायिक दंडाधिकारी (द्वितीय श्रेणी) चंंदनकुमार वर्मा ने पदभार ग्रहण कर लिया। इस अवसर पर डेहरी अनुमंडल विधिज्ञ संघ की ओर से संघ के अध्यक्ष उमाशंकर पांडेय (उर्फ मुटुर पांडेय), सचिव मिथिलेशकुमार सिन्हा, कमल सिन्हा व संघ के अन्य पदाधिकारियों के साथ वरिष्ठ अधिवक्ताओं बैरिस्टर पांडेय, ओमप्रकाश सिन्हा, चंद्रिका राम, सुनील कुमार वर्मा और मनोज अज्ञानी ने नए दंडाधिकारी का पुष्पगुच्छ देकर संघ की ओर से स्वागत किया। डेहरी अनुमंडल विधिज्ञ संघ के अध्यक्ष उमाशंकर पांडेय ने कहा कि युवा दंडाधिकारी के कार्य-व्यवहार से बेंच व बार में बेहतर प्रोफेशनल संबंध कायम होगा और लोगों को त्वरित न्याय मिलेगा, यह उम्मीद की जानी चाहिए।

उधर, डेहरी अनुमंडल विधिज्ञ संघ के प्रतिनिधि मंडल ने रोहतास जिला के मुख्यालय सासाराम में पहुंचकर नए जिलाधिकारी पंकज दीक्षित का संघ की ओर से स्वगात किया और यह उम्मीद जाहिर की कि जिला प्रशासन संघ की समस्याओं के निष्पादन में वांछित सहयोग करेगा। संघ के प्रतिनिधि मंडल में डेहरी अनुमंडल विधिज्ञ संघ के अध्यक्ष उमाशंकर पांडये (उर्फ मुटुर पांडेय), मुनमुन पांडेय आदि शामिल थे।

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