

पटना-कार्यालय प्रतिनिधि। धान-परती भूमि में रबी फसल उत्पादन के दौरान किसानों को नमी की कमी और सिंचाई संबंधी समस्याओं से निपटने के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद का पूर्वी अनुसंधान परिसर,पटना द्वारा विशेष प्रयास किया जा रहा है, जिसमें संस्थान के निदेशक डॉ.अनुप दास और डॉ. राकेश कुमार, वरिष्ठ वैज्ञानिक द्वारा किसानों को उन्नत कृषि तकनीकों द्वारा धान-परती भूमि प्रबंधन में सुधार और उत्पादन क्षमता बढ़ाने के लिए प्रशिक्षण दिया जा रहा है।
इस कार्यक्रम की शुरुआत भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद का पूर्वी अनुसंधान परिसर पटना द्वारा वर्ष 2023 में हुई थी। धान-परती भूमि में दलहन और तिलहन फसलों के बेहतर उत्पादन हेतु डॉ. अनुप दास एवं उनकी बहु विषयक वैज्ञानिकों की टीम द्वारा व्यापक और सघन रूप से कार्य किया जा रहा है। विदित हो कि गया जिले में 25 हजार हेक्टेयर धान-परती भूमि का रकबा है,जिसमें धान के बाद कोई दूसरी फसल नहीं लगाई जाती है, जिससे उस क्षेत्र के किसानों की माली हालत दयनीय है।
इस परियोजना के तहत किसान दूसरी फसल जैसे दलहन और तिलहन को लगाकर अपने आर्थिक स्थिति को समृद्ध कर सकते हैं। इसके तहत गया जिले के टिकारी प्रखंड के गुलेरियाचक गाँव में वैज्ञानिकों की टीम इस परियोजना को मूर्त रूप देने में लगी है। अभी तक पूर्ण रकबा 300 एकड़ में कम अवधि प्रजाति की धान एवं उसके उपरांत दलहन एवं तिलहन फसल का संरक्षण कृषि के माध्यम से अवशिष्ट नमी पर संस्थान के वैज्ञानिकों ने सफल परीक्षण किया है और इससे आस-पास के किसानों में धान-परती भूमि को हरा भरा करने की एक आस जगी है।
इस दिशा में शनिवार को गया जिले के टेकारी प्रखंड के गुलेरियाचक गांव में आयोजित एक कार्यक्रम में संस्थान से आए राम कुमार मीना, तकनीशियन, रणधीर कुमार, वरिष्ठ अनुसंधान फेलो और श्रीकांत चौबे, प्रक्षेत्र सहयोगी ने किसानों को विभिन्न उन्नत कृषि उपायों की जानकारी दी। मृदा जांचने के लिए चना,मसूर और कुसुम का किसानों के खेतो से मृदा नमूना लिया गया। इस कार्यक्रम में मिट्टी की नमी बनाए रखने के लिए उपयुक्त उपायों पर विशेष चर्चा की गई, साथ ही दलहन और तिलहन 75 एकड़ की सर्वोत्तम किस्मों की पहचान और उनके फायदे भी बताए गए। विशेष रूप से उर्वरक प्रबंधन, सिंचाई प्रणाली और मृदा संरक्षण के महत्व पर किसानों को विस्तार से बताया गया।
किसानों को एनपीके (15:15:15) स्प्रे के लाभ के बारे में भी बताया गया, जो असिंचित परिस्थितियों में फसलों की वृद्धि में सहायक होता है और सूखा सहनशीलता में वृद्धि करता है। इस विशेष उर्वरक का प्रयोग फसलों की उत्पादन क्षमता में सुधार लाती है और जल की कम उपलब्धता वाले क्षेत्रों में उपज में वृद्धि होती है। इस कार्यक्रम में किसानों ने सक्रिय रूप से भाग लिया और कृषि विज्ञान केंद्र, मानपुर, गया ने इस आयोजन को सफल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस तरह के कार्यक्रमों से किसानों को कृषि में आधुनिक तकनीकों का प्रयोग करने की प्रेरणा मिलती है।