– आय में अव्वल मगर दशा कबाड़घर जैसी, प्रदेश-द्वार से टिकट घर तक सालो भर मिली-भगत से फुटपाथी दुकानदारों का कब्जा
-ए-श्रेणी का रेल स्टेशन, मगर जरूरी सुविधाओं से भी मरहूम
-दशकों से 650 ग्राम में एक किलो वजन की ठगी का प्रसारक भी है यह रेल स्टेशन
– डेहरी विकास मोर्चा, चैंबर्स आफ कामर्स सहित विभिन्न संगठनों के ज्ञापन के बावजूद वाजिब हक देने में अनसुनी, आंदोलन की चेतावनी
डेहरी-आन-सोन (बिहार)-विशेष प्रतिनिधि। बिहार और उत्तर प्रदेश को जोडऩे वाले मुगलसराय (दीनदयाल उपाध्याय) रेल मंडल का प्रमुख रेल स्टेशन डेहरी-आन-सोन मुगलसराय और गया के बाद सर्वाधिक आय वाला और श्रेणी-ए का होने के बावजूद एक खूबसूरत आधुनिक परिवहन संसाधन के बजाय किसी कबाड़घर की तरह दिखता है, जिसका अहसास किसी भी यात्री और रहगुजर को इसके प्रवेश-द्वार पर पहुंचते ही हो जाता है। कमजर्फ कंस्ट्रक्शन के कारण इस स्टेशन के बाबत तो यह धारणा कायम होती जा रही है कि यहां हर ट्रेन के साथ मौत इंतजार करती है, क्योंकि कोई यात्री ट्रेन से चढऩे-उतरने के क्रम में समय की पाबंदी और भीड़ की हड़बडाहट में असावधान हुआ कि उसे जान से हाथ भी धोना पड़ सकता है। डेहरी-आन-सोन रेल स्टेशन के प्लेटफार्म संख्या एक और दो का तो निर्माण मानक के अनुसार हुआ ही नहीं है। इस कारण दुर्घटना भी इन दोनों प्लटेफार्म पर अधिक होती हैं, जो कई बार जानलेवा साबित हुई हैं। जीआरपी थाना में दर्ज आंकड़ा बताता है कि प्लेटफार्म के उपयुक्त निर्माण नहीं होने के कारण हड़बड़ाहट की स्थिति में ट्रेन पर चढऩे-उतरने के क्रम में औसतन हर महीने एक व्यक्ति की मौत होती है। पिछले एक साल में तो ट्रेन दुर्घटना से मौत का आंकड़ा डेढ़ दर्जन का है।
न बेहतर टिकट घर, न डीलक्स शौचालय, न कोच लोकेटर
ए-श्रेणी का स्टेशन होने के बावजूद यह अनेक तरह की सुविधाओं से मरहूम है। इस रेलवे स्टेशन पर डीलक्स शौचालय होना चाहिए और कोच लोकेटर की व्यवस्था होनी चाहिए। दोनों ही यहां नदारद हैं। कब होंगे, इसका सटीक जवाब यहां किसी रेल अधिकारी के पास नहीं है। सामान्य काउंटर वाले टिकट घर की अलग और आरक्षण काउंटर वाले टिकट घर की अलग व्यवस्था होनी चाहिए, जो यहां मयस्सर नहीं है। रेलवे स्टेशन पर सामान्य श्रेणी के टिकट के लिए और आरक्षित श्रेणी के टिकट के लिए चार-चार काउंटरों की व्यवस्था है। मगर यह व्यवस्था पिछली सदी में ही बने कम जगह वाले संकरे टिकट घर परिसर में नई सदी में भी जारी है। जबकि इन टिकट काउंटरों पर हर रोज सैकड़ों लोग टिकट लेने पहुंचते हैं और हजारों की संख्या में रेल टिकटों की ब्रिकी होती है। प्रवेश-द्वार पर सौंदर्यीकरण के नाम पर फौव्वारा लगा है, जो बंद रहता है।
प्लेटफार्मों पर गंदगी से बजबजाते रहते हैं शौचालय व पेशाबघर
प्लेटफार्म संख्या एक, चार और पांच पर कोई शौचालय और पेशाबघर नहीं है। प्लेटफार्म संख्या दो, तीन के वेटिंग रूम के शौचालयों में ताला बंद रहता है और यात्रियों के उपयोग के लिए बने इस साधन का इस्तेमाल रेल के कर्मचारी करते हैं। प्लेटफार्म संख्या-एक पर झारखंड जाने वाली पैसेंजर ट्रेनों का ठहराव होता है और इस प्लेटफार्म पर शौचालय-पेशाबघर की सबसे अधिक व्यवस्था है। प्लेटफार्म दो और तीन पर जो शौचालय व पेशाबघर हैं, वहां इतनी गंदगी होती है कि यात्रियों के लिए उनके सामने खड़ा होना दुश्वार हो जाता है। प्लेटफामोंं पर साफ पेयजल के लिए नल लगे हुए हैं, जिनमें अधिसंख्य बंद, खराब रहते हैं। यही कारण है कि प्लेटफार्म पर भी यात्रियों को बोतलबंद पानी खरीदना पड़ता है। पेयजल और शौचालय की मानीटरिंग की जवाबदेही रेल स्वच्छता निरीक्षक की है, मगर रेल स्वच्छता निरीक्षक या इसके कार्यालय के प्रतिनिधि का रेल स्टेशन पर दर्शन नहीं होते, ताकि यात्री शिकायत कर सकेें।
