प्रखर समाजसेवी लालता बाबू का जाना, एक युग का अंत : अंगद किशोर, अध्यक्ष सोन घाटी पुरातत्व परिषद एवं गवेषक सह इतिहासकार,
लगभग छह-सात दशक तक अपनी काबिलियत और व्यक्तित्व से जपला – हुसैनाबाद को साकारात्मक रूप से प्रभावित करने वाले चंद्रेश्वर प्रसाद उर्फ लालता बाबू का इस धरा धाम से जाना, क्षेत्र के लिए व्यापक और अपूर्णीय क्षति है। उनका इस दुनिया से कूच करना, सचमुच जपला – हुसैनाबाद के लिए एक जाज्वल्यमान तारा टूटने के समान है। कम से कम तीन पीढ़ियों को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करने वाले तथा खेल के क्षेत्र में अमिट छाप छोड़ने वाले लालता चाचा ने अंतिम सांस सोमवार को दोपहर रांची के हिल व्यू अस्पताल में ली। वे 15 दिनों से आई सी यू में भर्ती थे। उनका जन्म 1939 ई में हुआ था। वे अपने पीछे एक पुत्र आलोक कुमार और एक पुत्री शालिनी को छोड़कर गये हैं। प्रो इंदिरा उनकी भतीजी हैं।
जपला-हुसैनाबाद के रचनात्मक विकास में उनकी अहम भूमिका रही है। विशेषकर शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए वे सर्वथा याद किए जाएंगे। ए के सिंह महाविद्यालय, शहीद भगत सिंह महाविद्यालय तथा +2 बालिका उच्च विद्यालय के निर्माण से लेकर मान्यता दिलवाने में उन्होंने महत्वपूर्ण योगदान दिया है। यही नहीं, उन्होंने सरस्वती शिशु विद्या मंदिर को करोड़ों रुपए की जमीन दानस्वरूप देकर उसकी स्थापना का मार्ग प्रशस्त किया। आज उक्त शैक्षणिक संस्थानें वटवृक्ष का रूप धारण कर लिए हैं। भगवान विश्वकर्मा मंदिर के निर्माण में भी उन्होंने जमीन दान में दी है। आज उस स्थल पर भव्य विश्वकर्मा मंदिर स्थापित है। विगत 12 वर्षों से शिक्षा, चिकित्सा और मंदिरों के क्षेत्र में निरंतर सेवारत ‘आचार्य सिद्धेश्वर फाउंडेशन’ के निर्माण में उनकी प्रेरक और अग्रणी भूमिका रही है। इतिहास एवं पुरातत्व के क्षेत्र में सेवारत ‘सोन घाटी पुरातत्व परिषद’ के भी संरक्षक एवं मार्गदर्शक रहे हैं। कानून का विशेषज्ञ होने के कारण न केवल स्थानीय लोग उनसे परामर्श लेने आते थे, बल्कि प्रशासनिक अधिकारी भी उनका अनुभव का लाभ उठाते थे। लालता बाबू मानवीय रूप से इतने संवेदनशील थे कि अपने घर में कार्यरत कर्मियों को भी प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा दिलाने का काम किया है। आधुनिक क्षेत्रीय इतिहास के परिप्रेक्ष्य में उनके साथ हमेशा चर्चा होती रही है। उन्होंने मुझे बताया था कि लोकनायक जयप्रकाश उन्हें गोद में खेलाए हैं और जब भी जे पी जपला आते, तो उन्हीं के घर में ठहरते थे।
बहरहाल चंद्रेश्वर प्रसाद उर्फ लालता बाबू चलते-फिरते एक संस्था थे। वे न केवल अनेक संस्थाओं के संरक्षक और जनक थे, प्रत्युत उच्च शिक्षा के क्षेत्र में अलख जगाने वाले प्रेरणा – पुरुष और मानवता के सच्चे सिपाही थे। अपने पिता की तरह वे भी दान देने में अग्रणी थे।
यूं तो वे अपने समय पर इस धरती से कूच किए हैं, मगर उनकी कमी यहां के लोगों को वर्षों तक खलती रहेगी। वस्तुत: वे सभी धर्मों से समभाव रखने वाले इस धरती के ऐसे लाल थे, जिनका सम्मान सभी धर्म व जाति के लोग करते थे। हुसैनाबाद अनुमंडल में होने वाले सभी कार्यक्रमों में उनकी उपस्थिति कार्यक्रम की सफलता की सूचक होती थी। उनका जाना, एक युग का अंत हो गया। उनकी कमी मुझे आजीवन अखरेगी। ऐसे यशस्वी महापुरुष को कोटि-कोटि नमन करते हुए मैं दिल की गहराइयों से विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं। ऊं शांति:।
- जपला पलामू, मो.नं.- 8540975076