सालोभर सजा रहता है मीना बाजार और लगी रहती है ठग फुटकर फल मंडी
स्टेशन परिसर में टिकट घर के बाहर और प्रवेशद्वार तक सालो भर अवैध मीना बाजार और फुटकर फल मंडी सजी रहती है। रेलवे स्टेशन की फुटकर फल मंडी चींखती हुई ठगी की सबसे ढीठ जगह है, जहां 650-700 ग्राम का एक किलो वाले बंटखरे से फल तौलकर ग्राहकों को दिए जाते हैं। इसकी जांच न तो जीआरपी करती है और न आरपीएफ। माप-तौल विभाग का काम उनका नहीं है, यह कहकर दोनों पुलिस एजेंसियां अपनी जिम्मेदारी से हाथ झाड़ लेती हैं। मगर धोखाधड़ी, चारसौबीसी, ठगी क्या अपराध नहीं है और इसमें जीआरपी पहल नहीं कर सकती? रेल स्टेशन परिसर में अवैध सजे मीना बाजार और अवैध फुटकर फल मंडी को क्या आरपीएफ नहीं हटा सकती है? तब क्या दोनों के इस अवैध कार्य में शामिल होने का लगने वाला आरोप सही है? दशकों से जारी रेलवे स्टेशन की फुटकर फल मंडी की कम तौल की आपराधिक प्रवृत्ति अब स्टेशन के निकट निजी लाइट रेलवे कंपनी की जमीन पर लगने वाली सब्जी मंडी में भी पहुंच चुकी है। दोनों ही जगहों पर जिला, अनुमंडल का माप-तौल विभाग भी कार्रवाई नहीं करता है, भले ही माप-तौल विभाग के अधिकारी-कर्मचारी अपने काम और अपनी नौकरी की शर्र्तें फर्जी कागजों में पूरी करते हों।
अतिक्रमण और पसरा कचरा चींख-चींख कर करता है दुर्दशा का ऐलान
भाजपा नेता डेहरी चैम्बर ऑफ कॉमर्स के सचिव और डेहरी विकास मोर्चा के अध्यक्ष बबल कश्यप का कहना है कि डेहरी-आन-सोन रेल स्टेशन का प्लेटफार्म नंबर 2, 3, 4, 5 ए-श्रेणी वाले स्टेशन के मानक के मुताबिक नहीं है, जिस वजह से ही हर साल दर्जनों की संख्या में लोग जान गंवाते हैं। प्लेटफार्म इतने नीचे हैं कि ट्रेन से उतरने में महिला, वृद्ध और बच्चा को ज्यादा कठिनाई होती है। ट्रेन से उतरते समय दो-तीन सीढ़ी बाद प्लेटफार्म मिलता है, जिससे यत्रियों का पैर फिसलने से ट्रेन व प्लेटफार्म के बीच में फंस जाने का अंदेशा हमेशा बना रहता है। ए-श्रेणी के इस रेल स्टेशन पर भारत सरकार का स्वच्छ भारत अभियान भी दम तोड़ता नजऱ आता है। स्टेशन परिसर और मुख्य गेट के पास अतिक्रमण और पसरा कचरा चींख-चींख कर इस रेल स्टेशन की दुर्दशा का ऐलान करता है। न जाने रेल अधिकारियों की कुम्भकर्णी नींद कब खुलेगी? स्टेशन के मुख्य-द्वार के पास लगा फव्वारा वरिष्ठ रेल अधिकारी के दौरे के समय ही आलादीन के चिराग की तरह चालू होता है और उसके जाते ही बंद हो जाता है।
शहर को कोई इमदाद नहीं, अपना वाजिब हक चाहिए
डेहरी-आन-सोन रेवेन्यू के मामले में दीनदयाल उपाध्य जंक्शन और गया जंक्शन के बीच सबसे अव्वल रेल स्टेशन है। डेहरी-आन-सोन शहर को नगर निगम का दर्जा देने की कवायद हो रही है। इसके आस-पास बांक, पहलेजा, बनजारी, औरंगाबाद में कारखाने लगे हुए हैं। निकटवर्ती सूअरा में कपड़ा आधारित कारखाना लगने की संभावना है और पड़ोस के डालमियानगर में रेलबोगी मरम्मत कारखाना लगने की संभावना भी अब है। यह रोहतास किला, तुतला और मनोरम पर्वतीय पर्यटन वाला इलाका है।
अनसुनी रही बरकरार तो आंदोलन ही होगा फिर एकमात्र रास्ता
बबल कश्यप का कहना है कि शहर की आम जनता और यात्रियों में रेल प्रशासन की कुव्यवस्था और रेल अधिकारियों के अनसुनेपन को लेकर काफी रोष है। डेहरी विकास मोर्चा, चैंबर्स आफ कामर्स सहित विभिन्न संगठनों की ओर से लगातार ज्ञापन दिया जाता रहा है। इस शहर को कोई इमदाद नहीं, अपना वाजिब हक चाहिए। अगर रेल विभाग ने अपनी अनसुनी को बरकरार रखा तो आंदोलन ही फिर एकमात्र रास्ता होगा।
(विशेष रिपोर्ट व तस्वीर : निशांत राज व सोनमाटी टीम, संपादन : कृष्ण किसलय)